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शिक्षा नीति (2020) के क्रियान्वयन में समाज की भूमिका

भारत का ज्ञान व विज्ञान पूरी तरह से उन ऋषियों व मुनियों के ज्ञान पर आधारित है जो समाज के प्रति समर्पित थे। वे किसी धन व यश की कामना से ज्ञानार्जन नहीं करते थे। इसलिए पढ़ाई उसी को करनी चाहिए जो पढ़ना चाहे वरना तो वह अपना समय व धन बर्बाद करता है जो कि ठीक नहीं है। — डॉ. सूर्य प्रकाश अग्रवाल

 

सरकार की कोई भी नीति क्यों ने हो वह तब तक सफल नहीं हो सकती जब तक कि उस नीति के प्रति समाज में सकारात्मक सोच विकसित न हो जाय और उसका क्रियान्वयन ठीक से न हो जाय। 34 वर्ष के उपरान्त भारत सरकार ने शिक्षा नीति 2020 को 29 जुलाई 2020 को घोषित किया। इन 34 वर्षं में शिक्षा के क्षेत्र में अनेकों विकृतियां आ गई थी तथा शिक्षित बेरोजगारों की समस्या बढ़ती ही जा रही थी। अभी तक शिक्षा के प्रति लगभग सभी सरकारें गम्भीर नहीं थी परन्तु भाजपा के नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में गठित सरकार ने शिक्षा को अपनी प्राथमिकताओं में शामिल किया। इस शिक्षा नीति की सफलता के लिए समाज का एक प्रमुख वर्ग शिक्षक का सहयोग आवश्यक है यदि शिक्षक की एक सकारात्मक सोच इस नीति के प्रति बन जाये तो यह नीति शिक्षा के क्षेत्र को बदल सकती है तथा भारत को विश्व में गुरुपद पुनः प्राप्त हो सकेगा तथा भारत में भी शिक्षा क्षेत्र में ज्ञानार्जन पर्यटन पुनः शुरु हो जायेगा।

भारत की हजारों वर्ष से बनी परम्पराऐं, रीति रिवाज तथा संस्कारों से मानव निर्मित होता है। मानव मात्र जन्म लेने से ही मानव नहीं बन जाता है अपितु वह जब ज्ञान व विज्ञान से सरोबार होता है तो वह मानव की श्रेणी में शामिल होता है। वरना तो अशिक्षित व अज्ञानी मनुष्य की तुलना तो पशु से ही की जाती है।

शिक्षा नीति की सफलता के लिए हमें ज्ञानी व समर्पित शिक्षकों की बहुत आवश्यकता है। एक रिपोर्ट के अनुसार सरकारी स्कूलों में शिक्षकों के पद बड़ी मात्रा में रिक्त पड़े हुए है। उत्तर प्रदेश में शिक्षकों के कुल स्वीकृत पद 7.52 लाख है जिनमें से 2.17 लाख पद रिक्त है। बिहार में 6.88 लाख पद स्वीकृत है जिनमें से 2.75 लाख पद रिक्त है। इसी प्रकार देश के प्रमुख राज्यों बंगाल, राजस्थान, आन्ध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि में शिक्षकों के पद रिक्त पड़े है। कुल मिला कर पूरे देश में लगभग 20 लाख से अधिक पद रिक्त पड़े हुए है। इनको भर दिया जाय तो एक तरफ 20 लाख शिक्षित युवकां को रोजगार मिल सकेगा दूसरी तरफ स्कूलों का भी शैक्षिक वातावरण भी सुधर सकेगा। इस शिक्षा नीति में भी स्कूलों में शिक्षकों के रिक्त पदों को लेकर चिन्ता जताई गई है तथा इस नीति को क्रियान्यन करने के लिए स्कूलों में रिक्त पदों को भरने की प्रमुख सिफारिश की गई है। जिसके लिए राज्यों को एक समयबद्ध योजना पर कार्य करना ही पड़ेगा। शिक्षा नीति के क्रियान्वयन को लेकर शिक्षा मन्त्रालय इस बात पर पूरी नजरें बनाये हुए है।

भारत में शिक्षा को लेकर विद्यार्थियों में एक फैंशन सा चलता है जिस कारण से शिक्षा के कुछ विशेष क्षेत्रों में आजकल बाढ़ सी आयी हुई है जैसे मेड़िकल, इंजीनियरिंग, एमबीए, बीसीए, एमसीए, वाणिज्य आदि क्षेत्रों में छात्रों व छात्राओं की संख्या अन्य क्षेत्रों की तुलना में अधिक है। भारत में शिक्षा का संबंध सीधा सीधा रोजगार (सरकारी नौकरी) से होता है। जिस विषय में ड़िग्री लेकर शीध्रता से नौकरी मिल जाती हो सभी विद्यार्थी उसी तरफ चल पड़ते है। जनसंख्या नित्य प्रति बढ़ते जाने से सरकार की सभी योजनाऐं बिखर जाती है और समाज का एक बड़ा वर्ग बेरोजगार ही रह जाता है।

