swadeshi jagran manch logo

एक अदद मैन्युफैक्चरिंग नीति की जरूरत

इसमें कोई संदेह नहीं है कि पिछले कुछ दशकों में देश में विनिर्माण उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। गौरतलब है कि वर्ष 2000-01 में सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण का योगदान 19.6 प्रतिशत था, जो 2013-14 में घटकर 16.5 प्रतिशत और 2023-24 में और घटकर 14.3 प्रतिशत रह गया। इन आंकड़ों से परे यदि विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों पर गहराई से नजर डालें तो पता चलता है कि लगभग हर क्षेत्र में आयात पर देश की निर्भरता भयंकर रूप से बढ़ गई। एपीआई, इलेक्ट्रॉनिक्स, दूरसंचार, रसायन, कपड़ा और कई अन्य क्षेत्रों में विनिर्माण में गिरावट का असर यह हुआ है कि देश की अन्य देशों, विशेषकर चीन पर निर्भरता इतनी बढ़ गई है कि देश का व्यापार घाटा असहनीय स्तर पर पहुंचता जा रहा है। वर्ष 2023-24 तक यह व्यापार घाटा 238.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया, जिसमें से 85 बिलियन अमेरिकी डॉलर अकेले चीन से होने वाला घाटा था। लेकिन 2024-25 के पहले 10 महीनों में यह घाटा बढ़कर 243.0 बिलियन अमेरिकी डॉलर और चीन के साथ घाटा 83.52 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है।

यह समझना होगा कि कोई भी देश मैन्युफैक्चरिंग को नजरअंदाज करके आगे नहीं बढ़ सकता। मैन्युफैक्चरिंग को विकसित करने के प्रयास, सेवाओं में वृद्धि के आड़े नहीं आते, बल्कि मैनुफैक्चरिंग के विकास से सेवा क्षेत्र के विकास को बल जरूर मिलता है। हालांकि, आम तौर पर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को नजरअंदाज करने का सबसे बड़ा असर रोजगार पर पड़ता है। सर्विस सेक्टर में उत्पादन बढ़ने से रोजगार के अवसरों में कुछ वृद्धि जरूर होती है, लेकिन इतिहास पर नजर डालें तो मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में वृद्धि ने रोजगार सृजन में कहीं ज्यादा योगदान दिया है। हालांकि मौजूदा दौर में मशीनीकरण, रोबोटाइजेशन और एआई के कारण मैन्युफैक्चरिंग में रोजगार भी प्रभावित हो रहा है, लेकिन इन कारकों का सर्विस सेक्टर पर ज्यादा असर पड़ रहा है। इसके अलावा, मैन्युफैक्चरिंग में व्यवधान के कारण देश की विदेशों पर निर्भरता बढ़ जाती है, जिसके कई प्रतिकूल प्रभाव हो सकते हैं। सबसे पहले, विदेशी देशों से आपूर्ति बाधित होने के कारण महत्वपूर्ण घटकों की आपूर्ति पर निर्भर उद्योगों में देश में उत्पादन ठप हो सकता है। दूसरा, अन्य  देशों पर देश की बढ़ती निर्भरता से बहुमूल्य विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आ सकती है। तीसरा, आधुनिक युग में इलेक्ट्रॉनिक्स और टेलीकॉम का विशेष महत्व है। विदेशों से इलेक्ट्रॉनिक सामान आयात करने से हमारा देश आपूर्तिकर्ता देश के साथ अंतर्निहित कोडिंग के नियंत्रण के कारण असुरक्षित हो सकता है। भारत के साथ चीन के शत्रुतापूर्ण रुख के कारण यह खतरा है कि चीन इस स्थिति का हथियार के रूप में इस्तेमाल कर सकता है। चौथा, चीन आयात करने वाले देशों में उद्योगों को खत्म करने के लिए डंपिंग जैसी अनैतिक गतिविधियों में भी संलग्न है। चीन द्वारा एपीआई डंपिंग इसका जीता जागता उदाहरण है कि कैसे चीन ने हमारे एपीआई उद्योग को धोखे से खत्म कर दिया और हमारे दवा उद्योग को चीनी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भर बना दिया, जिससे हमारी स्वास्थ्य सुरक्षा खतरे में पड़ गई। डंपिंग के ज़रिए सामान इतने सस्ते में बेचा जाता है कि देश में उन सामानों का उत्पादन बंद हो जाता है, जिससे देश का औद्योगिक विकास बाधित होता है। बाद में जब देश विदेशी आपूर्ति पर निर्भर हो जाता है, तो आपूर्तिकर्ता देश स्थिति का फ़ायदा उठाना शुरू कर देते हैं। 

