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मेड इन इंडिया बनाम मेड बाय इंडियन: सम्बल व संरक्षण से ही साकार होगा स्वदेशी का सपना

छोटे-छोटे भारतीय उद्योग बहुत बड़ी ताकत रखते हैं यह इस वर्तमान करोना काल में स्पष्ट हो गया, जब भारतीय छोटे-छोटे उद्योगों ने मास्क बनाने का काम, पीपीई किट बनाने का काम और वेंटिलेटर बनाने का काम भी बहुत ही अल्प समय में करके दिखा दिया। — डॉ. धर्मेन्द्र दुबे

 

केंद्र की वर्तमान सरकार ने स्वदेषी के प्रति रुचि दिखाते हुए “आत्मनिर्भर भारत“ के लिए “वोकल फॉर लोकल“ का नारा दिया है तथा स्थानीय उत्पादों को बढावा देने का आह्वान किया है। यह स्वदेषी उद्योगों के लिए सकारात्मक पहल है, पर इसके लिए लगे हाथ ‘मेड इन इंडिया बनाम मेड बाई इंडिया’ को लेकर आम जनता में व्याप्त असमंजस को दूर करने के लिए जागरूकता विमर्श का दायरा बढाना होगा। आम नागरिकों को स्वदेशी में ढ़ालकर ही आत्मनिर्भर भारत अभियान के निहितार्थों के फलितार्थ हासिल किए जा सकते है।

सवाल है स्वदेषी किसे कहेंगे? इसका सरल जबाव है कि स्वदेष में निर्मित वस्तु को स्वदेषी कहेंगे। जिस प्रकार चीन में निर्मित वस्तु को मेड इन चाइना, जापान में निर्मित वस्तु को मेड इन जापान, अमेरिका में निर्मित वस्तु को मेड इन अमेरिका कहा जाता है, ठीक वैसे ही भारत में निर्मित वस्तु को मेड इन इंडिया कहा जाता है। स्वदेषी के लिहाज से क्या मेड इन इंडिया वस्तु स्वदेषी वस्तु कहलाएगी? यह एक बड़ा प्रष्न है, जो वर्तमान संदर्भ में बहुत ही प्रासंगिक है। शाब्दिक अर्थ से अगर स्वदेषी का अर्थ निकाला जाता है तो ऐसी सभी वस्तुएं जो भारत में निर्मित है, वह स्वदेषी की श्रेणी में आती है। अतः मेड इन इंडिया वस्तुएं स्वदेषी वस्तुएं कहलाएंगी। परंतु आज जब ग्लोबलाइजेषन एवं मुक्त व्यापार के चलते बहुत सारी कंपनियां भारत में आकर के अपने कारखाने लगाकर निर्माण का कार्य कर रही है। “मेक इन इंडिया” के तहत इसको बढावा भी दिया जा रहा है। इन कंपनियों के भारत में उत्पादित सामान पर मेड इन इंडिया ही लिखा जाएगा, तो ऐसे में क्या यह सामान स्वदेषी सामान की श्रेणी में होगा, यह बड़ा एवं महत्वपूर्ण प्रष्न है?

उदाहरण स्वरूप मोबाइल की बड़ी चाइनीज कंपनियां ओप्पो और वीवो, जो अब तक चीन में मोबाइल का निर्माण करके भारत में मोबाइल बेचती आ रही थीं, उन पर मेड इन चाइना लिखा रहता था, अब इन कंपनियों ने अपने कुछ कारखाने भारत में लगा दिए और मोबाइल के कुछ पार्ट्स चीन से मंगाकर, कुछ भारत में निर्माण कर, उसको असेंबल करने का कार्य भारत में इनके कारखानो में किया जा रहा है। इन मोबाइल पर मेड इन इंडिया लिखकर बाजार में उपलब्ध कराया जा रहा है। तो क्या अब तक जिन चीनी कंपनियों के मोबाइलों को चाइना का होने के कारण हम बहिष्कार के रूप में देखते आ रहे हैं, क्या अब भारत में निर्माण कर देने से मेड इन इंडिया लिखा होने से उसे स्वदेषी मानेंगे?

