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आत्मनिर्भरता से दूर होगी असमानता

रोजगार सृजन की शर्त है देश में रोजगार उन्मुख प्रौद्योगिकी द्वारा उत्पादन सुनिश्चित किया जाये। रोजगार मिलेगा, तो गरीबों की आमदनी बढ़ेगी और असमानताएं स्वमेव घटनी शुरू हो जायेंगी। — डॉ. अश्वनी महाजन

हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव ने देश में बढ़ती असमानताओं को लेकर अपनी गहरी चिंता व्यक्त की है। कोरोना महामारी की पहली लहर के प्रभावों से बाहर आने के प्रयासों में जो आर्थिक बेहतरी आयी है, उसके लाभ अत्यंत असमान रूप से मिल रहे हैं। इस रिकवरी में ज्यादा फायदा अमीरों को हो रहा है, जिसके कारण अमीर और गरीब के बीच की खाई और अधिक बढ़ रही है। यह नैतिक रूप से ही सही नहीं, बल्कि राजनीतिक रूप से भी ज्वलनकारी है।

सुब्बाराव का कहना है कि एक ओर अर्थव्यवस्था में महामारी के कारण भयंकर उथल-पुथल हो रही है, तो दूसरी ओर ज्यादा लाभ कमाने के लालच में विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा निवेश हो रहा है। इसकी आवक के चलते शेयर बाजार बढ़ते जा रहे हैं, यानी कहा जा सकता है कि आज बढ़ते शेयर बाजारों का अर्थव्यवस्था के साथ कोई संबंध नहीं है। शेयर बाजारों की उछाल विशुद्ध रूप से सट्टेबाजी का ही परिणाम है।

आरबीआई के पूर्व गवर्नर सुब्बाराव ने चिंता व्यक्त की है कि कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के चलते रोजगार के अवसर पुनः घटने लगे हैं, लेकिन अमीरों की संपत्ति बढ़ने की प्रक्रिया बदस्तूर जारी है। गरीबों की आमदनी बाधित होने के मद्देनजर आर्थिक संवृद्धि की संभावनाओं पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।

गौरतलब है कि फोर्ब्स पत्रिका के अनुसार, भारत के 100 सबसे अमीर लोगों की संपत्तियां पिछले वर्ष (2020) से 14 प्रतिशत बढ़कर 2021 में 517.5 अरब डॉलर पहुंच चुकी हैं। यहां समझना जरूरी है कि ये असमानताएं केवल भारत में ही नहीं, बल्कि शेष विश्व में भी बढ़ रही हैं। ये पूरी दुनिया में चिंता का सबब बन रही हैं। कोरोना संक्रमण की पिछले एक वर्ष की अवधि में दुनियाभर में अरबपतियों की संख्या 493 बढ़ गयी। गौर करने वाली बात है कि फोर्ब्स पत्रिका की परिभाषा के अनुसार अरबपति उसे कहा जाता है, जिसकी परिसंपत्तियां एक अरब डॉलर से ज्यादा होती हैं।

अरबपतियों की संख्या में यह अभी तक की सबसे बड़ी छलांग है। यदि सभी 2,755 अरबपतियों की परिसंपत्तियों को देखा जाये तो, वे 2021 में 13,100 अरब डॉलर हैं, जो 2020 में (2092 अरबपति) 8,000 अरब डॉलर ही थी, यानी कोरोना के एक वर्ष में 5,000 अरब डॉलर की वृद्धि हुई है।

एक अन्य महत्वपूर्ण तथ्य ध्यान में आ रहा है कि इस कोरोना काल में ही दवाओं और वैक्सीन की बढ़ती मांग और ऊंची कीमतों के चलते कई लोग अब अरबपतियों की सूची में शामिल हो गये हैं और पहले से ही अमीर कंपनियां और अधिक अमीर हो चुकी हैं। ‘पीपुल्स वैक्सीन एलायंस’ नामक संगठनों के गठजोड़ का कहना है कि कोरोना काल के दौरान नौ नये अरबपतियों का उदय हुआ है, जिनकी परिसंपत्तियां 19.3 अरब डॉलर है।

