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भारत को आत्मनिर्भर बनाने में कृषि का महत्व

 गांधी जी स्वराज प्रेमी थे और हमेशा गांवों को आत्मनिर्भर बनाने पर जोर देते थे, परन्तु इसके लिए प्रत्येक देशवासी को सत्य, सद्भाव, समर्पण आदि ईमानदारी के भाव से अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करना चाहिए, तो निश्चित ही देश उन्नति के मार्ग पर अग्रसर हो सकता है और किसान की आर्थिक स्थिति में सुधार आ सकता है जो वर्तमान परिस्थिति में बहुत आवश्यक है। — डॉ. सूर्य प्रकाश अग्रवाल

 

भारत को स्वतंत्रता की 73 वर्षों में आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त नहीं हो सकी है। उसके आयात निर्यात की तुलना में कहीं अधिक है जिससे उसे अर्थव्यवस्था को चालू रखने के लिए कभी-कभी दूसरे देशों की कठिन शर्तों को भी स्वीकार करना पड़ता है। जबसे केन्द्र में भाजपा के नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनी, तभी से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का सपना रहा है कि वे सभी उपाय किये जायें जिनसे भारत को आगामी कुछ काल में ही अर्थव्यवस्था के प्रत्येक क्षेत्र में आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त हो और उसकी निर्भरता आयात तथा विदेशी सरकारों व सस्ंथानों पर कम हो, जिससे वह किसी भी देश की प्रतिकूल शर्तों को स्वीकार करने से बचे।

भारत की अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर है। अतः कृषि के द्वारा उत्पादित कृषि उपज कच्चे माल के रुप में देश के औद्योगिक वातावरण को भी निर्धारित करती है। देश की बहुत बड़ी आबादी (130 करोड़) में से लगभग 70 करोड़ लोग कृषि पर प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रुप से जुड़े हुए है। अतः खेती व उससे जुड़े किसान की हालत ठीक व अच्छी हो, जिससे वह स्वयं भी उपभोक्ता का दायित्व निभाते हुए कृषि उपज व औद्योगिक उत्पादन को अधिक से अधिक उपभोग करता हुआ बाजार में मांग उत्पन्न करें। मोदी का यह सपना गांधी जी के दर्शन से प्रभावित है। गांधी जी हमेशा किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने की रीति नीति बनाने का दबाब पंडित नेहरु पर भी बनाते रहते थे, तभी प्रथम पंचवर्षीय योजना में कृषि को प्राथमिकता दी गई थी। परन्तु उससे भी किसानों की हालत में लगातार कई दशकों तक सुधार नहीं आया। हालाकि केन्द्र में एक लम्बे समय तक शासन नेहरु तथा उनके वंशजों का ही रहा। संपूर्ण देश में किसान अपनी आर्थिक हालात से तंग आकर आत्महत्या भी करते रहे।

वर्ष 2014 के उपरान्त से मोदी के नेतृत्व में किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए कई योजनाएं धरातल पर आयी तथा उनसे किसानों को लाभ भी हुआ, परन्तु किसान विपक्षी राजनीतिक दलों की राजनीति का शिकार होने से स्वयं को नहीं बचा पा रहा है। विपक्षी दल उसको गरीब, दीनहीन व याचक के रुप में ही सदैव देखते रहना चाहता है, क्यांकि तभी विपक्षी दल किसानों से वोट प्राप्त कर सकेगा, यदि किसान की आर्थिक स्थिति सुधर गई तो उसमें इतनी अक्ल भी आ जायेगी कि कब किसको वोट देना है?

गांधी जी ने राजनीतिक स्वतंत्रता को आर्थिक स्वतंत्रता से जोड़ने का प्रयास नमक कानून को तोड़ कर किया, जबकि नमक कानून से आज के मूल्य के आधार पर मात्र 3000 करोड़ रुपये का ही राजस्व अंग्रेजों को प्राप्त होता था, परन्तु नमक की आवश्यकता जन सामान्य को रहती है। 1915 में भी जब साबरमती आश्रम में खादी का प्रयोग शुरु हुआ तब भी गांधी की मनसा आर्थिक स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता की ही थी। ग्राम स्वराज की पूर्ति के लिए खादी का प्रयोग व नमक कानून की अवहेलना, स्वशासन आत्मनिर्भरता और आर्थिक स्वतंत्रता के ही विचार को पोषित करती थी।

