भारत के निर्यातों की बढ़ती लोकप्रियता
भारतीय रूपया क्रय शक्ति के आधार पर डालर की बाजार कीमत से लगभग 4 गुना ज्यादा मूल्यवान है। यानि हमारी प्रतिस्पर्द्धी लागत दुनिया से और अधिक कम हो सकती है। इसलिए भारत से निर्यात बढ़ने की खासी अच्छी संभावनाएं है लेकिन उसके लिए सरकार को सतत् प्रयास करने होंगे। - डॉ. अश्वनी महाजन
हाल ही में एक वैष्विक सलाहकार फर्म वॉस्टन कंस्लटिंग ग्रुप ने शोध में यह बताया है कि 2018 से लेकर 2022 तक अमरीका को भारत के निर्यात 44 प्रतिषत बढ़े हैं, जबकि चीन से अमरीका को निर्यात 10 प्रतिषत घट गए हैं। हालांकि अमरीका के मैक्सिको व आसियान देषों से भी आयात बढ़े है, महत्वपूर्ण बात यह है कि भारतीय उत्पाद चीनी उत्पादों को प्रतिस्थापित करते हुए अमरीकी बाजारों में अपनी पैठ बना रहे हैं। भारतीय निर्यातों में यह वृद्धि मषीनरी से लेकर खाद्य पदार्थों, स्वास्थ्य एवं आरोग्य उत्पादों, कपड़े, जुते, खिलौनों समेत विभिन्न उत्पादों में दिखाई देती है। रिटेल चेन वालमार्ट का अकेले ही लक्ष्य है कि वह भारत से 2027 तक 10 अरब डालर का सामान हर साल खरीदेगा।
इस शताब्दी के प्रारंभ से ही चीन ने लगातार दुनिया के बाजारों में अपनी पैठ बनाई है। गौरतलब है कि चीन के दुनिया भर में कुल निर्यात वर्ष 2000 में 253 अरब अमरीकी डालर से बढ़ते हुए वर्ष 2020 तक 3730 अरब अमरीकी डालर तक पहुंच गये थे। अकेले भारत में ही चीन के निर्यात वर्ष 2000 में 1.47 अरब अमरीकी डालर से बढ़ते हुए वर्ष 2020 तक 102 अरब अमरीकी डालर पहुंच गये थे। इस दौरान अमरीका में चीन के निर्यात 100 अरब अमरीकी डालर से बढ़ते हुए 536.3 अरब डालर तक पहुंच गये। चीन से बढ़ते आयातों से भारत को बड़ा नुकसान हुआ और हमारी कुल जीडीपी में मैन्युफेक्चिरिंग का योगदान वर्ष 1995-96 में लगभग 21.3 प्रतिषत से घटता हुआ वर्ष 2018-19 तक 16.3 प्रतिषत तक पहुंच गया। इसी प्रकार से दुनिया भर में मैन्युफेक्चिरिंग का ह्रास हुआ और इसका सीधा लाभ चीन को मिला।
घटती मैन्युफेक्चिरिंग ने शेष दुनिया के मुल्कों में बेरोजगारी की समस्या को जन्म दिया। पिछले चार वर्षों में पहली बार अमरीका में चीन के निर्यातों में कमी और भारत द्वारा अमरीका को निर्यातों में वृद्धि भारतीय मैन्युफेक्चिरिंग के लिए एक अच्छी खबर है।
चीन से अधिक प्रतिस्पर्द्धी हुए भारतीय उत्पाद
यह बात सही है कि अमरीकी सरकार ने चीन से आयात कम करने के लिए विभिन्न प्रकार के उपाय किये हैं, जिनमें आयात शुल्क में वृद्धि भी शामिल है। लेकिन साथ ही साथ अमरीकी सरकार ने भारत से भी आयातों को कम करने के लिए, पूर्व में दी गई रियायतों को वापिस तो लिया ही, साथ ही साथ आयात शुल्कों में भी वृद्धि की है। गौरतलब है कि विष्व व्यापार संगठन समझौते के अंतर्गत अमरीका एकमात्र ऐसा देष है जो किसी एक या अधिक देषों पर अलग आयात शुल्क लगा सकता है।
