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नए दशक ने दी दस्तक: फिर से चल निकला बाजार

कोरोना महामारी से निपटने के लिए स्वदेशी वैक्सीन तैयार कर लेने के साथ-साथ, देश का पहला डेडीकेटेड फ्रेट कॉरिडोर, पहली ड्राइवरलेस मेट्रो और स्वदेशी आकाश मिसाइल की बढ़ती डिमांड ने आत्मनिर्भर हो रहे देश को अब दुनिया में एक नई पहचान दी है। — अनिल तिवारी

 

वर्ष 2021, यहां से न सिर्फ एक नए साल की शुरुआत हो रही है, बल्कि एक नया दशक भी शुरू हो रहा है। इतिहास के गर्भ में जा चुका वर्ष 2020 सारी दुनिया के साथ-साथ भारत को भी कुछ कटु अनुभव और कड़वी यादें देकर गया। बीते साल कोविड-19 की महामारी ने लोगों को घरों में कैद रहने के लिए विवश कर दिया था। अर्थव्यवस्था धराशाई हो गई। गुजरे साल ने जो असर छोड़ा है उससे उबरने में हालांकि समय लगेगा, लेकिन नए साल में तमाम उम्मीदें जगाई है। पहली उम्मीद तो यही है कि कोरोना संक्रमण को काबू में करने वाली स्वदेशी वैक्सीन अब हर व्यक्ति तक पहुंचने के करीब है। वहीं भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत वापसी का संकेत देने लगी है। सरकार के राहत पैकेजों ने अर्थव्यवस्था को घुटने पर नहीं आने दिया। वर्ष 2008 की मंदी की तरह इस बार भी भारत का कृषि क्षेत्र हर आपदा में संबल बनकर हिमालय की तरह खड़ा रहा।

संकट, हमें नए तरीके तलाशने के मौके देते हैं। भंवर में फंसी अर्थव्यवस्था से निकलने का रास्ता दुनिया को भले ही न मिल रहा हो, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भारत ने रिकवरी की राह खोज ली है। अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने का काम शुरू को गया है। हालांकि मंजिल अभी लंबी है। मोटे तौर पर अर्थव्यवस्था का आकार कृषि, विनिर्माण, मैन्युफैक्चरिंग, रोजगार, सामाजिक सुरक्षा जैसे कई अन्य विषयों से तय होता है। कोरोना के चलते इन सेक्टरों पर विपरीत प्रभाव पड़ा है, लेकिन इसके इंतजाम शुरू हो गए हैं।

प्रधानमंत्री की पहल पर ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान इस दिशा में एक अचूक हथियार की तरह धीरे-धीरे सामने आ रहा है। ‘वोकल फॉर लोकल’ के मंत्र से बुनियादी बदलाव के संकेत भी मिलने लगे हैं। इस दिशा में पिछले साल के आखिरी महीने की उपलब्धियों की ही बात करें तो ‘सिरम इन्स्टीटयूट‘ के जरिए देश में ही कोविड-19 की वैक्सीन की तैयारी के साथ-साथ निमोनिया की पहली स्वदेशी वैक्सीन को तैयार कर लेना, नए भारत के सामर्थ्य का प्रतीक है। देश का पहला डेडीकेटेड फ्रेट कॉरिडोर, पहली ड्राइवरलेस मेट्रो और स्वदेशी आकाश मिसाइल की बढ़ती डिमांड ने आत्मनिर्भर हो रहे देश को अब दुनिया में एक नई पहचान दी है। कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को मजबूती देने की गरज से कृषि संबंधित तीन कानून भी संसद द्वारा पारित किए गए हैं। हालांकि इस बिल को लेकर कई एक किसान संगठनों के मन में शंकाएं हैं। सरकार संशोधनों के जरिए इन शंकाओं को दूर करने का प्रयास कर रही है। 

केंद्र की सरकार गांव को आत्मनिर्भर बनाने की रूपरेखा तैयार कर चुकी है। सरकार ग्राम पंचायतों में मल्टी एक्टिविटी सेंटर खोलने (जहां युवाओं को गांव में ही प्रशिक्षित और स्वावलंबी बनाने का काम किया जाएगा), पर भी विशेष ध्यान दे रही है। इसी तरह महिलाओं को स्वयं सहायता समूह के जरिए आत्मनिर्भर बनाने की रूपरेखा तैयार की गई है। लघु और कुटीर उद्योगों के साथ-साथ एमएसएमई सेक्टर पर भी विशेष रूप से फोकस किया जाएगा। सरकार ने इस बाबत पर्याप्त आर्थिक सहायता प्रदान की है, जिसका असर वर्ष 2021 में जरूर दिखाई देने वाला है।

आत्मनिर्भर अभियान के इसी पक्ष को प्रधानमंत्री मोदी विश्व कल्याण के लिए भारत के भविष्य का मार्ग कहते हैं, इसलिए आश्चर्य की बात नहीं कि पिछले एक पखवाड़े में चाहे एसोचैम की स्थापना का समारोह हो या शांति निकेतन में विश्व भारती विश्वविद्यालय का शताब्दी समारोह या फिर साल का आखिरी मन की बात कार्यक्रम, प्रधानमंत्री ने हर मौके पर आत्मनिर्भर अभियान को विश्व गुरु बनने के भारत के सपने की बुनियादी जरूरत बताया है।

