खटाखट योजनाओं का नुकसान
देश की जनता को तय करना है कि वह श्रम और रोजगार के विस्तार से विकसित होने का सपना देखना चाहती है अथवा मुफ्त का माल हजम कर जैसे तैसे दिन काटने की आदत को बढ़ावा देती है। - शिवनंदन लाल
पिछले दिनों कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी ने सोशल मीडिया पर अपना एक वीडियो डाला है, जिसमें वह कहते हैं कि उनकी सरकार केंद्र की कुर्सी पर जैसे ही काबिज होगी, उसी दिन से हर गरीब परिवार की महिला के बैंक खाते में हर महीने साढ़े आठ हजार रुपए मिलने वाले हैं, खटाखट-खटाखट, खटाखट- खटाखट। वीडियो में आखिरी खटाखट के बाद चेकों की बरसात दिखाई जाती है ताकि नासमझ लोग भी समझ जाए कि गरीबों को किस गति से और कितना पैसा देने वाले हैं कांग्रेस के कथित शहजादे। एक अन्य वीडियो में राहुल गांधी वादा करते हैं कि सरकार बनते ही देश में वे करोड़ों लखपति पैदा करने वाले हैं।
यह तो रही कांग्रेस के भविष्य और पार्टी के एक तरह से सर्वे-सर्वा राहुल गांधी यानी कथित शहजादे की बात। दूसरी तरफ वाले साहब भी कम नहीं है। 84 करोड लोगों को अगले 5 साल तक 5 किलो मुफ्त राशन के साथ-साथ सार्वजनिक मंचों से लगातार लखपति दीदियों की पूरी की पूरी फौज तैयार करने का वायदा करते आ रहे हैं। मोटे तौर पर चुनावी सभाओं में साहब कांग्रेस और मुसलमान पर उल्टे सीधे आरोप नहीं लग रहे होते हैं तो सच मानिए दिल खोलकर वादे लूटाने में लगे रहते हैं। वे डंके की चोट पर कहते हैं कि तीसरी बार जीतने के बाद जनता के लिए एक से बढ़कर एक अनोखी अद्भुत लाभकारी योजनाएं लेकर आएंगे। वे लगातार याद भी दिला रहे हैं कि पिछले 10 सालों से यथासंभव गैस के चूल्हे, पीने का पानी, शौचालयों के लिए पैसे, आयुष्मान कार्ड और मुफ्त राशन तो पहले से ही दे रहे हैं, आगे इसकी फेहरिस्त और लंबी होने वाली है। देश की 140 करोड़ जनता को अपना वारिस बताने वाले साहब की शर्त बस इतनी है की तीसरी बार भी जनता उन्हें चुनकर दिल्ली भेज दे। तीसरी बार 400 के पार का तोहफा उन्हें दे दे। इस चुनाव का यही वह दिलचस्प पहलू है जहां सभी राजनेताओं ने मतदाताओं का साधारणीकरण करते हुए उनके वोट के बदले में उन्हें आधिकाधिक खैरात दिए जाने का वचन दिया है।
पर सवाल यह है कि समाज कल्याण की आड़ में दोनों हाथ से लूटाने का वादा करने वाले साहब या शहजादे इसके लिए भारी भरकम राशि कहां से लाएंगे। देने के दावे तो इस अंदाज में किये जा रहे हैं जैसे सारा का सारा माल इनका निजी धन हो। अगर नहीं तो निश्चित रूप से चुनाव के बाद वादा पूरा करने के क्रम में यह राशि देश के खाते कमाते लोगों से वसूली जाएगी। उन पर कई तरह के अतिरिक्त कर थोपे जाएंगे।
देश की आम जनता पहले से ही त्रस्त है। गरीबी, महंगाई और बेरोजगारी चरम पर है। डॉलर के मुकाबले रुपया का मूल्य लगातार गिर रहा है। शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र खस्ताहाल हैं। लोकतांत्रिक इकाइयां लगभग ध्वस्त हो चुकी है। ऐसे में देश की जनता को उम्मीद थी की 18वीं लोकसभा के लिए मैदान में उतरे कम से कम बड़े राजनीतिक दल आम जनता की बेहतरी के लिए कुछ बड़े और अच्छे परिणामदायी कार्यक्रमों की रूपरेखा प्रस्तुत करेंगे तथा देश के चतुर्दिक विकास के लिए अपना एजेंडा रखेंगे। चुनाव प्रारंभ होने से पहले प्रधानमंत्री मोदी विकसित भारत बनाने पर खास फोकस कर रहे थे। भारत के जल्द ही दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने तथा आजादी के 100 साल पूरा होने पर दुनिया में अव्वल बनाने का दावा कर रहे थे। लेकिन अब जैसे-जैसे चुनाव अपने आखिरी पड़ाव की ओर बढ़ रहा है वैसे-वैसे प्राथमिकताएं भी बदलती जा रही हैं। अधिक से अधिक मतदाताओं को लुभाने के लिए खैरात का पिटारा तो खुल ही चुका है, दिन प्रतिदिन भाषा भी सतही हो चली है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खटाखट खटाखट को अब मोदी ने अपने हर भाषणों में तकिया कलाम बना लिया है। प्रधानमंत्री के तंज की एक बानगी देखिए, “चार जून के बाद इंडि गठबंधन विदेश में आराम फरमाने निकल लेगा “खटाखट खटाखट“। विपक्षी दल के नेता भी पीछे नहीं है। सपा के अखिलेश यादव प्रधानमंत्री के खटाखट का जवाब फटाफट, गटागट और सटासट की अर्धाली मिलाकर दे रहे हैं।
