धुम्रपान और तंबाकू पर रोक का कोई असर नहींः धुएं में बर्बाद होता भारत का भविष्य
धुम्रपान को रोकने के लिए विकसित देषों में अपनाए गये विकल्पों पर विचार करना जरूरी है। इससे तंबाकू के सेवन पर रोक लगाने में कारगर सफलता मिल सकती है। - विक्रम उपाध्याय
भारत में धुम्रपान एक आम समस्या है। इसके साथ ही सूखा नषा लोगों को बुरी तरह जकड़ रहा है। यह एक ऐसी बुराई है जो व्यक्ति की मानसिक और शारीरिक स्थिति को बिगाड़ देती है। यह आदतें न केवल व्यक्ति के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाती हैं, बल्कि समाज पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं। नषे की गिरफ्त में आकर लोग अक्सर अपनी जिम्मेदारियों को नजरंदाज कर देते हैं और सामाजिक संबंधों में भी तनाव उत्पन्न होता है। इसके प्रभाव से बचने के लिए षिक्षा और जागरूकता की आवष्यकता है, साथ ही नषे के खिलाफ समाज में एक ठोस प्रयास करने की जरूरत है। केवल व्यक्तिगत और सामूहिक प्रयास ही इस समस्या को समाप्त कर सकते हैं। विभिन्न स्रोतों और सर्वे के नतीजे बताते हैं कि अकेले राजधानी दिल्ली में ही कम से कम 20 फीसदी युवा इस तरह की चीजों के आदि हो चुके हैं। सार्वजनिक स्थानों पर प्रतिबंध के बावजूद इसको रोकने के लिए अभी तक की कोषिषें नाकाम साबित हुई हैं। राजधानी दिल्ली में आम स्थानों के साथ-साथ अत्यधिक सुरक्षित क्षेत्रों, हाई प्रोफाइल इलाके और एलीट जोनों, बड़े मार्केटों में यह उपलब्ध है। दिल्ली के कनॉट प्लेस, चांदनी चौक, प्रेस क्लब, वीमेन प्रेस क्लब के साथ-साथ विश्वविद्यालयों, कोचिंग संस्थानों, सरकारी विभागों, राजनीतिक दलों के दफ्तरों के आसपास भी सूखे नषीले पदार्थ तंबाकू, सिगरेट, पान मसाला, गुटखा, हुक्का, चूरूट आदि खुलेआम स्ट्रीट वेन्डर्स, स्ट्रीट स्टॉल्स, स्ट्रीट मार्केट्स, कियोस्क्स, पॉप-अप शॉप्स पर मौजूद हैं। इस पर पूरी तरह से बैन नहीं लग पा रहा है। सरकार हर साल अधिसूचना जारी कर इस पर प्रतिबंध को आगे बढ़ा देती है। पिछला आदेष 10 अगस्त 2023 को दिल्ली के उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना ने जारी किया था।
इसको बैन करने को लेकर अप्रैल 2023 में एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने साफ तौर पर सरकार से पूछा था कि हर साल नई अधिसूचना जारी करने के बजाय इस पर स्थायी रूप से प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया जा रहा है। तब गुटखा निर्माताओं की ओर से कहा गया था कि सिर्फ हेल्थ इमरजेंसी में ही इस पर अस्थायी प्रतिबंध लगाया जा सकता है। उनका कहना था कि मौजूदा कानूनी ढांचे और लीगल फ्रेमवर्क में इस पर पूरी तरह पाबंदी लगाना संभव नहीं है। इस पर रोक के लिए कानून बनाने में भी तमाम अड़चनें हैं।
इन तर्कों और दलीलों के चलते दिल्ली नषे के कारोबार का बड़ा केंद्र बन गया है। इसके पीछे नषीले पदार्थों की आसान उपलब्धता तथा गरीबी, बेरोजगारी और सामाजिक तनाव के चलते हो रहे डिप्रेषन को कम करने में मदद मिलने जैसी बड़ी वजह भी है। इसके साथ ही मौजूदा पारिवारिक ढांचा और षिक्षा की कमी से हो रहे भटकाव तथा अज्ञानता भी नषे को बढ़ावा देने में मददगार बन रहा है। इसका सबसे बुरा असर हमारे कम उम्र के कालेज-गोइंग लड़के-लड़कियों पर पड़ रहा है। थोड़ी सी मस्ती, अति उत्साह और सामाजिक आचार-विचार के प्रति बेरुखी के चलते खुद को बिंदास, बेपरवाह दिखाने के लिए ड्रिंक्स, स्मोकिंग, च्युइंग एडिक्षन जैसी आदतें अपनाने को वह जरूरी मान बैठे हैं।
गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता और नषे के खिलाफ जागरूकता लाने के लिए मेडिकल जर्नल प्रकाषित करने वाले अभय प्रताप कहते हैं कि हर कोई जानता है कि नषा एक जहर है, लेकिन इस जहर के बदले जो थोड़ा सा मजा, आनंद और मनोरंजन मिलता है, उसे वह सोषल स्टेटस के लिए अतिजरूरी मान बैठे हैं। इसे छोड़ने के लिए वह कतई राजी नहीं हैं।
सबसे बड़ी समस्या यह है कि इसमें हानिकारक सामग्री की मात्रा को कम या अलग-अलग करके नहीं बेचा जा रहा है। गुटखा में तंबाकू की कितनी मात्रा हो, इसको लेकर कोई गाइडलाइंस नहीं है। इसको खाना अगर जरूरी ही है तो बिना तंबाकू वाले इसके फ्लेवर क्यों नहीं बनाए जा रहे हैं, जिससे इसको खाने का मजा तो आए, लेकिन स्वास्थ्य पर कोई बुरा असर नहीं पड़े।
दिल्ली में सूखे नषे में केवल तंबाकू या गुटखा ही नहीं इस्तेमाल हो रहा है। तस्करी चोरी के जरिए बड़े पैमाने पर गांजा, हेरोइन, स्मैक, चरस, कोकेन, मेथिलीनडायऑक्सी-मेथाम्फेटामाइन (एमडीएमए) एक्स्टसी सिंथेटिक टैबलेट और पाउडर, मेफेड्रोन पाउडर और कैप्सूल तथा कोडीन मिला हुआ कफ सिरप को लाकर भी बेचा जा रहा है। नए जमाने में सुरक्षा के नाम पर ई-सिगरेट का भी प्रचलन बढ़ गया है। इसमें धुआं भले ही न हो, लेकिन निकोटीन होने से स्वास्थ्य के लिए नुकसान में जरा सी भी कमी नहीं है।
पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित और सर गंगा राम अस्पताल नई दिल्ली में वरिष्ठ सलाहकार मेडिसिन डॉ. मोहसिन वली कहते हैं, “भारत में तंबाकू सेवन करने वालों, विषेष रूप से धूम्रपान करने वालों की बढ़ती संख्या के चलते इस पर नियंत्रण के लिए बनाई गई नीतियों की तुरंत समीक्षा की जरूरत है। निकोटीन रिप्लेसमेंट थेरेपी (एनआरटी), गर्म तम्बाकू उत्पाद (एचटीपी) और स्नस (धुआं रहित तंबाकू) जैसे वैज्ञानिक रूप से सुरक्षित विकल्पों के इस्तेमाल से नषे पर रोक लगाने में महत्वपूर्ण कामयाबी मिली है। हालांकि एनआरटी को मेडिकल स्टोर पर केवल डॉक्टरों के प्रिस्क्रिप्षन पर लिया जा सकता है। इसे सीधे कोई नहीं ले सकता है।“
बीएलके-मैक्स सुपर स्पेषियलिटी हॉस्पिटल दिल्ली के सीनियर कंसल्टेंट, पल्मोनरी मेडिसिन डॉ. पवन गुप्ता कहते हैं, “राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण - 5 (एनएफएचएस-5) में तम्बाकू सेवन का 27.3 प्रतिशत प्रचलन चिंताजनक है। लोगों में इसका प्रचलन बढ़ रहा हैं, क्योंकि देष भर में सड़क वाली दुकानों में तंबाकू आसानी से उपलब्ध है। मौजूदा सरकारी नीतियां इस आदत को रोकने और तंबाकू छोड़ने में प्रभावी रूप से सहायता करने में विफल रही हैं। कानून और नीतियों को बनाने वाली संस्थाओं को इसमें हस्तक्षेप करना चाहिए। इसको रोकने के लिए विकसित देषों में अपनाए गये विकल्पों पर विचार करना जरूरी है। इससे तंबाकू के सेवन पर रोक लगाने में कारगर सफलता मिल सकती है।“
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