भारत में कृषि व किसानों की स्थिति यदि सुधर जाती है तो भारत को खाद्यान्न के क्षेत्रा में आत्मनिर्भर बनने में देर नहीं लगेगी, जिससे सर्वागींण विकास का वातावरण बन सकेगा। - डॉ. सूर्य प्रकाश अग्रवाल
भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत को प्रत्येक क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के भगीरथ प्रयास शुरु कर दिये है। प्राचीनकाल से ‘सोने की चिड़िया’ कहलाने वाले भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि व किसान क्षेत्र एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता चला आ रहा है। भारत को आत्मनिर्भर बनाने के इस प्रयास में कोराना, चीन, पाकिस्तान इत्यादि ने बाधा खड़ी की है। परंतु फिर भी त्याग, संकल्प, समर्पण तथा लगन भारत को निकट भविष्य में आत्मनिर्भर बनने से कोई भी शक्ति नहीं रोक सकेगी। आत्मनिर्भर बनाने हेतु सरकार ने किसानों व कृषि से संबंधित कई अधिनियमों में संषोधन किया है। अधिनियमों में यह सुधार ही आत्मनिर्भर भारत की नींव होंगे। राजनीतिक स्तर पर भी इसका विरोध नहीं होगा तथा राज्यों में भी सुधारों की शुरुआत हो सकेगी।
भारत के इतिहास में अर्थव्यवस्था व राजनीतिक ताने-बाने का आधार कृषि तथा किसान ही रहा है। एक बार यदि कृषि सुधारों का रास्ता तैयार हो गया तो किसानों के पैरों में पड़ी जंजीर खुल जायेगी। बजटीय प्रावधान 61 हजार करोड़ रुपये के अतिरिक्त 40 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। उधर मनरेगा में भी एक लाख करोड़ रुपये का प्रावधान हुआ है। अब जल संसाधन भी मनरेगा में शामिल होगा।
कृषि क्षेत्र में आठ क्षेत्र- पषुपालन, ड़ेयरी, सुक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण, कृषि क्षेत्र का ढ़ाचांगत विकास, जड़ी बूटी, मधुमक्खी पालन, मत्स्य तथा ऑपरेषन ग्रीन व जल संसाधन के क्षेत्रों पर अधिक महत्व दिया जायेगा। कृषि सुधार के लिए कृषि मूल्य उपज और गुणवत्ता के लिए कानून की अवधारणा पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के जमाने में भी की गई थी, परंतु राज्यों पर कृषि का दायित्व होने के कारण इस कानून की आवष्यकता को कोई बल नहीं मिल सका था। अब कांट्रेक्ट फार्मिंर्ग का प्रावधान किया गया है। जिसके लागू हो जाने के बाद किसान को लाभ होगा, क्योंकि यह मांग आधारित खेती पूर्व निर्धारित मूल्य पर किया जायेगा। जिससे कृषि में जोखिम भी कम हो जायेगा। किसानों के लिए मंड़ी एक्ट अर्थात एपीएमसी के प्रावधान कठिनाई का कारण थे। इसमें संषोधन से राज्यों के हित टकराते है। राजनीति भी प्रमुख होती है। राजनीतिक दलों का उपस्थिति स्थानीय कमेटियांं में भी होती है। जिससे कृषि उपज के व्यापार में मध्यस्थों का एकाधिकार बना हुआ है।
