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औद्योगिक निवेश बढ़ने से घटेंगे चीनी आयात

सर्वविदित है कि चीनी आयात पर भारत की निर्भरता लंबे समय से बढ़ रही है, और इससे भारतीय अर्थव्यवस्था का लगभग विऔद्योगिकीकरण हो गया, जहां हमारे अधिकांश उद्योगों को भारी नुकसान उठाना पड़ा और उनमें से कई को बंद करना पड़ा। 2003-04 में चीन से आयात मुश्किल से 4.05 बिलियन डॉलर था; जो 2013-14 तक बढ़कर 51.1 बिलियन डॉलर हो गया, जो सालाना लगभग 29 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है। इस समस्या को समझते हुए, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली नई सरकार ने पहले मेक इन इंडिया और फिर मई 2020 से कोविड-19 के मध्य सुविचारित ‘आत्मनिर्भर भारत’ का विचार सामने रखा। उल्लेखनीय है कि चीनी माल का आयात जो यूपीए के दशक में हर ढाई साल में दोगुना हो रहा था, उसकी वृद्धि दर मोदी सरकार के पहले छः साल में घटकर 5.4 प्रतिशत रह गई। हालाँकि मई 2020 के बाद भी चीनी आयात में वृद्धि जारी रही, इसके पीछे अन्य कई कारण थे। मई 2020 के बाद से जब हम देखते हैं कि मोदी सरकार ने आत्मनिर्भर भारत की नीति का पालन किया, तो एक बड़ी उम्मीद जगी कि हम चीनी आयात पर अपनी निर्भरता कम कर सकेंगे और विनिर्माण क्षेत्र को पटरी पर ला सकेंगे और चीनी निर्भरता से उत्पन्न होने वाले सुरक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक जोखिमों से भी बच सकेंगे। लेकिन, चीनी आयात पर निरंतर और बढ़ती निर्भरता के बारे में हालिया रिपोर्टों ने न केवल आत्मनिर्भर भारत की प्रभावशीलता के बारे में, बल्कि चीनी आयात से जुड़े सुरक्षा और आर्थिक जोखिमों के बारे में भी चिंता जताई है। उल्लेखनीय रूप से, ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) की रिपोर्ट ने हाल ही में खुलासा किया है कि इलेक्ट्रॉनिक्स, दूरसंचार और विद्युत उत्पादों के कुल आयात का 56 प्रतिशत हिस्सा चीन और हांगकांग से है। दूसरे जीटीआरआई ने कहा है कि चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापार साझेदार बन गया है, जहां चीन के साथ कुल द्विपक्षीय व्यापार 2023-24 में 118.4 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया है, जबकि यूएसए के साथ यह 118.3 बिलियन डॉलर है। इस द्विपक्षीय व्यापार में चीनी आयात का हिस्सा 101 बिलियन डॉलर है, जबकि निर्यात केवल 17 बिलियन डॉलर के हैं। हालांकि आयात का यह आंकड़ा चौंका देने वाला लगता है, लेकिन हम देखते हैं कि एनडीए शासन के दौरान चीनी आयात की वृद्धि दर सालाना केवल 7.0 प्रतिशत रही है, जबकि यूपीए शासन के दौरान 29 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई थी। 

