swadeshi jagran manch logo

भारत का विनिर्माण और प्रगति

भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने का लगातार प्रयास कर रहा है। इस दिशा में भारत का विनिर्माण क्षेत्र देश के आर्थिक विकास में एक महत्वपूर्ण योगदानकर्ता है। - के.के श्रीवास्तव

 

विनिर्माण क्षेत्र भारत की आर्थिक वृद्धि की आधारशिला है। इस क्षेत्र को विकसित करने के लिए भारत सरकार द्वारा ‘मेक इन इंडिया’ पहल को आज से 10 वर्ष पूर्व 25 सितंबर 2014 में लागू किया गया था, इसके बाद से विनिर्माण गतिविधियों में वृद्धि देखी गई। लेकिन बीते दिनों जब इस पहल के 10 वर्ष पूर्ण हुए तो एक रिपोर्ट आई, जिसमें पाया गया कि विकास दर धीमी हो रही है और अर्थव्यवस्था के व्यापक प्रक्षेप पथ पर असर पड़ रहा है। इसके साथ ही वैश्विक मूल्य शृंखला (जीवीसी) में भारत के एकीकरण को लेकर चुनौतियां बढ़ रही हैं। जीवीसी से संबंधित व्यापार जो मल्टीस्टेज व्यापार प्रक्रिया में एक देश की भागीदारी को दर्शाता है, वर्तमान में विनिर्माण क्षेत्र में इसका योगदान सकल व्यापार का 50 प्रतिशत से अधिक है।

सकल व्यापार में जीविसी-संबंधित व्यापार का क्षेत्रीय विघटन निम्नलिखित हैः


सेक्टर                                               2014        2022
कृषि, वानिकी और मत्स्य पालन               20.0        23.8
निर्माण                                                21.4        39.5
सेवाएँ                                                 25.8        27.8
विनिर्माण                                            46.1        51.6


हालांकि जीवीसी संबंधित व्यापार में भारत की भागीदारी रूस और वियतनाम से काफी कम रही है। वियतनाम की भागीदारी 57.02 प्रतिशत (2014) और 62.8 प्रतिशत (2022) है और रूस की हिस्सेदारी 45.4 प्रतिशत (2014 ) और 42.02 प्रतिशत (2022) दर्ज की गई है, जबकि भारत का सकल व्यापार में जीवीसी संबंधित व्यापार की हिस्सेदारी 2014 में 41.0 प्रतिशत और 2022 में मात्र 40.3 प्रतिशत है।

मेक इन इंडिया पहल का उद्देश्य भारत में विनिर्माण गतिविधियों और निवेश को बढ़ाना है। हालांकि विनिर्माण अभी भी भारत की सकल घरेलू उत्पाद में 1/5 से भी कम योगदान देता है, इस अनुपात में 2014 से  बदलाव नहीं आया है। 2012 से 2022 तक भारत का प्रति व्यक्ति विनिर्माण उत्पादन 5 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) से बढ़ रहा है लेकिन बांग्लादेश वियतनाम और चीन जैसे देश के मुकाबले हमारी विकास गति धीमी है। हालांकि भारत की विनिर्माण गतिविधि विशेष रूप से महामारी के बाद अपने कई ब्रिक्स साथी देशों की तुलना में अभी भी मजबूत बनी हुई है।

मेक इन इंडिया पहल की शुरुआत के बाद के दशक में माल निर्यात में 400 बिलियन डॉलर को पार करने के बावजूद वैश्विक व्यापारिक निर्यात में भारत के हिस्सेदारी काफी हद तक स्थिर बनी हुई है।

यहां औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (वर्ष-दर-वृद्धि प्रतिशत में) की तुलना दी गई हैः- 


देश               2019    2020    2021    2022    2023
भारत               0.6     -12.7     13.5      4.0       5.3
चीन                 5.7        1.3     12.3      3.5       4.2
वियतनाम          7.8        2.6       3.4     19.7    -14.3
बांग्लादेश           9.0      -0.6     21.0       6.9      6.2


परचेंजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) के अनुसार पिछले दो वर्षों में अर्थव्यवस्था में  तेजी से विकास के बावजूद भारत की विनिर्माण विकास दर में गिरावट आ रही है। यह मंदी, वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता और घरेलू चुनौतियों के बीच आई है जिससे लोगों का  बाजार पर विश्वास कम हुआ है। पीएमआई के प्रमुख घटक उत्पादन और नए ऑर्डर में गिरावट देखी जा सकती  है जिससे स्थानीय और वैश्विक मांग नरम हो रही है। आज भारत का निर्यात बाजार चुनौतियों का सामना कर रहा है और घरेलू खपत कमजोर विदेशी मांग की पूरी तरह से भरपाई करने में सक्षम नहीं है यह दोहरा दबाव निर्माताओं के लिए एक महत्वपूर्ण बाधा बन रही है।

