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आयात-कर में वृद्धि से खुलेगा स्वदेशी उद्योगों का रास्ता

आयात करों में वृद्धि होने से देश में अपना उत्पादन बढ़ेगा, लोगों को रोजगार मिलेगा और खपत एवं उत्पादन का सुचक्र पुनः स्थापित हो जाएगा। देशवासियों की निष्ठा स्वदेशी उत्पादों की खपत में बढ़ेगी साथ ही सरकार की साख भी बढ़ेगी। — डॉ. भरत झुनझुनवाला

 

देश की अर्थव्यवस्था लगातार मंद पड़ती जा रही है। जून में तमाम संस्थाओं का आकलन था कि इस वर्ष देश की आय यानी जीडीपी में 5 प्रतिशत की गिरावट आएगी जो वर्तमान आकलन के अनुसार 10 प्रतिशत की गिरावट में तब्दील हो गई है। मेरा अनुमान है कि आने वाले समय में गिरावट की दर में और वृद्धि होगी क्योंकि करोना का संकट शीघ्र ही दूर होता नहीं दिख रहा है। इस पृष्ठभूमि में सरकार में उत्साह है कि ट्रैक्टर और निजी कारों की बिक्री में इजाफा हो रहा है। विशेषकर ट्रैक्टर की खरीद में पिछले वर्ष की तुलना में गत माह 75 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। कार एवं मोटर साइकिल की बिक्री में लगभग 15 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। प्रश्न है कि जब देश की अर्थव्यवस्था में गिरावट आ रही है तो ट्रैक्टर, कार और मोटर साइकिल की खरीद क्योंकर बढ़ रही है? मेरा आकलन है कि प्रवासी मजदूरों की कमी होने के कारण देश के तमाम किसानों ने मजबूरी में ट्रैक्टर खरीदे हैं। इसी प्रकार सार्वजनिक यातायात जैसे बस और मेट्रो आदि की आवाजाही बंद होने के कारण लोगों ने कार और मोटर साइकिल खरीदी है। यह खरीद खुशहाली में नहीं की गई है। व्यवसाई और किसान के सामने इनकी खरीद के आलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं था। ये खरीद बीमारी के समय खरीदे गए मसाज करने की मशीन की तरह है। विकट परिस्थिति में की गई खरीद को विकास का जामा नहीं  पहनाना चाहिए।

इस परिस्थति में सरकार ने बैंकों को आदेश दिया है कि वे निवेशकों और उपभोक्ताओं को भारी मात्रा में ऋण दें। निवेशक द्वारा लिए गये ऋण और उपभोक्ता के द्वारा लिए गये ऋण के चरित्र में मौलिक अंतर होता है। निवेशक ऋण लेकर उसका निवेश करता है जैसे वह कारखाना लगाता है अथवा दुकान खोलता है। इन निवेश से निवेशक समेत देश को अतिरिक्त आय होती है जो पूर्व में नही हो रही थी। जैसे किसी निवेशक ने बिजली के स्विच बनाने का कारखाना लगाया तो उस स्विच के उत्पादन में निवेशक और देश दोनों को ही अतिरिक्त आय होगी। उस आय से निवेशक ऋण और ब्याज दोनों की आदायगी कर लेता है। इस प्रकार का ऋण लाभप्रद होता है। लेकिन खपत के ऋण का चरित्र बिलकुल अलग होता है। खपत के लिए यदि आज आप ऋण लेते हैं तो उस ऋण पर दिए गये ब्याज से अंततः आपकी खपत कम होती है। जैसे मान लीजिये आपके पास आज 100 रूपये की आय है और इसमें तत्काल वृद्धि के लिए आपने बैंक से 100 रूपये का ऋण लिया। इस 100 रूपये के ऋण पर आप आने वाले वर्ष में 15 रूपये का ब्याज अदा करेंगे और 15 रूपए मूल ऋण की अदायगी करेंगे। इस प्रकार आने वाले वर्ष में आपके पास खर्च के लिए 100 के स्थान पर केवल 70 रूपये रह जायेंगे। यानि वर्तमान में आपकी खपत 100 रूपये से बढ़कर 200 रूपये अवश्य हो जायेगी लेकिन आने वाले लम्बे समय में वह 100 से घटकर 70 रूपए हो जायेगी। ये ऋण अनुत्पादक होने के कारण नयी आय पैदा नही करते हैं और अंत में उपभोक्ता पर बोझ बन जाते हैं। वर्तमान समय में जब आम आदमी की आय पहले ही दबाव में है उसे ऋण लेकर अपने उपर ब्याज का अतिरिक्त बोझ नहीं लेना चाहिए। उपभोक्ता को ऋण देकर बाजार में मांग बढ़ाना समस्या का उपाय नहीं है।