प्रधानमंत्री मोदी ने गांधी जी की शिक्षा का ही अनुपालन करते हुए उनकी सोच गरीबों को सशक्त बनाने एवं उनमें गरिमा की भावना पैदा करने पर ही केन्द्रित होकर रह गयी है। गांधी जी हमेशा स्वच्छता पर जोर देते थे, जिससे प्रेरित होकर मोदी ने भी स्वच्छ भारत अभियान की सफलतापूर्वक प्रतिस्थापना की, जिससे यह जन आंदोलन में परिवर्तित हो गया जिसके परिणामस्वरुप खुले में शौच मुक्त देश की यात्रा शुरु हो गई और भारतीय समाज के लिए यह भी एक क्रान्तिकारी कदम साबित हुआ। गरीबों का उत्थान मात्र आर्थिक स्वतंत्रता तथा आत्मनिर्भरता के स्तंभों पर ही किया जा सकता है। राजनीतिक दलों के द्वारा मात्र नारे लगाकर नहीं, जैसा कि 1970 के दशक में गरीबी हटाओं नारे को अपनाकर भी गरीबी ज्यों की त्यों बनी रही।

मोदी ने किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए 2020 में तीन कृषि कानूनों के माध्यम से कृषि क्षेत्र में संशोधन के साथ नवीनीकरण किया। आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून 2020 इस उद्देश्य से बनाया गया कि किसानों को उसके कृषि उत्पाद का पहले से अधिक पारिश्रमिक मूल्य मिले। यह कानून राज्य मशीनरी के निरीक्षक राज को कम करता है, जो किसानों और व्यापारियों को जमाखोरी तथा कालाबाजारी को रोकने की कोशिश करता है।

किसान (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन समझौता एवं कृषि सेवा अधिनियम 2020 किसानों को अपने भविष्य के कृषि उत्पाद की बिक्री के लिए कृषि व्यवसाय फर्मों, प्रोसेन्सर, थोक व्यापारी, निर्यातक या बड़े खुदरा विक्रेताओं के साथ पारस्परिक रुप से सहमत पारिश्रमिक मूल्य पर बेचने की सुरक्षा और अधिकार प्रदान करता है। कांट्रेक्ट फार्मिंग का विचार वास्तव में एक क्रान्तिकारी विचार है जो किसानों को मांग के अनुसार अपनी फसल विकसित करने की अनुमति देता है। जिससे वह उचित और पारदर्शा तरीके से पैदा होने पाली फसलों की बेहतर कीमत का आकलन कर सकें।

कृषक उत्पाद व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) कानून 2020 का उद्देश्य एक ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र बनाना है जहां किसानों के पास किसी भी ट्रेडिंग चैनल के माध्यम से अपनी उपज लाभकारी मूल्य पर बेचने का विकल्प हो। किसानों को अंतर्राज्यीय व अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में शामिल किया जा सकता है। सरकार द्वारा अधिसूचित बाजार परिसर से बाहर व्यापार करने पर किसी भी किसान या व्यापारी पर कोई बाजार शुल्क या उपकर नहीं लगाया जा सकेगा। यह कृषक उत्थान का एक महत्वपूर्ण पहलू है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत की अपनी परिकल्पना को धरातल पर उतारने के लिए एक व्यवस्थित तरीके से प्रयास किया है। इसका एक मात्र लक्ष्य किसान की समृद्धि है। बुआई के समय कीमतों को अधिक अनुमानित बनाकर और उनकी उपज की खरीद को सुरक्षित कर किसानों के दीर्घकालीन भविष्य को सुरक्षित करने की आवश्यकता पर बल दिया गया है। किसानों के कल्याण और आवश्यकता व आवश्यक वस्तुओं से संबंधित कानून को लेकर बनाए गये उपर्युक्त ये तीनों कानून किसानों को आर्थिक स्वतंत्रता और विकल्प प्रदान करने की दिशा में एक तार्किक कदम है।

यदि हम वास्तव में गांधी जी की शिक्षा को फैलाना व आत्मसात करना चाहते है तो राजनीतिक दलों के दोहरे चरित्र से बाहर निकलकर राजनेताओं को आत्मचिंतन करना होगा। अतः आत्मचेतना जागृत करके ही सत्य, अहिंसा व स्वच्छता और स्वावलंबन का पाठ पढ़ाया जा सकता है। गांधी जी स्वराज प्रेमी थे और हमेशा गांवों को आत्मनिर्भर बनाने पर जोर देते थे, परन्तु इसके लिए प्रत्येक देशवासी को सत्य, सद्भाव, समर्पण आदि ईमानदारी के भाव से अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करना चाहिए, तो निश्चित ही देश उन्नति के मार्ग पर अग्रसर हो सकता है और किसान की आर्थिक स्थिति में सुधार आ सकता है जो वर्तमान परिस्थिति में बहुत आवश्यक है।        ु

डॉ. सूर्य प्रकाश अग्रवाल सनातन धर्म महाविद्यालय मुजफ्फरनगर 251001 (उ.प्र.), के वाणिज्य संकाय के संकायाध्यक्ष व ऐसोसिएट प्रोफेसर के पद से व महाविद्यालय के प्राचार्य पद से अवकाश प्राप्त हैं तथा स्वतंत्र लेखक व टिप्पणीकार है।

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