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कोरोना इफेक्टः आर्थिक मोर्चे पर भारत कई देशों से बेहतर

देश को यह मालूम होना चाहिए कि भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार अभी भी बहुत मजबूत है। कोरोना से पार पाने के बाद जिन चंद देशों में तेज आर्थिक विकास का अनुमान लगाया गया है, उसमें भारत भी है। और यह अनुमान हवा में नहीं है, इसके ठोस आधार हैं। — विक्रम उपाध्याय

 

जैसे-जैसे कोरोना के मामले कम होते जा रहे हैं, वैसे-वैसे कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दलों के मोदी सरकार पर हमले बढ़ते जा रहे हैं। चाहे वह वैक्सीन का मामला हो या फिर आर्थिक बदहाली का, कोरोना की क्रूरता से ज्यादा विपक्षी दल प्रधानमंत्री मोदी की कथित उदासीनता और अक्षमता को समस्या के लिए जिम्मेदार बता रहे हैं।

अपनी कुंद राजनीतिक धार को तेज करने का उनको यह उचित अवसर लग रहा है। जब लोग परेशान हो, आर्थिक रूप से तंगहाल हो और जवाबदेही थोपने के लिए किसी को ढूंढ रहे हों, तो पहली फायर लाइन में सरकारें आती ही हैं। लेकिन जिस तरह चिंगारी को पेट्रोल सुंधाने की कोशिश कांग्रेस कर रही है, वह केवल आगे की राजनीति की राह तय नहीं करेगी, बल्कि भारत का भविष्य भी प्रभावित होगा। जाहिर है, सत्ता के सिंहासन से अलग हुई कांग्रेस को इससे फर्क नहीं पड़ता, परंतु देश के नागरिक के रूप में सच्चाई जानने या बताने का दायित्व देश के प्रति सद्भावना रखने वाले का बनता है।

जनवरी 2020 में भारत में कोरोना का असर सामने आने लगा। मार्च के खत्म होते-होते देश में संपूर्ण लॉक डाउन लग गया। जो मध्य सितंबर तक चला। लगभग 7 महीने भारत में व्यापारिक व औद्योगिक गतिविधियां ठप्प सी रहीं। इस बीच आकड़ा आया कि भारत की अर्थव्यवस्था में 23 फीसदी से अधिक का संकुचन आ गया है। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने 2020-21 की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) के लिए जीडीपी के अनुमान जारी करते हुए बताया कि अभी भी भारत का कुल जीडीपी 33.14 लाख करोड का़ है, जबकि 2019-20 की दूसरी तिमाही में यह 35.84 लाख करोड़ रुपये का था। यानी इसमें  7.5 प्रतिशत का संकुचन दिखा।

भारत की जीडीपी में इतनी गिरावट क्यों आई उसे समझने के लिए डब्लूटीओ की यह रिपोर्ट पढ़े, जिसमें कहा गया है कि 2020-21 की पहली तिमाही में वैश्विक सेवाओं का निर्यात वर्ष-दर-वर्ष 7.6 प्रतिशत और दूसरी तिमाही में 7.3 प्रतिशत तक कम हुआ। उसमें भी एशिया क्षेत्र में सेवा निर्यात में 16 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। हम सबको मालूम है कि भारत की जीडीपी में सेवा क्षेत्र का हिस्सा 54.77 फीसदी है। यानी सर्विस सेक्टर के बैठने का पूरा असर भारत के जीडीपी पर पड़ा।

अब आप इस अवधि में विश्व की अन्य अर्थव्यवस्थाओं का हाल देखें। अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी फिंच ने सितंबर 2020 में यह अनुमान जारी किया कि  वैश्विक जीडीपी में कोरोना के कारण 2020-21 में 4.4 फीसदी की कमी आएगी। 

सितंबर में जब यह आकड़ा आया कि भारत की जीडीपी में 23.9 फीसदी की गिरावट आई है, तो उस समय दुनिया के कई देशों में भी इसी तरह की गिरावट देखी गई थी। तब स्पेन की जीडीपी में 22.1, ब्रिटेन की जीडीपी में 21.7, फ्रांस की जीडीपी में 18.9, इटली की जीडीपी में 17.7 और कनाडा की जीडपी में 13 फीसदी का संकुचन हुआ था। वहां तो कोई चिल पौ नहीं मचाई किसी ने। अपने को आर्थिक सुपर पावर कहने वाले और भारत की जीडपी के मुकाबले 10 गुना से भी अधिक बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश अमेरिका की जीडीपी में 9.9 फीसदी का, रूस की जीडीपी में 9.1 फीसदी का और जापान की जीडपी में 9.9 फीसदी का सिकुड़न देखा गया। केवल चीन ही एकमात्र देश था जिसने यह दावा कि कोरोना में भी उसकी अर्थव्यवस्था सकारात्मक रही और उसने 3.2 फीसदी की वृद्धि हासिल की। चीन के आकड़े पर सभी लोगों को हैरत हुई और उसे कई देशों ने मैनिपुलेटिव करार दिया।