इस संदर्भ में हमें पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के स्वदेषी पर विचार को देखना होगा। उन्होनें कहा था, “मैं उन वस्तुओ को जिनका स्वदेष में निर्माण तो किया जाता है, किन्तु उनका सारा लाभ विदेषों को भेज दिया जाता है, स्वदेषी मानने को तैयार नही हूँ”। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का उक्त कथन स्वदेषी बनाम मेड इन इंडिया विषय को स्पष्ट कर देता है। 

विदेषी कंपनी द्वारा भारत में आकर सामान निर्माण करके उस पर मेड इन इंडिया टैग लगा देने से उस सामान को स्वदेषी नहीं माना जा सकता। ऐसे में मेड इन इंडिया स्वदेषी न होकर मेड बाय इंडियन ही स्वदेषी कहलायेगा। आत्मनिर्भर भारत तभी संभव है जब भारतीय आत्मनिर्भर हो, और भारतीयों के आत्मनिर्भर होने से भारत आत्मनिर्भर हो। मुक्त व्यापार अथवा प्रत्यक्ष विदेषी निवेष के कारण विदेषी कंपनियों द्वारा भारत में उत्पादन कर देने से भारत आत्मनिर्भर नहीं होगा। ऐसे में नए नारों के साथ स्वदेषी की परिभाषा भी आमजन में स्पष्ट करने की आवष्यकता है।

लोकल वही है जो भारतीय नागरिकों द्वारा उत्पादित किया जा रहा है। विदेषी कंपनी अथवा विदेषी नागरिकों द्वारा  उत्पादित सामान लोकल नहीं हो सकता, यह भी हमें समझना होगा अन्यथा इस महत्वपूर्ण आह्वान का दुरुपयोग विदेषी मल्टीनेषनल कंपनियों द्वारा आसानी से कर लिया जाएगा और हम वहीं के वहीं रह जाएंगे।

वैसे भी स्वदेषी का सीधा संबंध स्वदेष से है। स्वदेष यानी हमारी जन्मभूमि। यही संकल्पना हमारे पौराणिक ग्रंथ वाल्मीकि रामायण में राम-लक्ष्मण के संवाद में परिलक्षित होती है जिसमें कहा गया है -

अपि स्वर्णमयीलङ्का न मे लक्ष्मण रोचते।
जननी जन्मभूमिष्च स्वर्गादपि गरीयसी।।

भगवान राम लक्ष्मण से कहते हैं कि लक्ष्मण यद्यपि यह लंका सोने की बनी है, फिर भी इसमें मेरी कोई रुचि नहीं है क्योंकि जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान हैं।

स्वदेषी जागरण मंच के संस्थापक दत्तोपंत ठेंगड़ी जी  का मानना है कि “देष प्रेम की साकार अभिव्यक्ति है-स्वदेषी” यदि किसी को अपनी मातृभूमि से प्रेम है अर्थात देष से प्रेम है और उसकी अभिव्यक्ति करना चाहता है तो स्वदेषी को अपनाकर वह देष प्रेम का प्रकटीकरण कर सकता है।

आजादी के बाद भारत से अंग्रेज तो चले गए लेकिन अंग्रेजीयत नहीं गई। यही कारण रहा कि हमने विकास के लिए पश्चिम की ओर देखा और हमारी पूर्ववर्ती सरकारों ने अपनी नीतियों में सदैव भारत को गरीब पिछड़ा एवं अविकसित देश के रूप में विश्व में प्रस्तुत किया। स्वदेषी को अपना गौरव नहीं माना! स्वदेषी को कभी भी गुणवत्तापूर्ण नहीं माना! स्वदेषी का सदैव मजाक उड़ाया! स्वदेषी पर गर्व नहीं किया! स्वदेषी के लिए कभी गम्भीर वकालत नहीं की! यहां तक कि स्वदेषी अपनाने वाले को हेय दृष्टि से देखा! 

यह सब विदेषी कंपनियों का कुचक्र था, जो धीरे-धीरे हमारे मन में घर कर गया। बड़ी कंपनियों को बाजार तभी मिलता है जब उनके खरीदार हों। खरीदारों के मन में लालच पैदा करना ही मार्केटिंग का मूल है। बड़ी विदेषी कंपनियों ने इसी मार्केटिंग व विज्ञापन युग का सहारा लिया और फलते फूलते चले गये। दूसरी तरफ हमने स्वदेषी को अपनाने की बजाय भौतिकवादी दुनिया के चकाचौंध में विदेषी को अपनाना स्वीकार किया जिसका परिणाम यह हुआ कि हम और हमारी स्वदेषी पिछड़ती चली गई। यही कारण है कि आज हमारे पैर तो स्वदेषी हैं लेकिन जूता विदेषी है, दाढ़ी स्वदेषी है और ब्लेड विदेषी है, दांत स्वदेषी है-मंजन विदेषी है।

