क्यों बंद हो रहे परमाणु ऊर्जा के संयंत्र?
किसी भी देश के लिए ऊर्जा प्रबंधन बहुत बड़ी चुनौती है। परमाणु ऊर्जा का उत्पादन एक साथ बंद करना संभव न भी हो तो भी परमाणु संयंत्रों का प्रबंधन अचूक होना चाहिए और अक्षय ऊर्जा ही देश की उन्नति, संसाधनों के सदुपयोग, पर्यावरण की सुरक्षा, किसी भी वायुमंडलीय और पर्यावरणीय संकट से सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए सर्वश्रेष्ठ है। - विनोद जौहरी
जबसे रूस और यूक्रेन का युद्ध चल रहा है, दोनों देशों की ओर से लगातार परमाणु बम का खतरा मंडरा रहा है। इससे पहले और अभी भी उत्तर कोरिया, चीन, ईरान और पाकिस्तान की तरफ से परमाणु बम के डर के साये में दुनिया जी रही है। कुछ आक्रांता देश परमाणु बम को ही अपने अस्तित्व के लिए सुरक्षित मान रहे हैं और दूसरे देशों को घुटने टेकने के लिए मजबूर कर रहे हैं। ऐसी परस्थिति में विश्व यह भी समझने को मजबूर है कि परमाणु बम और परमाणु ऊर्जा विश्व के अस्तित्व के लिए ही सबसे बड़े खतरे के रूप में दिख रहे हैं और सभी परमाणु सम्पन्न देश अपने देशों में परमाणु ऊर्जा संयंत्र और परमाणु ऊर्जा से उत्पन्न पावर बंद करने पर विचार कर रहे हैं। परमाणु बम और नाभिकीय प्रदूषण उच्च ऊर्जा कणों या रेडियोधर्मी पदार्थों के उत्सर्जन के परिणाम एक जैसे हैं। जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण सम्मेलनों विशेषकर कॉप 27 और पूरे विश्व में पर्यावरण प्रेमियों, कार्यकर्ताओं और आंदोलनकारियों ने सभी देशों को पर्यावरण के नष्ट होने के कारणों पर चेतावनी दी है।
वायुमंडल पर रेडियोधर्मिता का प्रभाव परमाणु ईंधन चक्र और परमाणु दुर्घटनाओं के परिणामस्वरूप होता है। जापान के फुकुशीमा के 2011 में परमाणु ऊर्जा संयंत्र में विस्फोट ने विश्व की चिंता बढ़ा दी है जिसके कारण जापान के सुनामी एवं भूकंप प्रभावित फुकुशिमा परमाणु ऊर्जा संयंत्र के रिएक्टर में लगी आग एवं उससे हो रहे विकिरण के खतरे के बाद परमाणु दुर्घटनाओं का स्तर 7 तक पहुँच गया है जो परमाणु दुर्घटनाओं का सबसे ज्यादा खतरनाक स्तर है। दुनिया को परमाणु आपदा का एहसास पहली बार वर्ष 1945 में ही हो गया था जब अमेरिका ने हिरोशिमा और नागाशाकी जैसे जापान के दो बड़े शहरों पर क्रमशः 6 तथा 9 अगस्त को द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान परमाणु बम गिराये थे। इस तबाही में लगभग 2 लाख लोग तुरंत मारे गये थे तथा पूरा शहर नष्ट हो गया। इससे झुलसे तथा घायल लोग जीवन पर्यन्त इस पीड़ा को झेलने के लिये विवश थे। उनके बाद की पीढ़ियों को भी इसका दुष्प्रभाव झेलना पड़ रहा है।
