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अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने से साकार होगा विकसित भारत का सपना

आरबीआई पर ब्याज दरों में कटौती का दबाव बढ़ने के अंदेशा के बीच अब सबकी निगाहें एक फरवरी को आने वाले बजट पर लगी है कि सरकार अर्थव्यवस्था को को संजीवनी देने के लिए क्या कदम उठाती है। - अनिल तिवारी

राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय (एनएसओ) के पहले अग्रिम अनुमान में वित्त वर्ष 2025 में जीडीपी ग्रोथ 6.4 प्रतिशत रहने की बात कही गई है। यह भारतीय रिजर्व बैंक के 6.6 प्रतिशत के अनुमान और वित्त वर्ष 2024 की 8.2 प्रतिशत की ग्रोथ से काफी कम है। इस आकलन के बाद आरबीआई पर ब्याज दरों में कटौती का दबाव बढ़ने के अंदेशा के बीच अब सबकी निगाहें एक फरवरी को आने वाले बजट पर लगी है कि सरकार अर्थव्यवस्था को को संजीवनी देने के लिए क्या कदम उठाती है।

भारत का शेयर बाजार भी आम बजट से आस लगाए बैठा हैं। पिछले दिनों अमेरिका में सत्ता परिवर्तन व अन्य वैश्विक घटनाओं के चलते शेयर बाजार में काफी उतार चढ़ाव देखा गया। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशको  ने अपना हाथ खींच लिया। वर्ष 2023 की तुलना में वर्ष 2024 में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश आधा से भी कम आया है, जिसके चलते भारत की जीडीपी ग्रोथ सुस्त दिख रही है। हालांकि कई बार लगातार धड़ाम से नीचे आने के बावजूद भारत का शेयर बाजार फिर से उठ खड़ा हुआ और अब लगातार ऊपर की ओर जा रहा है। वर्तमान में भी इसके और ऊपर चढ़ने के सकारात्मक संकेत हैं। इसका मुख्य कारण है कि भारत में वित्तीय स्थिरता है। हमारी आईटी और एआई के क्षेत्र में दुनिया के पैमाने पर साख बनी हुई है। पर्यटन और स्वास्थ्य के क्षेत्र में हमारी आमदनी का स्तर सुदृढ़ है वहीं सरकार दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ बुनियादी ढांचा के विकास में लगातार निवेश जारी रखने पर जोर दे रही है।

इन सब के बावजूद वर्ष 2025 में सेंसेक्स की दिशा बहुत हद तक जीडीपी के ग्रोथ पर ही निर्भर करेगी। मालूम हो कि वर्ष 2022-23 की दूसरी तिमाही में हमारे विकास दर 8.01 प्रतिशत थी जो वर्ष 2024 की दूसरी तिमाही में घटकर 5.4 प्रतिशत रह गई। वर्ष 2024-25 के अग्रिम अनुमान में इसके गिरकर 6.4 प्रतिशत पर आने का अनुमान लगाया गया है। अगर यह गिरावट जारी रहती है तो हमारी कंपनियों का माल कम बिकेगा, उनके लाभ दबाव में आएंगे और शेयर बाजार निश्चित रूप से टूटेगा।

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अनुमान लगाया है कि अगले 5 वर्ष में भारत की विकास दर 6.01 प्रतिशत रहेगी। यदि विकास दर इससे अधिक रहती है तो हम मान सकते हैं कि हम अपेक्षा से अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। यदि विकास दर 6.01 प्रतिशत से कम रही तो हमें मानना चाहिए कि हम अपेक्षा से कम विकास दर हासिल कर रहे हैं और यह शेयर बाजार के लिए हर हाल में नकारात्मक होगा। क्योंकि अर्थव्यवस्था तीव्र गति से बढ़ती है तो कंपनियां अधिक लाभ कमाती हैं और शेयर बाजार उछलता इतराता रहता है।

