जब भारत स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मना रहा है तब श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का राष्ट्रपति पद पर चुनाव होना प्रत्येक भारतीय को गौरवान्वित करता है। विषम परिस्थितियों में संधर्ष करते हुए यहां तक पंहुचने की उनकी यह यात्रा बहुत बड़ा प्ररेणा स्त्रोत है। — डॉ. सूर्यप्रकाश अग्रवाल
भारत के 75 वर्ष के स्वतंत्रता के जीवन में आदिवासी समुदाय की प्रथम, स्वतंत्र भारत में पैदा हुई, सबसे से कम आयु की तथा देश की द्वितीय महिला राष्ट्रपति श्रीमती द्रैपदी मुर्मु ने 25 जुलाई 2022 को नई दिल्ली के रायसीना हिल्स पर स्थापित भारत के भव्य राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति पद की हिन्दी में शपथ ग्रहण की। श्रीमती द्रौपदी मुर्मु के शपथ ग्रहण करने से विश्व में एक सुखद संदेश गया कि भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में ही यह अद्भुत शक्ति है कि भारत में रहने वाला कोई भी वंचित अपने सपनों को साकार करने की शक्ति रखता है।
जब श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने देश के 15वें राष्ट्रपति पद को ग्रहण करते हुए शपथ ली तो भारत में शून्य से सत्ता के शिखर पर पंहुचने का इतिहास रचा गया। श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने अपने प्रथम संबोधन में कहा कि संसदीय लोकतंत्र के रुप में 75 वर्षो में भारत ने प्रगति के संकल्प को सहभागिता एवम् सर्वसम्मति से आगे बढ़ाया है तथा विविधताओं से भरे देश में हम अनेक भाषा, धर्म, सम्प्रदाय, रहन सहन, रीति रिवाजों को अपनाते हुए एक भारत, श्रेष्ठ भारत के निर्माण में सक्रिय है। स्वतंत्रता के 75वें वर्ष के अवसर पर यह अमृतकाल भारत के लिए नए संकल्पों का कालख्ांड़ है। उन्होंने आगे कहा कि भारत के लोकतंत्र की ही शक्ति है कि गरीब परिवार में पैदा हुई बेटी पार्षद से लेकर सर्वोच्च संवैधानिक पद तक पंहुच सकती है। राष्ट्रपति पद तक पंहुचना उनकी व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं बल्कि प्रत्येक गरीब की उपलब्धि है। उनका निर्वाचन इस बात का सबूत है कि भारत में गरीब सपने देख भी सकते है और उन्हें पूरा भी कर सकते है।
स्वतंत्र भारत में 22 जून 1958 को ओड़िशा के मयूरभंज जिले में रायरंगपुर क्षेत्र के ऊपरबेड़ा गांव के प्रधान के एक घर में श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का जन्म आदिवासी संथाली परिवार में हुआ। उनके पिता बिरंची नारायण टुडू मयूंरभंज के राजा के दरबार में कर्मचारी थे। श्रीमती द्रोपदी मुर्मु अपने तीन भाई बहनों में सबसे बड़ी है। उनके भाई दुलाराम व तारिणी सेन है। दुलाराम ग्रामीण बैंक की रायरंगपुर शाखा में कार्यरत् है। श्रीमती द्रोपदी मुर्मु की आरम्भिक शिक्षा गांव ऊपरबेड़ा के नोड़ल स्कुल में हुई। गांव के स्कूल से कक्षा सात उत्तीर्ण करने के उपरान्त ही बी.बी.एस.आर. यूनिट -2 गर्ल्स हाईस्कूल भुवनेश्वर में दंसवी तक की शिक्षा ली तथा इंटर व आगे की पढ़ाई रमादेवी कालेज भुवनेश्वर से की। उसके उपरान्त ओडिशा सचिवालय में 1979 में नौकारी की तथा 1994 से 1997 तक रायरगंपुर के अरविन्द स्कुल में अध्यापन भी किया। जन्म के समय उनका नाम पुती रखा गया था परन्तु बाद में स्कूल में उनके एक अध्यापक को उनका यह नाम पंसद नहीं था तो अध्यापक ने उनका नाम बदल कर दुरपदी कर दिया जो बाद में बदल का द्रौपदी कर दिया गया। उनका यह नाम महाकाव्य महाभारत के एक चरित्र का नाम है। पुती उनकी दादी का नाम था संथाल संस्कृति में लड़की के जन्म लेने पर दादी का नाम दिय जाता है यदि लड़का जन्म लेता है तो उसको दादा का नाम दिया जाता है।