वर्ष 1979 में अमेरिका के थ्री-माइल आइलैंड में स्थित नाभिकीय संयंत्र में हुई दुर्घटना तथा चेरनोबिल (यूक्रेन), जो उस समय सोवियत रूस का हिस्सा था, के परमाणु विद्युत संयंत्र में वर्ष 1986 में हुई दुर्घटनाओं में वायुमंडल में रेडियोधर्मी विकिरण का अत्याधिक प्रभाव देखा गया था, जिसके प्रभाव अभी भी शेष हैं। परमाणु दुर्घटनाओं में जीवों के अलावा निर्जीव पदार्थों को भी विपरीत प्रभाव देखने में आया है। चेरनोबिल दुर्घटना के बाद कम्प्यूटरों में वायरस फैल गये थे। भारत में भी लगभग 10 हजार कम्प्यूटर प्रभावित हुए थे जबकि दक्षिणी कोरिया एवं तुर्की जैसे देशों ने लगभग 3 लाख कम्प्यूटरों के खराब होने की जानकारी दी थी। यह पूरे विश्व के लिये खतरा बना हुआ है। इससे दुनिया भर में परमाणु संयंत्रों को लेकर चिंता हो गयी है।
दिनांक 12 अप्रैल 2023 को इकनॉमिक टाइम्स ने विभिन्न देशों द्वारा बंद किए जाने वाले परमाणु संयंत्रों की सूची दी है। अभी भी 31 देशों में परमाणु ऊर्जा संयंत्र बिजली उत्पादन में उपयोग हो रहे हैं। जर्मनी ने अपने 3 परमाणु संयंत्रों को बंद करने का निर्णय लिया है। इटली ने पहले ही परमाणु ऊर्जा का उत्पादन बंद कर दिया है। स्विट्ज़रलैंड ने भी परमाणु संयंत्रों को बंद करने का निर्णय लिया है। चीन ने परमाणु ऊर्जा संयंत्र के निर्माण पर रोक लगाई है। भारत ने 90 मेगावाट की परमाणु ऊर्जा उत्पादन पर रोक लगाई है और जापान ने 15,358 मेगावाट के 17 परमाणु संयंत्रों मे उत्पादन रोक दिया है।
परमाणु संयंत्रों के बंद होने के वैज्ञानिक कारणों को भी जानना आवश्यक है। नाभिकीय प्रदूषण उच्च ऊर्जा कणों या रेडियोधर्मी पदार्थों का उत्सर्जन है जिससे हवा, पानी या भूमि पर मानव या प्राकृतिक जीव-जन्तु प्रभावित हो सकते हैं। रेडियोधर्मी कचरा आमतौर पर नाभिकीय प्रक्रियाओं जैसे नाभिकीय विखंडन से पैदा होता है। इसमें रेडियोधर्मी कणों का लगभग 15 से 20 प्रतिशत हमारे वायुमंडल के स्ट्रैटोस्फीयर में प्रवेश कर जाता है। नाभिकीय प्रदूषण या विस्फोट के कण या विस्फोट के प्रभाव का पेड़-पौधों की पत्तियों और ऊतकों पर दुष्प्रभाव पड़ता है। ये पत्तियाँ खाने वाले पशुओं और इन पर निर्भर रहने वाले जीवों के लिये खतरनाक होती हैं। इनमें रेडियोधर्मी आयोडीन खाद्य-शृंखला के जरिये मानव शरीर में प्रवेश कर जाती है। इससे इंसान में थायराइड का कैंसर हो सकता है। नाभिकीय अवपात का लंबी अवधि तक वातावरण में रह जाना जीव-जन्तुओं के लिये खतरनाक होता है। नाभिकीय विस्फोट एक अनियंत्रित श्रृंखला अभिक्रिया का परिणाम होता है। इसके फलस्वरूप काफी मात्रा में न्यूट्रॉन अभिवाह उत्पन्न होता है। इस तरह के विस्फोट में रेडियोधर्मी उत्पाद शामिल हैं उदाहरण के तौर पर अप्रयुक्त विस्फोटक यू-235, एवं पीयू-239, तथा विस्फोट से प्राप्त विखंडित उपोत्पाद जैसे स्ट्रॉशियम-90, आयोडीन-131 और सीजियम-137 हैं। विस्फोट बल और तापमान में अचानक वृद्धि इन रेडियोधर्मी पदार्थों को गैसों में परिवर्तित कर देता है और अधिक या कम कणों के रूप में वातावरण में बहुत ऊँचाई तक चले जाते हैं। विखंडन बम की तुलना में संलयन बम के मामले में ये कण कहीं ज्यादा ऊँचाई तक चले जाते हैं। इसका तात्कालिक परिणाम विस्फोट-स्थल पर एक प्राथमिक वातावरणीय प्रदूषण के रूप में होता है तथा इसका द्वितीयक प्रभाव नाभिकीय अवपात के रूप में होता है। इन रेडियोधर्मी पदार्थों का प्रभाव वर्षों तक वायुमंडल में बना रहता है।