इसी दौरान सभी फार्मा कंपनियों की परिसंपत्तियां 32.2 अरब डॉलर बढ़ गयी हैं, यानी कहा जा सकता है कि जहां कोरोना काल के दौरान आमजन रोजगार खो रहे हैं, लोगों में गरीबी बढ़ती जा रही है, तो वहीं अमीरों की बढ़ती अमीरी दुनिया में स्वभाविक रूप से असमानताएं बढ़ाने वाली हैं।

पिछले समय में सभी विकासशील देशों के लोगों की मेहनत, नयी प्रौद्योगिकी और सरकारों द्वारा कल्याणकारी नीतियों के चलते मानव विकास सूचकांक में लगातार सुधार हो रहे थे। प्रति व्यक्ति आय, शिक्षा सुविधाओं और स्वास्थ्य सुविधाओं, सभी में अभूतपूर्व प्रगति देखने को मिल रही थी। लेकिन कोरोना काल में उन सभी प्रक्रियाओं पर लगभग विराम लग चुका है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 1990 में जब मानव विकास सूचकांक की अवधारणा विकसित हुई थी, तब से वर्ष 2020 में पहली बार अधिकांश देशों में मानव विकास सूचकांक में गिरावट आने की आशंका है।

वैश्विक प्रति व्यक्ति आय चार प्रतिशत की दर से कम होने की आशंका है और जैसा कि विश्व बैंक ने कहा है, चार से छह करोड़ अतिरिक्त लोग भीषण गरीबी से ग्रस्त हो जायेंगे। गरीबी का अधिक प्रकोप अफ्रीकी देशों और एशियाई देशों पर होगा।

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आइएलओ) का कहना है कि आधे से ज्यादा कार्यशील लोग रोजगार खो सकते हैं और वैश्विक अर्थव्यवस्था को 10 खरब डॉलर का नुकसान अपेक्षित है। विश्व खाद्य कार्यक्रम का कहना है कि यदि उसके लिए कोई कदम नहीं उठाया गया, तो दो करोड़ 65 लाख लोग भुखमरी का शिकार हो सकते हैं। इस संगठन का मानना है कि अकेले भारत में ही चार करोड़ लोग गरीबी की ओर खिसक सकते हैं, क्योंकि भारत में अधिकांश लोग असंगठित क्षेत्र में कार्यरत हैं। भारत में करोड़ों लोगों के लिए रोजगार की कोई स्थायी व्यवस्था नहीं है।

कहा जा सकता है कि घटते रोजगार, रोजगार से बाहर होते लोग, घटती आमदनी और बीमारी के भार के कारण गरीबी का आपात भी तेजी से बढ़ रहा है। ऐसे में भारत सरकार द्वारा गांवों में रोजगार सृजन के प्रयास, पहली लहर के दौरान 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन और दूसरी लहर के दौरान उसकी पुनरावृत्ति के कारण अपने देश में गरीबी की आशंकाओं को कुछ हद तक कम किया गया, लेकिन यह सामान्य हालातों का विकल्प नहीं हो सकता।

अब सवाल उठता है कि इन परिस्थितियों में क्या समाधान हो सकते हैं। कोरोना से उत्पन्न इस भीषण गरीबी, बेरोजगारी, असमानताएं, स्वास्थ्य संकट आदि से निपटने के लिए सामान्य नहीं कुछ विशेष प्रयास करने होंगे। आने वाले समय में विदेशों पर निर्भर रहकर हम पूर्व की भांति आयातों को बदस्तूर जारी नहीं रख सकते। गरीबी दूर करने की पहली शर्त है- रोजगार सृजन।

रोजगार सृजन की शर्त है देश में रोजगार उन्मुख प्रौद्योगिकी द्वारा उत्पादन सुनिश्चित किया जाये। रोजगार मिलेगा, तो गरीबों की आमदनी बढ़ेगी और असमानताएं स्वमेव घटनी शुरू हो जायेंगी। समझना होगा कि आमजन के कल्याण का रास्ता गांवों की तरक्की, रोजगार, विकेंद्रीकरण यानी यूं कहें कि आत्मनिर्भरता से होकर निकलता है। बढ़ती असमानताओं से निपटने का यही कारगर मार्ग है।

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