वर्ष 1997 में श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने रायरंगपुर नगर पंचायत के पार्षद का चुनाव जीता तथा तभी से ही उनका राजनीतिक जीवन प्रारम्भ हो गया। वर्ष 2000 में भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर रायरंगपुर विधानसभा का चुनाव जीत कर विधायक बन गई। उन्होनें जब वर्ष 2009 के चुनाव में भी जीत दर्ज की तो बीजू जनता दल तथा भारतीय जनता पार्टी के गठबंधन की सरकार में नवीन पटनायक के नेतृत्व में ओड़िशा की 2000 से 2002 तक श्रीमती द्रौपदी मुर्मु वाणिज्य व परिवहन मंत्री तथा 2002 से 2004 तक मत्स्य और पशुसंसाधन विभाग में मंत्री बनी। 2007 वर्ष में उनको ओड़िशा विधानसभा की श्रेष्ठ विधायक का पुरस्कार दिया गया। 2015 से 2021 तक वे झारखंड़ राज्य की महिला राज्यपाल बनी तथा 25 जुलाई 2022 को वे देश की राष्ट्रपति चयनित की गई।
श्रीमती द्रौपदी मुर्मु की सनातन धर्म में आस्था है। रायरंगपुर में जब भी वे आती है तो माहुलड़ीहा से कुछ दूर स्थित शिव मंदिर जरुर आराधना करने जाती है। स्वंय मंदिर की साफ सफाई कर पूजा करती है। जब वे 1997 में पार्षद बनी तो रायंरगपुर की स्वच्छता समिति की उपाध्यक्षा भी चुनी गई थी तो वे तड़के ही शहर में यह देखने निकल पड़ती थी कि साफ सफाई का काम ढ़ंग से हो रहा है अथवा नहीं। श्रीमती द्रौपदी मुर्मु शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण करती है। घर में जो कुछ सादा भोजन बनता है वह ही चाव से खाती है। लहसुन व प्याज से भी उन्हें परहेज है। सिनेमा देखना उन्हें पंसद नहीं है। कहा जाता है कि उन्होंने एक ही फिल्म जो उड़ीया भाषा में है जिसका नाम ‘गाया हेले बी साता है’ देखी थी। कभी कभी टीवी पर वे बच्चों के म्यूजिक रियलिटी शो देखती है। आदिवासी संथाल संस्कृति के लोकनृत्य उन्हें पंसद है।
ऊपरबेड़ा गांव से 15 किलेमीटर दूर पहाड़पुर में बैंक के फील्ड़ अफसर श्यामचरण मुर्मु से उनका विवाह हुआ था। उनके यहां तीन संतान- दो बेटे- लक्ष्मण व सिप्रन तथा एक पुत्री इतिश्री ने जन्म लिया। परन्तु 25 अक्टूबर 2010 को लक्ष्मण का आकस्मिक निधन हो गया तथा 2 जनवरी 2013 को उनके दूसरे पुत्र सिप्रन का भी एक दुर्धटना में निधन हो गया तथा एक अगस्त 2014 को उनके पति श्यामचरण मुर्मु का भी निधन हो गया। परिवार के इन महत्वपूर्ण तीनों सदस्यों की मृत्यु से द्रौपदी मुर्मु मानसिक रुप से आहत हुई तथा ब्रहमकुमारी संस्था से जुड़ गई तथा ध्यान का अनुसरण कर धीरे-धीरे वे सामान्य अवस्था में लौट आयी। पहाड़पुर में उन्होंने अपने पति व पुत्रों की समिध बनवायी तथा अपनी जमीन का एक बड़ा हिस्सा स्कुल को दान कर दिया तथा एस. एल. एस. मेमोरियल रेसिड़ेंशियल स्कुल स्थापित किया जहां छठी कक्षा से दसवीं तक की शिक्षा निःशुल्क दी जाती है।
श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का भारत जैसे विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश की राष्ट्रपति बनना बहुत बड़ी घटना है क्योंकि वे आदिवासियों में भी सबसे पिछड़े संथाली परिवार से आती है। यदि इस चुनाव को राजनीतिक कहा जाये तो कहा जाये, परन्तु सच्चाई यह है कि सामाजिक न्याय के मापदंड़ का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया है कि जो अभी तक प्रस्तुत नहीं किया गया था। उनसे पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविद अत्यन्त गरीब परिवार से आते है तथा उन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा भी ग्रामीण महौल में प्रतिदिन लम्बी दूरी तय करके ही की थी।
