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सिकुड़ते संसाधनों के बीच आबादी आठ अरब के पार

सवाल अहम है कि जिस रफ्तार से संख्या बढ़ रही है इतनी बड़ी जनसंख्या का आने वाले समय में पेट कैसे भरा जाएगा। - अनिल तिवारी

 

15 नवंबर 2022 को विश्व की आबादी 8 अरब का आंकड़ा पार कर गई। अब इस जनसंख्या को लेकर संकट बनाम समाधान का एक नया विमर्श दुनिया भर के देशों के बीच शुरू हो गया है। यूं तो माना जाता है कि जनसंख्या एक ऐसा संसाधन है जो अपने आपमें शक्ति होने का द्योतक है लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि यह समस्या का भी सबब बनता रहा है। खासकर उस जनसंख्या के लिए जो औसत रूप से कुशल नहीं है। अशिक्षा, कुपोषण, संक्रामक बीमारियों, प्राकृतिक आपदाओं से घिरे रहने वाले क्षेत्रों के लिए यह बढ़ती हुई आबादी किसी अभिशाप से कम नहीं है, क्योंकि ऐसे ही देशों की आबादी आगे भी रफ्तार के साथ बढ़ने की संभावना है। भारत दुनिया भर में अभी एक युवा देश के रूप में जाना जा रहा है लेकिन आने वाले दिनों में इसके भी बुजुर्ग होने और लगातार बुढ़ाते जाने की समस्या दरपेश होगी।

इन आंकड़ों से इतना तो तय हो गया कि अब दुनिया भर में 8 अरब सपने देखने तथा उन सपनों को पूरा करने के लिए 8 अरब दिमाग मौजूद है। किसी भी काम को अमलीजामा पहनाने के लिए अब हमारे पास 16 अरब हाथ मौजूद हैं ,लेकिन यह तभी संभव है जब हम आर्थिक, सामाजिक, क्षेत्रीय और ऐतिहासिक गैर बराबरी को दूर करने के लिए दुनिया के स्तर पर सामूहिक प्रयास करें। भारत एक ऐसा देश है जहां हर पैदाइश पर सोहर गाया जाता है तो ठीक उसी समय गया, हरिद्वार में जाकर के पितृपक्ष का आयोजन भी बड़े धूमधाम से किया जाता है। हम जन्म और मृत्यु दोनों को समान भव से लेने वाले समाज हैं ।

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक साल 2030 तक आबादी 830 करोड़, 2050 तक 970 करोड और 2300 तक 10.50 अरब तक पहुंच सकती है। भारत की आबादी तो अगले साल 2023 में ही चीन को पीछे छोड़ देगी। भारत की जनसंख्या अभी 1.04 प्रतिशत की सालाना दर से बढ़ रही है। सवाल अहम है कि जिस रफ्तार से संख्या बढ़ रही है इतनी बड़ी जनसंख्या का आने वाले समय में पेट कैसे भरा जाएगा, क्योंकि जलवायु परिवर्तन न सिर्फ आजीविका, पानी की आपूर्ति और मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा कर रहा है, बल्कि खाद्य सुरक्षा के लिए भी चुनौती खड़ी कर रहा है। अधिकांश देश जिन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं उनमें खाद्य सुरक्षा की चुनौती सबसे प्रमुख है। 

वर्तमान में जिस तेज दर से विश्व की आबादी बढ़ रही है उस हिसाब से इसका दबाव प्राकृतिक संसाधनों पर स्पष्ट रूप से पड़ रहा है। विश्व समुदाय के समक्ष माइग्रेशन भी समस्या के रूप में उभर रहा है क्योंकि बढ़ती आबादी के चलते लोग बुनियादी सुख सुविधा के लिए दूसरे देशों में पनाह लेने को मजबूर हैं। आज पूरी दुनिया के लिए बढ़ती आबादी एवं सिकुड़ते संसाधन अभिशाप हैं, क्योंकि जनसंख्या में अनुपात में संसाधनों की वृद्धि सीमित है। यही वजह है कि 8 अरब की आबादी का बोझ ढोती पृथ्वी जनसंख्या से पैदा हुई अनेक समस्याओं के निदान की बाट जोह रही है। पूरी दुनिया की आबादी में अकेले एशिया की आबादी 61 प्रतिशत है, यही कारण भारत को दुनिया की महाशक्ति बनने में सबसे बड़ी बाधा है। फिलहाल भारत की जनसंख्या विश्व की जनसंख्या की 18 प्रतिशत है। भू भाग के लिहाज से भारत के पास 2.5 प्रतिशत जमीन है, 4 प्रतिशत जल संसाधन है।  इतना ही नहीं देश में जमीन के कुल 60 प्रतिशत हिस्से पर खेती होने के बावजूद करीब 20 करोड़ लोग अभी भूखमरी के शिकार हैं। साफ है कि जनसंख्या विस्फोट से संसाधनों की अपर्याप्तता के कारण उत्पन्न समस्याओं का असर अब सब पर पड़ रहा है, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का हो।

