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काविड-19 के मोर्चे पर सरकार तत्पर: अपनी नाकामी छिपाने के लिए विपक्ष का मीन-मेष

देश को मजबूती से इस घातक कोरोना वायरस से जनित कोविड़ 19 के प्रकोप से बाहर लाने में सभी देशवासियोंं का सहयोग भी अपेक्षित है तथा यह सहयोग मिल भी रहा है। देशवासियां की जान बचेगी तो सब कुछ बचेगा इसी सिद्धान्त पर प्रत्येक देशवासी व सरकारों को कार्य करना चाहिए। — डॉ. सूर्य प्रकाश अग्रवाल

 

भारत सहित समस्त विश्व दिसम्बर 2019 से अब तक कोविड़ 19 से युद्ध स्तर पर जुझ रहा है जिससे समस्त नागरिकों को भारी परेशानी, दुख, बीमारी, अनिश्चितता से जुझना पड़ा है। भारत सरकार के लिए भी प्रथम अनुभव था जिसकी पूर्व में कोई तैयारी नहीं की जा सकती थी परन्तु इस भीषण संक्रमणता के दौरान भी जिस प्रकार भारत में कोरोना से मरने वालों का प्रतिशत विश्व स्तर पर कम रहा। इससे साबित होता है कि भारत की सरकार ने युद्ध स्तर का कौशल दिखाते हुए अपने नागरिकों की सुरक्षा की। भारत का दुर्भाग्य यही रहा कि विपक्षी राजनेताओं ने सरकार को इस युद्ध से लड़ने के लिए कोई ठोस उपाय व सुझाव तो नहीं दिये उल्टे सरकार के द्वारा उठाये गये प्रत्येक कदम पर आलोचना ही की। अगर उनके पास कुछ बेहतर उपाय व सुझाव थे तो उन्हें राजनीति का परित्याग करके देशवासियों के हित में वे उपाय व सुझाव उठाने चाहिए थे तथा अपने लाखों कार्यकर्ताओं को कोरोना योद्धाओं के रुप में खड़े करना चाहिए था न कि उनको प्रदर्शन, पत्थरबाजी के लिए प्रेरित करने के लिए।

भारत के वैज्ञानिकों ने बहुत कम समय में कोरोना संक्रमण के विरुद्ध तीन टीकों की खोज व उत्पादन कर अपनी बौद्धिमता का परिचय दिया परन्तु विपक्ष ने इन टीकों के प्रति अविश्वास फैलाने में कोई कौताही नहीं की जिनका परिणाम यह निकला कि मार्च व अप्रैल 2021 में संक्रमितों की संख्या बढ़ गयी तथा यह प्रतीत होने लगा कि देश की समस्त स्वास्थ्य सेवाऐं ही चरमरा कर रह गई है। विश्व के लगभग अधिकांश छोटे बड़े देशों से स्वास्थ्य सेवाऐं लेने के लिए भारत को मजबूर होना पड़ा।

इस कठिन समय में विश्व पटल पर भारत के सम्मान की भी विकृम मानसिकता वाले नेताओं ने धज्जियां उड़ाने की केशिश की। कोरोना संक्रमण के कारण भारत के अधिकांश घर परिवार घोर निराशा व उदासी में थे तथा वे देश के स्वास्थ्य तंत्र की आंशिक असफलता से दुखी भी था तथा यह मान रहा था कि वोट देते समय हमने राजनेतओं से अच्छे अस्पतालों की मांग क्यों नहीं की? हम वोट देते समय मुफ्त में मिलने वाली पानी व बिजली के ही भ्रमजाल में क्यों फंस गये? व्यावहारिक संवेदनशीलता कोरोना काल में नष्ट ही हो गई थी क्येंकि कोरोना से संक्रमित व्यक्ति के प्रति उसकी कोई सहायता उसके परिवार का कोई सदस्य भी नहीं कर पा रहा था जीवन व परिवारिक मित्रता के संबंध को पटरी पर लाने के लिए लोगों को कोरोना की डाक्टर की ऋणात्मक रिपोर्ट का सहारा लेना पड़ रहा है।

