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भारतीय भू-जल की वास्तविकता 

पूरे देश में जल आपूर्ति का प्रश्न गंभीर रूप ले रहा है और यह कहने के लिए किसी रिपोर्ट की आवश्यकता नहीं है।  — अनिल जवलेकर

 

भारतीय जीवन बहुतायत भू-जल की स्थिति पर निर्भर करता है। गांव-गांव में और गली-गली में खड़े जो हैंड-पंप दिखाई देते है, वह यही कहते है। यह बात और है कि बहुतों में पानी नहीं आता है और आता भी है तो बहुत गहरे तल से। क्योंकि यह आम राय है कि भू-जल स्रोत के लिए बहुत गहराई तक खुदाई करनी पड़ती है और आए दिन भू-जल स्तर नीचे ही जा रहा है। लेकिन हाल ही में केंद्रीय भूमि जल बोर्ड और राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने एक ‘डायनेमिक ग्राउंड वॉटर रिसोर्स असेसमेंट रिपोर्ट 2022’ (सक्रिय भूमि जल संसाधन मूल्यांकन रिपोर्ट-2022) प्रकाशित की ह,ै जिसके अनुसार, देश में भू-जल री-चार्ज में बढ़ोतरी देखी गई है और अति दोहन किए जाने वाली इकाइयों की संख्या तथा भू-जल की निकासी-स्तर में गिरावट भी दर्ज की गई है। वैसे यह है तो सकारात्मक बात। लेकिन इस पर संतुष्ट रहना भविष्य में खतरे से कम नहीं होगा। यह नहीं भूलना चाहिए कि भू-जल से ही कृषि सिंचाई का 62 प्रतिशत, ग्रामीण विभाग की जल आपूर्ति का 85 प्रतिशत और शहरों के जल आपूर्ति का 50 प्रतिशत जल आता है।  

मूल्यांकन रिपोर्ट क्या कहती है? 

1.    वर्ष 2022 की इस मूल्यांकन रिपोर्ट के अनुसार, संपूर्ण देश के लिये कुल वार्षिक भू-जल री-चार्ज 437.60 अरब घन मीटर है तथा संपूर्ण देश में वार्षिक रूप से 239.16 अरब घन मीटर भू-जल निकाला गया। इसका मतलब यह है कि जितना रिचार्ज होता है उससे 60 प्रतिशत जल निकाला जाता है। 2022 के डाटा से यह भी पता चलता है कि निकालने योग्य भू-जल के मुक़ाबले में हरियाणा ने 134 प्रतिशत, पंजाब ने 166 प्रतिशत और राजस्थान ने 151 प्रतिशत ज्यादा भू-जल निकाला है। 

2.    देश में कुल 7089 मूल्यांकन इकाइयों में से 1006 इकाइयों को ‘अति-दोहन’ की श्रेणी में रखा गया है। रिचार्ज के मुक़ाबले भू-जल निकालने की स्थिति भी महत्वपूर्ण है। 14 प्रतिशत इकाइयां रिचार्ज से ज्यादा भू-जल निकाल लेती है। इसमें से 4 प्रतिशत इकाइयां रिचार्ज हुआ, 90-100 प्रतिशत जल निकाल लेती है। 67 प्रतिशत इकाइयां सुरक्षित श्रेणी में है, जिससे रिचार्ज हुआ भू-जल 70 प्रतिशत या उससे कम निकाला जाता है। 

3.    वर्षा ही भू-जल के रिचार्ज का मुख्य स्रोत है, जो करीब 61 प्रतिशत भू-जल रिचार्ज करता है। यह वर्षा बहुत से प्रांतों में जून-सितंबर में होती है। बाकी 39 प्रतिशत जल भराव सिंचाई कैनाल, तालाब वगैर से जल रिझाव से होता है। यह भी देखा गया है कि भारत की दो तिहाई भूमि दरारों वाली होने के कारण जल को रोककर नहीं रख सकती, जिसका भू-जल रिचार्ज पर असर होता है।  

4.    रिचार्ज योग्य क्षेत्र का विचार किया तो यह देखा गया कि 24.69 लाख वर्ग किमी. में से 66 प्रतिशत क्षेत्र सुरक्षित श्रेणी में आता है। 17 प्रतिशत क्षेत्र अति दोहन तथा 15 प्रतिशत खतरनाक तथा खतरनाक जैसे स्थिति में आता है। मतलब करीब 32 प्रतिशत क्षेत्र शोचनीय स्थिति में है। 

5.    ज्यादा निकलने वाला जल क्षेत्र साधारणतः देश का उत्तर-पश्चिम क्षेत्र है, जिसमें पंजाब, हरियाणा, दिल्ली तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश आते है। राजस्थान और गुजरात जैसे राज्य जहां मौसम शुष्क होता है और रिचार्ज की स्थिति स्थिर नहीं होती, वहां भू-जल स्रोत पर दबाव रहता है। दक्षिणी राज्यों में जैसे कि कर्नाटक, तमिलनाडू, आंध्र प्रदेश में जल भराव की स्थिति क्रिस्टलाईन चट्टानों की वजह से कम है।  

