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समावेशी विकास पर सरकार का जोर

दुनिया की सभी बड़ी कंपनियों की नजर भारत के इसी विशाल उपभोक्ता बाजार पर टिकी हुई है। इस बाजार का लाभ युवाओं को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देकर उन्हें सीधे उद्यम से जोड़कर, प्रशिक्षित युवाओं को उत्पादकता में लगाकर हासिल कर सकते हैं। शायद सरकार की यही मंशा भी है, और सरकार ने अपने पूर्ण बजट में इसका साफ संकेत भी दे दिया है। - शिवनंदन लाल

 

लोकसभा के चुनाव परिणामों ने सरकार को बेरोजगारी के विषय पर गंभीरता से सोंचने के लिए विवश किया है, जिसकी प्रतिध्वनि मोदी 3.0 सरकार के पहले पूर्ण बजट में भी सुनाई दी है। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा प्रस्तुत बजट-2024 में युवाओं को सशक्त बनाने के लिए एक बहुआयामी रणनीति का खाका तैयार किया गया है। युवाओं और रोजगार पर ध्यान केंद्रित करते हुए शिक्षा, रोजगार और कौशल के लिए 1.48 लाख करोड रुपए आवंटित करने की घोषणा की गई है। बजट में 5 साल की अवधि में 2 लाख करोड रुपए के केंद्रीय परिवहन के साथ 4.5 करोड़ युवाओं को अवसर प्रदान करने के लिए अनेक योजनाएं शामिल की गई है। वित्तमंत्री ने कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के जरिए कर्मचारियों और नियोक्ताओं दोनों को प्रोत्साहन दिया है, जिसका उद्देश्य सभी क्षेत्रों में अतिरिक्त रोजगार को प्रोत्साहित करना है।

युवाओं में कुशलता बढ़ाने के लिए अगले 5 वर्षों में सिर्फ 500 कंपनियों में इंटर्नशिप के अवसर की बात प्रमुखता से कही गई है। बजट में सरकार ने स्पष्ट संदेश दिया है कि अगले 5 वर्षों के लिए सरकार रोजगार कौशल मध्य और लघु उद्योगों और मध्यम वर्ग की ओर ध्यान केंद्रित करेगी। सरकार की गंभीरता इससे भी स्पष्ट होती है कि रोजगार और कौशल के विभाग का नाम भी बदलकर कौशल रोजगार और आजीविका कर दिया गया है।

कौशल को बढ़ाने के लिए हर साल 25000 छात्रों को शिक्षा ऋण मॉडल का प्रस्ताव किया गया है जिसके लिए कौशल ऋण योजना की राशि को बढ़ाकर 7.5 लाख रुपए कर दिया गया है। कौशल पर ध्यान केंद्रित करने वाली इस योजना से 20 लाख व्यक्तियों को लाभ होगा। युवाओं में कौशल की कुशलता बढ़ाने के लिए 1000 प्रशिक्षण संस्थानों और नए डिज़ाइन किए गए पाठ्यक्रमों की स्थापना भी सुनिश्चित की जाएगी। घरेलू संस्थानों में उच्च शिक्षा के लिए 10 लाख रुपए तक के शिक्षा ऋण प्रदान करने की भी बात कही गई है, जिसके अंतर्गत हर साल एक लाख छात्रों को सीधे ऋण राशि के तीन प्रतिशत ब्याज की छूट भी मिलेगी। 

