चीन से हमारा आयात घाटा निरंतर बढ़ता जा रहा है। वर्ष 2018-19 में चीन से व्यापार घाटा केवल 53.6 अरब डालर रह गया, जबकि 2017-18 में यह 63 अरब डालर था। महत्वपूर्ण बात यह है कि उस समय इन आयात शुल्कों में वृद्धि का कई अर्थशास्त्रियों ने यह कहकर विरोध किया था कि इससे देश में संरक्षणवाद को बढ़ावा मिलेगा और अकुशलता बढ़ेगी। यह समझना होगा कि 2018-19 में आयात शुल्कों में वृद्धि ने देश में इलेक्ट्रानिक्स और टेलीकाम उत्पादों के निर्माण को बढ़ावा दिया, मोबाइल फोन के निर्यात में तेजी से वृद्धि हुई और वर्ष 2023-24 तक मोबाइल फोन का निर्यात 14.4 अरब डालर तक पहुंच गया। इसी तरह कई अन्य वस्तुओं के उत्पादन और निर्यात में भी वृद्धि देखी गई। यह पहली बार नहीं था, जब हमें टैरिफ बढ़ाने का लाभ मिला। देश में कुल विनिर्माण में लगभग 50 प्रतिशत का योगदान देने वाला आटोमोबाइल क्षेत्र उच्च टैरिफ के कारण ही विकसित हो सका। भारत में आटोमोबाइल उत्पादों पर 40 हजार डालर से अधिक मूल्य वाली कारों के लिए 100 प्रतिशत और 40 हजार डालर से कम मूल्य वाली कारों के लिए 60 प्रतिशत टैरिफ लगता है। आज भारत आटोमोबाइल में एक वैश्विक शक्ति है और कई भारतीय व विदेशी कंपनियां देश में कारों और अन्य आटोमोबाइल का निर्माण कर रही हैं एवं भारी मात्रा में निर्यात भी कर रही हैं। भारत से 45 लाख से अधिक वाहनों का निर्यात 2023-24 में किया गया। भारत में औसत भारित टैरिफ वर्ष 2004 में यूपीए के सत्ता में आने से पहले लगभग 24 प्रतिशत था। लेकिन टैरिफ में नाटकीय रूप से कमी की गई। वर्ष 2006 तक यह लगभग छह प्रतिशत तक घटा दिया गया। इससे हमारे विनिर्माण में तबाही मच गई और आयात पर हमारी निर्भरता कई गुना बढ़ गई। टैरिफ कम करने की वकालत करने वाले अर्थशास्त्रियों की भी देश में कोई कमी नहीं है। हमें यह समझना चाहिए कि मुक्त व्यापार का लाभ तभी है, जब दूसरे भी इसका पालन करें, लेकिन अगर कोई देश अपने माल को भारत में डंप कर रहा हो या अन्य देश टैरिफ बढ़ा रहे हों, तो हमारा देश और अन्य देश मुक्त व्यापार के रुख को जारी नहीं रख सकते। आज अमेरिका सहित कई देश अपने उद्योगों की सुरक्षा के नाम पर टैरिफ दीवारें बढ़ा रहे हैं, परिणामस्वरूप हमारा देश पहले की तरह खुला नहीं रह सकता।
टैरिफ में चुनिंदा बढ़ोतरी का समयः वर्ष 2020 में जब से भारत सरकार ने आत्मनिर्भर भारत नीति की घोषणा की है, तब से इंटरमीडिएट उत्पादों के आयात में कई गुना वृद्धि हो चुकी है। खास तौर पर आत्मनिर्भर भारत नीति में कई क्षेत्रों को चुना गया है। इन क्षेत्रों में उत्पादन को बढ़ावा दिया जाना है। इनमें एपीआइ यानी एक्टिव फार्मास्यूटिकल इंग्रेडिएंट्स, इलेक्ट्रानिक्स, दूरसंचार, खिलौने, सौर उपकरण, अर्धचालक, वस्त्र, रसायन आदि शामिल हैं। इन क्षेत्रों में उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए एक विशेष उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआइ) योजना शुरू की गई है, जिसमें सरकार ने तीन लाख