दूसरी ओर ग्लोबलाइजेषन के नाम पर पूरे विष्व को एक खुला बाजार बनाने की बड़ी कंपनियों एवं विकसित देषों की चाल में भारत जैसे अनेक विकासषील एवं अविकसित देष फस चुके हैं। इन्हीं बड़ी कंपनियों एवं विकसित राष्ट्रों ने पेटेंट कानून, डब्ल्यूटीओ अर्थात विष्व व्यापार संगठन और इस विष्व व्यापार संगठन के माध्यम से ट्रिप्स एवं ट्रिम्स जैसे विभिन्न समझौते करके मुक्त व्यापार को बढ़ावा दिया जिसने भारतीय बाजार को विदेषी सामानों से पाट दिया। छोटे घरेलू एवं मध्यम उद्योगों द्वारा उत्पादित स्वदेषी सामान इन विदेषी सामानों के आगे नहीं टिक पा रहा है। भारतीय अपने आप को एक स्वतंत्र उपभोक्ता मानते हुए केवल अपना फायदा और नुकसान देख रहे हैं। विदेषी सामानों को खरीदने में ही अपना बड़प्पन समझ रहे हैं, जिसके चलते स्वदेषी उत्पाद बाजार से गायब होते जा रहे हैं। 

रही सही कसर चीन ने पूरी कर दी। भारतीय उपभोक्ताओं की आवष्यकता को ध्यान में रखते हुए चीन ने बहुत ही सस्ते दाम पर अपना माल बाजार में भर दिया। इसके लिए चुनिन्दा लोगों को आर्थिक फायदा देकर मनमाफिक नियम कानून बनवाने में भी सफल रहा। इसके कारण छोटे एवं मध्यम भारतीय उद्योग धीरे धीरे घाटे में जाने लगे। अब तो आलम यह है कि तमाम भारतीय कंपनियां केवल ट्रेडिंग करने वाली कंपनी बनकर रह गयी है। ऐसे उद्योग अब सामानों का निर्माण नहीं करते क्योंकि उनके निर्मित सामानों का मूल्य अधिक होने से उन्हें आर्थिक हानि होती है। आज भारत में लगभग 63000 से अधिक प्रकार के सामानों का आयात चीन से होता है। 

तकनीकी रूप से जिसकी हमें आवष्यकता है उसका आयात हो तो समझ में आता है परंतु अंकल चिप्स, लेज, पेप्सी, कोको-कोला, रिन, कोलगेट जैसे विदेषी उत्पादों का आयात करते है जिसमें कि किसी भी तकनीकी की आवष्यकता नहीं है तो यह  स्वदेषी घरेलू उत्पादनों के बहिष्कार के समान है ओर एक प्रकार का अघोषित देषद्रोह है। श्रद्धेय ठेंगड़ी जी ने बड़े कॉरपोरेट का भी विरोध किया था। उनके अनुसार यदि बड़े-बड़े फंड वाली कंपनियां छोटे-छोटे उद्योगों द्वारा उत्पादन की जाने वाली वस्तुओं को उत्पादित कर बेचेंगी तो भारत के स्थानीय आत्मनिर्भरता के स्वप्न को बल नहीं मिलेगा, चाहे वह बड़ी फंड वाली कंपनी भारतीय ही क्यों ना हो।

छोटे-छोटे भारतीय उद्योग बहुत बड़ी ताकत रखते हैं। यह वर्तमान करोना काल में स्पश्ट हो गया जब भारतीय उद्योगों ने मास्क, पीपीई किट और वेंटिलेटर बनाने का काम भी बहुत ही अल्प समय में करके दिखा दिया। इस क्षेत्र मे भारतीय आवष्यकताओं की पूर्ति के साथ-साथ अन्य देषों के लिए निर्यात करने की स्थिति में भी भारतीय उद्योग धंधे पहुंच गए। 

अतः भारतीय उद्योग धंधों को किसी भी स्थिति में कमतर नहीं आंका जा सकता। आवष्यकता है तो केवल और केवल इनको संबल एवं संरक्षण प्रदान करने की। यदि हमारे इन उद्योग धंधों को संबल और संरक्षण मिलता है तो आने वाला समय इन्हीं उद्योग धंधों का होगा और बेरोजगारी जैसे विशयों पर इन्हीं उद्योग धंधों द्वारा अंकुष लगाया जा सकेगा। अतः हमें स्वदेषी को अपनाना पड़ेगा, न कि मेड इन इंडिया को।

लेखक स्वदेशी जागरण मंच के राजस्थान क्षेत्र के क्षेत्र संयोजक हैं।

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