अर्थव्यवस्था के जटिल ताने बाने के ढेरों आयाम होते हैं, जिनमें लक्ष्य निर्धारण के साथ-साथ व्यापक रणनीति और उसके सफल क्रियान्वयन पर प्रयास ही लंबे समय में समुचित परिणाम दे सकते हैं। पिछले वर्ष की शुरुआत में जब अर्थव्यवस्था आर्थिक सुस्ती के दौर से गुजर रही थी तो उसी समय कोरोना आपदा के कारण आर्थिक गतिविधियां सभी सेक्टरों में लगभग ठप्प हो गई। इससे न केवल आम लोगों का जीवन एवं जीविका प्रभावित हुई, बल्कि कर संग्रह में भी आई कमी के कारण केंद्र एवं राज्य सरकारों की आय पर भी व्यापक असर पड़ा। इस संकट ने अर्थव्यवस्था में मांग एवं आपूर्ति दोनों को बुरी तरह से प्रभावित किया। परिणामस्वरूप 2020-21 की पहली तिमाही में जीडीपी पिछले वर्ष की इसी तिमाही की तुलना में लगभग 23 प्रतिशत कम हो गई। हालांकि लॉकडाउन की समाप्ति के बाद से अर्थव्यवस्था में सेवा क्षेत्र के कुछ हिस्सों को छोड़कर अधिकतर सेक्टरों में सुधार के संकेत से अच्छी उम्मीद बंधी है। लेकिन इस साल से शुरू हुए दशक में विकास के लक्ष्य की प्राप्ति की रणनीति पर व्यापक काम करने की जरूरत पड़ेगी। ऐसे में जरूरत है कि नए साल के साथ-साथ आने वाले दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास की रणनीति पर नीतिगत स्पष्टता हो, जो अर्थव्यवस्था की जरूरतों के ऊपर व्यापक शोध पर आधारित हो और उस पर सकारात्मक रूप से चर्चा हो।

तात्कालिक प्रयास के तहत अर्थव्यवस्था में निवेश और मांग को बढ़ाने की आवश्यकता है। आर्थिक विकास के लिए घरेलू कारकों के साथ ही बदलते वैश्विक आर्थिक परिदृश्य की चुनौतियों से भी निपटने की जरूरत है। मंदी से गुजर रही अर्थव्यवस्था में रोजगार और अन्य सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों पर सरकारी खर्च में वृद्धि के रूप में राजकोषीय विस्तार और उसमें मौद्रिक नीति की सक्रिय सहभागिता तत्कालिक संकट से निकलने के लिए अत्यंत आवश्यक है। हालांकि इन सबके बीच ऐसे प्रयास इतने सीमित जरूर होने चाहिए कि अर्थव्यवस्था को आगामी समय में अनियंत्रित राजस्व घाटे और मुद्रास्फीति को संकट में न ले जाएं।

वस्तुतः किसी भी देश की दीर्घकालिक आर्थिक विकास की उपलब्धियां मूलतः ज्ञान आधारित समाज के निर्माण पर बहुत अधिक निर्भर करती है। अर्थव्यवस्था के स्थाई विकास में शोध और उत्पादकता की अहम भूमिका होती है और इसको बढ़ाने के लिए लंबे समय तक मानव संसाधन के विकास की योजना पर सतत् प्रयास करने की जरूरत होती है। देश का समेकित विकास, जिसमें असमानता कम करते हुए आर्थिक लक्ष्य की प्राप्ति हो सके, के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा स्वास्थ्य और आधारभूत संरचना पर बहुत अधिक निवेश की जरूरत है।

ज्ञात हो कि दुनिया संक्रमण के साथ-साथ चौथी औद्योगिक क्रांति के युग में प्रवेश कर चुकी है। हालांकि भारत अभी आर्थिक रूप से दुनिया का नेतृत्व नहीं कर रहा है, लेकिन भारत को यह बताना होगा कि हम चीन की तरह कम लागत वाली मैन्युफैक्चरिंग अर्थव्यवस्था नहीं बनना चाहते, बल्कि नए मूल्यों वाली उपयोगी, नए प्लेटफार्म बनाने वाली अर्थव्यवस्था बनना चाहते हैं। इस अर्थव्यवस्था में एक अरब लोगों के डिजिटल प्लेटफॉर्म, डिजिटल कैश सिस्टम, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस लेबोरेटरी और सलूशन आदि मौजूद हैं और हमारे पास चौथी औद्योगिक क्रांति की तरफ बढ़ने के साथ-साथ दुनिया के नॉलेज हब बनने में सफलता अर्जित करने की दक्षता और क्षमता दोनों मौजूद है। और सबसे बड़ी बात है कि हम एक अरब से ज्यादा लोगों का बाजार हैं और दुनिया को इस बाजार की जरूरत है।

केंद्र की सरकार ने पहले ही यह संकेत दिया है कि जरूरत पड़ने पर हमें पुराने से हटकर नवोन्मेष की तरफ भी बढ़ना होगा। रिजेक्ट, रिवाइव और इनोवेट का तरीका अपनाकर काफी कुछ सुधार किया जा सकता है। इस महामारी ने हमें ठहरकर सोचने का समय दिया है कि हम देश और दुनिया की बेहतरी के लिए क्या-क्या योगदान कर सकते हैं। नववर्ष और नए दशक ने हमें आवाज दी है, तो आईए एक नई सकारात्मक सोच और बेहतर उम्मीद के साथ आगे बढ़े।      

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