लेकिन तमाम अमरीकी प्रतिबंधों के बावजूद भारत से अमरीका को निर्यात 44 प्रतिषत बढ़ना विषेष महत्व रखता है। बॉस्टन कंसेल्टिंग ग्रुप का कहना है कि ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि भारत का सामान अमरीका में, अमरीकी लागत के अपेक्षा 15 प्रतिषत सस्ता पड़ता है, जबकि चीन का सामान अमरीकी सामान की तुलना में मात्र 4 प्रतिषत ही सस्ता है। इसीलिए अमरीकी बाजार भारत में निर्मित सामानों को चीनी सामानों की अपेक्षा अर्हता देते है। समझना होगा कि जहां अमरीका भी मैन्युफेक्चिरिंग को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहा है, उसके बावजूद भारतीय उत्पाद की जबरदस्त प्रतिस्पर्द्धी शक्ति इस बात का द्योतक है कि पूरी दुनिया में भारतीय, खासतौर पर विकसित देषों में भारत के साजो-सामान के बाजार का विस्तार होने की पूरी संभावना है। यह बात सर्वविदित ही है कि आज के प्रतियोगी युग के बाजार में लागत प्रतिस्पर्द्धा की एक बड़ी भूमिका है।
2000 अरब डॉलर निर्यात का लक्ष्य
मार्च 31, 2023 को भारत सरकार द्वारा नई विदेष व्यापार नीति घोषित की गई थी। इस नीति में वर्ष 2030 तक भारत से कुल वस्तुओं सेवाओं के निर्यात का लक्ष्य 2 खरब डालर यानि 2000 अरब डालर का रखा गया है। गौरतलब है कि बीते वर्ष 2022-23 में भारत के कुल निर्यात 770 अरब डालर रहे, वर्ष 2030 तक इन निर्यातों को 2000 अरब डालर तक बढ़ाना एक बड़ी चुनौती के रूप में देखा जा रहा है। जबकि पिछले 10 सालों में निर्यातों के बढ़ने की गति अत्यंत धीमी रही है, इसलिए यह चुनौती और भी बड़ी दिखाई देती है। लेकिन पिछले साल 2022-23 में वस्तु एवं सेवाओं के निर्यातों में 11.3 प्रतिषत की वृद्धि हुई है, इसलिए यदि इस वृद्धि दर को 14.81 प्रतिषत तक ले जाया जाये तो वर्ष 2030 तक 2000 अरब डालर के निर्यातों के लक्ष्य तक पहुंचना कोई कठिन बात दिखाई नहीं देती।
कैसे बढ़ेंगे देष से निर्यात
सबसे पहले तो निर्यात बढ़ाने के लिए जरूरी है कि देष में उत्पादन और जीडीपी बढ़े। गौरतलब है कि 2013-14 में भारत की कुल जीडीपी 2 खरब डालर यानि 2000 अरब डालर की थी। उस समय देष के कुल निर्यात 500 अरब डालर से थोड़ा कम थे। 2022-23 में जब भारत की जीडीपी 3.5 खरब डालर की रही, भारत के निर्यात 770 अरब डालर के रहे और 2030 में यदि लक्ष्य के अनुरूप भारत की जीडीपी का 7 खरब डालर हो जाती है तो देष का कुल निर्यात 2 खरब डालर होना असंभव नहीं है।
भारत के कृषि निर्यात, 2021-22 में ही 50.3 अरब डालर पहुँच गये थे। 2022-23 में ये निर्यात 53.3 अरब डालर पहुंच गये हैं। दुनिया में खाद्य पदार्थों में कमी और भारत में खाद्य पदार्थों का अतिरेक, देष से खाद्य निर्यार्तों में वृद्धि की ओर इंगित करता है। पिछले एक-दो वर्षों में भारत दुनिया भर के कई मुल्कों को खाद्य पदार्थ निर्यात करते हुए, दुनिया के कई मुल्कों को भूख से मुक्तिदाता के रूप में स्थापित हुआ है।