मामला सब धान बाईस पसेरी वाला हो गया है। कांग्रेस पार्टी पहले संविधान को खतरे में बता कर सत्तापरिवर्तन के लिए समान विचार वाले दलों का गठबंधन तैयार कर नीतियों के आधार पर बदलाव की बात कर रही थी। वही प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में सत्ताधारी दल भव्य विरासत को रेखांकित करते हुए विकसित भारत का दावा कर रहा था। लेकिन आधा चुनाव बीतते बीतते दोनों पक्ष एक ही धरातल पर आ खड़ा हुआ है।
अब दोनों ओर से ताल ठोककर कहा जा रहा है कि जनता हमारे दल को जिताएगी तो हम जनता को बिजली पानी शिक्षा स्वास्थ्य आवास अनाज सब कुछ मुफ्त में मुहैया कराएंगे। भाजपानीत एनडीए की सरकार ने अगले 5 साल तक 5 किलो मुफ्त राशन का वादा किया है तो अब कांग्रेस पार्टी चुनाव जीतने पर 10 किलो मुफ्त राशन का लॉलीपॉप दिया है। प्रधानमंत्री मोदी की लखपति दीदी योजना का नकल करते हुए कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने देश में करोड़ों लखपति पैदा करने का दावा किया है। पक्ष और विपक्ष दोनों तरफ से जनता को अपने पाले में करने के लिए ऑफर दर ऑफर पेश किया जा रहे हैं। कहने को देश में लोकतंत्र है, लेकिन नेतागण चुनाव में अपनी नीतियों के आधार पर समर्थन मांगने की जगह मतदाताओं के हाथ में भीख का कटोरा थमा रहे हैं। कोई कटोरे में 10 रू. डालने को कह रहा है तो कोई कह रहा है कि अगर हमें जीताओगे तो हम 100 रू. डालेंगे। कोई 5 किलो राशन दे रहा है तो कोई 5 किलो को बहुत कम बताकर 10 किलो देने का दावा कर रहा है।
किसी भी देश का विकास वहां के लोगों के विकास पर निर्भर करता है। जिन देशों के लोग अपने पैरों पर खड़े होते हैं, वहां की सरकारें भी उसी अनुपात में देश को आगे ले जाने का काम करती है। ऐसा कोई उदाहरण दुनिया में नहीं मिलता है जहां जनता को कमजोर करके देश को मजबूती प्रदान की गई हो। हमारे देश में सब कुछ मुफ्त में देने की आदत डाली जा रही है। कल्याणकारी राज्य बताकर समाजवादी आर्थिक नीतियों के नाम पर हमारा शासक वर्ग सेंत मेंत में चीजों को मुहैया कराने का हिमायती रहा है। जनता में पहले यह विश्वास पैदा किया गया कि सब कुछ सरकार ही देती है यहां तक की रोजी रोजगार भी।
उदारीकरण के बाद स्थितियां थोड़ी बदली। आम आदमी सरकार के भरोसे कम,अपनी मेहनत के बदौलत आगे बढ़ाने की दौड़ में शामिल हुआ। कोटा परमिट का राज खत्म होने के बाद विकास ने रफ्तार पकड़ी और प्रति व्यक्ति आय में भी वृद्धि हुई। भूमंडलीकरण के बाद भारतीय मेधा का पूरी दुनिया में डंका बजने लगा। विशेष रूप से आईटी के क्षेत्र में भारत ने बहुत प्रगति की।
लेकिन वर्तमान चुनाव में जो बातें पक्ष और विपक्ष द्वारा उठाई जा रही हैं, जिस तरह के वादे किए जा रहे हैं उनसे अच्छे भविष्य के संकेत नहीं मिलते। एक दल कह रहा है कि अगर वह चुनकर आए तो संविधान को मिटा देंगे तो दूसरा कह रहा है कि अगर वह चुने गए तो राम मंदिर पर बाबरी ताला लगवा देंगे, बुलडोजर चलवा देंगे। एक तरफ से कहा जा रहा है कि वोट के लालच में धार्मिक ध्रुवीकरण किया जा रहा है तो दूसरे का आरोप है की चुनाव जीतने के लिए तुष्टिकरण की नीति अपनाई जा रही है। लेकिन जब मुफ्त की रेवड़ी बांटने की बात आती है तो दोनों ही दल खटाखट सामान कगूरे पर खड़ा होकर फटाफट अधिक से अधिक देने का दावा करने लगते हैं। अब तक जनता को मिलने वाले लाभों को गटागट डकार जाने वाले भी चुनाव जीतने पर अधिक से अधिक सुविधाएं सटासट उड़ेल देने की बात कर रहे हैं। इससे तो यही लगता है कि राजनेता देश की अधिकांश जनता को मुफ्त के जाल में फंसाकर सदैव के लिए परजीवी बना कर रखना चाहते हैं ताकि हर मौके पर उनकी ’पौ बारह रहे’। ऐसे में देश की जनता को तय करना है कि वह श्रम और रोजगार के विस्तार से विकसित होने का सपना देखना चाहती है अथवा मुफ्त का माल हजम कर जैसे तैसे दिन काटने की आदत को बढ़ावा देती है।
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