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सरकार की सकारात्मक सोच से अर्थव्यवस्था की नई छलांग 

हमें सॉफ्टवेयर निर्यात के लिए आउटसोर्सिंग की संभावनाओं वाले अन्य देशों से भी अपने रिश्ते मधुर और मजबूत बनाने होंगे, इसके लिए हमें कदम बढ़ाना होगा। — स्वदेशी संवाद

 

कोरोना वायरस महामारी के बीच बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में भारत एकमात्र देश है जिसकी आर्थिक वृद्धि दर इस साल दहाई के अंक में होगी। अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष ने अपने ताजा विश्व आर्थिक परिदृश्य में भारतीय अर्थव्यवस्था में 11.5 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान जताया है। वृद्धि के लिहाज से चीन 2021 में 8.1 प्रतिशत के साथ दूसरे स्थान पर होगा उसके बाद क्रमशः स्पेन 5.9 प्रतिशत और फ्रांस 5.5 प्रतिशत के स्थान पर रहने का अनुमान है। आईएमएफ के अनुसार 2022 में भारत की आर्थिक वृद्धि दर 6.8 प्रतिशत और चीन की 5.6 प्रतिशत रहने का अनुमान है। 6 अप्रैल 2021 को आए इस ताजा अनुमान के साथ भारत दुनिया की तीव्र आर्थिक वृद्धि वाला विकासशील देश का दर्जा फिर से हासिल कर लिया है।

कोरोना महामारी के दौरान देश में चले लंबे लॉकडाउन के चलते देश का सकल घरेलू उत्पाद यानि जीडीपी नकारात्मक हो गई थी, लेकिन सरकार की सकारात्मक और संतुलनकारी सोच के चलते देश की अर्थव्यवस्था फिर से पटरी पर लौट आई है। यद्यपि कोरोना महामारी की दूसरी लहर बड़े पैमाने पर फैल रही है, कामकाज को प्रभावित भी कर रही है लेकिन उद्योग जगत बैंकिंग वित्तीय सेवा के साथ-साथ कृषि आदि क्षेत्रों ने बढ़िया प्रदर्शन किया है। औद्योगिक क्षेत्र का पुनरुद्धार फिर से गति पकड़ रहा है। इन सबके बीच देश का आईटी सेक्टर एक उम्मीद बन करके आगे उभरा है। कोविड-19 की चुनौतियों के बीच भारत दुनिया में आईटी सेवाओं का सबसे बड़ा निर्यातक देश बन गया है। यहां की दो सबसे अधिक आईटी फर्म दुनिया के 80 से ज्यादा देशों में काम कर रही हैं। आईटी कंपनियों में काम कर रहे कर्मचारियों की संख्या आज 44.6 लाख तक पहुंच गई है।

आपदा में अवसर

मालूम हो कि वर्ष 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के समय भी भारत से आउटसोर्सिंग में काफी तेजी आई थी। भारत में प्रौद्योगिकी डेवलपरों का पारिश्रमिक अन्य विकसित देशों के मुकाबले कम होने के बावजूद आउटसोर्सिंग को बढ़ावा मिला था, एक बार फिर कोविड-19 की चुनौतियों के बीच भारत के आईटी उद्योग की चमक बढ़ गई है। कोविड-19 ने आईटी कंपनियों के लिए नए डिजिटल अवसर पैदा किए हैं क्योंकि देश और दुनिया की ज्यादातर कारोबारी गतिविधियां अब ऑनलाइन हो गई है। वर्क फ्राम होम की प्रवृत्ति को व्यापक तौर पर स्वीकार्यता से आउटसोर्सिंग को बढ़ावा मिला है। नैसकॉम के अनुसार आईटी कंपनियों के अधिकांश कर्मचारियों ने लॉकडाउन के दौरान घर से काम किया है। आपदा के बीच समय पर सेवा की आपूर्ति से वैश्विक उद्योग, कारोबार इकाइयों का भारत की आईटी कंपनियों पर भरोसा भी बढ़ा है। यह सहज ही दिखाई दे रहा है कि कोविड-19 ने आईटी उद्योग की रोजगार संबंधी तस्वीर को बदल दिया है, डिजिटल और क्लाउड जैसे क्षेत्रों में ग्राहकों की मांग बढ़ी है।

