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स्वदेशी कोविशील्ड व कोवैक्सीन: भारत ने दी दुनिया को टीकों की सौगात 

भारत ने कोरोना के खिलाफ लड़ाई में ही नहीं, बल्कि शोध एवं अनुसंधान के क्षेत्रा में भी बड़ी कामयाबी हासिल की है। इतने त्वरित और बड़े पैमाने पर इन दो विश्वसनीय वैक्सीन का निर्माण न केवल मेड इन इण्डिया की बड़ी छलांग है, बल्कि स्वदेशी एवं आत्मनिर्भरता के साथ स्वयं को विश्व मंच पर नेतृत्वकर्त्ता के रूप में स्थापित करने का अहम पड़ाव है। — श्रीकृष्ण शर्मा

 

31 दिसम्बर 2019 को विष्व स्वास्थ्य संगठन को चीन ने बताया कि उसके यहाँ लोग न्यूमोनिया जैसी किसी अज्ञात बीमारी से पीड़ित हो रहे हैं। तीन जनवरी को आउटब्रेक की जानकारी दी तथा सात जनवरी को चीन के संचारी रोग विभाग ने इस रहस्यमय संक्रमण को नोवल कोरोना वायरस नाम दिया। इस महामारी ने साल भर मानवता को छकाए रखा, लेकिन मजाल जो इंसानियम के जोष, जज्बे और समर्पण को डिगा सकी। इस महामारी पर विजय पाने के लिये हमने रिकॉर्ड समय में टीका विकसित कर लिया और इस टीके के साथ हम नये साल में प्रवेष कर गये। अर्थात् कोरोना महामारी से जूझ रहे देष को नववर्ष पर दो टीकों के रूप में नई सौगात मिल गयी।

केन्द्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) की कोरोना पर विषय विषेषज्ञ समिति (एसईसी) ने सीरम इन्स्टीट्यूट ऑफ इण्डिया (एसआईआई) की कोविषील्ड वैक्सीन के इमरजेंसी इस्तेमाल को मंजूरी देने की सिफारिष कर दी। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्राजेनेका द्वारा विकसित इस वैक्सीन को भारत में पुणे स्थित सीरम इन्स्टीट्यूट कोविषील्ड के नाम से तैयार कर रही है। 

1 जनवरी को विषय विषेषज्ञ समिति ने सीरम इन्स्टीट्टयूट की ओर से पेष किये गये ट्रायल के डाटा के गहन परीक्षण के बाद इसे इमरजेंसी इस्तेमाल के लिये सुरक्षित पाया और इसके लिये भारतीय दवा महानियंत्रक (डीसीजीआई) की मंजूरी के लिये अनुषंसा करने का फैसला किया। इसके दो दिन बाद विषय विषेषज्ञ समिति ने देष के पहले स्वदेषी टीके कोवैक्सीन के इमरजेंसी इस्तेमाल की इजाजत देने की अनुषंसा कर दी। इस वैक्सीन को हैदराबाद स्थित भारत बायोटैक, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआई) तथा नेषनल इन्स्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी ने मिलकर विकसित किया है। विषय विषेषज्ञ समिति की सिफारिषों पर मुहर लाते हुए दवा नियामक डीसीजीआई ने तीन जनवरी को ही कोविषील्ड और कोवैक्सीन के इमरजेंसी इस्तेमाल को इजाजत दे दी। डीसीजीआई डॉ. वी.जी. मोहानी ने दोनों वैक्सीन को कोरोना वायरस के खिलाफ कारगर और पूरी तरह सुरक्षित बताया। यह वाकई में गर्व की बात है कि जिन दो वैकसीन को मंजूरी मिली है, वे दोनों ही मेड इन इण्डिया हैं। यह आत्मनिर्भर भारत के सपने को पूरा करने वाला है, जो कि हमारे विज्ञानियों और डॉक्टरों की इच्छा शक्ति का परिणाम है। यह भारत के लिये एक निर्णायक क्षण है। इस सफलता से स्वदेषी तथा आत्मनिर्भर भारत की मुहिम को और बल मिलेगा। 

