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तकनीकी राष्ट्रवाद तथा वैश्वीकरण

सबको चीन जैसी अनैतिक तथा अविश्वसनीय व्यवस्था से हटकर एशिया में नए साझीदार की जरूरत होगी जिसे भारत पूरी कर सकता है। लेकिन इसके लिए तकनीकी राष्ट्रवाद की आवश्यकता है। जिससे आत्मनिर्भरता के साथ-साथ विश्वकल्याण का भी सपना साकार हो सकता है। — दुलीचंद कालीरमन


वर्तमान युग तकनीक और ज्ञान आधारित उद्योगों का युग है। अब तकनीक का राजनीतिक और कूटनीतिक हथियार के तौर पर प्रयोग बढ़ गया है। तेजी से बदल रही विश्व व्यवस्था में किसी भी देश के लिए तकनीकी क्षमतायें सीधे तौर पर उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक सफलता और सामाजिक स्थिरता को प्रभावित करती हैं। लेकिन जब वैश्वीकरण की बात आती है तो राष्ट्रीय अस्मिता और वैश्वीकरण में सामंजस्य बिठाने में कभी-कभार समस्याएं आती हैं।

ताजा उदाहरण भारत सरकार द्वारा सोशल मीडिया कंपनियों के लिए जारी नए आईटी कानून के नियमन का है। जिसमें यह प्रावधान किया गया है कि भारत की संप्रभुता और अखंडता, देश की सुरक्षा, दूसरे देशों के साथ मित्रता का संबंध, सार्वजनिक आदेशों से संबंधित अपराध, बलात्कार, यौन सामग्री या बाल यौन शोषण से संबंधित सामग्री का प्रकाशन निषेध किया गया है। इसमें यह भी प्रावधान है कि उपरोक्त श्रेणी की सामग्री को हटाने या शिकायत निवारण तंत्र के लिए एक ‘मुख्य अनुपालन अधिकारी’ की नियुक्ति करनी होगी जो इन अधिनियम व नियमों की पालना सुनिश्चित करेगा। ऐसा व्यक्ति भारत देश का निवासी होना चाहिए। इन नियमों के तहत फेसबुक, व्हाट्सएप तथा इंस्टाग्राम ने अपनी नियुक्ति कर दी लेकिन ट्विटर इन नियमों के पालन में आनाकानी कर रहा है।

सोशल मीडिया के युग में ट्विटर जैसी वैश्विक कंपनी अगर अपने वैश्विक उपस्थिति के बल पर अगर भारत जैसे लोकतांत्रिक तथा विविधताओं युक्त देश की जमीनी हकीकत को नजरअंदाज करते हुए नियमों के पालन में अनिच्छुक नजर आती है तो यह आचरण गंभीर खतरा बन सकता है। ऐसी परिस्थितियों से निपटने के लिए तकनीकी राष्ट्रवाद की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। क्योंकि वैश्वीकरण के दौर में बहुराष्ट्रीय कंपनियां व्यापार के साथ कभी-कभी संबंधित देश के रणनीतिक हथियार के रूप में कार्य करने लगती हैं।

चीन के प्रति विश्वसनीयता इस कदर बढ़ चुकी है कि कोई भी देश उसकी 5-जी टेलीफोन तकनीक का प्रयोग नहीं करना चाहता। चीनी कंपनियां चीनी सेना के नियंत्रण में होती हैं। डाटा चोरी तथा जासूसी के आरोप विश्व के हर कोने में उन पर लगते रहते हैं। यही कारण है कि अमेरिका तथा भारत जैसे देशों में चीनी 5-जी तकनीक से पीछे कदम हटा लिए हैं। यह संतोष का विषय है कि कई भारतीय कंपनियां 5-जी  तकनीक के क्षेत्र में अपने अनुसंधान में काफी आगे बढ़ चुकी हैं।

भारत के सामने सुरक्षा को लेकर स्वतंत्रता के दौर से ही चुनौतियां पेश आती रही हैं। हमें एक साथ कई मोर्चों पर लड़ना पड़ रहा है।तकनीक बाह्य और आंतरिक चुनौतियों से निबटने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।हमें चीन और पाकिस्तान से हमें एक साथ निपटने का सामर्थ्य हासिल करना होगा। यह सही है कि चीन के साथ हमारा व्यापार और तकरार साथ साथ चल रहे हैं। लेकिन चीन की शत्रुता को हल्के में नहीं लिया जा सकता। चीन अब पाकिस्तान के माध्यम से लड़ेगा यह निश्चित हो चुका है। जम्मू वायु सेना के अड्डे पर  ड्रोन आतंकी हमला इसका पुख्ता उदाहरण है।