वैश्वीकरण के प्रभाव में, नई आर्थिक नीति यानी एनईपी के दिनों से ही विनिर्माण नीति प्रचलन से बाहर हो गई थी। शायद यही कारण है कि 1991 की नई आर्थिक नीति की घोषणा के बाद भारत सरकार ने कभी कोई औद्योगिक नीति घोषित नहीं की। बल्कि एनईपी के दौर में, देश के लिए औद्योगिक नीति या विनिर्माण नीति के बारे में बात करना भी एक अपराध की तरह माना जाता था, क्योंकि प्रचलित सोच यह थी कि औद्योगिक या विनिर्माण नीति की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि निर्बाध बाजार शक्तियां, स्वतः ही अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञता को जन्म देंगी और जो देश अधिक कुशलता से कुछ उत्पादन कर सकता है, वह अन्य देशों को निर्यात करेगा, और अन्य वस्तुओं का आयात करेगा, जिसमें उसका तुलनात्मक लाभ नहीं है। लेकिन, अब दुनिया वैश्वीकरण के कड़वे परिणाम का स्वाद चख चुकी है, जिसके तहत चीन या उसके कुछ साझेदारों को छोड़कर दुनिया के लगभग सभी देशों में विनिर्माण बुरी तरह प्रभावित हुआ है। 

दुनिया अब एक ही देश, अर्थात् चीन में रणनीतिक उद्योगों में क्षमताओं के उच्च संकेंद्रण के जोखिम को महसूस कर रही है। सौर पीवी आपूर्ति शृंखला का 81 प्रतिशत से अधिक, ईवी निर्माण का 65 प्रतिशत, लिथियम बैटरी निर्माण का 66 प्रतिशत अकेले चीन के पास है। महत्वपूर्ण कच्चे माल की आपूर्ति में चीन का दबदबा है। यह उच्च सांद्रता दुनिया को खतरे में डाल रही है क्योंकि चीनी इसका हथियार के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं और इसका इस्तेमाल अन्य देशों के घरेलू उद्योगों को डंप करके मारने के लिए भी किया जा सकता है। स्थिति से निपटने के लिए अमेरिका, यूरोपीय देश और जापान सहित विकसित देश अपनी औद्योगिक नीति को आकार देने की कोशिश कर रहे हैं। अमेरिका 2022 में अपनाए गए 3 नए अधिनियमों के तहत विनिर्माण को पुनर्जीवित करने के लिए सैकड़ों अरबों की सब्सिडी और कर छूट की पेशकश कर रहा है। अमेरिका और अन्य देश आपूर्ति श्रृंखलाओं को बढ़ावा देने के लिए कई उपाय अपना रहे हैं, जिसमें प्रोत्साहन, सब्सिडी, संरक्षणवाद और घरेलू सामग्री आवश्यकताओं सहित रणनीतिक हस्तक्षेप शामिल हैं। यूरोपीय संघ की ग्रीन डील औद्योगिक योजना, यूरोपीय बैटरी गठबंधन, कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (सीबीएएम) और चीन से ईवी आयात पर टैरिफ भी इस संबंध में उल्लेखनीय हैं। जापान 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर के फंड के माध्यम से आपूर्ति श्रृंखलाओं को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहन दे रहा है। 

आज जब विकसित देशों समेत पूरी दुनिया वैश्वीकरण की नीतियों के कारण घुटन महसूस कर रही है और अपनी विनिर्माण नीतियों को डिजाइन करने की दिशा में आगे बढ़ रही है और उन्हें मुक्त व्यापार की हठधर्मिता से मुक्त कर रही है, यह यही समय है जब हमें देश में एक व्यापक विनिर्माण नीति बनाने के बारे में सोचना चाहिए।

Share This

Click to Subscribe