भारत में भविष्य की विकास दर की दिशा का एक महत्वपूर्ण बिंदु अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों का भी है। क्योंकि ट्रंप चाहते हैं कि अमेरिकी कंपनियां अमेरिका में ही उत्पादन करें। वह अमेरिका में होने वाले आयतों पर आयात-कर बढ़ाना चाहते हैं जिससे उनके घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहन मिले। ट्रंप ग्लोबलाइजेशन से पीछे हटना चाहते हैं। अमेरिका के प्रमुख व्यापारी एलन मस्क ने अभी हाल ही में अपनी बात रखते हुए कहा है कि ’ग्लोबलाइजेशन इज ए कल्चरल सोसाइड’ यानी उनकी नजर में अब वैश्वीकरण एक सांस्कृतिक आत्महत्या जैसा है। अगर ट्रंप का अमेरिकी प्रशासन वैश्वीकरण की नीति से पीछे भागता है और अमेरिका फर्स्ट की नीतियों को वास्तव में पूरी ताकत के साथ लागू करता है तो भारत पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। अमेरिकी उद्योगों की घर वापसी से भारत से फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट वापस जाएगा। अमेरिका द्वारा आयात कर बढ़ने से भारत के लिए निर्यात करना कठिन हो जाएगा, उस स्थिति में भारत की निर्यातक कंपनियों के लाभ दबाव में आएंगे, जिसका सीधा असर हमारे उद्योगों पर और उसके बाद सकल घरेलू उत्पादन दर पर भी पड़ेगा।

इसी तरह भू-राजनीतिक तनाव का भी अर्थव्यवस्था के विकास पर सीधा असर पड़ता है। रूस यूक्रेन युद्ध, इसराइल और हमास के बीच तनातनी, सीरिया और ताइवान में युद्धों की लगातार बढ़ती आशंका के कारण भी व्यापार की रफ्तार धीमी हो सकती है।

इसी तरह जलवायु परिवर्तन का मुद्दा भी प्रमुख है। आज वैश्विक स्तर पर सूखा और बाढ़ की घटनाएं बढ़ रही हैं। अमेरिका के जंगलों में लगी आग से भारी नुकसान पहुंचा है। भारत में अगर सूखा पड़ जाए अथवा अति वृष्टि हो जाए तो धान और गेहूं का उत्पादन कम हो जाता है। भारत एक कृषि प्रधान देश है इसलिए उत्पादन कम होते ही यहां के ग्रामीण निवासियों की क्रय शक्ति घट जाती है।

एनएसओ का मानना है कि मैन्युफैक्चरिंग और निवेश घटने से ग्रोथ पर बुरा असर पड़ने जा रहा है। वित्त वर्ष 2025 में अप्रैल से नवंबर के बीच कैपिटल एक्सपेंडिचर में 12.3 प्रतिशत की सालाना गिरावट आई। लोकसभा चुनाव और फिर भारी बारिश की वजह से सरकार यह पैसा बुनियादी ढांचा विकास पर खर्च नहीं कर पाई, जिससे अर्थव्यवस्था पर दबाव बना। वित्त वर्ष के बचे हुए महीनों में इसमें तेजी आने की आशा है, जिससे अर्थव्यवस्था को सपोर्ट मिल सकता है।

एनएसओ के अनुमान के मुताबिक वित्त वर्ष 2025 में कृषि क्षेत्र की ग्रोथ अच्छी रहेगी और निजी खपत में भी अच्छा सुधार दिखेगा, लेकिन कैपिटल एक्सपेंडिचर में गिरावट के कारण स्थिति अच्छी नहीं दिख रही है। वहीं, कृषि क्षेत्र के अच्छे प्रदर्शन की वजह से ग्रामीण मांग में रिकवरी हुई है, लेकिन शहरी क्षेत्रों में मांग कमजोर है। देखना होगा कि शहरी मांग को बढ़ावा देने के लिए सरकार आगामी बजट में क्या उपाय करती है?

अर्थव्यवस्था की रफ्तार तेज बनाए रखने के लिए सरकार को मांग और निवेश बढ़ाने पर ध्यान देना होगा। इसका एक विकल्प यह हो सकता है कि सरकार टैक्स में रियायत दे ताकि लोगों के हाथ में खर्च करने के लिए अधिक पैसा बचे। जब लोग पैसा खर्च करेंगे तो अर्थव्यवस्था को सहारा मिलेगा।

अगर फरवरी की बैठक में भारतीय रिजर्व बैंक ब्याज दरों में कटौती करता है तो उससे भी शहरी उपभोक्ता वर्ग को कम ईएमआई के रूप में राहत मिलेगी। इससे जो बचत होगी, उससे भी मांग में बढ़ोतरी हो सकती है। ब्याज दरें कम होती हैं तो कॉरपोरेट सेक्टर की दिलचस्पी भी निवेश में बढ़ती है। वह अपनी क्षमता बढ़ाता है, जिससे रोजगार के मौके बढ़ते हैं, लिहाजा मांग मजबूत होती है। अगर 2047 तक विकसित भारत का सपना पूरा करना है तो आर्थिक विकास की रफ्तार तेज करनी होगी।   

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