कृषि व ग्रामीण विकास की वैकल्पिक राह
कुटीर व लघु उद्योगों को भली-भांति जमाने के लिए व अन्य उपयोगों के लिए भी सूचना तकनीक जैसे नए रोजगार व अन्य दैनिक जरूरतें पूरी करने वाले गैर-प्रदूषक उद्योग भी गांव व कस्बे स्तर पर पनपने चाहिए। — भारत डोगरा
आज देष में कृषि पर चर्चा ने जोर पकड़ा है। इस समय बहस तीन नए कानूनों पर केंद्रित है। पर इससे आगे भी सोचने की जरूरत है कि आखिर वह कौन सी राह है जिस पर चलते हुए किसानों, उनकी खेती-किसानी व ग्रामीण निर्धनता के संकट का टिकाऊ समाधान किया जा सकता है। इसके लिए पहली जरूरत तो यह है कि पर्यावरण आधारित कृषि की एग्रोइकालाजी सोच को अपनाया जाए। इस सोच के अंतर्गत प्रकृति की प्रक्रियाओं की अच्छी समझ बनाई जाती है व इन प्रक्रियाओं में बाधा डाले बिना ऐसे उपायों से कृषि उत्पादन बढ़ाया जाता है जो पर्यावरण व मित्र जीवों की रक्षा करें, जिनमें पषुपालन व कृषि का बेहतर मिलन हो, जो गांवों के संसाधनों पर आधारित हों (आत्म-निर्भर) व जिनका खर्च न्यूनतम हो। इस तरह किसान का खर्च कम से कम करते हुए, पर्यावरण रक्षा करते हुए उत्पादन वृद्धि को टिकाऊ रूप दिया जाता है। इसके साथ देषीय/स्थानीय/परंपरागत बीजों को बचाना व स्थानीय जल व नमी संरक्षण प्रयासों, हरियाली बढ़ाने को अधिक महत्त्व देना। फसल-चक्र ऐसे हों जिनमें स्थानीय स्वास्थ्य अनुकूल खाद्यों को पहली प्राथमिकता मिले। कृषि में महिलाओं की भूमिका को अधिक मान्यता व सम्मान मिले। जीएम फसलों से पर्यावरण रक्षा असंभव है अतः जीएम फसलों पर पूर्ण रोक लगनी चाहिए।
दूसरी जरूरत यह है कि कृषि उपज की प्रोसेसिंग गांव या पंचायत स्तर पर ही होनी चाहिए व इसके लिए बड़ी चावल, दाल, तेल की मिलों के स्थान पर छोटी मिल या कोल्हू या कपास प्रोसेसिंग की इकाई आदि कुटीर उद्योग लगाने चाहिए। इसके आधार पर खाद्य व कृषि लघु स्तर की प्रोसेसिंग से जुड़े तमाम रोजगार गांव के स्तर पर उपलब्ध होने चाहिए। इनमें महिलाओं को महत्त्वपूर्ण स्थान मिलना चाहिए। इन कुटीर व लघु उद्योगों को भली-भांति जमाने के लिए व अन्य उपयोगों के लिए भी सूचना तकनीक जैसे नए रोजगार व अन्य दैनिक जरूरतें पूरी करने वाले गैर-प्रदूषक उद्योग भी गांव व कस्बे स्तर पर पनपने चाहिए। इस तरह गांववासियों को खेती के अतिरिक्त अनेक विविधता भरे रोजगार भी गांव व कस्बे स्तर पर उपलब्ध होंगे। इस तरह स्वदेषी व आत्म-निर्भरता इस रूप में आएंगे जिसमें गांववासियों को टिकाऊ व रोजगार मिलेंगे।