संक्षेप में देखें तो विनिर्माण क्षेत्र में अल्पकालिक और दीर्घकालिक चिंताएं बनी रहती हैं सकल घरेलू उत्पाद निर्यात और जीवीसी भागीदारी में भारत की विनिर्माण हिस्सेदारी में पर्याप्त वृद्धि नहीं देखी गई जिससे आर्थिक विकास मुद्रास्फीति और रोजगार प्रभावित हुआ है उदाहरण के लिए पिछली तिमाही में भारत की विकास दर 7.8 प्रतिशत से गिरकर 6.7 प्रतिशत हो गई है लेकिन इन चुनौतियों के बावजूद अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत बनी हुई है।

विनिर्माण में अल्पकालिक चुनौतियां और दीर्घकालिक आशावाद बना रहता है इसके साथ ही विनिर्माण क्षेत्र में धीमी गति से नियुक्तियां हो रही हैं जो दर्शाती है कि व्यवसाय अभी भी परिचालन में कमी नहीं कर रहे हैं। भारत के लिए मुख्य चुनौती यही है कि वह घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों बाधाओं से कैसे निपटता है।

भू-राजनीतिक तनाव, बढ़ता संरक्षणवाद और आत्मनिर्भरता की ओर रुझान अतिरिक्त चुनौतियां पैदा तो करते हैं लेकिन घरेलू स्तर पर नीति निर्माताओं को मुद्रास्फीति के प्रबंधन और  राजकोषीय अनुशासन बनाए रखने के साथ उत्तेजक विकास को संतुलित करना चाहिए भारतीय कंपनियों को भी प्रतिस्पर्धा के आयाम बढ़ाने होंगे और संभावित मांग में गिरावट की भरपाई के लिए नई बाजार तलाशने होंगे।

वर्तमान में घरेलू विनिर्माण को उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन आयात प्रतिस्थापन नेशन नई इकाइयों के लिए रेवती कॉर्पोरेट करो प्रमुख परिवहन गलियारों के पास औद्योगिक टाउनशिप के प्रस्ताव और भूमि उपयोग को आसान बनाने के लिए नीतियां तो बनाई जाती हैं इसके अतिरिक्त सेमीकंडक्टर पारिस्थितिकी तंत्र बनाने पर भी ध्यान केंद्रित किया गया है लेकिन क्षेत्र में विकास को गति देने के लिए उत्पादकता और प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के लिए  अधिक आमूल चूल सुधारों की आवश्यकता है।

आज लोगों का यह सवाल है कि क्या भारत विनिर्माण के विकास में अपनी इच्छित भूमिका निभा पाएगा विशेष रूप से ऐसे समय में जब बिना मजबूत विनिर्माण ढांचे के भारत ने कृषि से सेवाओं की ओर स्थानांतरण किया है। भारत दुनिया का पांचवा बड़ा विनिर्माण पावर हाउस है जो लगभग 550 अरब डालर मूल्य के समान का उत्पादन करता है जो वैश्विक विनिर्माण उत्पादन का सिर्फ तीन प्रतिशत प्रतिनिधित्व करता है। इतने वर्षों की आर्थिक वृद्धि के बावजूद सकल मूल्य वर्धित में इसकी हिस्सेदारी कृषि के समान 17 प्रतिशत बनी हुई है।

आज भारत 8.2 प्रतिशत की विकास दर के साथ तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में उभर रहा है अगर यह अपनी सकल घरेलू उत्पाद और विनिर्माण को मजबूत करता है बुनियादी ढांचे को आगे बढ़ता है तो जल्द ही भारत तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी आज अगर यह देश हर 1.5 साल में अपनी जीडीपी में एक ट्रिलियन डॉलर जोड़े तो 2032 तक 10 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगा। भारत 2024-25 तक 4 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की राह पर होगी और इस समय तक दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी। आज से 10 साल पहले भारत 1.9 ट्रिलियन डॉलर की जीडीपी के साथ  विश्व की दसवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था। भारत 6.5 प्रतिशत की विकास दर के साथ 2030-31 तक  तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है। 

भारत को एक विकसित राष्ट्र बनने के लिए 2047 तक 18000 डॉलर की प्रति व्यक्ति आय के साथ 30 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य रखना होगा इसके लिए सकल घरेलू उत्पाद की मौजूदा स्तर 3.36 ट्रिलियन डॉलर से 9 गुना वृद्धि और प्रति व्यक्ति आय में 8 गुना वृद्धि की आवश्यकता है, जो वर्तमान में 2,392 डालर है।

आज भारत  विश्व के लिए  वैश्विक आपूर्ति शृंखला में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी है और यह विस्तारित भूमिका इसके आर्थिक विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण होगी। सरकार को मजबूत नीतियों द्वारा समर्थित विनिर्माण क्षेत्र को अब देश की प्रगति को बढ़ाने के लिए आपूर्ति और मांग को संतुलित करने का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए। इसके साथ ही अगर भारत आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़े और विनिर्माण क्षेत्र में विशेष रूप से ध्यान दें तो 21वीं सदी भारत की सदी हो सकती है।

Share This

Click to Subscribe