कोविषील्ड एवं कोवैक्सीन का चयन भारत की परिस्थितियों को ध्यान में रखकर किया गया है। भारत के पास कोल्ड स्टोरेज की सुविधा कम है, इसलिये यह देष के लिये मुफीद है। जहाँ अन्य टीकों को बहुत कम तापमान पर रखने की जरूरत है। वहीं ये दोनों वैक्सीन दो से आठ डिग्री सेल्सियस के मध्य के तापमान पर सुरक्षित रह सकती हैं। इसी तरह ये दोनों वैक्सीन दुनिया की सबसे सस्ती कोरोना वैक्सीन हैं। दोनों की कीमत लगभग 200-215 रुपये के बीच है। 

कोविषील्ड की चार से छह सप्ताह के अंतराल पर दो खुराक दी जायेगी जबकि कोवैक्सीन की दो सप्ताह के अंतराल पर दो खुराक दी जायेगी। लेकिन इसके साथ ही देष में वैक्सीन को लेकर सियासत भी शुरू हो गयी। प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने स्वदेषी टीके कोवैक्सीन को मंजूरी दिये जाने की प्रक्रिया पर चिंता व्यक्त की है। उसका कहना है कि टीके को ट्रायल प्रक्रिया के सभी चरणों को पूरा किये बिना ही मंजूरी दे दी गई, यह खतरनाक साबित हो सकता है। इसका प्रत्युत्तर करते हुये सत्तारूढ़ दल भाजपा ने कांग्रेस पर देष की उपलब्धियों का उपहास उड़ाने तथा प्रगति में अवरोधक करार दिया तथा लोगों के मन में शंका पैदा करने की कोषिष बताया। 

सियासत के मामले में सपा नेता अखिलेष यादव तो और एक कदम आगे निकल गये। उन्होंने इसे भाजपा वैक्सीन करार दिया तथा कहा कि भाजपा जो वैक्सीन लगायेगी, उन्हें उसका भरोसा नहीं हैं, इसलिये वह वैक्सीन नहीं लगवायेंगे। इस तरह के गैर जिम्मेदाराना बयान गलत है, इससे लोगों के मन में शंका पैदा होती है, साथ ही उन वैज्ञानिकों और डॉक्टरों का भी अपमान है, जिन्होंने अथक मेहनत से वैक्सीन तैयार की है। अखिलेष यादव का बयान पोलियो उन्मूलन अभियान के समय उन दकियानूसी लोगों के बयानों की याद दिला रहा है, जिन्होंने भोले-भाले और अषिक्षित लोगों को गुमराह करने का काम किया था। जिन युवा एवं षिक्षित नेताओं से समाज को दिषा दिखाने की अपेक्षा की जाती है, वे इसके ठीक उलट काम कर रहे हैं। लोगों के मन से संदेह निवारण हेतु चिकित्सा जगत से जुड़े विषेषज्ञों ने भी अपने विचार व्यक्त किये। 

तीसरे फेज के ट्रायल के बीच में ही कोवैक्सीन के इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी का कारण स्पष्ट करते हुये डीसीजीआई डॉ. वी.जी. सोमानी ने कहा कि यह वैक्सीन भारत समेत पूरी दुनिया में सुरक्षा और असर को लेकर कारगर प्लेटफॉर्म पर तैयार की गई है। इसमें लाइव वायरस को कल्चर करने के बाद उसे निष्क्रिय कर वैक्सीन तैयार की जाती है। ऐसी वैक्सीन पूरे वायरस के खिलाफ लम्बे समय तक प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करती है। एम्स दिल्ली के निदेषक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने वैक्सीन को लेकर फैलाई जा रही अफवाहों को आधारहीन बताया। उनका कहना है कि जब हम किसी वैक्सीन पर विचार करते हें तो सुरक्षा सर्वोपरि रहती है। इसके लिये वैक्सीन विभिन्न चरणों के परीक्षण से गुजरती है ताकि यह सुनिष्चित किया जा सके कि यह सुरक्षित है। इसके बाद ही मानव पर परीक्षण शुरू होता है। सभी तरह के नतीजों की समीक्षा की जाती है और इसके बाद ही मंजूरी मिलती है, इसलिए वैक्सीन को लेकर किसी तरह की गलतफहमी नहीं होनी चाहिए। 