श्रीमती द्रौपदी मुर्मु के राष्ट्रपति चयनित होते ही आदिवासियों में अभूतपूर्व उल्लास व प्रसन्नता देखी जा रही है। श्रीमती द्रौपदी मुर्मु की इस अभूतपूर्व सफलता को भाजपा भी देश के ढे़ड़ लाख गांवो तक प्रचारित करने की एक योजना बना रही है।
25 जुलाई 2022 को राष्ट्रपति पद की शपथ ग्रहण करने वाली श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने निवर्तमान आई.ए.एस. व पूर्व केन्द्रीय मंत्री तथा सम्पूर्ण विपक्ष के प्रभावशाली नेता 84 वर्षीय यशवंत सिन्हा को मतो के बहुत ज्यादा अंतर से पराजित किया। श्रीमती द्रौपदी मुर्मु को सभी राज्यों में क्रास वोटिंग का लाभ मिला। झारख्ांड़ में सबसे लम्बे समय तक राज्यपाल रही श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने अपने राज्यभवन के दरवाजे आम जनता के लिए ख्ुले रखे हुए थे। किसी ने भी उनसे मिलने की अनुमति मांगी तो राजभवन से हां में ही जबाब जाता था। श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने अगस्त 2016 में अपने घर को स्कूल में परिवर्तित कर दिया। स्कूल में उनके पति व पुत्रों की समाधि है तथा प्रतिवर्ष उनकी पूण्य तिथि पर श्रीमती द्रौपदी मुर्मु स्कूल जाती है तथा वहां बच्चों में ही अपने बच्चों को देखती है व महूसस करती है।
जब भारत स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मना रहा है तब श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का राष्ट्रपति पद पर चुनाव होना प्रत्येक भारतीय को गौरवान्वित करता है। विषम परिस्थितियों में संधर्ष करते हुए यहां तक पंहुचने की उनकी यह यात्रा बहुत बड़ा प्ररेणा स्त्रोत है। महिला सशक्तीकरण की दिशा में भी उनका चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है। मातृ शक्ति भी उनसे जुड़ाव महसूस कर रही है। देश की कुल जनसंख्या में अिदवासी समाज की संख्या नौ प्रतिशत (लगभग 11 करोड़) है। अिदवासियों ने भी स्वतंत्रता संग्राम में अपना अविस्मरणीय योगदान दिया है। परन्तु आजादी के 75 वर्ष के उपरान्त उन्हें गौरवशाली पद प्राप्त हुआ है। यह कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि समाज में आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक तीनों ही स्तरों पर सबसे निचले पायदान पर मौजूद समाज से आने वाली श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर पहुंचना पूरे देश के लिए अत्यन्त गौरव की बात है। अनुसूचित जनजातियों के लिए राष्ट्रपति के पद पर श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का आसीन होना प्रेरक है। इससे वंचितों के चित्त में भारतीय संवैधानिक व्यवस्था के प्रति भरोसा बढ़ा है कि इस व्यवस्था में हमारा भी साझा है। इस व्यवस्था के शिखर पर हमारे घर परिवार की महिला विराजमान है तथा हमारे लिए सर्वोच्च पद भी उपलब्ध है। ु
डॉ. सूर्य प्रकाश अग्रवाल सनातन धर्म महाविद्यालय मुजफ्फरनगर 251001 (उ.प्र.), के वाणिज्य संकाय के संकायाध्यक्ष व ऐसोसियेट प्रोफेसर के पद से व महाविद्यालय के प्राचार्य पद से अवकाश प्राप्त हैं तथा स्वतंत्र लेखक व टिप्पणीकार है।