अभी भारत की आबादी 1.39 बिलियन है। बढ़ती जनसंख्या चिंता का विषय तो है। हालांकि यह प्रश्न कोई नया नहीं है, लेकिन इसे नए आयाम से देखे जाने की जरूरत है क्योंकि इसके कारण कृषि योग्य जमीनों पर भी अतिक्रमण हो रहा है। खेती योग्य जमीन घट रही है, खाने वाले लोग बढ़ रहे हैं। ऐसे में सभी के लिए कृषि से भोजन उपलब्ध कराना नई चुनौती है। यह त्रासदी है कि आजादी के बाद देश खाद्यान्न के मामले में पूरी तरह आत्मनिर्भर नहीं हो पाया है। 

आज कृषि भूमि के उपयोग में तेजी से परिवर्तन हो रहा है। किसान कृषि से दूर हो रहे हैं जिससे भारत में खाद्य सुरक्षा के लिए खतरा बढ़ सकता है। कृषि भूमि का ह््रास भारत के सामाजिक ताने-बाने को भी प्रभावित कर रहा है। हालांकि इस दौरान सरकार द्वारा बंजर भूमि को कृषि योग्य भूमि में बदलने से जुड़ी कुछ सफल कहानियां भी हैं। बावजूद इसके यह भी तथ्य है कि हमारे देश में खेती योग्य भूमि साल दर साल घट रही है, जोत छोटे हो रहे हैं। अब हम आंकड़ों पर गौर करें तो वेस्टलैंड एटलस 2019 के मुताबिक पंजाब जैसे कृषि प्रधान राज्य में 14000 हेक्टेयर और पश्चिम बंगाल में 62000 हेक्टयर खेती योग्य भूमि घट गई है। वहीं सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में यह आंकड़ा सबसे अधिक खतरनाक लग सकता है, जहां हर साल विकास कार्यों पर 48000 हेक्टयर कृषि भूमि घटती जा रही है। 

अब गौर करने वाली बात यह है कि 1992 में ग्रामीण परिवारों के पास 117 मिलीयन हेक्टयर भूमि थी जो 2013 तक घटकर केवल 92 मिलियन हेक्टयर रह गई है। जाहिर है कि दो दशक के अंतराल में 22 मिलियन हेक्टयर भूमि ग्रामीण परिवारों के हाथ से निकल गई। यदि यही सिलसिला जारी रहा तो कहा जा रहा है कि अगले साल यानी 2023 तक भारत में खेती का रकबा 80 मिलियन हैक्टयर ही रह जाएगा। ठीक है कि जनसंख्या नियंत्रण के नाम पर देश में बड़ी-बड़ी योजनाएं बनी, लेकिन सच्चाई है कि कोई सफल नहीं हो सकी। जनसंख्या के लिए राष्ट्रीय नीति होनी बहुत जरूरी है। दो बच्चों की नीति का अनुपालन राष्ट्रीय स्तर पर होना चाहिए। 

बेतहाशा बढ़ती जनसंख्या देश के विकास को प्रभावित कर रही है। बड़ी जनसंख्या तक योजनाओं के लाभों का समान रूप से वितरण संभव नहीं हो पाता, जिसकी वजह से हम गरीबी और बेरोजगारी जैसी समस्याओं से दशकों बाद भी उबर नहीं सके हैं। हमारे देश में जनसंख्या का बहुत बड़ा हिस्सा आज भी गरीबी की चपेट में है। जाहिर है कि अगर आबादी बढ़ती है तो गरीबों की संख्या में वृद्धि होना स्वभाविक है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स की 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 16.3 प्रतिशत आबादी कुपोषित है। 5 साल से कम उम्र के 35.5 प्रतिशत बच्चे अशिक्षित हैं। भारत में 3.3 प्रतिशत बच्चों की 5 साल की उम्र से पहले ही मौत हो जाती है। वहीं खाद्य एवं कृषि संगठन की ताजा रिपोर्ट स्टेट आफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड के अनुसार दुनिया भर में 80 करोड़ से ज्यादा लोग भुखमरी से जूझ रहे हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो दुनिया का हर दसवां आदमी भूखा है। रिपोर्ट की मानें तो अभी भी दुनिया में स्वस्थ आहार 310 करोड़ लोगों की पहुंच से बाहर है। 

साफ है कि दुनिया भर में तमाम प्रोग्राम और संयुक्त राष्ट्र की कोशिशों के बावजूद खाद्य की कमी और कुपोषण को अभी तक खत्म नहीं किया जा सका है। खाद्य एवं कृषि संगठन के मुताबिक इसका बड़ा कारण देशों के बीच संघर्ष, जलवायु परिवर्तन और आर्थिकी भी है। 2020 में कोरोना महामारी ने इस अंतर को और बढ़ाया है। भारत में 80 करोड़ लोगों को इस दौरान मुफ्त में अनाज देना पड़ा था। बहरहाल बढ़ती आबादी के कारण ही दुनियाभर में तेल, प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ गया है, जो भविष्य के लिए खतरे का संकेत है। भले ही दुनिया भर में हम विकास का दम भरते रहे, पर सच यह है कि दुनिया में भुखमरी का गंभीर संकट मंडरा रहा है। 

नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने भी कहा है कि अकाल और खाद्य समस्या का मुख्य कारण सिर्फ खाद्य पदार्थों का अभाव नहीं, बल्कि लोगों की क्रय शक्ति में कमी ही इसके पीछे मूल कारण है। वहीं दूसरी तरफ एक आकलन के अनुसार पूरी दुनिया में 30 प्रतिशत अनाज बर्बाद हो जाता है। किसान वर्ग भी वर्तमान समय में आबादी के अनुपात में अनाज उत्पादन नहीं कर पा रहा है। 

समय बदल रहा है और स्थिति भी बदल रही है। ऐसे में दुनिया की बड़ी आबादी को भुखमरी से बाहर निकालने के लिए सामूहिक प्रयास की जरूरत है ताकि सामाजिक सुरक्षा उपायों को अपनाकर गरीबी और भूखमरी का उन्मूलन किया जा सके। जनसंख्या नियंत्रण एवं खाद्य उत्पादन में वृद्धि की आवश्यकता दोनों बातें केवल भारत के लिए ही नहीं बल्कि पूरे संपूर्ण विश्व के लिए सोचनीय विषय है। इन दोनों समस्याओं को हल के लिए विश्व स्तर पर अभिनव प्रयास जारी है। 

भारत विश्व के उन देशों में है जहां खाद्यान्न की प्रति व्यक्ति बेहद कमी है। अमीर वर्ग, मध्यवर्ती किसान और व्यापारी ही पर्याप्त और उपयुक्त भोजन प्राप्त कर पाते हैं, शेष ग्रामीण, मजदूर, लघु कृषक, आदिवासियों, निम्न मध्यवर्गीय लोगों के समक्ष उनकी समस्या सुरसा की तरह मुंह बाए खड़ी है। निदान के लिए प्रत्येक घर में चाहे छोटी सी ही जमीन क्यों न हो अपने गुजारे के लिए कुछ ना कुछ खाद्य पदार्थ उगाना ही होगा। जमीन की उर्वरता बढ़ाने के लिए पशुपालन और उनके स्थान पर साग सब्जी का उत्पादन तथा सेवन ऐसे उपाय हैं जिनके सहारे समाधान बहुत हद तक किया जा सकता है। 

सरकार द्वारा परिवार नियोजन के क्षेत्र में वृहद कार्यक्रम चलाया जा रहा है। उसी तरह का क्रियान्वयन खाद्यान्न उत्पादन के लिए भी सुनिश्चित हो। आर्थिक प्रणालियों की जरूरतों को पूरा करने के लिए जनसंख्या के आंकड़ों को बदलने के प्रयासों की बजाय जनसंख्या की जरूरतों को पूरा करने वाली आर्थिक व्यवस्था बननी चाहिए। 8 अरब लोगों की शक्ति का दोहन करने के लिए आवश्यक होगा कि इन्हें एकजुटता से सशक्त बनाए। ठीक उसी प्रकार जैसे हम सभी देश महामारी में एक दूसरे की मदद के लिए आगे आए थे। आर्थिक समृद्धि के साथ सामाजिक संतुलन की भी जरूरत होगी। भारत के कृषक समाज में धन और जन दोनों के बीच संतुलन की चाह और 10 की लाठी एक का बोझ जैसा मुहावरा पहले से प्रचलित है। स्वास्थ सुविधाओं की बेहतरी से दुनियां में औसत आय बढ़ी है और इसका संबंध भी जनसंख्या की वृद्धि से है। लेकिन बुजुर्गों की देखभाल आने वाले दशकों में बड़ी चुनौती बनने जा रही है। 

लिसेंट में छपे वाशिंगटन विश्वविद्यालय के एक शोध पत्र के अनुसार इस सदी के अंत तक दुनिया में 2.4 बिलियन लोग 65 साल से अधिक के होंगे, जबकि 20 साल से कम उम्र के लोगों की संख्या 1.7 बिलियन ही रह जाएगी। महिलाओं की शिक्षा और उनके रोजगार में भागीदारी जनसंख्या नियंत्रण के प्रभावी तरीके हैं। एशिया के देशों जहां बाल विवाह की प्रथा है और महिला शिक्षा की स्थिति सामान्य नहीं है, इस पर विशेष ध्यान देना होगा। आने वाले वर्षों में उत्पादक आयु के युवाओं से अधिक संख्या उन पर निर्भर बुजुर्गों की होगी। ऐसी स्थिति में हमें अपने देश में एक ही कैंपस में स्कूल और वृद्धाश्रम एक साथ खोले जाने की योजना बनानी पड़ेगी।

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