कोवैक्सीन के बारे में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के महादेषक डॉ. शेखर मांडे ने भी सुनिष्चित किया है कि टीका सुरक्षित है और लोगों को टीकाकरण में हिचकिचाना नहीं चाहिए। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के महानिदेषक डॉ. बलराम भार्गव के अनुसार कोवैक्सीन को इजाजत देने के लिये वैज्ञानिक और वैधानिक मापदण्डों का पूरी तरह पालन किया गया है। वहीं नीति आयोग के सदस्य एवं वैक्सीन पर गठित टास्क फोर्स के सह प्रमुख डॉ. वी.के. पॉल ने कहा कि कोवैक्सीन दूसरी वैक्सीन के मुकाबले ज्यादा लम्बे समय तक सुरक्षा प्रदान करेगी। भारत बायोटैक के चेयरमैन और प्रबंध निदेषक डॉ. कृष्णा इल्ला ने इसे 200 फीसदी सुरक्षित बताया है। उन्होंने कहा कि अब तक हुये परीक्षणों में इस वैक्सीन के दस फीसदी से भी कम दुष्प्रभाव के मामले सामने आये हैं, जबकि अन्य वैक्सीन में साठ से सत्तर फीसदी तक दुष्प्रभाव देखने को मिलता है। हालांकि यह सही है कि हर वैक्सीन के थोड़े-बहुत साइड-इफेक्ट होते हैं। कोविषील्ड एवं कोवैक्सीन के ट्रायल के वक्त भी ये साइड इफेक्ट सामने आये थे लेकिन ये ज्यादा गम्भीर नहीं हैं। कुछ लोगों ने वैक्सीन लगाने के बाद सिरदर्द और बुखार की षिकायत की थी। सामान्य दवा के जरिये साइड इफेक्ट को दूर किया जा सकता है। विष्व स्वास्थ्य संगठन ने भी भारत में दो टीकों के इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी का स्वागत किया है। विष्व स्वास्थ्य संगठन साउथ ईस्ट एषिया की रीजनल डायरेक्टर डॉ. पूनम खेत्रपाल सिंह ने कहा भारत की ओर से लिये गये इस फैसले से इस क्षेत्र में कोरोना के खिलाफ लड़ाई तेज और मजबूत होगी। सुरक्षा के जरूरी कदम उठाते हुये टीकाकरण में कोविड-19 का प्रभाव कम करने में मदद मिलेगी।

16 जनवरी से भारत में कोरोना के विरूद्ध विष्व के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान की शुरूआत हो चुकी है। इससे पहले सरकार ने देष में टीकाकारण के लिये आधारभूत संरचना को पूरी तरह से दुरुस्त एवं उसका परीक्षण कर लिया है। कोल्ड स्टोरेज, फ्रीजर, रेफ्रीजरेटर, डीप फ्रीजर आदि संरचना पूरी तरह तैयार है। करनाल, मुम्बई, चेन्नई और कोलकाता में वैक्सीन रखने के लिये चार मेगा स्टोरेज सेंटर बनाये गये हैं। इसके अलावा राज्यों में भी 37 स्टेट वैक्सीन स्टोरेज सेंटर हैं। इन 41 केन्द्रों पर कम्पनी से सीधे वैक्सीन की सप्लाई होगी, जहाँ से इन्हें जिला स्तर पर बनाये गये स्टोर में पहुँचाया जायेगा। इसके बाद वैक्सीन सेन्टर पर ले जाया जायेगा। कोविन वेबसाइट पर पंजीकरण के माध्यम से टीकाकरण किया जायेगा, जिससे अफरा-तफरी की स्थिति न बने। स्वास्थ्य मंत्रालय तीन बार पूर्वाभ्यास कर चुका है, जिससे अभियान की शुरूआत होने से पहले ही खामियों को पहचानकर उन्हें दुरुस्त किया जा सके। टीकाकरण के बाद इससे होने वाले साइड इफेक्ट की सम्भावना को देखते हुए सरकार ने स्टैण्डर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर भी जारी किया है। इसके तहत हर टीकाकरण केन्द्र को बड़े अस्पताल के साथ जोड़ा गया है ताकि अगर कोई बड़ा साइड इफेक्ट होता है तो उसे तुरन्त अस्पताल में रेफर किया जा सके। हालांकि ऐसी सम्भावना नहीं के बराबर है लेकिन सरकार ने ऐहतियात के तौर पर सारी तैयारी की है। साथ ही इलाज के लिये भी एसओपी दी है। टीकाकारण के बाद घर जाने के बाद किसी को साइड इफेक्ट होता है तो वह किसी भी सरकारी या निजी अस्पताल में इलाज के लिये जा सकता है। कोई भी अस्पताल इलाज से इनकार नहीं करेगा।

