कोरोना के संक्रमण के दुष्प्रभाव से निकलती अर्थव्यवस्था
सीआईआई के अध्यक्ष टीवी नरेन्द्रन के अनुसार महामारी की सभी चुनौतियां के बावजूद वर्ष 2026 तक देश की अर्थव्यवस्था को पांच लाख करोड़ डॉलर का आकार दिया जा सकता है, जिसके लिए प्रत्येक वर्ष 9.0 प्रतिशत की आर्थिक विकास दर प्राप्त करनी होगी। — डॉ. सूर्य प्रकाश अग्रवाल
भारत में जिस प्रकार नवम्बर-दिसम्बर 2019 से अब तक चीन से आये कोरोना संक्रमण का प्रभाव रहा तथा सम्पूर्ण देश लॉकड़ाउन का शिकार रहा, उद्योग धंधे लगभग ठप्प से हो गये, लोगों के सामने रोजगार की समस्या खड़ी हो गई, कई परिवारों में कमाने वाले सदस्य का निधन हो गया, कई परिवारों के लाखों रुपये कोरोना बीमारी के कारण अस्पताल में भर्ती होने के कारण व्यय हो गये, दवाईयों तथा आक्सीजन की कमी व कालाबाजारी से देशवासी त्र्स्त रहे इत्यादि सब मिलाकर देश की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। आरबीआई के अनुसार दूसरी लहर से देश की अर्थव्यवस्था को चालू वित्त वर्ष में दो लाख करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है।
केन्द्र व राज्य सरकारों ने समय रहते प्रोटोकोल लागू करके कोरोना से होने वाली आर्थिक नुकसान की अपेक्षा लोगों की जान को बचाया परन्तु अब जब देश में कोरोना की दूसरी लहर का प्रकोप का प्रभाव थोड़ा बहुत कम हुआ है तो देश के हिस्सों में लॉकड़ाउन हटने लगा है। कारखानों में काम शुरु हो गया है। लोग उत्पादकीय कार्यों में आने लगे है बाजार खुलने लगे है तो अर्थव्यवस्था में भी तेजी देखी जा रही है। सरकार तथा देशवासियों ने महसूस किया है कि कोरोना से अर्थव्यवस्था पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा।
असंगठित क्षेत्र की कम्पनियों पर कुछ ज्यादा प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। लॉकड़ाउन में ऑटो मोबाइल व उसकी सहायक कंपनियों ने अपने कारखाने खोलने शुरु कर दिये है तथा पलायन कर गये मजदूर व कर्मचारी अपने कार्यस्थल तथा कारखानों में लौटने लगे है। भारतीय रिजर्व बैंक ऋण के क्षेत्र में कोशिश कर रहा है कि असंगठित क्षेत्र का उत्पादन व कारोबार जारी करने के लिए नकदी उपलब्ध रहे क्योंकि कामबंदी की स्थिति में इन इकाईयों को अपना खर्चा पूरा करना भी अत्यंत मुश्किल पड़ जाता है तथा इकाईयों को पुनः शुरु करना भी अत्यंन्त दुष्कर कार्य हो जाता है। अभी मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र पर लॉकड़ाउन का विपरीत प्रभाव पड़ा है। कच्चे व अर्धनिर्मित माल की आपिर्ति में भी कठिनाई होती है। उत्पादों की आपूर्ति नहीं होने पर उनसे होने वाले उत्पादन को भी बंद करना पड़ जाता है। इन इकाईयों को पुनः चालू करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। बैंक दो प्रकार से राहत देने की कोशिश कर रहा है। उत्पादन के लिए नया ऋण उपलब्ध कराना तथा दूसरे पुराने ऋणों की वसूली अभी टाल देना।
