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आत्मनिर्भर भारत बरास्ता ‘वोकल फार लोकल’

मेक इन इंडिया के पीछे मानसिकता यही थी कि सरकार नीति निर्माता के साथ साथ परामर्शदाता की भूमिका भी निभाएगी, ताकि आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को सबके सकारात्मक प्रयास से मिलकर हासिल किया जा सके। - अनिल तिवारी

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर देश के लोगों से अपील की है कि हर भारतीय नागरिक देश में बने सामानों का अधिकाधिक उपयोग करें। उन्होंने सम्पन्न लोगों खासतौर पर युवाओं से कहा है कि वे विदेशों में जाकर शादी-व्याह करने की बजाए देश के भीतर ऐसे कार्यक्रम आयोजित करे और आयोजनों में अधिक से अधिक स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग को बढ़ावा दें। इससे देश के गरीब परिवारों को रोजगार मिलेगा, देश का पैसा देश में ही रहेगा, साथ ही साथ ऐसे कार्यक्रमों के लिए बने छोटे-छोटे लघु उद्योगों और स्टार्ट-अप को मदद मिलेगी।

आकाशवाणी के लोकप्रिय कार्यक्रम ‘मन की बात’ के दस वर्ष पूरे होने पर 107वें एपिसोड़ में प्रधानमंत्री मोदी ने देशवासियों को एक टास्क देते हुए कहा कि वे महीने भर  का अपना हर तरह का लेन-देन यूपीआई के जरिये ही करें। उन्होंने कहा कि वोकल फार लोकल अभियान सिर्फ त्यौहारों तक नहीं बल्कि सदैव अपनाने की आदत डालनी होगी। उन्होंने कहा कि जब वैश्विक अर्थव्यवस्था में उथल-पुथल आती है तब भी हमारे यहां कोई बड़ा संकट नहीं होता, क्योंकि हमारे यहां लोग स्थानीय स्तर पर व्यापार को महत्व देते है। वोकल फार लोकल का मंत्र हमारी अर्थव्यवस्था को संरक्षित भी करता है। 

भारत निर्माण और आत्मनिर्भरता की दिशा में एक संकल्प लेते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 25 सितंबर 2014 को मेक इन इंडिया की पहल की शुरआत हुई। इसका उद्देश्य भारत को वैश्विक निर्माण के केंद्र के रूप में विकसित करना था, आर्थिक क्षेत्र में नए द्वारों को खोलना, युवाओं तक रोजगार पहुंचाना, उद्योगों को नई दिशा देना और विश्व मंच पर भारत की छवि को सुधारना था। 

बीते 25 सितंबर 2024 को मेक इन इंडिया को 10 वर्ष पूरे हो गए भारत को विनिर्माण केंद्र बनाने का लक्ष्य कितना पूरा हुआ और इस पहल की क्या उपलब्धियां और कमियां रही, एक विश्लेषण के द्वारा समझाने का प्रयास करते हैं।

मेक इन इंडिया का उद्देश्य भारत को विनिर्माण के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना, निवेश को सुविधाजनक बनाना, नवाचार को बढ़ावा देना, कौशल विकास को बढ़ावा देना, बौद्धिक संपदा की रक्षा करना और सर्वश्रेष्ठ बुनियादी ढांचे का निर्माण करना था। 

इस पहल के निम्नलिखित लक्ष्य थे- 1. विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर 12-14 प्रतिशत तक बढ़ाना, 2. 2025 तक 100 मिलियन अतिरिक्त नौकरियां सृजित करना, 3. 2025 तक जीडीपी के विनिर्माण का योगदान 25 प्रतिशत तक बढ़ाना, 4. व्यापार करने में आसानी पर बल देना स्टार्टअप्स और स्थापित उद्योगों के लिए कारोबारी माहौल में सुधार ले आना, 5. विश्व स्तरीय औद्योगिक गलियारों और स्मार्ट शहरों के विकास पर ध्यान देना, 6. नए क्षेत्र रक्षण बीमा चिकित्सा उपकरण निर्माण और रेलवे जैसे क्षेत्रों में प्रत्यक्ष निवेश के लिए दरवाजे खोलना।

