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एक नए भगीरथ की प्रतीक्षा में नदियां

यदि नदियां संरक्षित है तो हम सुरक्षित हैं। मानव सभ्यता एवं संस्कृति भी सुरक्षित है, अन्यथा स्थिति में इनके समाप्त होने पर मानव सभ्यता के समक्ष अस्तित्व का संकट उत्पन्न हो जाएगा। — डॉ. दिनेश प्रसाद मिश्र

नदियां मानव सभ्यता की जीवनधारा है, जो मानव जीवन के साथ साथ समस्त जीव-जंतुओं एवं पेड़ पौधों सहित समस्त सभ्यता को जीवन का आधार प्रदान करते हुए उन्हें गति प्रदान करती हैं। जल ही जीवन है तथा जल का अजस्र स्रोत है नदिया, किंतु आज नदियां अपने अस्तित्व के संकट से गुजर रही हैं। कुछ समय पूर्व वर्षा ऋतु के आगमन पर नदियों में विद्यमान जल की अगाध राषि जहां एक ओर  विकराल रूप धारण कर जनजीवन को अस्त-व्यस्त करती हुई विश्व के अनेक देषों में बाढ़ के प्रकोप से वहां की पूरी व्यवस्था को चरमरा दिया था, वहीं दूसरी ओर वर्षा ऋतु के समाप्त होते ही सभी नदियों का जल लगातार घट रहा है। लगभग जलहीन होती जा रही नदियां अपने उद्धार हेतु निरंतर किसी भगीरथ की प्रतीक्षा कर रही है। किंतु शासन व्यवस्था या जनमानस के मध्य में से कोई भी निकल कर उनकी सुध लेने वाला नहीं है। यहां यह प्रष्न उठता है कि जल की अगाध राषि से पूरित पृथ्वी की इन जीवन दायिनी नदियों की स्थिति ऐसी क्यों है? प्राकृतिक रूप से पर्याप्त जल प्राप्त होने के बाद भी इनमें जल का अभाव क्यों होता जा रहा है?

आज नदियां देष एवं समाज के अनियंत्रित विकास का षिकार हो गई है, जिसके कारण जहां एक ओर उनका पानी अनियंत्रित तथा असीमित मात्रा में कृषि भूमि की सिंचाई तथा औद्योगिक विकास के नाम पर निकाल लिया जाता है, वहीं दूसरी ओर उनका प्रवाह पथ विकास के नाम पर अतिक्रमण कर बाधित कर दिया जाता है। साथ ही नदियों के भरण क्षेत्र में निरंतर उग रहे कंकरीट के जंगलों के कारण वृक्षों के असीमित कटान से भूगर्भ में जल संवर्धन के अभाव तथा नदी जल स्रोतों के बंद हो जाने के साथ ही उनमें औद्योगिक कचरे के साथ-साथ शहरों में मल मूत्र से प्रदूषित हो जाने से नदियां अपने मूल स्वरूप का परित्याग कर नाले के रूप में परिवर्तित होकर बहने के लिए बाध्य हो गई है। 

उत्तर प्रदेष की गंगा यमुना गोमती घाघरा केन राप्ती सहित अनेकानेक नदियों में पानी घटकर नाम मात्र का बचा है। यह स्थिति किसी नदी विषेष की न होकर कमोबेष समस्त नदियों की है। यहां तक मां गंगा की भी स्थिति अछूती नहीं है, वस्तुतः मां गंगा विश्व की प्रदूषित प्रमुख प्रदूषित नदियों में से एक है जिससे प्रदूषण मुक्त करने के लिए लंबे समय से प्रयास किया जा रहा है किंतु अभी तक सफलता प्राप्त नहीं हुई है। विश्व की जिन पांच नदियों के समक्ष अस्तित्व का गंभीर संकट उत्पन्न हुआ है तथा जिनका अस्तित्व खतरे में है उनमें गंगा नदी सर्व प्रमुख है। वस्तुत इन नदियों को प्रदूषित करने का पूरा उत्तरदायित्व हम सबका और हमारे अनियंत्रित विकास का है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपने अध्ययन में कहा है कि देष भर के 900 से अधिक शहरों और कस्बों का 70 फ़ीसदी गंदा पानी जल के प्रमुख स्त्रोत नदियों में बिना शोधन के ही छोड़ दिया जाता है। 

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की यमुना उसकी समीपवर्ती काली तथा हिंडन नदी इसके उदाहरण हैं। इसी प्रकार ग्वालियर की स्वर्णरेखा नदी और मुरार नदी जो कभी ग्वालियर की जीवन रेखा हुआ करती थी, आज मल मूत्र विसर्जन का अड्डा बन जाने तथा उन्हें ढोने से नाले के रूप में परिवर्तित हो गई हैं। यही स्वरूप इंदौर की खान नदी का भी है। गंगा, यमुना, गोमती, नर्मदाराप्ती, गोदावरी कृष्णा कावेरी तापी महानदी ब्रह्मपुत्र झेलम सतलुज चुनाव रवि व्यास पार्वती हरदा कोसी वरुणा मसीहा गंडगोला बेतवा डेक्कन डागरा रमजान दामोदर सुवर्णरेखा ढौंक सरयू, रामगंगा सरसिया गोला पुनपुन बूढ़ी गंडक गंडक सोन भागीरथी नदिया हो या इनकी सहायक नदियां सभी अतिक्रमण एवं प्रदूषण से जूझ रही हैं उनकी स्थिति अत्यंत गंभीर है। 

