भारतीय त्यौहारों का अर्थशास्त्रः सामाजिक एकता को गति देते भारतीय त्यौहार
तेजी से उभरती भारतीय अर्थव्यवस्था को हमारे त्यौहार ने ’बाजार क्रांति’ के माध्यम से नई ऊर्जा दी है, जो आने वाले वर्षों में भारत को 5 ट्रिलियन इकोनामी बनाने के लक्ष्य की दिशा में मिल का पत्थर साबित होगा। - डॉ. अभिषेक प्रताप सिंह
त्यौहारों का मौसम हिंदू संस्कृति और परंपरा का विशेष उत्सव है। एक और बात जो भारतीय त्यौहार से जुड़ी है, वह है भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए इनकी सकारात्मक भूमिका। त्यौहारों का समय बाजार में खरीदारी, तोहफा के आदान-प्रदान, यात्रा और पर्यटन आदि के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण है। ऐसे समय में जब भारतीय अर्थव्यवस्था कोविड संकट के बाद लगातार सकारात्मक आर्थिक गति को दिखा रही, त्यौहारों में बाजार में बढ़ी हुई मांग और उपभोक्ताओं के उत्साह के कारण अर्थ तंत्र को भी सहयोग मिलता है।
राउटर्स न्यूज़ एजेंसी द्वारा अर्थशास्त्रियों के बीच किए गए सर्वे ने भी वर्ष 2023 में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर को 6 प्रतिशत से ऊपर रखने में त्यौहारों के मौसम में बढ़ी हुई उपभोक्ता मांग और प्रति व्यक्ति खर्च को महत्वपूर्ण माना है। सर्वे के अनुसार वर्ष 2023 का आर्थिक प्रदर्शन इसी कारण से पिछले वर्ष से बेहतर रहेगा।
इसके अलावा डिजिटलीकरण और इंटरनेट क्रांति ने छोटे शहरों में भी ई-कॉमर्स को बढ़ावा दिया है। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म शिप रॉकेट के अध्ययन के अनुसार ई-कॉमर्स के 56 प्रतिशत से अधिक मांग छोटे और उप नगरी नगरी क्षेत्र से है। आर्थिक आंकड़ों के अनुसार ई-कॉमर्स क्षेत्र में त्यौहारों के मौसम में पिछले वर्ष की अपेक्षा 35 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। इसी वर्ष ई-कॉमर्स की बड़ी कंपनी फ्लिपकार्ट ने अपने यहां 1.4 बिलियन ग्राहकों की उपस्थिति दर्ज की। वैश्विक स्तर पर भी ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और यूरोप के बाजारों में भारतीय हैंडीक्राफ्ट और ज्वैलरी की मांग में तेजी देखी गई।
हम थोड़ा पीछे जाकर देखें और अपने राष्ट्रीय आंदोलन का अवलोकन करें तो हम देखेंगे कि भारतीय त्यौहारों ने राष्ट्रवाद के जागरण और ब्रिटिश उपनिवेशवाद के प्रति भी अपनी निर्णायक भूमिका निभाई है। चाहे वह 1905 में बंगाल विभाजन के समय स्वदेशी आंदोलन हो, जब दुर्गा पूजा जैसे प्रमुख उत्सवों ने बंगाली समाज में ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ राजनीति जागरूकता और संगठन का संचार किया अथवा महान स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के नेतृत्व में महाराष्ट्र और दक्कन के इलाकों में गणेश चतुर्थी और शिवाजी उत्सव के माध्यम से लोगों में राष्ट्रवाद के प्रति जन जागरूकता फैलाने की बात हो, भारतीय त्यौहार ने राष्ट्रीय आंदोलन में ऐसे मौके पर अपनी उपयोगिता सिद्ध की है।
हमारे त्यौहार सामाजिक समरसता, सामुदायिक मिलन और जातीय भेदभाव से ऊपर उठकर सामाजिक एकता का भी एक सराहनीय उदाहरण है। दुर्गा पूजा, रामलीला और दशहरा मेला जैसे उत्सवों का ग्रामीण भारत से निकलकर शहरों की मुख्य धारा और व्यवहार का हिस्सा बनाना समाज में उनकी बढ़ती स्वीकारता का प्रतीक है।
