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स्वतंत्र भारत में बढ़ी स्वदेशी की अहमियत

भारत ही एक ऐसा देश है जो दुनिया को सही रास्ते पर ला सकता है, बशर्तें वह अपना स्वदेशी और स्वावलंबन का विचार अपनाए। — अनिल जवलेकर

 

15 अगस्त को हम सबने हमारा 75वां स्वतंत्रता दिवस मनाया। स्वतंत्रता का आनंद तो सही मायने में गुलाम रहने के बाद स्वतंत्र होने से ही समझ में आ सकता है और गुलामी जीये हुए भारतीय अब बहुत कम बचे होंगे। हाँ, हमारे पड़ोस अफ़गानिस्तान में जो हो रहा है उसे जानकर इस बात का एहसास हो सकता है कि राज्य और शासन व्यवस्था जब ध्वस्त हो जाती है तो सामान्य लोगों का क्या हाल होता है। हम भारतीय खुशकिस्मत है कि हम पर ऐसी नौबत नहीं आयी है। वैसे हमारा देश भी बटवारे के वक्त ऐसे समय से गुजरा है और वह सारा नजारा भी देश ने देखा है। अफगानिस्तान में जो कुछ हो रहा है या होने जा रहा है उससे यह बात स्पष्ट होती है कि किसी भी बात के लिए बाहरी देश या ताकतों के भरोसे नहीं रहा जा सकता। अपना देश अपनी संसाधनों से मजबूत और स्वावलंबी होगा तभी हम सुरक्षित महसूस कर पाएंगे। 

देश की प्रगति गौरवशाली रही है 

स्वतंत्रता के बाद भारत की आज तक की प्रगति हर दृष्टि से गौरवशाली रही है और इस पर हर भारतवासियों को गर्व होना चाहिए। भारत हजार से ज्यादा वर्ष गुलाम रहा। अंग्रेजों ने तो इससे पूरा लूटा था और जाते वक्त कंगाल करके ही गए थे। सामान्य भारतीय खाने को मोहताज था। आज भारत ने अपनी अनाज की समस्या हल कर दी है और आज देश में भूख से कोई नहीं मरता। आज भारत किसी भी तरह से दुनिया के प्रगतिशील कहे जाने वाले देशों से पीछे नहीं है चाहे वो आर्थिक विकास की बात हो या फिर चाँद-मंगल पर यान भेजने की बात हो। कोरोना के संकटकाल में अपना वैक्सीन बनाकर भारत ने यह भी सिद्ध कर दिया है कि भारत अब अपनी हर समस्या अपने बलबूते पर हल कर सकता  है। 

भारत में हर कोई सुरक्षित है 

भारत ही एक ऐसा देश है जहाँ हर धर्म या पंथ का अनुयाई अपना जीवन अपनी श्रद्धा और विश्वास से निःसंकोच जी सकता है और समाज में सम्मान और स्वतंत्रता पा सकता है। कानून और न्याय की दृष्टि से सभी नागरिक बराबर है। भारत की न्याय व्यवस्था दुनिया भर में एक मिसाल के तौर पर देखी जा सकती है। गुनहगार छोड़कर किसी भारतीय नागरिक को किसी और देश में शरणार्थी बनकर शरण लेने की अब तक जरूरत नहीं पड़ी है यह बात ठीक से समझने की जरूरत है। कुछ लोक प्रसिद्धि के लालच में या विशिष्ट विचारधारा द्वारा भ्रमित होने के कारण भारत में अशांति होने की बात जरूर करते है लेकिन उन्होंने भी कभी भारत छोड़ किसी और देश में शरण नहीं मांगी है। 

देश फिर भी खतरों से घिरा हुआ है-

1.    बाहरी आतंकियोंसे खतराः भारत को सबसे बड़ा खतरा बाहरी आतंकियों से है जो पड़ोसी देश में पनाह लेते है या यूं कहिए कि पड़ौसी मुल्क हमारे यहाँ शांति नहीं चाहते और यहाँ आतंक फैलाने की कोशिश में लगे रहते है। वैसे भी मानव जाति को आजकल आतंकवाद ने घेरा हुआ है। यह आतंकवादी हिंसा में विश्वास रखते है और भय के बल पर अपनी रोटी सेंकना चाहते है। दुनिया का इतिहास रहा है कि ऐसे आतंकवादियों ने धर्म का आधार लिया है और धर्म के नाम पर लूटमार की है और लोगों को गुलाम किया है। भारतीय इतिहास ऐसे किस्सों से भरा हुआ है। मुहम्मद बिन कासिम से लेकर औरंगजेब तक धर्म के नाम पर यहाँ हिंसा हुई है। आज भी धर्म के नाम पर हिंसा फैलाने की कोशिश हो रही है। 

