चीन के कर्ज का मकड़जालः श्रीलंका ने खुद दी आफत को दावत
श्रीलंका लगातार कर्ज लेता गया, चीन बार-बार कर देता रहा और कर्ज के बदले एक-एक कर चीन ने श्रीलंका की परिसंपत्तियों को हड़पना शुरू किया। जब तक श्रीलंका के संतुलनकारों की आंख खुलती वहां की जनता बगावत के नक्शे कदम पर चल पड़ी और खबर लिखे जाने तक वहां के प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति भवन पर काबिज है। — वैदेही
चीन के कर्ज जाल में फंसा श्रीलंका अपने इतिहास के सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। आर्थिक संकट के चलते वहां की जनता बेहाल है। प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री आवास पर अपना कब्जा जमा रखा है और उन लोगों की मांग है कि जब तक सत्ता में बैठे लोग इस्तीफा नहीं दे देते, तब तक वह वहां से जाने वाले नहीं हैं। सोशल मीडिया पर प्रदर्शनकारियों के कई तरह के वीडियो वायरल हो रहे हैं। जिसमें सहज देखा जा सकता है कि राष्ट्रपति भवन में किस प्रकार से प्रदर्शनकारी शाही दावत का लुफ्त उठा रहे हैं।
पड़ोसी देश श्रीलंका कंगाली की कगार पर पहुंच गया है। महंगाई आसमान छू रही है। पूरे देश में बिजली का उत्पादन बंद है। बिजली की कमी से हालात इस तरह खराब हो गए हैं कि अस्पतालों में आवश्यक सर्जरी चेक नहीं हो पा रही है। कारखानों में कामकाज बंद है। कागज की किल्लत के कारण कई परीक्षाएं रद्द कर दी गई है। तेल की कमी से रेल और बस यातायात लगभग बंद हो चुका है। आपूर्ति व्यवस्था बंद होने से घरों के चूल्हे बंद हो गए। लोगों को खाने पीने की चीजें नहीं मिल पा रही है। देश की शहादत के लिए जनता सरकार को ही दोषी मान रही है।
चीन के कर्ज में फंसे श्रीलंका की हालत दिन प्रतिदिन बदतर होती जा रही है। पूरे देश में खाद्य सामग्री का संकट इतना गहरा हो गया कि जनता के लिए पेट भरना मुश्किल हो गया है। गौरतलब है कि चीन सहित अनेक देशों के कर्ज तले दबा श्रीलंका दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गया है। उसका विदेशी मुद्रा भंडार खत्म हो चुका है। इस कमी के कारण देश में ज्यादातर सामान सहित दवाइयां, पेट्रोल, डीजल आदि का विदेशों से आयात नहीं हो पा रहा है। महंगाई की मार से जनता त्राहि-त्राहि कर रही है। ताजा हालात की बात करें तो एक ब्रेड का पैकेट 200 रू. में बिक रहा है। सब्जियों के दाम भी आसमान छू रहे हैं। 1 किलो चीनी 300 रू. और 200 रू. किलो बिक रहा है। नारियल तेल 1000 रू. लीटर है। 1 किलोग्राम चावल के लिए वहां लोगों को 500 रू. देने पड़ रहे हैं। 300 रू. लीटर पेट्रोल और पौने दो सौ रू. लीटर डीजल बिक रहा है। रसोई गैस की कीमत लगभग 5000 रू. तक पहुंच गई है। वहां के नागरिक देश छोड़कर अन्य देशों की ओर धीरे-धीरे निकलने लगे हैं। तटवर्ती तमिलनाडु में लोगों की आवक शुरू हो चुकी है।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक विदेशी पर्यटक श्रीलंका छोड़ चुके हैं। कोरोना काल के बाद इस साल पर्यटकों ने फिर वहां आना शुरू किया था, लेकिन रोज-रोज बिगड़ते हालात को देखते हुए लगभग छः लाख से ज्यादा पर्यटकों ने अपनी श्रीलंका की प्रस्तावित यात्रा रद्द करा दी है। श्रीलंका की जीडीपी में पर्यटन सेक्टर की हिस्सेदारी लगभग 12 प्रतिशत है। श्रीलंका को पर्यटन से 3.6 अरब डालर की कमाई होती है। लेकिन अब यह बंद हो गया है। श्रीलंका में 30 प्रतिशत पर्यटक रूस, यूक्रेन, पोलैंड और बेलारूस से आते हैं। यूक्रेन-रूस युद्ध का असर श्रीलंका के पर्यटन को पहले ही डूबा चुका है। इससे पहले कोरोना का असर भी इस पर पड़ा था। अब वहां गृह युद्ध की बनी स्थिति ने आग में घी का काम किया है। पर्यटन से होने वाली कमाई वहां बिल्कुल ठप है।
संकट का एक और कारण प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में कमी का होना भी है, जिसके चलते श्रीलंका के सामने दोहरी चुनौती आ खड़ी हो गई है। एक तरफ उसे अपनी जनता को मुश्किल से उबारने है तो दूसरी तरफ विदेशी कर का भुगतान भी करना है। श्रीलंकाई संतुलन का संकट के पीछे उसकी सरकारी नीतियां अधिक जिम्मेदार है। वहां की सरकार ने कुछ समय पहले रासायनिक खाद पर प्रतिबंध लगाकर जैविक खेती करने का निर्णय लिया था, इससे वहां की कृषि भी प्रभावित हुई।
