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अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के मौजूदा उधार दरों का विश्लेषण

2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र देखने के लिए ऋण ब्याज दरों में कटौती समय की मांग है। - विकास सिन्हा

 

देश के विकसित होने का अनुमान उसके ब्याज दरों से लगाया जा सकता है। मुख्यतः यह देखा गया है कि जब एक देश विकास की राह पर बढ़ता है, उसके ब्याज दर में गिरावट होने लगती है। जहा एक तरफ जापान, स्विट्ज़रलैंड, चीन, सिंगापुर, एवं स्वीडन जैसे देशों में भारित ब्याज दरें काफी कम है, वही टर्की, अर्जेंटीना, रूस जैसे देशों में ये काफी ज्यादा है, जो उनके विकसित होने या न होने को अंकित करता है। भारत की बात करें तो अपने देश में जहां यह औसत उधार दर वर्ष 1975 में 16 प्रतिशत से 17 प्रतिशत के बीच थी और समय के साथ ये दर वर्ष 2008-2009 में 11 प्रतिशत के लगभग आ गया। हाल ही में रिज़र्व बैंक के द्वारा प्रकाशित आंकड़ों को देखने पर कुछ महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों का बकाया ऋण साल दर साल तेजी से बढ़ता जा रहा है जो भारत की आर्थिक वृद्धि को दर्शाता है। जहाँ मार्च 2021 में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों का बकाया ऋण 10738441 करोड़ रूपए था, वही जून 2024 तिमाही के अंत में यह आंकड़ा 16695867 करोड़ रूपए पहुंच गया। अर्थात 55 प्रतिशत की वृद्धि रही जो एक विकासशील देश के लिए अनुकूल सख्या मानी जा सकती है। भारतीय रिज़र्व बैंक के भारतीय अर्थव्यवस्था पर डेटाबेस को गौर से देखने से यह पता लगता है की विगत दस वर्षों में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की भारित औसत उधार दर में काफी कमी आयी है। जहा मार्च 2014 को समाप्त तिमाही में यह दर 12.04 प्रतिशत था वहीं जून 2024 को समाप्त तिमाही में यह दर 10.23 प्रतिशत रहा, अर्थात दस वर्षों में बैंकों द्वारा दी गयी उधार दर में लगभग 1.80 प्रतिशत की कमी आयी है, आंकलन करने पर यह देखने को मिलता है कि मार्च 2022 को समाप्त तिमाही में यह दर 8.90 प्रतिशत तक नीचे आ गया था। वहीं जून 2024 को समाप्त तिमाही में यह दर 1023 प्रतिशत रहा, किन्तु भारत जैसे विकाशसील देश के लिए क्या यह दर सही है, यदि विकसित देशों से हम तुलना करें तो ब्याज दरें काफी अधिक लगती है। नीचे दी गयी सारणी में विकसित तथा विकासशील देशों के बकाया ऋण दर की तुलना की गयी है।


ब्याज दर - देश सूची (डेटाबेस की सारणी 1.8)

देश                                        ब्याज दर               संदर्भ
जापान                                         0.25                अगस्त/24
स्वीटजरलैंड                                   1.25                अगस्त/24
चीन                                            3.35                अगस्त/24
साउथ कोरिया                                 3.5                 अगस्त/24
सिंगापुर                                        3.57                अगस्त/24
कनाडा                                         4.25                सितंबर/24
साउथ अफ्रीका                                8.25                जुलाई/24
ब्राजील                                        10.5                 अगस्त/24
मेक्सिको                                      10.75                अगस्त/24
रसिया                                         18                    जुलाई/24
अर्जेटीना                                       40                   अगस्त/24
तुर्की                                            50                   अगस्त/24


भारतीय रिज़र्व बैंक के “भारतीय अर्थव्यवस्था पर डेटाबेस” को गौर से देखने से यह पता लगता है कि अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की भारित औसत उधार दर जून 2024 को समाप्त तिमाही में कृषि क्षेत्र के लिए 10.60 प्रतिशत, उद्योग के लिए 09.46 प्रतिशत रहा जबकि व्यक्तिगत ऋण के लिए 11.32 प्रतिशत तथा व्यक्तिगत क्रेडिट कार्ड के लिए यह 38.85 प्रतिशत रहा। विगत दस वर्षां में कृषि क्षेत्र में भारित औसत उधार दर में मात्र 0.5 प्रतिशत की कमी आयी है जो यह दर्शाता है कि हमें कृषि ऋण दरों में ध्यान देने की जरुरत है। मुद्रा योजना के तहत बैंक ऋण के साथ नया व्यवसाय शुरू करने के इच्छुक उद्यमी को 10 प्रतिशत से अधिक ब्याज दर का भुगतान करना होगा। एक तरफ़ जहाँ हम स्वरोजगार की बात करते है, जिसके लिए कम ब्याज दर पर ऋण की आवश्यकता होती है वही वर्तमान ऋण ब्याज दर इसके विपरीत है। पिछले कुछ वर्षों में मात्र खुदरा ऋण में ब्याज दरों में कमी है जिसके कारण खुदरा ऋण में भरपूर वृद्धि देखी जा सकती है।

ब्याज दर के अनुसार अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों का बकाया ऋण देखने से यह समझ में आता है कि जहाँ मार्च 2021 समाप्त तिमाही में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक अपने कुल बकाया ऋण का लगभग 25 प्रतिशत राशि औसतन 10 प्रतिशत से अधिक ब्याज पर देता था वही जून 2024 को समाप्त तिमाही में यह अनुपात 32 प्रतिशत पहुंच गया है अर्थात अधिक ब्याज पर दी जाने वाले ऋण की संख्या तथा कुल धनराशि काफी बढ़ गयी है। यद्यपि कोविद-19 महामारी के पश्चात विश्वव्यापी बकाया ऋण दरों में बढ़ोतरी हुई है उसके परिणाम हमारे देश को भी उठाने पड़ें है परन्तु लम्बी अवधि में भारत में भारित औसत उधार दर में अपेक्षित गिरावट नहीं हुई है और उसका परिणाम ये है की जिस तेजी से भारत में ऋण वृद्धि होनी चाहिए थी वो नहीं हुई।

यह एक आर्थिक धारणा है कि उच्च ब्याज दर कम मुद्रास्फीति की ओर ले जाती है। आरबीआई मौद्रिक दरों को कम करने या बढ़ाने जैसे विभिन्न उपायों का उपयोग करके मौद्रिक नीति के माध्यम से ब्याज दरों को नियंत्रित करता है। लेकिन मुद्रास्फीति और ब्याज के बीच संतुलन बनाना सहजता से संतुलित करना एक कला है। मुद्रास्फीति की संख्या के साथ आरबीआई के जुनून को एमपीसी समिति की बैठकों और परिणामस्वरूप रेपो दर की स्थिरता में देखा जा सकता है। 9 अगस्त, 2024 को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने प्रमुख नीतिगत रेपो दर को लगातार नौवीं बार 6.50 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखने का निर्णय लिया जिसके दुष्परिणाम उच्च उधार दर, कम तरलता अपर्याप्त ऋण वृद्धि और अंततः भारत के विकास को नुकसान पहुंचा रही है। 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र देखने के लिए ऋण ब्याज दरों में कटौती समय की मांग है।                

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