2. लोकतंत्र कमजोर होने का खतराः भारतीय लोकतंत्र मजबूत हुआ है फिर भी इसमें कुछ कमियाँ रह गई है जो खतरे के रूप में सामने आ सकती है। भारतीय लोकतंत्र में निर्वाचन प्रक्रिया एक बड़ी कमजोरी रही है जिससे कोई भी चुना जा सकता है यहाँ तक कि आतंकवादी भी यहाँ चुनाव लड़ सकता है और चुना जा सकता है या मंत्री भी बन सकता है। हमारी न्याय प्रक्रिया बहुत धीमी है और उसका फायदा गुनहगार प्रकृति के लोग उठाते है। कई गुनहगार चुनने और मंत्री बनने की बाते आये दिन होती रहती है जो कि एक खतरे की घंटी है। हमारे लोकतंत्र की यह सबसे बड़ी कमजोरी साबित हो रही है और यह एक चिंता का विषय है। 

3. सैन्य शक्ति कमजोर पड़ने का खतराः यह बात सही है कि भारत सैन्य दृष्टि से ताकतवर देश रहा है और न्यूक्लियर शक्ति से लेस है। लेकिन हम यह नहीं भूल सकते कि हर देश अपनी सैन्य शक्ति बढ़ा रहा है और नए-नए हथियार और नई तकनीकी से अपनी ताकत बढ़ा रहा है। भारत इस दृष्टि से समर्थ है ऐसा नहीं कह सकते। भारत को हर समय अपनी ताकत बढ़ाने में आगे रहना होगा और नई तकनीकी और नए हथियार जमा करने होंगे। इसके साथ ही यह देखने में आया है कि हमारे नेता राष्ट्र का नेतृत्व करते समय इच्छाशक्ति का प्रदर्शन करना ठीक नहीं समझते, जिसकी वजह से भारत को कमजोर समझा जाता है। जहाँ जरूरत हो वहाँ प्रदर्शन और बल का प्रयोग जरूरी है। 

4. व्यापार-उद्योग में गुलामी का खतराः दुनिया बदल रही है लेकिन उसके चाल-चलन में कोई बदलाव नहीं आया है। विस्तारवाद और धर्म के नाम पर मानव जाति को अपने कब्जे में करने की बात अब भी हो रही है। जो ब्रिटिशों ने किया वही अब चाईना जैसे और देश भी करने की कोशिश में है। पहले व्यापार और बाद में पूरे देश को वश में करना उनकी नीति है। चाईना भारतीय उद्यागों में निवेश कर रहा है जैसे कि इलैक्ट्रोनिक, वेंचर कैपिटल, पावर, वित्तीय, टेलीकॉम आदि क्षेत्र। एक बार व्यापार और उद्योग पर नियंत्रण कर लिया तो भारत को राजनीतिक तौर पर असहाय करना बड़ा मुश्किल काम नहीं है। भारत को इस चाल को समझना चाहिए और व्यापार और उद्योग में स्वदेशी और स्वावलंबन की नीति अपनानी चाहिए। 

5. उपभोग संस्कृति का खतराः उपभोग संस्कृति देश की व्यवस्था पर बोझ बन रही है। यह बात सही है कि ब्रिटिशों ने भारतीय मानस अपने उपभोक्तावादी विचारानुकूल किया और भारत की सभ्यता को कमजोर किया जिसकी वजह से भारत का विश्व शांति का विचार और पर्यावरणाकुल आचार पीछे पड़ गया। पाश्चात्य विचार के उपभोक्तावादी विचार और आचार ने संपूर्ण मानव जाति का अस्तित्व खतरे में डाला है। भारत की व्यवस्था भी उपभोक्ता की ओर आगे बढ़ रही है। इसलिए यह जरूरी हो गया है कि भारत अपने विचारों पर भरोसा रखें और अपनी शासन व्यवस्था और विकास की संरचना अपने स्वदेशी विचार से करें। 

दुनिया भर में तकनीकी बदल रही है लेकिन विचार और आचार की प्रेरणा अब भी वही पुरानी ताकतवर के जीने की रही है, इसलिए दुनिया में अब भी हिंसा और आतंकवाद बढ़ रहा है। उसी वजह से स्वतंत्रता और स्वदेशी की अहमियत भी बढ़ रही है। भारत ही एक ऐसा देश है जो दुनिया को सही रास्ते पर ला सकता है, बशर्तें वह अपना स्वदेशी और स्वावलंबन का विचार अपनाए।

 

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