भारत में सरकारों ने कोरोना का संक्रमण का बहुत अल्पकाल में नियंत्रित कर लिया है तो इससे अर्थव्यवस्था जल्दी सुधर सकती है। कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के मामलों की वृद्धि प्रमुख रुप से देशवासियों के द्वारा दिखाई गई लापरवाही के कारण अधिक हो गई जिससे देश में पुनः लॉकड़ाउन भी सख्ती से लागू करना पड़ा। देश में चिकित्सीय सुविधाओं पर भी प्रभाव पड़ा। देश की चिकित्सा व्यवस्था को भी इस कठिन समय में बड़े पैकेज की आवश्यकता पड़ेगी। चिकित्सा क्षेत्र में आयात बढ़ाने के लिए हमें अपनी कोशिशों को बढ़ाना चाहिए। चिकित्सा क्षेत्र में सेना की भी तात्कालिक मदद लेनी चाहिए क्योंकि चिकित्सा का ढ़ांचा गांव गांव तक पंहुचाने का काम भी बहुत बड़ा काम है। वैक्सीन का उत्पादन बढ़ाकर हर महीने पन्द्रह करोड़ लोगों को वैक्सीन लगाने का लक्ष्य निर्धारित करना होगा।
सरकार व उसके विपक्षी राजनीतिक दलों के लाखों कार्यकर्ताओं को आगे आकर गरीब व बेरोजगारो को फौरी मदद देनी चाहिए गरीबों को सराकर ने मुफ्त राशन देने की योजना बनायी है जिसका भी अर्थव्यवस्था पर अप्रत्यक्ष अनुकूल प्रभाव पड़ेगा। भारतीय अर्थव्यवस्था गत कई दशकों से मंदी के दौर से गुजर रही थी जिससे रोजगार के नवीन अवसर ही उपलब्ध नहीं हो पा रहे थे। भारत में एक साल में पांच करोड़ लोग न्यूनतम मजदूरी आय सीमा (375 रुपये प्रतिदिन) के ऊपर आ जाते है। परन्तु कोरोना ने इस आय सीमा से ऊपर के करोड़ों लोगों को 375 रुपये प्रतिदिन से नीचे कर दिया। महामारी की मार गरीब लोगों पर अधिक हुई है। सेंटर फार मॅानीटरिंग इंड़ियन इकोनोमी के अनुसार गत वर्ष अप्रैल तथा मई माह में लगभग 20 प्रतिशत परिवारों ने कुछ भी नहीं कमाया। समृद्ध परिवारों की आय में भी 25 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है। मार्च से अक्टूबर 2020 के बीच गरीबों के 10 प्रतिशत परिवारों को 15,700 रुपये प्रति परिवार हानि उठानी पड़ी है। यह रकम उनकी दो महीने की आय से ज्यादा ही है अर्थात लोगों की आय में भारी गिरावट हो गई तथा लोगों ने उधार लेकर व अपनी संपत्तियों को बेचकर अथवा गिरवीं रखकर किसी प्रकार अपना गुजारा किया है। सरकारी राहत उनके लिए रामबाण साबित हुई है।
सरकार प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना में 80 करोड़ गरीबों को अनाज व दाल मुफ्त देने का कार्य कर रही है। यह योजना दीपावली 2021 तक बढ़ा दी गई है। मनरेगा के अंतर्गत रोजगार बढ़ाना चाहिए तथा पात्रता 150 दिन की हो जाये तो अच्छा हो। गरीबों को चल रही आर्थिक सहायता में भी वृद्धि की जानी चाहिए तथा अर्थव्यवस्था पर अनुकूल प्रभाव ड़ालने के लिए आमदनी व रोजगार को पूर्व की स्थिति में लाने का प्रत्येक सम्भव प्रयास किया जाना चाहिए।
