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काहे रे नदिया तू उफनायी

जारी है बारिश और बाढ़ का कहर
काहे रे नदिया तू उफनायी

समस्त नदियों में बाढ़ की स्थिति बनी हुई हैं तथा वह अपने तटवर्ती क्षेत्रों को पूरी तरह जलमग्न कर क्षेत्रा में आतंक फैलाए हुए हैं। — डॉ. दिनेश प्रसाद मिश्र


प्रसिद्ध गांधीवादी चिंतक रहे अनुपम मिश्र ने अपनी पुस्तक ‘‘आज भी खरे है तालाब’’ में लिखा है कि भारत के लोगों के लिए बाढ़ त्रासदी नहीं, बल्कि जीवन शैली रही है। ‘बरसो घनश्याम इसी वन में’, ‘मेघा आ रे पानी ला रे’, ‘बरसो राम धड़ाके से’, के साथ-साथ लोक भाषाओं में हजारों गीत गाकर बारिश के लिए इंद्र देव की पूजा की जाती रही है। बारिश समाज के लिए शुभ का संकेत होता था। लेकिन बेतरफीब बसावट, जल संरक्षण का अभाव आदि के चलते अब बरसात हमारे लिए सचमुच त्रासदी बनती जा रही है। हल्की बारिश में भी नदियां उभनाने लगती है। कमोवेश पूरी दुनिया का यही हाल है। मानसून आते ही अफरा-तफरी मच जाती है।

मानसून की शुरूआत में असम और बिहार में बाढ़ आयी। अब उत्तर प्रदेश और केरल बाढ़ का सामना कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश में नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही है। जिसके चलते 800 से अधिक गांव प्रभावित है। उत्तराखंड और हिमाचल में बाढ़ की स्थिति है। बारिश के कारण मुंबई, राजधानी दिल्ली सहित जयपुर की सड़कों पर भी पानी का सैलाब उमड़ा। गुजरात में 70 प्रतिशत अधिक बारिश दर्ज की गई। कर्नाटक का हाल भी बेहाल है। देश भर में बारिश के पानी से नदियों में आए ऊफान के चलते करोड़ों की संपत्ति नष्ट हुई  है। वहीं लाखों लोग बेघर हो गए। उचित जल-प्रबंधन के अभाव में भारत के लिए बाढ़ चुनौती बन गई है।

प्रकृति को ताक पर रखकर अनियमित विकास के कारण बारिश के पानी से हर साल भारत में कई जगहों पर बाढ़ जैसा हो जाता है। बाढ़ के कारण दुनिया भर में होने वाली मौतों का पांचवां हिस्सा भारत का होता है। बाढ़ अर्थव्यवस्था को पीछे धकेल गरीबी लाती है। इसका जीता-जागता नमूना बिहार है। भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान द्वारा पिछले एक सौ बीस सालों से वर्षा के आंकड़ों पर अध्ययन किया जाता रहा है। हालिया अध्ययन में बताया गया है कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में विनाशकारी बाढ़ की घटनाएं और बढ़ेगी।

वैसे तो भारत में हमेशा से बाढ़ आती रही है, लेकिन उसे नियंत्रित करने का काम 1954  में आई बड़ी बाढ़ के बाद शुरू हुआ। सन् 1957 में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन हुआ। 1980 में राष्ट्रीय बाढ़ आयोग बनाया गया, आयोग के तटबंध बनाने, निचले हिस्सों में बसे लोगों को ऊंची जगहों में बसाने जैसी सिफारिशों पर सरकारें लगभग 2 लाख करोड़ रूपये खर्च कर चुकी है, लेकिन समस्या का हल एक प्रतिशत भी नहीं हुआ। अनियोजित विकास के चलते हमने पानी की निकासी के रास्ते बंद कर दिए, ऐसे में बारिश कम हो या ज्यादा, पानी जायेगा कहां? वहीं प्रकृति में बढ़ते मानवीय हस्तक्षेप के चलते समुद्रों का भी मिजाज बदल रहा है। समुद्र भी भूखे है। जिस तरह से मनुष्य भूख लगने पर रोटी खाता है, उसी तरह समुद्र भी गाद के रूप में अपना पेट भरता है। नदियों का पानी समुद्र में पूरी तरह नहीं जा रहा है। नदियां जब वेग के साथ समुद्र में मिलती है तो वे गाद के रूप में अपने साथ समुद्र का भोजन भी ले जाती है। समुद्र की भूख और बैचेनी वैश्विक है। इसलिए हाल के वर्षों में पूरी दुनिया में बारिश और बारिश से उत्पन्न बाढ़ ने मानव जीवन को सकते में डाल रखा है। कोरोना महामारी से जूझ रही दुनिया अभी कोई माकूल ईलाज नहीं खोज पायी कि प्रलयंकारी बाढ़ ने पूरे विश्व में हाहाकार मचा दिया है। इस समय देश दुनिया की लगभग समस्त प्रमुख नदियों में बाढ़ आई हुई है। 

