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स्वतंत्र भारत और गाय दुर्दशा

गाय, गंगा और गायत्री भारतीय संस्कृति एवं सनातन धर्म के मूलाधार हैं, किंतु स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात इन तीनों की ही स्थिति अत्यंत दयनीय है। — डॉ. दिनेश प्रसाद मिश्रा

 

भारतीय सनातन संस्कृति का मूलाधार गाय हैं। शास्त्र दृष्टि में गाय पशु नहीं है। शास्त्र में लिखा है -“तिलं न धान्यं पशवो न गावः“ अर्थात तिल, अन्न तथा गाय पशु नहीं है,। गाय के रोम-रोम में देवताओं का वास है तथा वह मानव की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करने वाली है। इसीलिए कहा गया है कि “सर्वदेवमये देवि सर्वदेवैरलंकृते। मातर्ममाभिलषितं सफलं कुरु नंदिनि।“ किंतु आतताइयों एवं विधर्मियों के प्रभाव एवं बाहुल्य से अहर्निश उनकी हत्या की जा रही है। जिसके दृष्टिगत इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गौ-हत्या के आरोपी अभियुक्त की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए महत्वपूर्ण आदेश में गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने का आदेश पारित करते हुए गाय के जीवन के अधिकार को स्वीकार कर अभियुक्त की जमानत याचिका निरस्त कर दी। न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव ने निर्णय पारित करते हुए कहा कि जब संस्कृति और विश्वास को ठेस पहुंचती है तो देश कमजोर हो जाता है। गौ मांस खाने वाले का यह सिर्फ विशेषाधिकार है, जबकि जो लोग गाय की पूजा करते हैं और आर्थिक रूप से गायों पर निर्भर हैं, उनके लिए सार्थक जीवन जीने का मौलिक अधिकार भी है। गोरक्षा सिर्फ एक धर्म की जिम्मेदारी नहीं है, अपितु गाय देश की संस्कृति है, इसकी सुरक्षा हर किसी की जिम्मेदारी है। हमारे सामने ऐसे कई उदाहरण हैं जब हम अपनी संस्कृति को भूले हैं तो विदेशियों ने हम पर आक्रमण कर हमें गुलाम बनाया है तथा हमारी संस्कृति को विनष्ट करने की कोशिश की है। यदि हम आज भी नहीं चेते तो हमें अफगानिस्तान पर निरंकुश तालिबान के आक्रमण और कब्जे को नहीं भूलना चाहिए। हमें अपनी संस्कृति बचानी ही होगी। माननीय उच्च न्यायालय ने गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने का सुझाव देते हुए कहा कि “जब गाय का कल्याण होगा तभी देश का कल्याण होगा, सरकार को संसद में बिल लाकर गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करना चाहिए और गौ-हत्या के विरुद्ध केवल कड़ा कानून ही नहीं बनाना होगा, अपितु उसका सख्ती से पालन भी कराना होगा।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने वैदिक पौराणिक सांस्कृतिक महत्व व सामाजिक उपयोगिता को देखते हुए गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने का सुझाव दिया है। भारत में लोग गाय को माता मानते हैं। यह हिंदुओं की आस्था का विषय है, आस्था पर चोट से देश कमजोर होता है। गौ-मांस भक्षण किसी का मूल अधिकार नहीं है, जीभ के स्वाद के लिए जीवन का अधिकार नहीं छीना जा सकता। दूध देना बंद कर चुकी, बीमार गाय भी कृषि के लिए उपयोगी है, इसकी हत्या की इजाजत नहीं दी जा सकती। गाय भारतीय कृषि की रीढ़ है, विश्व में भारत ही एकमात्र देश है जहां सभी संप्रदायों के लोग रहते हैं, सभी एक दूसरे के धर्म का आदर करते हैं। भारतीय संस्कृति में गाय के प्रति लोगों की आस्था तथा उसके महत्व को देखते हुए मुस्लिम शासकों बाबर, हुमायूं, अकबर ने गाय की बलि पर रोक लगाई थी। मैसूर के नवाब हैदर अली ने गौ-हत्या को दंडनीय अपराध घोषित किया था।  महाराजा रणजीत सिंह ने तो गौ-हत्या के लिए मृत्युदंड का विधान किया था। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 48 में भी कहां गया है कि गाय की नस्ल को संरक्षित किया जाएगा और दुधारू जानवरों सहित गौ-हत्या पर रोक लगाई जाएगी। आज भारत के 30 में से 24 राज्यों में गौ-हत्या पर प्रतिबंध है।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय का यह निर्णय गाय के संरक्षण की दिशा में पहला निर्णय नहीं है, इसके पूर्व में राजस्थान उच्च न्यायालय, गुजरात उच्च न्यायालय एवं उच्चतम न्यायालय द्वारा गौ संरक्षण हेतु गौ हत्या के विरुद्ध निर्णय पारित किए गए हैं, किंतु सरकारों की मानसिकता तथा वोटों की राजनीति के कारण पारित आदेशों को कानूनों का अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका। वर्ष 2017 में राजस्थान उच्च न्यायालय ने हिंगोनिया गौशाला के केस में गौ हत्या पर आजीवन कारावास दिए जाने तथा गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने का आदेश पारित किया था किंतु इस दिशा में अभी तक कोई ठोस कार्यवाही संबंधित सरकारों द्वारा संपादित नहीं की जा सकी और उच्च न्यायालय का आदेश ठंडे बस्ते में बंद है। इतना ही नहीं गुजरात सरकार द्वारा बाम्बे  एनिमल प्रिजर्वेशन एक्ट 1994 की धारा 2 के अंतर्गत गौ हत्या पर प्रतिबंध लगाए जाने पर गुजरात के मिर्जापुर मोती कुरैशी कसाव जमात व अन्य  द्वारा गुजरात उच्च न्यायालय में गौ मांस के विक्रय से आजीविका चलाने के कार्य को अपना मौलिक अधिकार बताते हुए गौ हत्या पर प्रतिबंध को चुनौती दिए जाने पर उच्च न्यायालय द्वारा उसे अस्वीकार कर दिया गया था, जिस पर माननीय उच्चतम न्यायालय में गुजरात राज्य व श्री अहिंसा आर्मी मानव कल्याण जीव चैरिटेबल ट्रस्ट तथा अखिल भारत कृषि गोशाला संघ बनाम मिर्जापुर मोती कुरेशी कसाव जमात व अन्य के बाद में मुख्य न्यायाधीश श्री आर.एस. लोहाटी की अध्यक्षता में गठित 7 न्यायाधीशों की बेंच ने यह निर्णय पारित किया कि गाय भारतीय संस्कृति की आधार तथा यहां के लोगों की आस्था का विषय है, जो आर्थिक एवं वैज्ञानिक दृष्टि से मानवता के लिए अत्यंत उपादेय है, प्रश्न यह है कि गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित कर देने पर गाय की स्थिति में क्या सुधार आएगा। आज बाघ राष्ट्रीय पशु घोषित है, क्या एक से अधिक राष्ट्रीय पशु घोषित किए जा सकते हैं या बाघ के स्थान पर गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित किया जा सकता है? राष्ट्रीय पशु घोषित किए जाने से गाय को राजकीय संरक्षण प्राप्त हो जाएगा तथा उसकी हत्या दंडनीय अपराध बन जाएगी, जिसके चलते गौ हत्यारों से उसे पर्याप्त निजात मिल सकेगी तथा उसका संरक्षण और संवर्धन बाघों की भांति होने लगेगा। जहां तक बाघ के राष्ट्रीय पशु बने रहने पर गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित किए जाने का प्रश्न है, पूर्व में बाघ के स्थान पर शेर राष्ट्रीय पशु था किंतु बाघों की संख्या में निरंतर आ रही कमी को देखते हुए उन्हें संरक्षण देने तथा उनके समर्थन हेतु शेर के स्थान पर बाघ को राष्ट्रीय पशु घोषित किया गया था। अब तात्कालिक आवश्यकता को दृष्टिगत रखते हुए बाघ के स्थान पर गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने में किसी प्रकार की कोई विसंगति नहीं है, क्योंकि बाघ के संरक्षण में तो मात्र एक जंगली जीव की नस्ल को ही संरक्षित करना था जबकि गाय के संरक्षण एवं संवर्धन में भारतीय सनातन संस्कृति एवं मानवता का भी संरक्षण एवं संवर्धन सहज रूप में हो जाएगा।

