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देश में कोरोना की समाप्ति एकजुटता से ही सम्भव

सभी राजनीतिक दल, किसान व मजदूर संगठन, कर्मचारी संगठन इत्यादि एकजुट होकर द्वितीय लहर से लड़े और फिर तृतीय लहर से लड़ने के लिए तैयारियों को पूर्ण करें। ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए कि इस विपदा से भारत एक नयी संस्कृति व परम्परा के साथ आर्थिक उत्थान के साथ उभरेगा। — डॉ. सूर्य प्रकाश अग्रवाल

 

भारत की अपनी संस्कृति है कि जब कोई भी मुसीबत व आपदा आती है तो देशवासी सभी स्तरों पर एकजुटता के साथ मिलकर उसका सामना करते है। यही देश के लोगां की परम्परा है। अलग अलग परम्परा, भाषा, जाति, धर्म, मजहब आदि सभी दिखावटी ही साबित हो जाते है। समय समय पर सभी भारतवासी एक होकर न केवल मुसीबत व संकट का सामना करते है बल्कि उससे एक नई परम्परा व संस्कृति भी जन्म लेती है। इससे भारतवासियों का जीवन मुसीबत के अवसर में भी जीवटता प्राप्त कर लेता है।

भारत में नवम्बर-दिसम्बर 2019 से आये कोरोना की इस समस्या की द्वितीय लहर का दौर चल रहा है तथा देषी व विदेषी विषेषज्ञ अब आगामी कुछ समय में ही तृतीय लहर की भी आने की आषंका जता रहे है। राज्यो के उच्च व देष की उच्चतम न्यायालय भी जागरुक होकर राज्य व देष की सरकार से पूछ रहा है कि सरकार तीसरी लहर को लेकर क्या तैयारी कर रही है। सरकार ने लोकतांत्रित परम्परा का संवैधानिक कर्तव्य पूर्ण कर देष में विभिन्न छोटे व बड़े राज्यों में विधानसभा व पंचायत के आम चुनाव करवायें। वरना तो केन्द्र सरकार बड़ी आसानी से कोरोना को लेकर देष के राज्यो का कार्यकाल समाप्त होने पर राष्ट्रपति शासन लागू कर इन राज्यों में राष्ट्रपति शासन लागू कर इन राज्यों में छः महीने तक के लिए बड़ी आसानी से चुनाव टाल सकती थी। इसी प्रकार गांवों में पंचायत चुनाव भी टाले जा सकते थे। परन्तु उसने यह बहाना नहीं बनाया और कोरोना से मुकाबला करते करते चुनाव भी समय पर सम्पन्न करवाये और वहां लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकारें स्थापित की गई।

देष के कुछ बुद्धिजीवी कोरोना की तृतीय लहर आने का प्रसार व प्रचार कर लोगों का मनोबल गिराने की कोषिष कर रहे है परन्तु भारत की संस्कृति ऐसी नहीं है। उससे भी देष के लोगों की एकजुटता के साथ भली प्रकार से मुकाबला किया जायेगा। तृतीय लहर से ड़रने की नहीं बल्कि मुकाबले करने की आवष्यकता है।

इस समय देष भर में मरीज व उनके तीमारदार अस्पताल व अन्य सेन्टरों में परेषानी महसूस कर रहे है परन्तु वे केन्द्र व राज्य सरकारों की मजबूरी भी समझ रहे है। बहुत से तीमारदार आक्सीजन का प्रबंध स्वंय के स्तर पर कर रहे है। अब देषवासी मनोवैज्ञानिक रुप से भी कोरोना की तृतीय लहर से लड़ने की तैयारी कर चुके है। टीका लगवाने की लम्बी लम्बी पंक्तियां देखी  जा रही है। देष के सभी हिस्सों में लोग मास्क लगा कर दूर दूर रह कर घूम रहे है। अधिकतर राज्यों में पुलिस को लाकड़ॅाउन में पहले की तुलना में अब कम मेहनत करनी पड़ रही है। इस प्रकार के जन जन के सहयोग से लोगों का हौसला बढ़ रहा है तथा वे दुगुनी तैयारी के साथ कोरोना से मुकाबले को तैयार हो गये है। उनके साथ सभी राज्य सरकारें व केन्द्र सरकार भी है।