करदाताओं पर अतिरिक्त बोझ पड़ना भी तय है। परन्तु सरकारों के सामने कर की राशि बढ़ाने का ही औचित्य शेष बचता है। यदि सरकार नये नोट छापकर कोरोना से हुई हानि को पूरा करती है तो उससे मुद्रास्फीति बढ़ने की संभावना है। भारत जैसे लोकतांत्रिक अर्थव्यवस्था में देशवासियों का विरोध भी सरकारों को झेलना पड़ेगा तथा विपक्षी दल इस मौके का भरपूर फायदा उठाने को तत्पर बैठे हुए है। परन्तु इतना निश्चित है कि सरकार गरीबों को प्रत्येक सम्भव सहायता जरुर उपलब्ध कराये परन्तु गरीब भी मुफ्त मिले राशन को बाजारों में बेचकर आये धन का शराब इत्यादि में दुरुपयोग कर रहा है। इससे करदाताओं में घोर निराशा उत्पन्न होती जा रही है।
परन्तु अब अर्थव्यवस्था में बुनियादी मजबूती दिखने लगी है। चालू वित्त वर्ष 2021-22 के प्रारम्भिक ढ़ाई माह में प्रत्यक्ष कर की वसूली गत वर्ष के इन महीनों की वसूली से 100.4 प्रतिशत बढ़ गयी है। पेट्रोल व ड़ीजल की खपत भी जून 2021 में अनलॉक की प्रक्रिया शुरु होते ही बढ़ गयी है। जून में 14 दिनों के निर्यात में 46.43 प्रतिशत की वृद्धि हुई जबकि 2019 में इन्हीं दिनों में 34 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई थी। जून में शुरु के 15 दिनों में प्रत्यक्ष कर की वसूली 1,85,871 करोड़ रुपये की हुई जबकि गत वर्ष में 92,712 करोड़ रुपये थी। प्रत्यक्ष कर संग्रह 2,16,602 करोड़ रुपये था जिसमें 30,731 करोड़ रुपये रिफंड़ भी शामिल किया गया। चालू वर्ष की प्रथम तिमाही में 28,780 करोड़ रुपये अग्रिम कर के रुप में प्राप्त हुए जबकि गतवर्ष की प्रथम तिमाही में 11,714 करोड़ रुपये अग्रिम कर के रुप में शामिल थे। अप्रैल 2021 में जीएसटी की कुल राशि 1.41 लाख रुपये थी जो कि अब तक की सर्वाधिक थी। जून 2021 के प्रथम दो सप्ताह में कुल निर्यात 14.06 अरब डॉलर का था जबकि गतवर्ष की अवधि में 9.6 अरब डॉलर का था तथा 2019 में यह राशि 10.47 अरब ड़ॉलर थी। बिजली की खपत भी जून 2021 के प्रथम दो सप्ताह में गत वर्ष की समान अवधि से 9.3 प्रतिशत अधिक थी।
देश के प्रमुख संगठन सीआईआई के अनुसार अर्थव्यवस्था को अच्छी गति देने के लिए तीन लाख करोड़ रुपये का पैकेज दिया जाना चाहिए। सीआईआई के अध्यक्ष टीवी नरेन्द्रन के अनुसार महामारी की सभी चुनौतियां के बावजूद वर्ष 2026 तक देश की अर्थव्यवस्था को पांच लाख करोड़ डॉलर का आकार दिया जा सकता है जिसके लिए प्रत्येक वर्ष 9.0 प्रतिशत की आर्थिक विकास दर प्राप्त करनी होगी। नरेन्द्रन के अनुसार 2021-22 में आर्थिक विकास दर 9.5 प्रतिशत रहने की संभावना है। इन सबसे आशा की जा सकती है कि भारत शीघ्र ही कोरोना संक्रमण से हुई क्षति को पूरा कर विकास के मार्ग पर अग्रसर हो सकेगा।
डॉ. सूर्य प्रकाश अग्रवाल सनातन धर्म महाविद्यालय मुजफ्फरनगर 251001 (उ.प्र.), के वाणिज्य संकाय के संकायाध्यक्ष व ऐसोसियेट प्रोफेसर के पद से व महाविद्यालय के प्राचार्य पद से अवकाश प्राप्त हैं तथा स्वतंत्र लेखक व टिप्पणीकार है।
Share This