आज भारत अपनी प्रतिरक्षा आवष्यकताओं की 68 प्रतिषत आपूर्ति देष से ही करता है। यही नहीं हमारे प्रतिरक्षा निर्यात 2016-17 में मात्र 1521 करोड़ रूपये ही थे, जो 2022-23 तक ये दस गुणा से ज्यादा बढ़कर 15920 करोड़ रूपये तक पहुंच गये हैं। भविष्य में प्रतिरक्षा निर्यातों में बड़ी वृद्धि अपेक्षित है।
खिलौनों के निर्यात में 2018-19 और 2022-23 के बीच 60 प्रतिषत वृद्धि दर्ज की गई है। गौरतलब है कि खिलौनों सहित विभिन्न प्रकार के उत्पादों जैसे सोलर पैनल, वस्त्र, मषीनरी उत्पाद, प्रतिरक्षा के साजोसामान, इलैक्ट्रॉनिक्स, टेलीकॉम, मोबाईल फोन और लैपटॉप इत्यादि के उत्पादन को बढ़ाने के लिए पीएलआई के नाम से प्रोत्साहन दिया जा रहा है। इन सब का उत्पादन बढ़ने से निर्यातों, खासतौर पर मोबाईल फोन, मषीनरी, सोलर पैनल, इलैक्ट्रॉनिक्स के सामान और टेलीकॉम इत्यादि के निर्यात बढ़ रहे हैं। लगातार विकसित होता भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र भी निर्यात की असीम संभावनाएं प्रस्तुत कर रहा है।
बॉस्टन कंस्लटिंग ग्रुप की शोध से यह बात स्पष्ट हो रही है कि अमरीका में जो भारत के निर्यात बढ़े है और वालमार्ट सरीखे रिटेल चेन भी अब भारत की ओर रूख कर रहे हैं, यह अमरीका के भारत के प्रति किसी प्रेम के कारण नहीं, बल्कि हमारे उत्पादों की प्रतिस्पर्द्धी ताकत के बलबूते हो रहा है। प्रतिस्पर्द्धी ताकत को बढ़ाने में पीएलआई योजना का तो योगदान है ही, देष में बढ़ती उत्पादन क्षमता के कारण पैमाने की बचतों के कारण भी लागत कम हो रही है। साथ ही साथ देष में लॉजिस्टक लागत को कम करने हेतु डिजिटलीकरण का विषेष योगदान है। यही नहीं देष में सड़कों, घरेलू जल यातायात, समुद्री बंदरगाहों सहित विभिन्न प्रकार के इन्फ्रास्ट्रक्चर के निर्माण से माल ढुलाई और यातायात की लागत कम हो रही है। यह बात तो सर्वथा सिद्ध है कि भारत में मजदूरी लागत चीन समेत कई मुल्कों से काफी कम है।
हमें समझना होगा कि हालांकि अमरीकी डालर की बाजार कीमत के आधार पर 2022-23 में हमारी जीडीपी 3.5 खरब डालर ही थी, लेकिन क्रय शक्ति क्षमता के आधार पर हमारी जीडीपी 13 खरब डालर की थी, यानि लगभग 4 गुना ज्यादा। इसका मतलब यह है कि भारतीय रूपया क्रय शक्ति के आधार पर डालर की बाजार कीमत से लगभग 4 गुना ज्यादा मूल्यवान है। यानि हमारी प्रतिस्पर्द्धी लागत दुनिया से और अधिक कम हो सकती है। इसलिए भारत से निर्यात बढ़ने की खासी अच्छी संभावनाएं है लेकिन उसके लिए सरकार को सतत् प्रयास करने होंगे।
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