भारत में बेरोजगारी एक प्रमुख मुद्दा है, जो सदैव अर्थव्यवस्था के लिए चुनौती पूर्ण रहा है। तेजी से बढ़ती जनसंख्या ने स्थिति को और भी कठिन बना दिया है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन एवं मानव संसाधन विकास रिपोर्ट 2024 के अनुसार भारत का हर तीसरा युवा बेरोजगार है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार भारत में बेरोजगारी दर मई 2024 की 7 प्रतिशत के दर से बढ़कर जून महीने में अपने उच्चतम स्तर 9.2 प्रतिशत तक पहुंच गई है। भारतीय रोजगार रिपोर्ट 2024 के अनुसार पिछले करीब 20 सालों में भारत में युवाओं के बीच बेरोजगारी 30 प्रतिशत के आसपास बढ़ी है। वर्ष 2000 में युवाओं में बेरोजगारी दर 35.2 प्रतिशत थी, जो 2022 में बढ़कर 65.7 प्रतिशत हो गई। श्रम संगठन की रिपोर्ट को माने तो भारत में कुल बेरोजगारों में 80 प्रतिशत के आसपास युवा है। भारत में कुल श्रम शक्ति का 94 प्रतिशत असंगठित क्षेत्र में है जो विश्व का सबसे बड़ा असंगठित क्षेत्र है। आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था को बढ़ाते कार्य बल्कि जरूरत को पूरा करने के लिए गैर कृषि क्षेत्र में वर्ष 2030 तक सालाना औसतन लगभग 78.5 लाख नौकरियां पैदा करने की जरूरत है।

हाल के दिनों में आई तमाम रिपोर्ट से यह बात उभर कर आई है कि भारत में शिक्षित बेरोजगारी की दर में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। बेरोजगारी का अंदाजा हम इस बात से लगा सकते हैं कि अभी कुछ दिन पहले 60,000 पुलिस कांस्टेबल पदों के लिए लगभग 47 लाख परीक्षार्थियों ने आवेदन किया था। इसी तरह रेलवे भर्ती बोर्ड की गैर तकनीकी श्रेणियां की भर्ती परीक्षा के लिए 1.25 करोड़ से अधिक युवाओं ने आवेदन पत्र भरा था। देश की सबसे बड़ी नौकरी भारतीय प्रशासनिक सेवा से लेकर चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी तक के लिए सीमित पदों की तुलना में भारी संख्या में प्रतिभागिता की जाती रही है। शिक्षित आबादी का एक बड़ा हिस्सा हर हाल में सरकारी नौकरी पाने के लिए जी-तोड़ मेहनत करता है। इससे एक बात यह भी निकाल कर आती है कि युवा आबादी के पास उचित कौशल ना होने के कारण वह उत्पादक काम की बजाय सरकारी नौकरियों के पीछे भागने में खुद को ज्यादा सुरक्षित महसूस करता रहा है। एक भरोसेमंद रिपोर्ट के मुताबिक भारत में कुल कार्य बल के तीन प्रतिशत लोग ही औपचारिक रूप से कुशल श्रमिक हैं जबकि चीन में यह आंकड़ा 24 प्रतिशत, अमेरिका में 52 प्रतिशत, यूके में 68 प्रतिशत और जापान में 80 प्रतिशत से अधिक है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट में यह बताया गया है कि भारत के उच्च स्तरीय तकनीकी संस्थानों आईआईटी, आईआईएम की बात छोड़ दें तो देश के अधिकांश विश्वविद्यालय कॉलेज और निजी शैक्षणिक संस्थान केवल डिग्रियां बांटने के संस्थान के रूप में चर्चित है। ऐसे संस्थान डिग्रियां बांटकर प्रतिवर्ष देश में शिक्षित बेरोजगारों की एक बड़ी फौज तैयार कर रहे हैं। भारत में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा भी एक बड़ी समस्या है। तमाम संस्थान विद्यार्थियों का प्रवेश तो ले लेते हैं लेकिन उन्हें जिस तरह की उत्पादक शिक्षा देनी चाहिए इसका घोर अभाव है। अधिकांश विश्वविद्यालय और कॉलेज की शिक्षा उद्योगों की आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं है।

बजट प्रावधानों के अनुसार ईपीएफओ में पंजीकृत पहली बार के कर्मचारियों को तीन किस्तों में एक महीने के वेतन का प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण 15 हजार रुपए तक दिया जाएगा जिसकी पात्रता सीमा एक लाख रुपए प्रति माह तक होगी। इस योजना से 210 लाख युवाओं को लाभ मिलने की संभावना है। बजट में नियोक्तिओं को सहायता प्रदान करते हुए यह भी प्रावधान किया गया है कि प्रत्येक अतिरिक्त कर्मचारियों के ईपीएफओ योगदान के लिए नियोक्ताओं को 2 साल के लिए प्रतिमाह 3 हजार रुपए तक की प्रतिपूर्ति दी जाएगी। योजना का उद्देश्य 50 लाख अतिरिक्त लोगों को रोजगार के लिए प्रोत्साहित करना है। वित्तमंत्री द्वारा बजट में किया गया यह प्रावधान निश्चित रूप से सराहनीय है क्योंकि इससे सैद्धांतिक शिक्षा और व्यावहारिकता के बीच की खाई को कम करने में मदद मिलेगी एवं अधिकाधिक स्नातकों के लिए रोजगार के बड़े अवसर पैदा होंगे।

मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल के पहले पूर्ण बजट में सरकार ने रोजगार देने की दिशा में बड़े फैसले लिए हैं लेकिन इस दिशा में और अधिक गंभीर उपाय किए जाने की जरूरत है जिससे युवाओं को नौकरी करने की मानसिकता से बाहर निकाल कर व्यवसाय करने की दिशा में प्रोत्साहित किया जा सके। 

स्वदेशी जागरण मंच की देखरेख में बहुत पहले से ही इस समस्या को भांपते हुए स्वावलंबी भारत अभियान चलाया जा रहा है। अभियान में भारत भर से लोग जुड़ रहे हैं तथा अपने स्वयं का कारोबार विकसित कर रहे हैं। स्वावलंबी भारत अभियान का नारा है कि युवाओं को नौकरी पाने वाला नहीं नौकरी देने वाला बनना है। लाखों शिक्षित नौजवान अभियान से जुड़ अपना छोटा-मोटा उद्यम शुरू कर नित नई सफलता प्राप्त कर रहे हैं। इसके लिए सरकार के स्तर पर जरूरी है कि एमएसएमई की तरफ युवाओं के रुझान को बढ़ाने के लिए प्रत्येक शिक्षण संस्थान में सेमिनार और कार्यशालाओं का आयोजन किया जाए जिसके लिए बैंकिंग उद्योग, सरकार आदि पक्षों को एक मंच पर लाकर युवाओं को प्रतिस्पर्धी बनाने, डिजिटल बुनियादी ढांचे के उपयोग, प्रौद्योगिकी उन्नयन आदि के द्वारा स्वरोजगार की दिशा में ढाला जा सके। अनौपचारिक क्षेत्र की श्रम शक्ति को कौशल से लैस करने के लिए सरकार द्वारा चलाई जाने वाले कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रमों को प्रतिष्ठित उद्योगों के साथ सीधे जोड़ा जाना चाहिए। मोटे तौर पर रोजगार सृजित करने के लिए प्रत्येक उद्योग के लिए व्यक्तिगत रूप से डिजाइन किए गए विशेष पेंशन को लागू किए जाने की भी अब जरूरत है।

भारत विश्व में सबसे युवा आबादी वाला देश है। 29 वर्ष की औसत आयु के साथ यहां की युवा आबादी में देश को आगे बढ़ाने की पर्याप्त सामर्थ्य है। राष्ट्रीय रोजगार नीति में व्यापक फेर बदलकर हर हाथ को काम दिया जा सकता है। जाहिर सी बात है कि देश में जब सभी के पास काम होंगे तो उपभोग को भी प्रोत्साहन मिलेगा, जिससे निवेश और बचत में भी वृद्धि होगी। फलस्वरुप अर्थव्यवस्था की गति भी उसी रफ्तार से तेजी पकड़ेगी। भारत के उपभोक्ता बाजार का आकार लगातार बड़ा होते हुए 2.2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक का हो गया है। भारत आज दुनिया के नक्शे पर चौथा सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार बन चुका है। दुनिया की सभी बड़ी कंपनियों की नजर भारत के इसी विशाल उपभोक्ता बाजार पर टिकी हुई है। इस बाजार का लाभ युवाओं को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देकर उन्हें सीधे उद्यम से जोड़कर, प्रशिक्षित युवाओं को उत्पादकता में लगाकर हासिल कर सकते हैं। शायद सरकार की यही मंशा भी है, और सरकार ने अपने पूर्ण बजट में इसका साफ संकेत भी दे दिया है।     

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