भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम का अर्थशास्त्र
दुनिया में अंतरिक्ष मिशनों की बड़ी लागत रही हैं, लेकिन भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रमों का बजट दुनिया के लिए एक मिसाल है। - डॉ. अश्वनी महाजन
23 अगस्त 2023, एक एतिहासिक दिन के रूप में माना जाएगा, जब भारत के चंद्रमा मिषन के चंद्रयान-3 ने चंद्रमा पर पहुंचकर सॉफ्ट लैंडिंग करने में सफलता प्राप्त की। यह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का तीसरा चंद्रमा मिषन था और चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव में पहुंचने वाला यह दुनिया का पहला उपकरण था। इस मिषन की शुरूआत 14 जुलाई 2023 को शुरू की गई थी और 23 अगस्त 2023 को लैंडर विक्रम चंद्रमा की सतह पर उतर गया। गौरतलब है कि भारत का पहला चंद्रमा मिषन चंद्रयान-1 अक्टूबर 22, 2008 को छोड़ा गया था और यह चंद्रमा की संरचना, खनिज विज्ञान और उसकी सतह की विषेषताओं का अध्ययन करने के लिए कई उपकरणों को साथ लेकर गया था। चंद्रमा के बारे में हमारी समझ विकसित करने में इस अभियान का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
चंद्रयान-2 22 जुलाई, 2019 को छोड़ा गया था, इसमें एक ऑर्बिटर, लैंडर और एक रोवर शामिल था। लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान को चंद्रमा के दक्षिणी धु्रव पर उतरना था, लेकिन विक्रम लैंडिंग स्थल से लगभग 600 मीटर दूरी पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया, लेकिन इस अभियान का ऑर्बिटर अभी भी काम कर रहा है और चंद्रमा के बारे में आंकड़ें एकत्र कर रहा है। यानि कहा जा सकता है कि भारत का चंद्रमा मिषन अभी तक काफी हद तक सफल रहा है और चंद्रयान-3 के चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव पर उतरने के बाद भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम एक महत्वपूर्ण मुकाम पर पहुंच चुका है। दुनिया में मात्र कुछ ही देष ऐसे हैं, जिनका अपना एक स्वआधारित अंतरिक्ष कार्यक्रम है। भारत के अलावा संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, चीन, युरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी, जापान, कनाडा, साऊथ कोरिया, इजराइल आदि के अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम हैं। लेकिन देखा जाए तो भारत दुनिया का चौथा ऐसा देष है, जिसने चंद्रमा की सतह पर अपना वाहन उतरा है, लेकिन चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव पर वाहन उतारने वाला भारत पहला देष है।
माना जाता है कि चंद्रमा की खुरदरी सतह और गुरूत्वाकर्षण के अभाव में चंद्रमा पर अंतरिक्षयान उतारना काफी कठिन है। भारतीय वैज्ञानिकों ने समझ-बूझ और चतुराई से लैंडर विक्रम को चंद्रमा पर उतरा है, जिसके लिए भारतीय वैज्ञानिक बधाई के पात्र हैं। अमरीका दुनिया की आर्थिक, सामरिक एवं तकनीक की महाषक्ति माना जाता है, इसलिए स्वभाविक तौर पर अमरीका द्वारा सबसे पहले चंद्रमा मिषन शुरू किया गया था। भारत ने अपना अंतरिक्षयान आर्यभट को वर्ष 1975 में अंतरिक्ष की कक्षा में भेजा था। 358 किलोग्राम के इस अंतरिक्षयान में पृथ्वी के वातावरण और रेडिएषन बेल्ट के अध्ययन के लिए वैज्ञानिक उपकरणों को भेजा गया था। उसके बाद 1982 से प्रारंभ इनसेट अंतरिक्षयानों को भेजने की प्रक्रिया शुरू हुई और वर्तमान में भारत के 17 इनसेट अंतरिक्षयान अंतरिक्ष की कक्षा में हैं। तीन चंद्रमा मिषनों के अलावा वर्ष 2013 में भारत ने अपना मंगलयान मंगल ग्रह के लिए छोड़ा था, जो सितंबर 2014 में मंगल ग्रह की कक्षा में पहुंचा और अभी भी वह मंगल ग्रह का अध्ययन कर रहा है। भारत अपना पहला मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम 2023 में ही शुरू करने वाला है।