ज्ञात हो कि नदी का पानी पीने के लिए शहरों में भेजा जाता है और शहरों से सीवेज और औद्योगिक प्रदूषित पानी वापस नदी में पहुंच जाता है। केंद्रीय नियंत्रण बोर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार गंगा नदी के 70 निरीक्षण केंद्रों पर उसके जल के परीक्षण में मात्र 5 केंद्रों पर पीने योग्य पानी पाया गया था तथा सात केंद्रों के पानी को स्नान के उपयुक्त पाया गया ,अन्य स्थानों का का पानी मानव उपयोग के उपयुक्त नहीं पाया गया। जबकि गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए सरकारी स्तर पर दषकों से कार्य करते हुए अकूत राषि व्यय की जा रही है।

देष की लगभग 4500 नदियां गायब हो चुकी हैं। उनकी अनुगामी हजारों नदियां अपना अस्तित्व समाप्त होने की कगार पर है। ऐसी नदियों का अस्तित्व केवल वर्षा ऋतु में सामने आता है। वर्षा ऋतु बीत जाने के बाद वह प्रायः जलविहीन होकर या तो सूख जाती हैं या गंदा नाला के रूप में दिखती है। 

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में बह रही देष की महत्वपूर्ण नदी यमुना अनेक स्थलों पर गंदे नाले का स्वरूप धारण कर चुकी है। शहर के कचरे तथा मानव मल जल को ढोता हुआ यमुना नदी में पहुंचाने वाला नजफगढ़ नाला आज दिल्ली वासियों के लिए गंदा नाला है और उसे समस्त दिल्ली गंदे नाले के रूप में ही जानती है किंतु यह तो शायद किसी के संज्ञान में हो कि इस नाले का स्रोत कभी नजफगढ़ झील थी, जो साहिबी नदी से जुड़ी थी किंतु समय के प्रवाह में अब साहिबी नदी एवं सील दोनों का ही अस्तित्व समाप्त हो गया है और बचा है केवल नजफगढ़ नाला ,जिसमें दिल्ली की पहाड़ियों के समीप विकास के नित्य नवीन प्रतिमान गढ़ता हुआ गुड़गांव अपना मल मूत्र इसमें डाल रहा है। लुधियाना का बूढ़ा नाला भी इसका एक उदाहरण है, जो एक पीढ़ी पूर्व निर्मल जल से युक्त प्रवहमान बूढ़ी नदी के रूप में बहता था किंतु अब गंदगी और सड़ांध युक्त जल के कारण वह अपने पानी की पवित्रता को खो चुका है। 

प्रतिवर्ष बरसात के समय मुंबई शहर दरिया का स्वरूप ग्रहण कर लेता है और वहां का जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है जिसके मूल में निहित है वहां की कभी जीवन रेखा के रूप में जानी जाने वाली मीठी नदी, जो आज अपने अस्तित्व को पूरी तरह से समाप्त कर चुकी है। 

नदियों में हो रहा यह परिवर्तन मात्र उनका अपना स्वरूप परिवर्तन नहीं है अपितु उससे पारिस्थितिकी में भी पर्याप्त परिवर्तन हो रहा है। नदिया अपने अंतस्थल तथा तटवर्ती क्षेत्रों को प्रभावित करने के साथ-साथ अपने बहाव क्षेत्र से सैकड़ों मील दूर के परिवेष को भी प्रभावित करती हैं, जिसके कारण नदियों में निवास करने वाले जीव जंतु तो लगभग समाप्त ही हो रहे हैं, तटवर्ती इलाकों का पर्यावरण भी प्रभावित हो रहा है, जिसके दुष्परिणाम समय-समय पर सामने आते रहते हैं। इनमें से बचने का एक ही रास्ता है कि व्यापक स्तर पर जल संरक्षण एवं संवर्धन की दिषा में कार्य कर भूगर्भ के जल स्तर को बढ़ाया जाए। तटवर्ती क्षेत्रों में व्यापक स्तर पर वृक्षारोपण को बढ़ावा देते हुए उसे सुनिष्चित किया जाए तथा नदियों के प्रवाह पथ में हुए अतिक्रमण को तत्काल कब्जा मुक्त करते हुए नदियों में जाने वाले औद्योगिक कचरे एवं प्रदूषित जल के साथ साथ शहरों के अपषेषों मल मूत्र आदि को नदियों में जाने से अनिवार्य रूप से रोका जाए। ऐसा करने से ही मृत्यु की ओर उन्मुख हो रही नदियों को जीवनदान दिया जा सकता है अन्यथा स्थिति में लुप्त हो गई अनेक छोटी नदियों की भांति विकास एवं सभ्यता, संस्कृति की आधार यह नदियां स्वयं भी एक दिन लुप्त हो जाएंगी और हम इन्हें किस्से कहानियों एवं मानचित्रों में ही देखने सुनने को पाएंगे। इनकी रक्षा एवं संरक्षण हम सबका दायित्व है। यह संरक्षित है तो हम सुरक्षित हैं। मानव सभ्यता एवं संस्कृति भी सुरक्षित है, अन्यथा स्थिति में इनके समाप्त होने पर मानव सभ्यता के समक्ष भी जलाभाव में अस्तित्व का संकट उत्पन्न हो जाएगा। 

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