गत वर्ष लाकडॅ़ाउन लागू हुआ था तो लोग मनोवैज्ञानिक रुप से तैयार नहीं थे। सरकार ने अचानक लाकड़ॅाउन लगाने की घोषणा कर दी थी जिससे लोगों को लाकडॅाउन का अनुभव भी नहीं था तो अधिक परेषानी का सामना करना पड़ा था परन्तु अब लोग लाकड़ॅाउन में सहयोग देते हुए स्वंय ही अपने प्रतिष्ठानों को बंद कर रहे है। विभिन्न संगठनों की ओर से पूर्ण लाकडॅाउन लगाने की मांग उठाई जा रही है। अब लोग यह अच्छी तरह से समझ गये है कि जान है तो जहान है। अब लोग मूंह पर मास्क लगा रहे है, कोरोना से बचने के लिए पुलिस से बचने के लिए नहीं।

यह कटु सत्य है कि यह समझदारी हम सभी पहले दिखाते तो आज हालात विकट नहीं होते। सभी सरकारों को तैयारी बेहतर करनी चाहिए थी। लोगों को भी सरकारों से अच्छे ईलाज के लिए अच्छे अस्पतालों की मांग करनी चाहिए थी परन्तु वे जाति, धर्म व मजहब के नाम पर आपसी वैमनस्यता की बीज ही बोते रहे थे। अब इस महामारी से षिक्षा व सबक ग्रहण करके सरकार के प्रति लोगों की प्राथमिकताऐं एकदम से बदल गई है। कोरोना कर दूसरी लहर की चपेट में आने वाले लोगों की संख्या तेजी से बढ़ी क्योंकि लोगों में कोरोना के दुष्परिणाम के लिए जागरुकता से भी मृतकों की संख्या गत वर्ष की तुलना में बढ़ी है। परन्तु लोग सरकारों के द्वारा उपलब्ध करायी गयी कोरोना की गाइड़ लाईन को ढ़ंग से स्वंय के ऊपर लागू नहीं किया था। लापरवाही इस कदर है कि लोग लाकड़ॅाउन में बिना काम के सड़कों पर इधर उधर घूम रहे है। जुर्माने से बचने के लिए चौराहों पर आकर पुलिस की चेकिंग के समय मास्क लगा रहे है। उसके उपरान्त मास्क को नाक व मूंह से नीचे कर लेते है। प्रषासन लगातार लोगों को जागरुक करने का हर संभव प्रयास कर रहा है। दूसरी लहर की भयावह स्थिति से देष के स्वास्थ्य तंत्र की पोल खुल गई है कि हम इस लहर का अनुमान नहीं लगा पाये, दूसरे हम उससे बचने के लिए पर्याप्त तैयारी नहीं कर पाये तथा तीसरे अब उससे प्रभावी ढ़ंग से निपट नहीं पा रहे है।

कुछ बातें हमारे नियन्त्रण में होती है और कुछ हमारे नियंत्रण में नहीं होती है। परन्तु जो बातें हमारें नियंत्रण में होती है। उनमें अकर्मण्यता एकदम से अक्षम्य होती है। कोरोना से लड़ने की तैयारी हम सभी को मिल कर करनी चाहिए थी बिना किसी राजनीतिक सोच विचार करके। सत्ता व विपक्ष के कार्यकर्ताओं को एकजुट होकर आम जनता की सेवा के लिए सामने आ जाना चाहिए था परन्तु उसमें हमारे संसाधनों से अधिक संकीर्ण राजनीतिक सोच बाधक बन रही है। जैसे कि कोरोना संक्रमण का मुकाबला करने से कोरोनारोधी टीका एक ढाल का काम करता है।