माना जा सकता है कि अमेरिका, रूस और चीन के बाद अब भारत दुनिया के अंतरिक्ष कार्यक्रम का एक प्रमुख खिलाड़ी बन गया है। सामान्यतौर पर भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रमों की दुनिया भर में प्रषंसा होती है, लेकिन उसके बावजूद भारत में कुछ लोग अंतरिक्ष कार्यक्रम की यह कहकर आलोचना करते हैं कि भारत एक गरीब देष है और यह इस प्रकार के कार्यक्रमों की ‘विलासिता’ के खर्च को वहन नहीं कर सकता। उनका यह कहना है कि अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर किए जाने वाले खर्च की बजाय देष में गरीबों के लिए सुविधाएं जुटाने के लिए करना चाहिए। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर किए गए खर्च की बजाय यदि अपने देष की सुरक्षा पर अधिक खर्च किया जाए तो वो बेहतर होगा।
चंद्रयान-3 की सफलता के बाद भारत के प्रति दुनिया के रवैये में महत्वपूर्ण बदलाव आने वाला है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि अमृतकाल के प्रारंभ में ही भारत के चंद्रयान-3 की सफलता इस अमृतकाल में भारत को विकसित राष्ट्र बनाने की तरफ पहला कदम है। गौरतलब है कि पिछले कुछ समय से दुनिया की जीडीपी रैकिंग में भारत वर्ष 2014 में 10वें स्थान से आगे बढ़ता हुआ वर्ष 2023 में 5वें स्थान पर पहुंच गया है और 2025 तक यह चौथे स्थान पर और वर्ष 2028 तक तीसरे स्थान तक पहुंच सकता है। क्रय शक्ति समता के आधार पर भारत पहले से ही 12 अरब डालर से अधिक की जीडीपी के साथ तीसरे स्थान पर पहुंचा हुआ है।
भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम का अर्थषास्त्र
दुनिया में अंतरिक्ष मिषनों की बड़ी लागत रही हैं, लेकिन भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रमों का बजट दुनिया के लिए एक मिसाल है। चंद्रमा मिषन की बात करें तो चंद्रयान-3 का बजट मात्र 615 करोड़ रूपए का ही है। भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की खासियत यह है कि इसरो देष की अपनी प्रौद्योगिकी के उपयोग के साथ दुनिया के साथ साझेदारी करता है। जितनी किफायत के साथ भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम संचालित होता है, यह दुनिया को अचंभे में डालने वाला है। दुनिया का एक बड़ा अंतरिक्ष कार्यक्रम चलाने वाले निजी कंपनी एलन मस्क ने भारत की अंतरिक्ष कार्यक्रम की यह कहकर तारीफ की है कि हॉलीवुड की एक विज्ञान फिल्म इंटरस्टेलर की लागत 165 मिलियन अमरीकी डालर थी, जिसकी तुलना में भारत के चंद्रयान-3 मिषन की लागत मात्र 75 मिलियन अमरीकी डालर ही है।
गौरतलब है कि अमरीका का पहले चरण का चंद्रमा मिषन, जिसे अपोलो कार्यक्रमों के रूप में जाना जाता है और जो 1961 से 1972 के बीच में चला उस पर वर्ष 1973 के 25.8 अरब अमरीकी डालर खर्च हुए, जो 2021 के 164 अरब डालरों के बराबर था। अमरीका के प्रत्येक अपोलो मिषन पर 1973 के 300 से 450 मिलियन अरब डालर खर्च हुए।
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