करोड़ रुपये से अधिक की राशि निर्धारित की है। लेकिन पीएलआइ योजना और आत्मनिर्भर भारत की दिशा में प्रयासों के बावजूद हमें इंटरमीडिएट्स के आयात में बहुत कमी नहीं दिख रही है। इन क्षेत्रों में घरेलू निवेश भी भारी मात्रा में हो रहा है, लेकिन चीन द्वारा डंपिंग ने पीएलआइ योजनाओं की सफलता को प्रभावित किया है। इसके अलावा, इन मध्यवर्ती उत्पादों के उपयोगकर्ता उद्योग दक्षता और वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता के नाम पर अपने उत्पादन को जारी रखने के लिए इन मध्यवर्ती उत्पादों पर आयात शुल्क में और कमी करने की मांग कर रहे हैं। लेकिन यदि हम इन मध्यवर्ती उत्पादों पर टैरिफ कम करना जारी रखते हैं, तो हमारी चीनी आयात पर निर्भरता जारी रहेगी।
दूसरी ओर, जो निवेशक रासायनिक, एपीआइ, इलेक्ट्रानिक्स, दूरसंचार घटक उद्योगों में निवेश कर रहे हैं, वे टैरिफ बढ़ाकर चीनी डंपिंग और अन्य अनैतिक प्रथाओं से सुरक्षा चाहते हैं। निवेशकों की मुख्य आशंका यह है कि यदि चीनी डंपिंग को नहीं रोका गया, तो उनके उद्योग फिर से बंद हो जाएंगे। इसलिए हम कह सकते हैं कि पीएलआइ के रूप में सरकार द्वारा दिए गए भारी समर्थन को देखते हुए, इन उद्योगों को चीनी डंपिंग से काफी हद तक सुरक्षा की आवश्यकता है। उधर डोनाल्ड ट्रंप द्वारा दूसरी बार अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने के बाद, विभिन्न देशों पर टैरिफ लगाने की उनकी चेतावनी अन्य देशों से जवाबी टैरिफ को भड़का सकती है। जैसा कि हम जानते हैं, अमेरिका के पास यह लाभ है कि वह देश-विशिष्ट टैरिफ लगा सकता है, जो अन्य देश नहीं कर सकते। अमेरिकी टैरिफ वृद्धि के खिलाफ जवाबी कार्रवाई करते हुए विविध देशों को अपने सभी व्यापार भागीदारों के खिलाफ टैरिफ बढ़ाना होगा। ऐसे में वे भागीदार भी आयात शुल्क बढ़ाने के लिए बाध्य होंगे, तो भारत इस आयात शुल्क प्रतिस्पर्धा से अछूता नहीं रह सकता।
इसके अलावा, उपभोक्ताओं को लाभ पहुंचाने के लिए सस्ते आयात का तर्क एक अल्पकालिक घटना है। इसके विपरीत हम देखते हैं कि सस्ते शुल्कों के चलते चीनी आयात पर बढ़ती निर्भरता के कारण चीन द्वारा शोषण को बढ़ावा मिला। उदाहरण के लिए, एपीआइ के मामले में जैसे-जैसे देश की चीनी एपीआइ पर निर्भरता बढ़ी, चीन ने एपीआइ की कीमतों में कई गुना वृद्धि करके भारतीय दवा कंपनियों और उसके माध्यम से उपभोक्ताओं का शोषण करना शुरू कर दिया। यदि हम अपने व्यापार भागीदारों पर टैरिफ बढ़ाने का फैसला करते हैं, तो कई देशों के साथ एफटीए के अस्तित्व के कारण एक बड़ी समस्या आ सकती है, जिसके तहत हम शून्य या बहुत कम टैरिफ पर अधिकतम आयात की अनुमति देने के लिए प्रतिबद्ध हैं। ऐसे मामले में चीन या अन्य देश जिन पर टैरिफ लगाए गए हैं, वे इन देशों, जिनके साथ हमारे एफटीए हैं, उनके माध्यम से अपने निर्यात को भेजने का प्रयास कर सकते हैं। हम सख्त ‘मूल देश के नियम’ यानि ‘रूल ऑफ़ कंट्री ऑफ़ ओरिजिन’ संबंधित रोक लगाकर इस समस्या को दूर कर सकते हैं।