गाय, गंगा और गायत्री भारतीय संस्कृति एवं सनातन धर्म के मूलाधार हैं, किंतु स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात इन तीनों की ही स्थिति अत्यंत दयनीय है। धर्मनिरपेक्षता का लबादा ओढ़कर देश और उसके नागरिक दिन प्रतिदिन उस से विमुख होते जा रहे हैं, अधिकांश सनातनधर्मी भी इन्हें कोई महत्व नहीं दे रहे हैं। भौतिकता ने उन्हें गाय से विमुख कर दिया है। सिंचाई व्यवस्था ने गंगा को लगभग निगल लिया है और वह आज मृत प्राय हो गई है । धर्मनिरपेक्षता एवं भौतिकवाद की दौड़ ने गायत्री आराधना से भी लोगों को दूर कर दिया है। कृषि क्षेत्र में बैलों के स्थान पर ट्रैक्टर आदि मशीनरी का उपयोग बढ़ जाने से गाय को पालने से भी लोग दूर भाग रहे हैं। गाय, गंगा और गायत्री तीनों में से गाय की स्थिति सबसे बुरी है। दुधारू गाय को तो लोग घर पर बांध लेते हैं, दूध देना बंद करते ही उसे घर से बाहर निकाल देते हैं। परिणामस्वरूप आवारा पशु के रूप में गोवंशीय जानवर भोजन एवं आश्रय की तलाश में इधर-उधर भटकते हुए सर्वत्र दिखाई पड़ते हैं। उत्तर भारत की सड़कें गौवंशीय पशुओं से रात्रि में आच्छादित हो जाती हैं जो अनेकानेक दुर्घटनाओं को जन्म देने के साथ ही साथ इन निरीह पशुओं की जीवन लीला को समाप्त करने का कार्य भी करती है। कुछ सामाजिक संस्थायें तथा व्यक्ति सरकारों से प्राप्त धन तथा समाज से प्राप्त चंदे आदि के बलबूते पर गायों के संरक्षण एवं संवर्धन का कार्य करते हैं किंतु व्यवहार में यह कार्य प्रायः दिखावा मात्र होकर उनके आर्थिक उन्नयन का कार्य बनकर रह जाता है, गौशालाओं में रहने वाली गायें भोजन, पानी के अभाव में भुखमरी और बीमारी का शिकार होकर समाप्त हो जाती हैं, आवश्यकता है कि इस तरह की मृत्यु को भी गौ हत्या के रूप में मान्यता दी जाए और गायों को मौत के आगोश में ढकेलने वाले लोगों को भी गौ हत्यारा मानकर उनके विरुद्ध कठोर दंडात्मक कार्यवाही की जाए।

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