मालूम हो कि कोरोना शुरू होने के बाद कई आईटी कंपनियों ने मंदी की आशंका के चलते बड़ी संख्या में अपने कर्मचारियों की छटनी की थी, लेकिन अब वही आईटी कंपनियां अपने पुराने कर्मचारियों को नौकरी पर बुला रही हैं। पुराने कर्मचारियों की ऑनलाइन हायरिंग भी ज्यादा आसान है, क्योंकि वह सिस्टम से अच्छी तरह परिचित होते हैं और काम पर आने के पहले दिन से ही वे संस्थान में अपना योगदान करने लगते हैं। इतना ही नहीं वर्क फ्राम होम की बदौलत भारत की प्रमुख आईटी कंपनियों का कार्बन उत्सर्जन घटना भारत के लिए लाभप्रद भी हो गया है। वर्तमान में स्थिति यह है कि आईटी की वैश्विक कंपनियां किसी कार्य के लिए कंपनी का चयन करते समय कार्बन उत्सर्जन प्रदर्शन को लेकर भी जानकारी मांग रही हैं। कार्बन उत्सर्जन में कमी के आधार पर आउटसोर्सिंग कारोबार में भारी वृद्धि की नई संभावनाएं निर्मित हुई है।

इसी तरह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के मोर्चे पर भी भारत तेजी के साथ आगे बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री ने कहा है कि हम भारत को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का ग्लोबल हब बनाना चाहते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि हम सिर्फ अपने यहां ऐसी मशीनों तकनीको सेवाओं और उत्पादों का प्रयोग करने तक सीमित नहीं रहेंगे, हम उनका निर्माण और विकास पूरी दुनिया के लिए करेंगे। यह हमारे लिए उतनी ही बड़ी मजबूती बन सकता है जितना कि आज से तीन दशक पहले चीन ने मैन्युफैक्चरिंग में हासिल किया था। मालूम हो कि चीन की तरह ही भारत में भी श्रम अपेक्षाकृत सस्ता है लेकिन चीन के विपरीत भारत बेहतर गुणवत्ता के लिए जाना जाता है। आज चीन जिस तरह से छोटी से छोटी चीज से लेकर बड़ी से बड़ी चीज का भी निर्माण कर रहा है, उसी तरह भारत आने वाले दिनों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में अपना दबदबा बना सकता है। इंफोसिस के पूर्व सीईओ विशाल सिक्का ने कहा था कि अगले 20 25 साल के भीतर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस भारत में बहुत बड़ी खलबली पैदा करने की क्षमता रखती है। आज ऑटोमेशन के कारण लोग जिस तरह से नौकरियां खो रहे हैं, वह तो उस समय के मुकाबले कुछ भी नहीं है, क्योंकि हमारे पास समय है। हम अपने आपको उन हालात के लिए तैयार कर रहे हैं। अगर हम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को अपनी शिक्षा प्रणाली के साथ इस तरह जोड़ लेते हैं कि बहुत बड़ी संख्या में इस काम में कुशल पेशेवरों को तैयार कर सकें तो फिर पासा निश्चित रूप से पलट सकता है। भारत का आर्थिक कायाकल्प हो सकता है, इसका सबसे प्रमुख कारण यह है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में जितनी विशाल संभावनाएं हैं उस मुकाबले में मेधावी और कुशल लोग अभी उपलब्ध नहीं है। इस मामले में भारत पहले से ही लाभ की स्थिति में है। दुनिया में स्टेम साइंस टेक्नोलॉजी इंजीनियरिंग और गणित विषयों में ग्रेजुएट पैदा करने वाले देशों में भारत सबसे अग्रणी देश है।

ऐसे में कोविड-19 के दौर में देश के आईटी उद्योग को और अधिक ऊंचाई देने के लिए और आउटसोर्सिंग की चमकीली संभावनाओं को और अधिक बढ़ाने के लिए हमें कुछ जरूरी बातों पर भी ध्यान देना होगा। हमें नई पीढ़ी को आईटी के नए दौर की शिक्षा देने के लिए समुचित निवेश की व्यवस्था करनी होगी। नए दौर की तकनीकी जरूरतों और इंडस्ट्री की अपेक्षाओं के अनुरूप कौशल प्रशिक्षण से नई पीढ़ी को सुसज्जित करना होगा। हमें शोध नवाचार और वैश्विक प्रतिस्पर्धा के मापदंडों पर आगे बढ़ना होगा। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस वर्चुअल रियलिटी रोबोटिक प्रोसेस ऑटोमेशन इंटरनेट आफ थिंग्स बिग डाटा एनालिसिस क्लाउड कंप्यूटिंग ब्लॉकचेन और साइबर सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में बड़ी संख्या में युवाओं को कुशल बनाना होगा। इसके अलावा हमें सॉफ्टवेयर निर्यात के लिए आउटसोर्सिंग की संभावनाओं वाले अन्य देशों से भी अपने रिश्ते मधुर और मजबूत बनाने होंगे, इसके लिए हमें कदम बढ़ाना होगा।

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