मनुष्य की प्रवृति है कि कोई भी त्रासदी, महामारी अथवा व्यवधान मानव प्रगति को अवरुद्ध नहीं कर सकता है। कोरोना से पूर्व भी मनुष्यों ने प्लेग, चेचक, मलेरिया, टी बी, पोलियों आदि जैसी महामारियों को झेला है। देश के कुछ लोग कोरोना संक्रमण के काल में बड़े पैमाने पर दवाईयों, इंजेक्शनों, आक्सीजन सिलेंड़रों, अस्पताल के बिस्तरों की काला बाजारी में ही लग गये कुछ कालाबाजारी करने वाले व्यापारी लोग अपने प्रमुख पुश्तैनी व्यवसायों को छोड़ कर दवाईयों तथा अन्य चिकित्सकीय व्यवसायों में ही लग गये। एम्बुलैंस सेवा को भी कालाबाजारी में झौंक दिया गया जिसने सबसे अधिक मानवीय संवेदना को कलंकित किया परन्तु पीड़ित लोगों ने अपना मनोबल बनाये रखा। भारत की छवि इस असंवेदनशीलता, कालाबाजारी तथा मुनाफाखोरी से विश्व स्तर पर धूमिल हुई है।

आपत्तिकाल में किसी भी देश के आचरण, चरित्र, धर्म, मजहब, इत्यादि की पहचान होती है तथा राष्ट्र की एकजुटता तथा पारस्परिकता भी विश्व के समाने आती है। देश में चिकित्सक, सुरक्षाकर्मी पुलिस प्रशासनिक अधिकारी आदि गत डेढ़ वर्ष से ही एक योद्धा के रुप में समाज में कार्य कर रहे है। पुलिस कालाबाजारियों से भी निपट रही है, कहीं कहीं तो लोगों ने स्वास्थ्य सेवाऐं जानबूझ कर स्वंय ही चरमरा दी, जिससे सरकार के प्रति आक्रोश उत्पन्न हो। सरकार, प्रशासन व अस्पतालों के द्वारा किये जा रहे सकारात्मक प्रयासों को जानबूझ कर विफल करने की भी कोशिश की जा रही थी। ये नकारात्मक प्रयास अनिवार्य रुप से देशद्रोही स्तर के ही कहे जा सकते है। इसके लिए कड़े दंड़ की व्यवस्था होनी चाहिए।

कोरोना अनिवार्य रुप से समाप्त तो होगा ही परन्तु इस दौरान हमारी सांस्कृतिक, आर्थिक, पारिवारिक व सामाजिक व्यवस्थाओं में भी आमूल चूल परिवर्तन आयेगा जो शायद यदि कोरोना नहीं आता तो यह परिवर्तन भी दिखाई नहीं देते। 2020-2021 में प्रवासी मजदूरों ने अपने घरों को जाने के लिए एक भयंकर त्रासदी देखी जो शायद 1947 के देश के विभाजन तथा देश के स्वतंत्रता की लड़ाई के दौरान ही देखी गई थी।

आध्ुनिक सभ्यता, मशीन युग से उत्पन्न हुई समस्यायें व गांवों में किसान व गरीब की कमजोर होती शाक्ति को पहचानने की आवश्यकता महसूस की जाने लगी। अपनों के द्वारा अपनी संस्कृति, परिवार व्यवस्था, संबंधों की श्रेष्ठता पर दृढ़ विश्वास पुनः कायम करना होगा स्कूलों व अध्यापकों की साख पुनः स्थापित करनी होगी क्योंकि कोरोना संक्रमण से आर्थिक क्षति से अधिक मानवीय क्षति अधिक हुई है। कोरोना से जनित एक युद्ध स्तर की चुनौती को सरकार, उद्योग व समाज ने पूरी क्षमता से स्वीकार कर लिया है।