नोबेल अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी और एस्टर डिफ्लो की प्रकाशित पुस्तक च्ववत म्बवदवउपबे (2011) में भी मध्यम वर्ग के लिए त्यौहारों को सामाजिक उत्सव का एक महत्वपूर्ण माध्यम बताया गया। भारतीय संस्कृति के विभिन्न पहलुओं में मुख्य रूप से- सामूहिक खाद्य संस्कृति, संगीत और कला, नृत्य और नाटक, ऐतिहासिक और संस्कृत पर्यटन (जिसमें हेरिटेज, साइट्स, म्यूजियम, आदि शामिल हैं) जैसी गतिविधियां शामिल हैं। इन सभी पहलुओं को विभिन्न त्यौहारों के दौरान एक नई ऊर्जा और गति मिलती है जिससे सामाजिक मेल मिलाप और आर्थिक गतिविधियों का प्रचार होता है।
यूनेस्को के एक आकलन के अनुसार, विश्व के सकल घरेलू उत्पाद में 4 प्रतिशत हिस्सा सांस्कृतिक एवं रचनात्मक उद्योग से आता है। अमेरिका जैसे देशों की जीडीपी में तो सांस्कृतिक एवं रचनात्मक उद्योग का योगदान बहुत अधिक है।
त्यौहार छोटे व्यवसायों और स्थानीय विक्रेताओं के लिए एक सुनहरा अवसर प्रदान करते हैं। नवरात्र, दुर्गा पूजा, दशहरा और दिवाली के मौके पर स्ट्रीट बाज़ार, मेले और प्रदर्शनियाँ आर्थिक गतिविधियों के जीवंत केंद्र बन जाते हैं। छोटे व्यवसाय त्यौहार मनाने और अधिक मुनाफा कमाने के लिए आवश्यक सभी चीजें प्रदान करते हैं क्योंकि त्यौहार के उत्पादों पर अधिक मार्जिन होता है। त्यौहारों का आर्थिक प्रभाव उत्पन्न होने वाली प्रत्यक्ष बिक्री से कहीं आगे तक फैला हुआ है। त्यौहारों के आयोजन, आतिथ्य, परिवहन और सुरक्षा जैसे विभिन्न पहलुओं के प्रबंधन के लिए अक्सर अतिरिक्त कार्यबल की आवश्यकता होती है। इससे रोजगार के नए अवसर भी जन्म लेते हैं। स्थानीय सरकारें और प्राधिकरण अक्सर त्योहारों की तैयारी के लिए बुनियादी ढांचा विकास परियोजनाओं में निवेश करते हैं।
त्यौहारों के सीज़न के दौरान आगंतुकों की आमद को समायोजित करने के लिए परिवहन नेटवर्क को उन्नत करना, सार्वजनिक स्थानों में सुधार करना और पर्यटकों के आकर्षण को बढ़ाना प्राथमिकताएँ बन जाती हैं। जिसकी वजह से पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में नई आर्थिक गतिविधियां, निवेश और रोजगार के कई नए मौके बनते हैं।
कोरोना संकट के बाद भारत के सेवा क्षेत्र में मजबूत वृद्धि, जो इसके आर्थिक उत्पादन का आधे से अधिक हिस्सा है, ने एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को वैश्विक मंदी से उबरने में मदद की है, जिसने चीन सहित कई प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं को लड़खड़ा दिया है। विकास को समर्थन देने के लिए, केंद्र सरकार बुनियादी ढांचे पर अपना वार्षिक खर्च बढ़ा रही है। 1 अप्रैल से शुरू हुए वित्तीय वर्ष के पहले तीन महीनों में, भारत ने अपने पूंजीगत व्यय बजट का लगभग 28 प्रतिशत खर्च किया था। जाहिर है तेजी से उभरती भारतीय अर्थव्यवस्था को हमारे त्यौहार ने ’बाजार क्रांति’ के माध्यम से नई ऊर्जा दी है, जो आने वाले वर्षों में भारत को 5 ट्रिलियन इकोनामी बनाने के लक्ष्य की दिशा में मिल का पत्थर साबित होगा।
Share This