केंद्र सरकार ने वर्ष 1999 में मॉड़ल एपीएमपी एक्ट बनाकर राज्यों को भेजा था, परंतु राज्य इसके प्रति उदासीन ही बने रहे। वर्ष 2017 में भी पुनः संषोधन करके मॉड़ल एक्ट को राज्यों के पास भेजा गया था, परंतु राज्यों की उदासीनता नहीं टूटी। अब सरकार ने केंद्रीय एपीएमसी एक्ट की घोषणा की गई है। इसी प्रकार आवष्यक वस्तु अधिनियम 1955 के पुराने पड़े प्रावधानों के उन्मूलन के लिए गत सरकारों ने प्रयास नहीं किये। वर्तमान में खाद्यान्न के उत्पादन में भारत आत्मनिर्भर बन चुका है व खाद्यान्न का निर्यात भी किया जा रहा है। इस अधिनियम की प्रतिबंधित सूची में चावल, गेहूं, दलहन, और तिलहन, आलू व प्याज भी है। इन जिंसों में खाद्य प्रोसेंसिंग सेक्टर, निर्यातकों और बड़े उपभोक्ताओं को मुष्किल पेष आती थी। जिसका प्रभाव कृषकों पर भी पड़ता है। अब सरकार ने इन जिंसों को बाहर करके सुधार का एक बड़ा फैसला लिया है।
सभी पीएम-किसान लाभार्थियों को केसीसी के दायरे में लाने की योजना के अंतर्गत वर्ष में 2.5 किसानों को दो लाख करोड़ रुपये के ऋण देने की घोषणा की गई है। अगले सीजन की किष्तें भी नौ करोड़ से अधिक किसानों के बैंक खाते में जमा करा दी गयी है। मछुआरों के लिए पीएम मत्स्य संपदा योजना के लिए 20 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है, जिससे 77 लाख टन मत्स्य उत्पादन और अधिक हो सकेगा। विभिन्न योजनाओं में 55 लाख से अधिक लोगों को रोजगार दिया जायेगा। सरकार कृषि व संबद्ध क्षेत्रों की लॉजिस्टिक, भंड़ारण, कोल्ड़ चेन, प्रसंस्करण, निर्यात को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। मधुमक्खी पालन के लिए 500 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। पषुपालन इंफ्रास्ट्रक्टर फंड़ के लिए 15 हजार करोड़ रुपये तथा हर्बल कल्टिवेषन के लिए 4 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। इसके आलावा पषुओं के स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर खुरपका तथा मूंहपका बीमारी की रोकथाम व ईलाज के लिए 13,334 करोड़ रुपये का प्रावधान है। कृषि के ढ़ांचागत सुविधाओं के विकास पर एक लाख करोड़ व्यय किये जायेंगे। माइक्रो फूड़ इंटरप्राइजेज को 10 हजार करोड़ रुपये की योजना तैयार की गई है।
कोरोना वायरस से विकसित महामारी कोविड़-19 ने देष की अर्थव्यवस्था के समस्त क्षेत्रों को प्राभावित किया है। इसका प्रभाव कब तक रहेगा, यह अभी भी नहीं कहा जा सकता है। इससे मुकाबला करने के लिए किसानों को मजबूत सहारा देते हुए सभी देषवासियों को साहस का परिचय देते हुए देष को आत्मनिर्भर बनाने के सभी कदमों को मजबूती देनी पड़ेगी। प्रत्येक कीमत पर आर्थिक गतिविधियों को बिना किसी राजनीति सोच समझकर करना पड़ेगा। यह सर्वविदित है कि जिसने साहस के साथ कदम बढ़ाया उसे चूमा भी गया है। देष में ऐसा वातावरण तैयार करना प्रत्येक देषवासी का कर्त्तव्य है कि फिर ऐसा वातावरण तैयार करना जिसमें तात्कालिक रुप से सबकी भूख की परवाह करते हुए किसानों को पैरों पर खड़ा किया जा सके। बैषाखी नहीं सहारे का हाथ देना होगा। भारत में कृषि व किसानों की स्थिति यदि सुधर जाती है तो भारत को खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने में देर नहीं लगेगी, जिससे सर्वागींण विकास का वातावरण बन सकेगा। ु
डॉ. सूर्य प्रकाश अग्रवाल सनातन धर्म महाविद्यालय मुजफ्फरनगर 251001 (उ.प्र.), के वाणिज्य संकाय के संकायाध्यक्ष व ऐसोसियेट प्रोफेसर के पद से व महाविद्यालय के प्राचार्य पद से अवकाश प्राप्त हैं तथा स्वतंत्र लेखक व टिप्पणीकार है।