परन्तु कुछ राजनीतिक दलों के बड़े बड़े नेताओं ने टीकाकरण को भी राजनीतिक दल से जोड़ कर देखा और अपने दल के कार्यकर्ताओं को टीका लगवाने के लिए प्रेरित नहीं किया। लोग कोरोना का नीम हकीम से ईलाज करवा कर ठीक न होने पर अन्तिम अवस्था में अस्पताल की ओर भागे जिससे स्थिति खराब हो गई है। तीन अस्थायी उपाय मास्क, दो गज की दूरी, सेनेटाइजर व स्थायी उपाय टीकाकरण व कुछ दवाऐं सब कुछ जरुरी है। टीकाकरण को लेकर न तो भ्रम की स्थिति होनी चाहिए और न ही कोई हिचक होनी चाहिए। टीकाकरण के मूल्यों को लेकर बिना वजह की राजनीति विभिन्न दलों के द्वारा की जा रही है। लोगों का बचाव ही सर्वोपरि होना चाहिए था।

राजनीतिक वर्ग को कोरोना की द्वितीय लहर से मुकाबला मिल कर करना चाहिए। कोरोना से बचाव के लिए केन्द्र व राज्य सरकारों के द्वारा उठाये गये कदमों में एकरुपता लानी चाहिए उन्हें आपस में न लड़ कर कोरोना से लड़ने का एक लक्षीय उपाय करना चाहिए। तंज कसने के बजाय उपाय सुझाने चाहिए। हालांकि ऐसे राजनेता दूसरे राजनेताओं के द्वारा अलग थलग कर दिये गये (हेमंत सोरेन प्रकरण)। कांग्रेस के राहुल गांधी के द्वारा भी दैनिक रुप से तंज कसे जाते रहते है। राहुल गांधी मात्र यह बताने में अपनी ऊर्जा व्यय कर रहे है कि प्रधानमंत्री निष्क्रिय व नाकाम है। राहुल गांधी कोरोना से निपटने के लिए कोई कारगर उपाय नहीं सुझा रहे है। राहुल गांधी कोरोना की समस्या व उससे उत्पन्न अन्य समस्याओं के समाधान में सहभागी न बनने का ही सोच रख रहे हें, वे मात्र ट्वीट व चिठठी युद्ध ही कर रहे है। बेतुकी मांग करने से बिमारी को बढ़ावा ही मिलता है। यदि कोरोना सकंट गहराता है तो उससे सुख नहीं मिलना चाहिए। अब राजनीतिक वर्ग को एकजुट होना भी चाहिए और दिखना भी चाहिए परन्तु वह आरोप प्रत्यारोप में उलझा हुआ है। न्यायालय भी सरकारों व प्रषासन को फटकारने में लगी हुई है। मार्गदर्षक सुझाव वे नहीं दे रहीं है। मौके की नजाकत को समझते हुए अब पूर्व से अधिक एकजुटता की आवष्यकता है। सभी राजनीतिक दल, किसान व मजदूर संगठन, कर्मचारी संगठन इत्यादि एकजुट होकर द्वितीय लहर से लड़े और फिर तृतीय लहर से लड़ने के लिए तैयारियों को पूर्ण करें। ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए कि इस विपदा से भारत एक नयी संस्कृति व परम्परा के साथ आर्थिक उत्थान के साथ उभरेगा।            ु

डॉ. सूर्य प्रकाश अग्रवाल सनातन धर्म महाविद्यालय मुजफ्फरनगर 251001 (उ.प्र.), के वाणिज्य संकाय के संकायाध्यक्ष व ऐसोसियेट प्रोफेसर के पद से व महाविद्यालय के प्राचार्य पद से अवकाष प्राप्त हैं तथा स्वतंत्र लेखक व टिप्पणीकार है।
 

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