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स्वदेशी तेजस से बढ़ेगी तेजस्विता की उड़ान

वर्तमान मोदी सरकार ने जहां स्वदेशी रक्षा उद्योग को बढ़ावा देने के लिये उन्नत एवं प्रोत्साहनपूर्ण नीतियों को निर्मित किया है वहीं उचित बजट का भी प्रावधान किया है। अब समय है उनके सकारात्मक नतीजें जल्दी ही सामने आयें। — ललित कुमार

 

सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति ने हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) की ओर से निर्मित किये जाने वाले हल्के लड़ाकू विमान की खरीद को मंजूरी देकर भारत के स्वदेशी रक्षा उद्योग को तेजस्विता एवं स्वावलंबन की नयी उड़ान दी है। नरेन्द्र मोदी सरकार की आत्मनिर्भर भारत की पहल के क्रम में रक्षा मंत्रालय ने अनुकरणीय कदम उठाया है। स्वदेशी आयुध सामग्री एवं रक्षा उत्पादों के निर्माण से विदेशों से आयात पर रोक लगेगी, जो न केवल आर्थिक दृष्टि से किफायती साबित होगी, बल्कि भारत दुनिया में एक बड़ी ताकत बनकर भी उभरेगा।

यह पहल इस मायने में महत्वपूर्ण है कि भारत की गिनती दुनिया में सबसे ज्यादा हथियार खरीदने वाले देशों में होती है। दूसरी और पाक व चीन की सीमाओं पर सुरक्षा चुनौतियों में लगातार इजाफा हुआ है। वहीं विगत में हर बड़े रक्षा सौदों में बिचैलियों की भूमिका को लेकर जो विवाद उठते रहे हैं, उसका भी पटाक्षेप हो सकेगा। साथ ही जहां भारत में रक्षा उद्योग का विकास होगा, वहीं देश में रोजगार के अवसरों में आशातीत वृद्धि हो सकेगी, भारत का पैसा भारत में रहेगा।

इससे न केवल विदेशी मुद्रा की बचत होगी, बल्कि भारत की गिनती सामर्थ्यवान, विकसित एवं शक्ति सम्पन्न देशों में होने लगेगी। भारत रक्षा उत्पादों की दृष्टि से शक्तिशाली एवं आत्मनिर्भर हो सकेगा। दुनिया की एक बड़ी ताकत बनकर उभरने के लिये भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह अपनी रक्षा जरूरतों को स्वयं पूरा करने में सक्षम बनेगा और किसी भी राजनीति आग्रह-पूर्वाग्रह एवं भ्रष्टाचार को इसकी बाधा नहीं बनने देगा। तेजस लड़ाकू विमानों का संदेश है, सरकार और कर्णधारों को, कि शासन संचालन में एक रात में (ओवर नाईट) ही बहुत कुछ किया जा सकता है। 

भारत दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा रक्षा बजट वाला देश होने के बावजूद अपने 60 प्रतिशत हथियार प्रणालियों को विदेशी बाजारों से खरीदता है, जबकि भारत की तुलना में पाकिस्तान ने अपनी हथियार प्रणालियां ज्यादा विदेशी ग्राहकों को बेची हैं। इन स्थितियों की गंभीरता को देखते हुए भारत सैन्य उत्पादों के स्वावलम्बन की ओर कदम बढ़ा रहा है तो यह देश की जरूरत भी है और उचित दिशा भी है। आगामी छह-सात सालों में घरेलू रक्षा उद्योग को लगभग चार लाख करोड़ के अनुबंध दिये जायेंगे, जिसमें पारंपरिक पनडुब्बियां, मालवाहक विमान, क्रूज मिसाइलें व हल्के लड़ाकू हेलीकॉप्टर भी शामिल होंगे। वर्तमान वित्त वर्ष में घरेलू रक्षा उद्योग के लिये 52 हजार करोड़ रुपए के पृथक बजट का प्रावधान किया गया है। सेना में हथियारों की आपूर्ति बाधित न हो, इसलिये इसे चरणबद्ध तरीके से वर्ष 2020 से 2024 के मध्य क्रियान्वित करने की प्लानिंग है। इस रणनीति के तहत सेना व वायु सेना के लिये एक लाख तीस हजार करोड़ रुपये तथा नौसेना के लिये एक लाख चालीस हजार करोड़ के उत्पाद तैयार किये जाने की योजना है।

मालूम हो कि सरकारी नीतियों, बजट एवं कार्ययोजनाओं की धीमी रफ्तार का ही परिणाम है कि तेजस को विकसित करने में करीब तीस वर्ष लग गये। इसी तरह रक्षा क्षेत्र की अन्य परियोजनाएं भी लेट-लतीफी एवं सरकारी उदासीनता का शिकार होती रही हैं। इस तरह की स्थितियों का होना दुर्भाग्यपूर्ण है कि अभी हम सेना की सामान्य जरूरतों के साधारण उपकरण और छोटे हथियार भी देश में निर्मित करने में सक्षम नहीं हो पाये हैं। निःसंदेह तेजस एक कारगर एवं गुणवत्तापूर्ण लड़ाकू विमान साबित हो रहा है, लेकिन यह तथ्य भी हमारे ध्यान में रहना जरूरी है कि उसमें लगे कुछ उपकरण एवं तकनीक दूसरे देशों की हैं। हमारा अगला लक्ष्य उसे पूरी तरह स्वदेशी और साथ ही अधिक उन्नत एवं गुणवत्तापूर्ण बनाने का होना चाहिए। यह तभी संभव है कि हमारे विज्ञानियों और तकनीकी विशेषज्ञों को भरपूर प्रोत्साहन एवं साधन दिये जायें। यदि भारत दुनिया की महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर होते हुए अंतरिक्ष विज्ञान में अपनी छाप छोड़ सकता है और हर तरह की मिसाइलों के निर्माण में सक्षम हो सकता है तो फिर ऐसी कोई वजह नहीं कि अन्य प्रकार की रक्षा सामग्री तैयार करने में पीछे रहे। वर्तमान मोदी सरकार ने जहां स्वदेशी रक्षा उद्योग को बढ़ावा देने के लिये उन्नत एवं प्रोत्साहनपूर्ण नीतियों को निर्मित किया है वहीं उचित बजट का भी प्रावधान किया है। अब समय है उनके सकारात्मक नतीजें जल्दी ही सामने आयें। भारत न सिर्फ आयात के विकल्प के उद्देश्य से रक्षा उत्पादों का निर्माण करे, बल्कि भारत में निर्मित रक्षा उत्पादों का निर्यात अन्य देशों को करने के लिए भी रक्षा उत्पादन को प्रोत्साहन दिया जाये। 

 

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