तीसरा कदम यह उठाना चाहिए कि स्थानीय, पर्यावरण-रक्षा के उपायों से प्राप्त स्वास्थ्य के अनुकूल खाद्यों के एक निष्चित भाग को सरकार को एमएसपी या न्यायसंगत मूल्य के आधार पर खरीद लेना चाहिए व उसे उसी गांव या पंचायत की राषन की दुकानों (सार्वजनिक वितरण कार्यक्रम) व पोषण कार्यक्रमों (मिड-डे मील, आंगनवाड़ी, सबला आदि) के लिए उपलब्ध करवा देना चाहिए। इस तरह यातायात पर बहुत सा खर्च बचेगा। चूंकि पोषण कार्यक्रमों के लिए सब्जी, दाल, मसाले, तेल सब कुछ चाहिए अतः इन सबकी स्थानीय खरीद भी एमएसपी पर हो सकेगी।
इसके अतिरिक्त भूमिहीन परिवारों के लिए एक बहुत बड़ा अभियान आरंभ करने की बहुत जरूरत है। जहां तक संभव है उन्हें कुछ भूमि कृषि या किचन गार्डन के लिए देनी चाहिए जहां वे एग्रोइकालाजी से खेती कर सकें। सीलिंग लागू कर व अन्य उपायों से उन्हें कृषि भूमि दी जा सकती है। जहां यह संभव न हो वहां बेकार पड़ी ऐसी भूमि जिस पर वृक्ष उगाना संभव है उन्हें देनी चाहिए व इस वनीकरण के लिए उन्हें टिकाऊ रोजगार न्यायसंगत मासिक मजदूरी पर देना चाहिए। जब वृक्ष बड़े हो जाएं तो इनसे प्राप्त लघु वन उपज (पत्ती, फूल, फल, बीज, तेल आदि) पर उनका ही अधिकार होगा व वे इससे आजीविका प्राप्त कर सकेंगे। स्थानीय प्रजाति के वृक्षों व झाड़ियों का फैलाव इस तरह हो जैसे उस क्षेत्र के स्थानीय प्राकृतिक वनों में होता है। इसके साथ-साथ जल, नमी संरक्षण के बहुत से कार्य भी किए जाएं जिनमें स्थानीय परंपरागत ज्ञान से सीखा जाए। इस तरह भूमिहीन परिवारों को किसी न किसी तरह का कृषि या वृक्ष भूमि आधार मिले तथा सभी के आवास भूमि अधिकार सुरक्षित हों। गांवों के सभी मूल परिवारों को भूमि आधार प्राप्त होना चाहिए।
अंतिम जरूरत यह है कि सभी गांवों/पंचायतों में महिलाओं व युवाओं के नेतृत्व में स्थाई समाज-सुधार समितियों का गठन होना चाहिए। इन का कार्य यह है कि निरंतरता से शराब व हर तरह के नषे को दूर करने का कार्य निरंतरता से चलता रहे। इसके साथ छुआछूत, हर तरह के भेदभाव, दहेज-प्रथा, महिलाओं से हिंसा व अभद्रता, भ्रष्टाचार, तरह-तरह के अनावष्यक झगड़ों, गंदगी के विरुद्ध भी इस समिति को निरंतरता से सक्रिय रहना चाहिए। सभी सरकारों योजनाओं का लाभ लोगों तक बिना भ्रष्टाचार के पहुंचे इसके लिए भी समिति को सक्रिय रहना चाहिए।
इस कार्यक्रम के आधार पर टिकाऊ तौर पर हमारे गांवों में किसानों के संकट, बेरोजगारी व निर्धनता को दूर किया जा सकता है। इस तरह गांवों में आ रही निराषा को दूर कर तरह-तरह के रचनात्मक प्रयासों को उत्साहवर्धक बढ़ावा दिया जा सकता है। इसके अतिरिक्त कर्जग्रस्त मेहनतकष किसानों व मजदूरों को मौजूदा कठिनाईयों में तुरंत राहत देने के लिए कर्ज-राहत की घोषणा भी एक मुष्त की जानी चाहिए।
Share This