पाकिस्तान भारत के साथ पारंपरिक युद्ध में कई बार मुंह की खा चुका है। परमाणु शक्ति संपन्न होने के बावजूद भी वह इसका प्रयोग करके अपने अस्तित्व को नहीं मिटाना चाहेगा। इसलिए पाकिस्तान गैर-पारंपरिक युद्ध आतंक के माध्यम से ही जारी रखेगा तथा इसमें उसका साथ चीन की तकनीक देगी। आने वाले दिनों में हमें ‘एंटी ड्रोन तकनीक’ पर तेज गति से आगे बढ़ना होगा ताकि पाकिस्तान को इसमें रणनीतिक बढ़त हासिल न हो सके। ड्रोन तकनीक के क्षेत्र में तुर्की भी पाकिस्तान की मदद कर रहा है। आने वाले दिनों में कश्मीर में ड्रोन उग्रवादियों का पसंद पसंदीदा हथियार बन सकता है क्योंकि इसमें कम खतरा उठा कर अधिक नुकसान किया जा सकता है।

भारत को त्वरित जरूरतों के तौर पर तकनीक आयात करने में कोई बुराई नहीं है। लेकिन तकनीकी आत्मनिर्भरता ही हमारा लक्ष्य होना चाहिए। चीन के साथ पिछले वर्ष चली तनातनी के दौरान भारत सरकार द्वारा बहुत सारी चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इससे एक तो डाटा चोरी होने का खतरा कम हुआ है। इसके साथ-साथ भारत में नए स्टार्ट-अप के माध्यम से चीनी ऐप्सका स्थान नए-नए भारतीय ऐप्स ले लिया है। ट्विटर के साथ वर्तमान में चल रहे विवाद में भारतीय सोशल मीडिया ऐप ‘कू’ भी अपना स्थान बना रही है।

चीन का तकनीकी राष्ट्रवाद कोरोना काल में शंका की दृष्टि से देखा जाने लगा है। आज कोई देश खुद को स्वेच्छा आधारित संबंधों में चीन के साथ खड़ा नजर नहीं आना चाहता। क्योंकि चीन की अनैतिक तकनीकी भूख (कोरोना को जैविक हथियार बनाने) ने ही विश्व को एक नए मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है। जहां से उसने नई दिशा लेनी है। चीन के अविश्वसनीय सत्ता तंत्र के कारण एशिया में भारत विश्व के लिए नया ‘प्रकाश-पुंज’बन सकता है।कोरोना काल में भारत ने सिद्ध भी किया है कि उसके लिए मानवता सर्वोपरि है। यह सत्य है कि कोरोना काल में पहले हमारे पास मास्क तथा पीपीई किट तक की तकनीक उपलब्धनहीं थी। लेकिन बिल्कुल कम समय में ही हम इन सबके अलावा कोरोना वैक्सीन के निर्यात की स्थिति में आ गए। विश्व के करीब 85 देशों में भारत की वैक्सीन निर्यात की गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोविन प्लेटफार्म को विश्व के विभिन्न राष्ट्रों को देने का प्रस्ताव किया है। जिसमें उस देश की स्थितियों के अनुसार बदलाव किया जा सकता है। कोविन एप्प से संबंधित एक कार्यशाला में विश्व के 142 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था जिसमें से 50 देशों में कोविन प्लेटफार्म को प्रयोग करने की अपनी इच्छा जताई है।

तकनीक के दम पर ही वर्ष 2020 के आखिर तक चीन का विश्व व्यापार में सर 15 प्रतिशत अमेरिका का 11.5 प्रतिशत  तथा भारत का महज दो प्रतिशत से भी कम था। कोरोना के खत्म होने के बाद स्थितियां बदलेगी। चीन अपने शोषणकारी श्रम कानूनों की कीमत व सस्ते सामानों के बल पर विश्व व्यापार में आक्रामक तरीके से आगे बढ़ रहा था। अब सबको चीन जैसी अनैतिक तथा अविश्वसनीय व्यवस्था से हटकर एशिया में नए साझीदार की जरूरत होगी जिसे भारत पूरी कर सकता है। लेकिन इसके लिए तकनीकी राष्ट्रवाद की आवश्यकता है। जिससे आत्मनिर्भरता के साथ-साथ विश्वकल्याण का भी सपना साकार हो सकता है। 

(लेखक पूर्व सैनिक है तथा वर्तमान में शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े हुए है। समसामयिक तथा अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर निरंतर लिखते रहते है।)

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