सितंबर में लॉकडाउन खत्म हो गया और फिर से आर्थिक गतिविधियां चल पड़ी। फिर से विश्व भर की अर्थव्यवस्था के नए अनुमान सामने आने लगे। 2020-21 की अंतिम तिमाही तक भारत की अर्थव्यवस्था पटरी पर आने लगी थी। फरवरी 2021 में मूडीज एनालिटिक्स ने यह अनुमान जारी किया कि 2021 में भारती जीडीपी 12 फीसदी तक बढ़ सकती है। यही नहीं आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) ने कहा कि वित्त वर्ष 2021 में भारतीय अर्थव्यवस्था के 12.6 फीसदी बढ़ने की उम्मीद है, जो कि जी-20 देशों में सबसे अधिक है। मूडीज ने अप्रैल में जारी अपने अनुमान में भी कहा है कि उसे उम्मीद है कि संक्रमण की मौजूदा लहर से निपटने के लिए माइक्रो कंटेनमेंट जोन पर ध्यान केंद्रित किया गया है, यह वैसा नहीं है जैसा पिछले साल देशव्यापी तालाबंदी के समय था, इसलिए भारत की आर्थिक गतिविधियों पर 2020 की तुलना में कम गंभीर प्रभाव होगा। मूडीज ने वित्त वर्ष 2021-22 के लिए भारत की जीडीपी में दोहरे अंकों की वृद्धि के अपने पूर्वानुमान को बरकरार रखा है। जिसके अनुसार भारत वित्त वर्ष 2021 में 13.7 फीसदी की वृद्धि हासिल कर सकता है।

कांग्रेस कहती है कि मोदी ने देश की अर्थव्यवस्था को डूबा दिया। कांग्रेस के अनुसार इतना भी पैसा नहीं है कि सभी को मुफ्त वैक्सीन लगा दिया जाए। अपने इसी वक्तव्य को सही मानते हुए, वह कभी सेंट्रल विस्टा के निर्माण को रोकना चाहती है, जिस पर 13 हजार करोड़ खर्च होने है तो कभी कहती है कि सरकार लोगों महंगाई और टैक्स के जरिए लोगों का खून चूस रही है। कांग्रेस का यह भी दावा है कि मोदी ने  देश को कर्ज में डूबो दिया है और अब हमें राहत के लिए दुनिया के सामने हाथ फैलाना पड़ रहा है। क्या वाकई ऐसा है। आकड़े क्या कहते हैं।

इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल फाइनेंस के अनुसार पिछले साल 19.5 ट्रिलियन डॉलर के बराबर विभिन्न देशों ने कर्ज लिए। इसमें से अकेले अमेरिका 3 ट्रिलियन डॉलर का कर्ज लिया, जो 2008 की महामंदी समय लिए गए कर्ज से भी ज्यादा है। यह राशि लगभग भारत की अर्थव्यवस्था के आकार से भी ज्यादा है। ब्लूमबर्ग इकोनॉमिक्स के अनुसार जी-7 समूह के देशों ने पिछले साल अपनी जीडपी के औसत 85 फीसदी के बराबर कर्ज को बढा़कर अब 140 फीसदी कर लिया है। जबकि भारत का कुल कर्ज जो वर्ष 2019-20 में जीडीपी का 74 फीसदी था, उसे बढ़ाकर 90 फीसदी कर लिया है। उसमें भी हमारा विदेशी कर्ज कुल जीडीपी का 11 फीसदी है, जो चीन के बराबर है। जबकि अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, जर्मनी और फ्रांस पर विदेशी कर्ज उनकी जीडीपी से भी ज्यादा है। आईएमएफ ने भारत के इस कर्ज को मैनेजिबल और विकास में सहायक बताया है। आईएमएफ के अनुसार भारत जल्दी ही अपने कर्ज को जीडीपी के 80 फीसदी तक ले आ सकता है।

देश को यह मालूम होना चाहिए कि भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार अभी भी बहुत मजबूत है। कोरोना से पार पाने के बाद जिन चंद देशों में तेज आर्थिक विकास का अनुमान लगाया गया है, उसमें भारत भी है। और यह अनुमान हवा में नहीं है, इसके ठोस आधार हैं। मसलन कोरोना और लॉक डाउन के बावजूद 31 मार्च 2021 को समाप्त हुए वित्त वर्ष में भारत की विकास दर नकारात्मक से सकारात्मक हो गई, इस साल 1.6 फीसदी की वृद्धि दर हासिल की गई। बेरोजगारी में बढ़ोतरी की दर 6.5 फीसदी है। इसकी तुलना अन्य बड़े देशों से करें तो ब्राजील में बेरोजगारी दर 11.93 फीसदी है। इटली में 9.88 फीसदी है। फ्रांस में 8.12 फीसदी है और अमेरिका मे लगभग 4 फीसदी है। भारत में ब्याज दर 5 फीसदी से कम है और देश में विदेशी मुद्रा का भंडार 597 अरब डॉलर के बराबर है। कोविड के बावजूद भारत में 2020-21 में 89.72 अरब डॉलर का विदेशी निवेश आया जो पिछले साल से 10 प्रतिशत अधिक था।

असाधारण हालत में कोई भी  साधारण परिणाम प्राप्त नहीं कर सकता। अमेरिका और ब्राजील के बाद भारत तीसरा देश है, जहां कोरोना से सबसे ज्यादा तबाही मचाई। अब नए सिरे से अर्थव्यवस्था के निर्माण पर लगना पड़ेगा। इसके लिए प्रोत्साहन के साथ साथ उद्यमियों में उत्साह का भी संचार करना पड़ेगा। यह दायित्व सिर्फ सरकार का नहीं है। पूरे राजनीतिक सिस्टम का है, क्योंकि यहां सिर्फ मोदी  नहीं हैं। विपक्षी पार्टियां भी कई राज्यों में सरकारे चला रही हैं। वहां भी नई उर्जा की जरूरत पड़ेगी। वहां भी बिजनेस कांफिडेंस बढ़ाना पड़ेगा। झूठे और मनगढंत आकड़ों से किसी का भला नहीं होगा। यह सबको सोंचना चाहिए।

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