गौरतलब है कि आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए विशेष प्रयास भी किए जा रहे हैं। यह भी सच है कि नीति की घोषणा और उसके परिणाम के बीच हमेशा एक अंतराल होता है। हम विनिर्माण के क्षेत्र में सुधार देख रहे हैं, जो हमें आने वाले वर्षों में चीन पर निर्भरता कम करने की उम्मीद देता है। उदाहरण के लिए, आइए सबसे पहले फार्मा और एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रीडिएंट्स (एपीआई) का उदाहरण लेते हैं। हम एपीआई और फार्मा में महत्वपूर्ण क्षमता निर्माण देखते हैं। उदाहरण के लिए, हम देखते हैं कि पीएलआई के लिए पहचाने गए 12 श्रेणियों के सामानों में एपीआई भी शामिल थे। एपीआई क्षेत्र के लिए पीएलआई योजना में 41 उत्पाद शामिल हैं, जिनमें मधुमेह, तपेदिक, स्टेरॉयड और एंटीबायोटिक दवाओं पर विशेष जोर दिया गया है। उल्लेखनीय है कि सितंबर 2023 तक पीएलआई योजना के तहत फार्मा कंपनियों को एपीआई में करीब 4,000 करोड़ रुपये और मेडिकल उपकरणों के लिए 2,000 करोड़ रुपये के निवेश की अनुमति दी गई है। इसके अलावा केंद्र ने 3,000 करोड़ रुपये की लागत से तीन बल्क ड्रग पार्क विकसित किए हैं। चीन द्वारा हमारी निर्भरता और कमजोरी का फायदा उठाने के कारण कीमतें आसमान छू रही थीं, जो अब कम होने लगी हैं। विशेषज्ञों का मानना घ्घ्है कि भारत में एपीआई के उत्पादन में वृद्धि के कारण पिछले कुछ महीनों में चीन का ‘ड्रग्स कार्टेल’ टूट गया है। आयात में कमी के अलावा बल्क ड्रग्स और ड्रग इंटरमीडिएट्स के निर्यात में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है 2022-23 में भारत ने 2022-23 में 37853 करोड़ रुपये के बल्क ड्रग्स और ड्रग्स इंटरमीडिएट्स का निर्यात किया, जो इस श्रेणी के 25,552 करोड़ रुपये के आयात से 12,302 करोड़ रुपये अधिक है। रसायनों के मामले में भी भारत कमोबेश आत्मनिर्भर है और निर्यात में भी तेजी आ रही है। इसके अलावा भारत के रक्षा सामानों के निर्यात में भी उछाल आया है। भारत बड़ी और छोटी बंदूकें, राइफलें, मिसाइलें और कई अन्य सहित सबसे उन्नत रक्षा उपकरण निर्यात कर रहा है। जहाँ 2004-05 से 2013-14 के बीच भारत का रक्षा निर्यात मुश्किल से 4312 करोड़ रुपये था, वहीं 2014-15 से 2023-24 के बीच भारत का रक्षा निर्यात 88319 करोड़ रुपये दर्ज किया गया है (यानि 21 गुना वृद्धि)। एक ही वर्ष 2023-24 में रक्षा निर्यात 21083 करोड़ रुपये (लगभग 2.63 अरब अमेरिकी डॉलर) के रिकॉर्ड स्तर को छू चुका है।

देश में विनिर्माण को पुनर्जीवित करने के लिए सरकार के प्रयासों से ऐसा संभव हो पा रहा है। इस अवधि के दौरान औद्योगिक उत्पादन के सामान्य सूचकांक (आईआईपी) ने 3.8 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की है। घरेलू उद्योग के लिए चीनी मध्यवर्ती और घटकों पर निर्भरता को देखते हुए, चीनी आयात में वृद्धि इस वृद्धि का एक स्पष्ट परिणाम था। ऑटोमोबाइल और सहायक उद्योग में पिछले तीन वर्षों में लगभग 1.28 लाख करोड़ रुपये के निवेश की घोषणा हुई है, जो उससे तीन साल पहले की घोषणा से लगभग 6 गुना अधिक है। इसी तरह, इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग में 2021-22 और 2023-24 के बीच पिछले तीन वर्षों में कुल 4 लाख करोड़ रुपये के निवेश की घोषणा हुई है, जो उससे पिछले तीन वर्षों की घोषणाओं से 102 गुना अधिक है। दवा और फार्मा उद्योग को देखें, तो पाते हैं कि 2018 से पहले शायद ही कोई नये निवेश की घोषणा हुई थी, लेकिन पिछले तीन वर्षों में हम 18,112 करोड़ रुपये की घोषणा देखते हैं, जो उससे तीन साल पहले की घोषणा से 15.5 गुना अधिक है; इसी तरह, खाद्य उद्योग में भी निवेश के संबंध में 23,484 करोड़ रुपये की महत्वपूर्ण घोषणा हुई है, जो उससे तीन साल पहले की घोषणा से 8 गुना अधिक है। हालांकि भारत अभी भी बड़ी मात्रा में चीनी सामान आयात करता है, जिसमें आम तौर पर मध्यवर्ती और घटक शामिल होते हैं, जिससे भारत को उनकी मदद से निर्मित उत्पादों को निर्यात करने में मदद मिलती है, लेकिन वर्तमान सरकार आत्मनिर्भर भारत के मार्ग पर चल रही है और चीनी और आयातित उत्पादों पर निर्भरता कम करने के लिए कई उपाय अपना रही है। हम कह सकते हैं कि संभावनायें बहुत स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है। साथ ही मोबाइल फोन, रक्षा उत्पाद, खिलौने, रसायन और दवा उत्पादों का बढ़ता निर्यात इस बदलाव का गवाह है, जो चीनी आयात पर निर्भरता के कम होने का सूचक है।

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