इस कार्यक्रम में मेक इन इंडिया के प्रमुख कदम निम्नलिखित थे- 1. उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाएं बनाना, 2. पीएम गतिशक्ति यानी बुनियादी ढांचे को बेहतर करना, 3.सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम स्टार्ट करना, 4. स्टार्टअप इंडिया में सुधार लाना, 5. कर सुधार करना, 6. औद्योगिक करण और शहरीकरण पर विशेष ध्यान देना, 7. यूपीआई का विस्तार करना।

यहां यह उल्लेखनीय है कि बीते वर्षों में मेक इन इंडिया ने काफी उपलब्धियां हासिल की जैसे - 

1.    टीकाकरण कॉविड-19 टीका की वैश्विक आपूर्ति में अग्रणी 60 प्रतिशत टीको की आपूर्ति। 
2.    वंदे भारत रेल गाड़ियां, स्वदेशी उच्च गति वाली रेलगाड़ियां
3.    रक्षा उत्पादन आईएनएस विक्रांत का निर्माण
4.    इलेक्ट्रॉनिक्स का निमार्ण 155 बिलियन डॉलर पहुंच चुका है ।
5.    मोबाइल फोन का 43 प्रतिशत योगदान। आज भारत विश्व का  दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल निर्माता है।
6.    रक्षा उपकरण, जूते, जूट के सामान आदि रोजमर्रा की तरह जीवन में शामिल किए जा रहे हैं।
7.    कश्मीरी बल्ले क्रिकेट में भारी मात्रा में इस्तेमाल हो रहे हैं। 
8.    अमूल ब्रांड की मांग बढ़ती जा रही है।
9.    वस्त्र उद्योग द्वारा 14.5 करोड़ नौकरियां सृजित की गई।
10.    खिलौना उत्पादन प्रतिवर्ष 400 मिलियन का हो चुका है।

10 वर्षों के सफर में लक्ष्य की प्राप्ति कितनी हुई

राष्ट्रीय लेखा सांख्यिकी (एनएएस) के अनुसार, विनिर्माण क्षेत्र की वास्तविक सकल मूल्य वर्धित (जीवीए) वृद्धि दर 2001-12 के दौरान 8.1 से घटकर 2012-23 के दौरान 5.5 प्रतिशत हो गई है। पिछले तीन दशकों में इस क्षेत्र की जीडीपी हिस्सेदारी 15-17 प्रतिशत पर स्थिर रही है, हालांकि पद्धतिगत परिवर्तनों के कारण नवीनतम जीडीपी श्रृंखला में यह थोड़ा अधिक है।

एनएसएसओ सैंपल सर्वेक्षणों के अनुसार, विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार 2011-12 में 12.6 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में 11.4 प्रतिशत हो गया है। 

असंगठित या अनौपचारिक क्षेत्र के विनिर्माण क्षेत्र में सबसे अधिक रोजगार है, जो 8.2 मिलियन घटकर 2015-16 में 38.8 मिलियन से घटकर 2022-23 तक 30.6 मिलियन रह गया है, जैसा कि असंगठित क्षेत्र के उद्यमों के सर्वेक्षणों से पता चलता है। कार्यबल में कृषि की हिस्सेदारी 2018-19 में 42.5 प्रतिशत से बढ़कर 2022-23 में 45.8 प्रतिशत हो गई।

उच्च उत्पादकता वाले क्षेत्र से निम्न उत्पादकता वाले क्षेत्र में संरचनात्मक परिवर्तन का पूर्ववर्ती बदलाव, स्वतंत्र भारत में अभूतपूर्व है। यह समय से पहले विऔद्योगीकरण का सबसे स्पष्ट संकेत है, अर्थात, उन्नत देशों की तरह औद्योगिक परिपक्वता प्राप्त करने से पहले।

ये प्रश्न उठता है कि भारत में औद्योगिकीकरण क्यों कम हो रहा है? सालाना 6-7 प्रतिशत की आधिकारिक वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर के बावजूद औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि क्यों घट गई? निश्चित निवेश वृद्धि व्यावहारिक रूप से क्यों कम हो गई? 