अब सरकार की ओर से इस पुरानी शिक्षा प्रवृति को बदलने और कई क्षेत्रों में सुधार की बात कही जा रही है जिसमें रोजगार पूरक शिक्षा के साथ साथ तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देने की उम्मीद है। नई शिक्षा नीति का उद्देश्य है कि छात्र रोजगार पा सकें अथवा वे रोजगार देने वाले बने। अब एक व्यक्ति जीवन भर ही एक रोजगार से जुड़ा नहीं रहेगा उसे निरन्तर अपने कौशल को भी बढ़ाना होगा। शिक्षा की सार्थकता तभी है जब छात्र का सर्वांगींण विकास हो। शिक्षा नीति 2020,  21 वीं सदी के भारत का आधार बनेगी। यह नीति अतीत के साथ आधुनिकता भी देगी। शिक्षा नीति में शिक्षकों की गरिमा का भी ध्यान रखा गया है। नई शिक्षा नीति में स्टूड़ेंट एजुकेशन और ड़िग्निटी ऑफ लेबर पर ध्यान दिया गया है जिससे छात्र श्रम की महत्वता को समझ सके। टेक्नोलोजी आधारित ई कंटेंट बनाये जायेंगे। वर्चुअल लैब बनेंगी यह नीति शोध और शिक्षा के अंतर को खत्म करेगी। क्वालिटी एजुकेशन पर ज्यादा काम के बदले ज्यादा ऑटोनोमी दी जाये।

शिक्षा नीति में सभी उच्च शिक्षण संस्थानों में शोध बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया है। भारत में प्रति एक लाख लोगों पर 50 शोधार्थी है। जबकि अमेरिका में 432, चीन में 111, इजराइल में 825 है। अतः भारत में भी शोध संस्कृति विकसित की जाय। हर स्तर पर छात्रों को शोध से जोड़ा जाना चाहिए। राष्ट्रीय शोध संस्थान, नवाचार और बहुआयामी शोध को बढ़ावा दिया जाय। सेमीनार, कांफ्रेंस, कार्यशाला आदि आयोजित किये जाने चाहिए। प्रत्येक असिसटैंट प्रोफेसर, एसोसियेट प्रोफेसर व प्रोफेसर के साथ टीचर एसोसियेट की व्यवस्था की जाय ताकि छात्र शोध के लिए आगे आयें।

शिक्षा नीति की सफलता शिक्षकों की गुणवत्ता से होकर गुजरती है। भूतपूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णनन ने कहा था कि छात्रों का नैतिक, आध्यात्मिक, चारित्रिक, मानसिक व शारिरिक विकास शिक्षा से ही सम्भव होता है। गुरु उस मोमबत्ती के समान है जो स्वंय जल कर दूसरों को प्रकाशित करता है। वर्तमान में शिक्षक का महत्व दूसरों की अपेक्षा अधिक है। शिक्षक ही हमें अज्ञान से ज्ञान की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने में अहम भूमिका निभाते है। अच्छा वकील, चिकित्सक, प्रोफेसर व सीए, आदि सभी अच्छे शिक्षकों के द्वारा ही पैदा किये जाते है।

शिक्षक अपने छात्र व उसकी शिक्षा का हित सर्वोपरि समझते है। शिक्षक बनाने के लिए अच्छे अध्यापक शिक्षा का तानाबाना बुनना अत्यन्त जरुरी है। अभी बी.एड़. कालेज छात्रों के नॉन एड़िड रहकर मात्र विश्वविद्यालय की परीक्षा देकर ड़िग्री प्रदान कर देते है और उनकी प्रायोगिक परीक्षा में कालेज प्रबंधन परीक्षकों को मोटी रकम देकर अच्छे अंक दिलवा दिये जाते है। जो कि बहुत गलत है। ऐसे ड़िग्री धारी से हम क्या उम्मीद लगा सकते है। बी.एड़. सहित सभी महाविद्यालयों का वातावरण सुधारने की आवश्यकता है। हम अपने बच्चे को उच्च शिक्षा में तभी भेजें जब उस बच्चे की उच्च शिक्षा प्राप्त करने की इच्छा हो तथा वह शोध की तरफ जाने के लिए तत्पर हो। मात्र गेस पेपर व मॉड़ल पेपर पढ़कर विश्वविद्यालय की परीक्षा देना व पास हो जाना ही काफी नहीं है। हम सब शिक्षक यह सोचें की हम समाज को क्या दे रहे है। क्या हम लाखों रुपये मासिक वेतन के हकदार है। हम उतनी मेहनत क्यों नहीं कर रहे है जितनी की करनी चाहिए।? शिक्षकों को जो भी वेतन दिया जा रहा है वह करदाताओं के ख्ून पसीने की कमाई है।

अतः शिक्षा नीति की सफलता तभी हो सकती है जब शिक्षक एक समर्पण भाव से एकाग्र होकर शिक्षा कार्य में लगे वरना तो यह नीति भी ढाक के तीन पात ही साबित होगी। शिक्षक को अपनी गरिमा, त्याग व ज्ञान से बढ़ानी होगी वरना तो लोग व छात्र व छात्राऐं शिक्षकों के मान सम्मान के साथ खिलवाड़ करते रहेंगें व उनकी खिल्ली उड़ाते रहेंगे।

भारत का ज्ञान व विज्ञान पूरी तरह से उन ऋषियों व मुनियों के ज्ञान पर आधारित है जो समाज के प्रति समर्पित थे। वे किसी धन व यश की कामना से ज्ञानार्जन नहीं करते थे। इसलिए पढ़ाई उसी को करनी चाहिए जो पढ़ना चाहे वरना तो वह अपना समय व धन बर्बाद करता है जो कि ठीक नहीं है। उच्च शिक्षा की ओर उसी को भेजें जो वास्तव में शिक्षा देना व लेना चाहता हो तथा शोध के लिए आतुर हों।    ु

डॉ. सूर्य प्रकाश अग्रवाल सनातन धर्म महाविद्यालय मुजफ्फरनगर 251001 (उ.प्र.), के वाणिज्य संकाय के संकायाध्यक्ष व ऐसोसियेट प्रोफेसर के पद से व महाविद्यालय के प्राचार्य पद से अवकाश प्राप्त हैं तथा स्वतंत्र लेखक व टिप्पणीकार है।

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