बाजार में मांग बढ़ाने का दूसरा उपाय है कि सरकार द्वारा कुछ रकम लोगों के खाते में सीधे ट्रांसफर कर दी जाए। सरकार ऋण लेकर यह रकम ट्रान्सफर कर सकती है। लेकिन लिए गए ऋण कि रकम की भरपाई सरकार को अगले वर्ष टैक्स लगाकर उसी जनता से करनी पड़ेगी। इस प्रकार के ट्रांसफर से केवल तत्काल लाभ होगा जबकी आने वाले समय में नुक्सान होगा बिलकुल वैसे ही जैसे ऋण लेने से होता है। दूसरा उपाय है कि सरकार नोट छापे। लेकिन यह भी एक प्रकार का अप्रत्यक्ष टैक्स होता है क्योंकि नोट छपने से महंगाई बढती है और पुनः आम आदमी कि क्रय शक्ति में गिरावट आती है। अतः सरकार यदि टैक्स लगाकर अथवा नोट छापकर रकम ट्रान्सफर करती है तो इससे अल्पकाल में लाभ हो सकता है लेकिन आने वाले समय में इसका नुकसान होगा।

जनता के खाते में सीधे रकम ट्रांसफर करने के लिए आय अर्जित करने का तीसरा उपाय है कि सरकार आयात कर में वृद्धि करे। बीते 6 वर्षों में सरकार के राजस्व में आयात कर के हिस्से में भारी गिरावट आई है। पूर्व में सरकार के कुल राजस्व में 18 प्रतिशत आयात कर का होता था आज यह घटकर 12 प्रतिशत रह  गया है। अर्थ हुआ कि सरकार ने आयात करों में कटौती करके आयातों को प्रोत्साहन दिया है और राजस्व में हानी बर्दाश्त की है। 

बताते चलें कि विश्व व्यापार संगठन में हमने आश्वाशन दे रखा है कि कि हम औसत 48 प्रतिशत से अधिक आयात कर नहीं लगायेंगे। लेकिन वर्तमान में हमारे आयात कर 20 प्रतिशत के औसत से भी कम है। आयात कर को बढ़ाने में विश्व व्यापार संगठन आड़े नहीं आता है। इसलिए सरकार के पास विकल्प है कि बीते 6 वर्षों से लागू की जा रही हानिप्रद नीति का त्याग करे और आयात करों में भारी वृद्धि करे। वर्तमान में जो औसत आयात कर 20 प्रतिशत है उसको तत्काल दो गुना करके 40 प्रतिशत कर दे। ऐसा करना विश्व व्यापार संगठन के अंतर्गत संभव है। वर्तमान में सरकार को आयात कर से 170 लाख करोड़ रूपये प्रति वर्ष का राजस्व मिल रहा है। 

आयात कर दो गुना कर देने से आयात की मात्रा में कुछ कमी आएगी फिर भी मेरा अनुमान है कि सरकार को 150 करोड़ की अतरिक्त आय हो सकती है। इस रकम से देश के 135 करोड़ नागरिकों को प्रत्येक के खाते में 1100 रूपये अथवा प्रत्येक परिवार के खाते में 5500 रूपये प्रति वर्ष की रकम ट्रांसफर की जा सकती है। इस रकम से देश की जनता बाजार में माल खरीद सकती है। बाजार में मांग उत्पन्न हो जायेगी। इसके साथ ही आयात करों में वृद्धि होने से देश में अपना उत्पादन बढ़ेगा, लोगों को रोजगार मिलेगा और खपत एवं उत्पादन का सुचक्र पुनः स्थापित हो जाएगा। देशवासियों की निष्ठा स्वदेशी उत्पादों की खपत में बढ़ेगी साथ ही सरकार की साख भी बढ़ेगी। मेरे आकलन में देश को मंदी से उबारने के लिए सरकार के पास आयात कर की दरों में वृद्धि के आलावा दूसरा विकल्प नहीं है।  

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