6.    2022 के मानसून पूर्व जमा डाटा अनुसार देश के ज़्यादातर हिस्से में सर्वसाधारण जल की गहराई जमीन के नीचे 5 से 10 मीटर के दरमियान पाई गई। कुछ हिस्से में यह गहराई 2 मीटर पाई गई, तो कही 2-5 मीटर। बहुत से पश्चिमी-उत्तर क्षेत्र में यह गहराई (दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान) 20 से 40 मीटर तक नीचे पाई गई। 130 मीटर से भी ज्यादा गहराई पर जल जोधपुर जिले के खारा में पाया गया।  देश का प्रायद्वीप कहे जाने वाले क्षेत्र में यह जल 5 से 20 मीटर गहराई में पाया गया। 

7.    नवंबर 2021 के डाटा अनुसार, 70 प्रतिशत कुंओं की गहराई 5 मीटर तक पाई गई। 40 प्रतिशत कुंओं की गहराई 2 से 5 मीटर पायी गई और 29 प्रतिशत कुंओं की 2 मीटर। 40 मीटर गहरे कुएं चंदीगढ़, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में पाये गए। 116 मीटर से ज्यादा गहरा कुआं राजस्थान के देशनोख (बीकानेर जिला) में पाया गया। 

8.    नवंबर 2019 और नवंबर 2021 के बीच का डाटा यह बताता है कि करीब 55 प्रतिशत कुंओं का जलस्तर बढ़ा तथा 44 प्रतिशत कुंओं का कम हुआ। 

9.    87 प्रतिशत निकाला गया भू-जल कृषि के काम आता है और बाकी घरेलू तथा उद्योग क्षेत्र में उपयोग में लाया जाता है। उत्तर पूर्व राज्य-दिल्ली, केरल, गोवा, जम्मू एंड कश्मीर और लद्दाख में 40 प्रतिशत भू-जल घरेलू काम के लिए उपयोग में लाया जाता है। 

10.    रिपोर्ट आखिर में भू-जल को निकालने एवं उसके संतुलित उपयोग की बात करता है। 

भू-जल स्रोत को संभालना जरूरी 

पूरे देश में जल आपूर्ति का प्रश्न गंभीर रूप ले रहा है और यह कहने के लिए किसी रिपोर्ट की आवश्यकता नहीं है। ऐसे समय में रिचार्ज से कम भू-जल निकाला जाना समाधान दे सकता है।  लेकिन यह भी सही है कि भारत दुनिया में भू-जल के उपयोग में सबसे आगे है और यह कहा जाता है कि चीन और अमरीका दोनों मिलकर जितना भू-जल निकालते है उससे भी ज्यादा भारत भू-जल निकालता है। भारत की आबादी बढ़ रही है और शहर भी। निश्चित तौर पर अनियमित भू-जल का उपयोग जल समस्या बढ़ाएगा। जलवायु परिवर्तन से बदलता मौसम वर्षा को और अनियमित करेगा और भू-जल रिचार्ज पर असर करेगा। ऐसे समय में असीमित, अनियंत्रित और अनियोजित भू-जल का उपयोग समस्या गंभीर कर सकता है और यही बात इस विषय के विद्वान कह रहे है। इसलिए जल की बरबादी पर ध्यान देना सबसे जरूरी है। साथ-साथ जल निकासी का नियंत्रण और नियमन भी उपयोगी होगा। 

भू-जल के उपयोग में संतुलन जरूरी 

सांख्यिकी यह भी बताती है कि वार्षिक रिचार्ज 2004 के मुक़ाबले 2022 में सिर्फ 5 बीसीएम से बढ़ा है जबकि निकालने युक्त जल लगभग उतना ही है। हरित क्रांति की बुनियाद ही कृषि को जल आपूर्ति बढ़ाने पर थी और इसी के चलते सस्ते बिजली की नीति अपनाई गई और भू-जल का उपयोग बढ़ा।  हरी क्रांति के क्षेत्र में  ही भू-जल स्तर कम है और वहां रिचार्ज से ज्यादा भू-जल निकाला जाता रहा है। कुंओं की गहराई भी उसी क्षेत्र में ज्यादा है और यह जल समस्या को और भी गंभीर कर देता है।  जहां सतह पर जल होने के बावजूद उसका उपयोग न कर पाना और भू-जल के ऊपर निर्भर होना कई सवाल खड़ा करता है। पंजाब, हरियाणा जैसे राज्य गहराई में छुपे भू-जल उपयोग में लाते रहे है, जबकि इन्हीं क्षेत्र में सबसे ज्यादा नदियां बहती है। भू-जल और सतह पर उपलब्ध जल का संतुलित उपयोग पर ध्यान देना आवश्यक है।          

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