केन्द्र व राज्य सरकारें अपनी पूर्णक्षमता से इस चुनौती से निपटने के लिए एक अच्छे प्रबंधन की आवश्यकता है। संक्रमण के प्रवाह को रोकने के लिए जिम्मेदार कड़ियों को तोड़़ना होगा। देश में बिना किसी रुकावट के टीका की आपूर्ति ठीक करनी होगी। यह तभी सम्भव हो सकेगा जब सरकार के साथ साथ निजी क्षेत्र वैश्विक स्तर पर टीका उत्पादकों के साथ उनकी आपूर्ति व्यवस्था को दुरुस्त न कर ले। जीवन व आजीविका बचाने का सबसे बेहतर व कारगर सामाधान लॉकड़ाउन स्तर पर प्रतिबंध स्थापित करना ही होगा। निजी क्षेत्र ने अस्पतालों को मेड़िकल आक्सीजन, आक्सीजन सिलेंड़र, पोर्टिबल कंसंट्रेटर और जेनरेटर की आपूर्ति की जा रही है। उद्योग जगत ने मेड़िकल आक्सीजन का उत्पादन कर उसे उचित यातायात माध्यम से कई जगहों पर पंहुचाने के लिए उचित कदम कम से कम समय में उठाये है। जिला स्तर पर नियाभकीय ढ़ांचे की वजह से उद्योगों को थोड़ी परेशानी अवश्य आ रही है।

कोरोना महामारी से इस युद्ध में स्वास्थ्य विभाग के साथ भारत का आई टी और टेलीकॉम सेक्टर मजबूती से खड़ा है। केन्द्र, राज्य, नगरपालिका, नगर निगम आदि को सभी सूचना बोर्ड़ो के माफर्त पीड़ितों को अधिक से अधिक जानकारी दी जा रही है। इस युद्ध काल में उपभोक्ता वस्तु क्षेत्र भी अच्छा प्रदर्शन कर रहा है। रसायन विशेष कर बुनियादी कच्चा माल, इस्पात, धातु और सीमेंट की मांग इस युद्ध काल में भी तेजी का रुख बनाये हुए है। पर्यटन क्षेत्र को धक्का लगा है। बैंक भी दबाब महसूस कर रहे है क्योंकि उनके छोटे छोटे ऋण उठाये नहीं गये थे जिससे उनके पास पर्याप्त नकदी एकत्र हो गई थी कोरोना जैसे युद्ध से छोटे उद्योग और अनौपचारिक क्षेत्र से बेहतर तालमेल बनाये हुए है। छोटे उद्योग स्वंय अथवा सरकार की छोटी मोटी सहायता से स्वंय को इस कठिन समय में निकालने की पुरजोर कोशिश कर रहे है।

व्यक्तिगत ऋणी सहित छोटे ऋणी को राहत देने की केशिश की जा रही है। कोरोना से इस युद्ध में छोटे कारोबार और वित्तीय इंकाइयांं को जमीनी स्तर पर सबसे अधिक मुश्किलों का सामना करना पड़ा है। रिजर्ब बैंक ने माइक्रों फाइनेंस, स्माल फाइनेंस बैंक, व्यक्तिगत ऋण को प्राथमिकता के क्षेत्र में रखा गया है। जिससे इन क्षेत्रों को राहत दी जा सके। सरकार व निजी क्षेत्र स्वास्थ्य, टीका, इत्यादि को मजबूती देने के लिए प्रत्येक सम्भव कोशिश कर रहे है। केन्द्र के नेतृत्व में अधिकांश राज्य भी कोविड़ 19 के विरुद्ध इस युद्ध में अग्रिम मोर्चे पर लड़ रहे है। सरकार, छोटे उद्योग, व अन्य वित्तीय एजेंसिंयां आदि सभी देश के स्वास्थ्य ढ़ांचे को सुधारने की केशिश कर रही है। जो लोग कालाबाजरी या अन्य देशद्रोही पूर्ण कार्य कर रहे है सरकार उनको भी उनके सही स्थान पर पंहुचाने की व्यवस्था कर रही है। देश को मजबूती से इस घातक कोरोना वायरस से जनित कोविड़ 19 के प्रकोप से बाहर लाने में सभी देशवासियोंं का सहयोग भी अपेक्षित है तथा यह सहयोग मिल भी रहा है। देशवासियां की जान बचेगी तो सब कुछ बचेगा इसी सिद्धान्त पर प्रत्येक देशवासी व सरकारों को कार्य करना चाहिए।      

 

डॉ. सूर्य प्रकाश अग्रवाल सनातन धर्म महाविद्यालय मुजफ्फरनगर 251001 (उ.प्र.), के वाणिज्य संकाय के संकायाध्यक्ष व ऐसोसियेट प्रोफेसर के पद से व महाविद्यालय के प्राचार्य पद से अवकाश प्राप्त हैं तथा स्वतंत्र लेखक व टिप्पणीकार है।

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