राष्ट्रीय लेखा सांख्यिकी (एनएएस) और उद्योगों के वार्षिक सर्वेक्षण (एएसआई) के अनुसार 2012-13 से 2019-20 तक जीवीए और सकल स्थिर पूंजी निर्माण (जीएफसीएफ) में वार्षिक वृद्धि दर दर्शाता है। हम समय-परीक्षणित एएसआई आंकड़ों पर ध्यान केंद्रित करते हैं क्योंकि एनएएस के आंकड़े पद्धतिगत समस्याओं के कारण अधिक अनुमानित हैं। औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर आधिकारिक एनएएस-आधारित अनुमानों से बहुत कम है। इस अवधि के दौरान जीएफसीएफ की वृद्धि दर व्यावहारिक रूप से शून्य है। अप्रत्याशित रूप से, मुख्य रूप से चीन से बढ़ते आयात ने मांग को पूरा किया है ।

अब सवाल यह खड़ा होता है कि अगर हम विनिर्माण के क्षेत्र में इतने स्वावलंबी हो गए हैं तो फिर चीन से आयात पिछले वर्षो के मुकाबले अब बढ़ क्यों रहा है?

इसका उत्तर है, भारत की बढ़ती आबादी। भारत की आबादी विश्व में आज सबसे अधिक है। हमने चीन तक को इस मामले में पछाड़ दिया। यही कारण है की बढ़ते वस्तुओं के उपभोग के लिए हम चीन पर निर्भर है।

विश्व बैंक के ईज ऑफ डूइंग बिजनेस (ईडीबी) सूचकांक में भारत की रैंकिंग 2014-15 में 142 से बढ़कर 2019-20 में 63 हो जाने के बावजूद एमआई के तहत घरेलू निवेश क्यों नहीं बढ़ा? क्योंकि ईडीबी एक गलत राजनीति से प्रेरित सूचकांक है जिसमें बहुत कम विश्लेषणात्मक या अनुभवजन्य आधार हैं। पीछे मुड़कर देखें तो सरकार ने एक संदिग्ध सूचकांक की तलाश में छह कीमती साल को अनदेखा कर दिया

विऔद्योगीकरण को उलटने की कोशिश, घरेलू मूल्य संवर्धन और सीखने को बढ़ावा देने के लिए व्यापार और औद्योगिक नीतियों को संरेखित करने के लिए औद्योगिक  नीतियों पर फिर से विचार करना आवश्यक है। संरक्षण नीतियों को एक गतिशील तुलनात्मक लाभ हासिल करने को बढ़ावा देना चाहिए, न कि एक स्थिर तुलनात्मक लाभ प्राप्त करने के लिए नकद सब्सिडी की पेशकश करनी चाहिए।

भारत को निवेश-आधारित विकास और तकनीकी पकड़ बनाने का लक्ष्य रखना चाहिए। अनुकूली अनुसंधान और आयातित प्रौद्योगिकी के स्वदेशीकरण को बढ़ावा देने के लिए उन्हें घरेलू अनुसंधान और विकास द्वारा समर्थित होना चाहिए। तकनीकी सीमा के साथ व्यापार में मिले जोखिमों को सामाजिक बनाने के लिए सस्ती दीर्घकालिक ऋण प्रदान करना चाहिए। सार्वजनिक रूप से विक्त बैंको के साथ-साथ “नीति बैंकों“ की आवश्यकता है। क्योंकि मेक इन इंडिया के पीछे मानसिकता यही थी कि सरकार नीति निर्माता के साथ साथ परामर्शदाता की भूमिका भी निभाएगी, ताकि आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को सबके सकारात्मक प्रयास से मिलकर हासिल किया जा सके।

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