श्रीलंका में वर्ष 2021 में महंगाई दर 10 फीसदी थी जो दिसंबर आते आते 12 फीसदी हो गई और इस समय तो 18 से 20 फीसदी तक बढ़ गई है। इसलिए श्रीलंका की जनता त्राहिमाम कर रही है। यह सब श्रीलंका पर बढ़ते चीनी कर्ज के कारण है। दूसरी तरफ चीन अपने कर्ज का शिकंजा लगातार करता जा रहा है। श्रीलंका को इस संकट से निपटने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है। मुख्य कारण है श्रीलंका का चीन पर आर्थिक रूप से निर्भर हो जाना और वह इस जाल से निकल नहीं पा रहा है। दरअसल चीन ने भारत को घेरने की स्ट्रिंग्स आफ पल्स रणनीति के तहत श्रीलंका को एक महत्वपूर्ण मोती मानकर अपने साथ ले लिया। यही नहीं चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव में भी श्रीलंका को विशेष हिस्सा बना लिया। चीन की चाल को श्रीलंका समझ नहीं पाया और लगातार उसके जाल में फंसता चला गया। श्रीलंका में गहराते आर्थिक संकट के बीच एक अमेरिकी थिंक टैंक ने ठीक ही कहा है कि श्रीलंका को अपनी अर्थव्यवस्था बचाने के लिए फिर से विचार करने की जरूरत है।
श्रीलंका पर चीन का कर्ज इस तरह बढ़ा कि उसका हंबनटोटा जैसा महत्वपूर्ण बंदरगाह लीज पर चीन के हाथों में चला गया। श्रीलंका को चीनी फ़र्टिलाइज़र कंपनी के भुगतान को खारिज करने पर उसके पीपुल्स बैंक को भी ब्लैक लिस्ट में डाला गया। इस तरह चीन के कर जाल में फंसा श्रीलंका इतना परेशान हुआ कि न ही इधर का वचा, न उधर का।
इस बीच श्रीलंका की मदद के लिए कतार में हमेशा सबसे आगे खड़े रहने वाले भारत का बयान सामने आया है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने श्रीलंका की स्थिति को जटिल बताते हुए कहा है कि वहां की स्थिति संवेदनशील और जटिल है लेकिन भारत का समर्थन श्रीलंका के लोगों के लिए है, क्योंकि वह हमारे पड़ोसी हैं। हम उनके जीवन के बहुत कठिन दौर से गुजरने में उनकी मदद करने को प्राथमिकता देंगे। जयशंकर ने दोनों देशों के प्राचीन संबंधों का हवाला देते हुए कहा है कि भारत उन संबंधों को हमेशा कायम रखेगा। इस दौरान भारत के सहयोग वाली परियोजनाओं पर भी लगातार नजरें लगी हुई है। भारत कूटनीतिक तौर पर भी श्रीलंका के मामले को उच्च प्राथमिकता के आधार पर रखने की रणनीति पर काम कर रहा है।
श्रीलंका की हालिया आफत में सरकार द्वारा समय-समय पर की गई मुफ्त की घोषणाएं प्रमुख है। श्रीलंकाई सरकार ने लोगों को अपने पक्ष में करने के लिए तरह-तरह के प्रलोभन देते हुए उन्हें ढेर सारी चीजें मुफ्त में मुहैया कराने का वादा किया। अमेरिकन साहित्यकार चार्ल स्पॉटस ने लिखा है कि दुनिया में कुछ भी मुफ्त में नहीं मिलता। वे लिखते हैं कि जीवन में केवल वही चीज मुफ्त में मिलती है जिसे हम स्वयं पैदा नहीं कर सकते, जैसे ईश्वर की कृपा। आगे वे कहते हैं कि आप इस भुलावे में न रहे की कोई चीज आपको फ्री में मिल रही है। याद रहे आप किसी न किसी तरह हर चीज की कीमत चुका रहे होते हैं। इसे हम भारत में भी दिल्ली और पंजाब जैसे राज्यों द्वारा की जा रही मुफ्त की घोषणाओं के परिपेक्ष्य में भी देख सकते हैं। दिल्ली की केजरीवाल और पंजाब की भगवंत मान की सरकार जिस तरह से बिजली मुफ्त में बांट रही है, उसका बोझ किसी न किसी तरह देश पर ही पड़ रहा है। आर्थिक विशेषज्ञों ने बार-बार इस बात के लिए चेताया है कि विकासशील और अविकसित देशों को मुफ्त की योजनाओं से अक्सर बचना चाहिए, अन्यथा आने वाला कल घातक और विस्फोटक होता जाएगा।
श्रीलंका में यही हुआ। श्रीलंका लगातार कर्ज लेता गया, चीन बार-बार कर देता रहा और कर्ज के बदले एक-एक कर चीन ने श्रीलंका की परिसंपत्तियों को हड़पना शुरू किया। जब तक श्रीलंका के संतुलनकारों की आंख खुलती वहां की जनता बगावत के नक्शे कदम पर चल पड़ी और खबर लिखे जाने तक वहां के प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति भवन पर काबिज है।
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