देश बिजली उत्पादन (मेगावाट) परमाणु संयंत्रों की संख्या
अमरीका 94,718 92
फ्रांस 61,370 56
चीन 53,170 56
रूस 27,727 37
दक्षिण कोरिया 24,489 25
जापान 16,321 17
कनाडा 13,624 19
यूक्रेन 13,107 15
स्पेन 7,121 7
स्वीडन 6,935 6
भारत 6,795 22
इंग्लैंड 5,883 9
फ़िनलेंड 4,394 5
जर्मनी 4,055 3
यूएई 4,011 3
कुल 32 देश 3,77,795 422
(स्रोत : इकनॉमिक टाइम्स 12.04.2023)
एक सीमा के बाद रेडियोधर्मिता से जीवों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। यह प्रभाव विकिरण की भेदन क्षमता एवं परमाणु स्रोत की अवस्थित पर निर्भर करता है। अधिक भेदन क्षमता वाली गामा विकिरण अन्य के मुकाबले बहुत नुकसानदायी होती हैं। बीटा विकिरण शरीर के अंदरूनी अंगों पर अधिक प्रभाव डालते हैं जबकि अल्फा विकिरण त्वचा द्वारा रोक लिये जाते हैं। रेडियोधर्मी प्रदूषण के कारण गर्भ में पल रहे शिशु का मौत तक हो सकती है।
उच्च-स्तर परमाणु कचरा आम तौर पर एक परमाणु रिएक्टर या परमाणु हथियार के कोर से प्राप्त सामग्री होते हैं। इस कचरे में यूरेनियम, प्लूटोनियम और अन्य अत्यधिक रेडियोधर्मी तत्व जो विखंडन के दौरान प्राप्त होते हैं, शामिल होते हैं। इन उच्च-स्तर अपशिष्ट पदार्थों में अधिकांश रेडियो समस्थानिक बड़ी मात्रा में विकिरण उत्सर्जित करते हैं और इनकी आयु बहुत लंबी (कुछ की 1 लाख साल से भी ज्यादा) होती है और इन्हें रेडियोधर्मिता के सुरक्षित स्तर पर पहुँचने के लिये लंबी समयावधि की आवश्यकता होती है। इन्हें विशेष स्टील के कंटेनरों में रखकर गहरे समुद्र में डाल देते हैं। इन कंटेनरों का जीवन 1000 वर्ष होता है। चूँकि उच्च-स्तर परमाणु कचरे में अत्यधिक रेडियोधर्मी विखंडन उत्पाद और दीर्घजीवी भारी तत्व है इसलिये यह काफी मात्रा में ऊष्मा पैदा करता है जिससे निपटने के लिये परिवहन के दौरान इसे ठंडा रखने और विशेष परिरक्षण की आवश्यकता होती है। इस तरह देखा जाए तो नाभिकीय प्रदूषण का प्रबंधन किसी देश के लिये बहुत चुनौतीपूर्ण कार्य होता है।
किसी भी देश के लिए ऊर्जा प्रबंधन बहुत बड़ी चुनौती है। परमाणु ऊर्जा का उत्पादन एक साथ बंद करना संभव नहीं भी हो तो भी परमाणु संयंत्रों का प्रबंधन अचूक होना चाहिए और अक्षय ऊर्जा ही देश की उन्नति, संसाधनों के सदुपयोग, पर्यावरण की सुरक्षा, किसी भी वायुमंडलीय और पर्यावरणीय संकट से सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए सर्वश्रेष्ठ है। आज जितना निवेश परमाणु संयंत्रों, परमाणु हथियारों पर संपूर्ण विश्व में हुआ है उतना निवेश विश्व में निर्धनता को समाप्त करने के लिए पर्याप्त था। जिन देशों की अर्थव्यवस्था यूरेनियम तथा अन्य रेडियोधर्मी खनिज के खनन, प्रोसेसिंग और निर्यात पर निर्भर है, उनकी आर्थिक और पर्यावरणीय चिंता भी आवश्यक है।
विनोद जौहरी, सेवानिव्रत अपर आयकर आयुक्त
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