भारत में वैक्सीन लगाने का शुरूआती लक्ष्य 30 करोड़ हैं। पहले चरण में सबसे पहले प्राथमिकता समूह वाले तीन करोड़ लोगों को वैक्सीन दी जा रही है, इनमें एक करोड़ डॉक्टर, नर्स व स्वास्थ्यकर्मी और कोरोना महामारी के खिलाफ अग्रिम मोर्चा पर लड़ने वाले दो करोड़ सुरक्षाकर्मी, सफाईकर्मी और नगर निगम इत्यादि के कर्मचारी शामिल हैं। इसके बाद 27 करोड़ ऐसे लोग हैं, जिनकी आयु 50 से से अधिक है या सहरूग्णताओं के साथ 50 साल से कम आयु के होंगे। इन 30 करोड़ लोगों के टीकाकरण के साथ ही कोरोना का घातक असर कम हो जायेगा। कोरोना से मृत्युदर शून्य हो जायेगी। इन लोगों के टीकाकरण के बाद ही आम लोगों के लिये वैक्सीन उपलब्ध हो सकेगी, जिसमें लगभग छः माह का समय लग सकता है।

कोरोना संक्रमण से निपटने में जब पैरासीटामोल एवं हाइड्रोक्सी क्लोरोक्विन उपयोगी साबित हुई तब भारत दुनिया के लिये बड़ी उम्मीद के रूप में सामने आया। दुनिया में 60 फीसदी से अधिक वैक्सीन का निर्माण व आपूर्ति करने वाला अपना देष अब कोरोना वैक्सीन हब के रूप में उभर रहा है। नेपाल, भूटान, म्यांमार, बांग्लादेष, श्रीलंका, मालदीव, मारीषस, अफगानिस्तान जैसे अपने पड़ोसी देषों के साथ जापान, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया जैसे देष कोरोना वैक्सीन के लिये भारत की तरफ देख रहे हैं।

भारत ने कोरोना के खिलाफ लड़ाई में ही नहीं बल्कि शोध एवं अनुसंधान के क्षेत्र में भी बड़ी कामयाबी हासिल की है। इतने त्वरित और बड़े पैमाने पर इन दो विष्वसनीय वैक्सीन का निर्माण न केवल मेड इन इण्डिया की बड़ी छलांग है, बल्कि स्वदेषी एवं आत्मनिर्भरता के साथ स्वयं को विष्व मंच पर नेतृत्वकर्त्ता के रूप में स्थापित करने का अहम पड़ाव है। यह देष के लिये गर्व का समय है तथा वैज्ञानिक क्षमता का उदाहरण है। यह देष में इनोवेषन के लिये अनुकूलतम परिवेष की शुरूआत है। हमें इस शुरुआत को आगे भी बरकरार रखना होगा, जिससे भारतीय उत्पाद न केवल मात्रा के स्तर पर बल्कि गुणवत्ता के मामले में भी विष्व बाजार में अपनी धाक बना सके। 

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