दुनिया के दो दर्जन से अधिक देश बाढ़ से प्रभावित हैं। भारत, चीन, जापान, ग्रीस, दक्षिणी कोरिया, स्पेन, पाकिस्तान, नेपाल, अमेरिका ,यूनाइटेड किंगडम और मैक्सिको आदि देशों में नदियों का कहर जारी है। जापान में लगातार हो रही मूसलाधार बारिश के कारण आई बाढ़ ने यहां के जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है। अब तक 100 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। 

स्पेन में भारी बारिश से आई बाढ़ ने भारी तबाही मचा दी है। बर्सिलोना मेड्रिड और स्कॉटलैंड में लगातार बारिश तथा उससे बढ़ रहे नदियों के जलस्तर से सड़कों पर भी पानी भर गया है। स्पेन का स्प्रेगा शहर तबाह हो चुका है। वहीं चीन शताब्दी की सबसे बड़ी बाढ़ की मार झेल रहा है। चीन के दक्षिणी भाग में करोड़ों लोग भयंकर बाढ़ का सामना कर रहे हैं। लगातार मूसलाधार बारिश से पिछले 8 दशक से बाढ़ एवं वर्षा के रिकॉर्ड टूट चुके हैं सबसे बड़ा जल प्रलय आया हुआ है। यांगत्सी नदी अपने विकराल रूप में बहकर तबाही मचाए हुए है। 

चीन के 10 राज्यों गुइजहाऊ, चोंगकिंग, हुनान, हुबेई, जियांगशी, अनहूई, झिजिंयांग, शंघाई, गुआंगशी और फुंजियांग प्रांत में भयंकर बाढ़ आई हुई है। चीन में अब तक 140 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और कई लोग लापता हैं, इनके अलावा इस भीषण आपदा में अब तक करीब 3.8 करोड़ लोग बुरी तरह से प्रभावित हैं। इस बाढ़ से 28 हजार से अधिक इमारतें नष्ट हो चुकी हैं तथा लगभग 11.7 अरब डालर का नुकसान हुआ है। दूसरी तरफ पाकिस्तान में भी भयंकर बाढ़ आई हुई है। जिसमें से कम से कम 58 लोगों की जान चली गई है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अनुसार बारिश के कारण आई बाढ़ से खैबर पख्तूनख्वा प्रांत सबसे अधिक प्रभावित हुआ है। 

अमेरिका के कई प्रांत बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित है। मेड्रिड और यूके के स्कॉटलैंड सहित अनेक राज्य बाढ़ की विभीषिका से जूझ रहे हैं। अमेरिका से लेकर नेपाल तक हर छोटा से बड़ा देश त्राहिमाम त्राहिमाम कर रहा है, किंतु बचाने वाला कोई नहीं है, बस ईश्वर से यही प्रार्थना की जा रही है कि ईश्वर बारिश और तूफान से बचाए जिससे जल्दी ही बाढ़ का पानी शहरों की सीमाएं छोड़कर नदियों तक सीमित हो जाये और किसी प्रकार से जनजीवन सुव्यवस्थित हो।

समस्त विश्व की ही भांति भारत भी बाढ़ एवं बारिश के प्रकोप से अछूता नहीं है, वह भी बाढ़ की विभीषिका को झेल रहा है। भारत के बिहार, आसाम, मेघालय, केरल, महाराष्ट्र, पूर्वी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा आदि राज्य बाढ़ की चपेट में है। समस्त नदियों में बाढ़ की स्थिति बनी हुई हैं तथा वह अपने तटवर्ती क्षेत्रों को पूरी तरह जलमग्न कर क्षेत्र में आतंक फैलाए हुए हैं। बिहार तथा आसान की स्थिति सबसे भयंकर बनी हुई है। यहां बाढ़ में लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित किया है। अब तक आसाम में ही 100 से अधिक लोग काल के गाल में समा गए हैं। बिहार में भी अनेक लोगों के बाढ़ में डूबकर अपनी जान गंवा देने के समाचार मिल रहे हैं। बिहार के दरभंगा जिले में बाढ़ से प्रभावित होकर लगभग 9 लाख लोगों को अपना घर-बार छोड़ना पड़ा है। उत्तरी बिहार के 11 जिलों के निचले इलाके पूरी तरह जलग्रस्त हैं। बिहार में बाढ़ से अब तक 16 जिलों में 74 लाख से अधिक आबादी प्रभावित हुई है। आपदा प्रबंधन विभाग के अनुसार सीतामढ़ी शिवहर सुपौल किशनगंज दरभंगा मुजफ्फरपुर गोपालगंज और पूर्वी चंपारण में बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित हैं। इनके अतिरिक्त पश्चिम चंपारण खगड़िया सारण समस्तीपुर सिवान मधुबनी मधुपुरा एवं एवं सहरसा जिलों में भी बाढ़ ने अपना आतंक फैलाया हुआ है। इन जिलों के 128 प्रखंडों की 1232 पंचायतों में 74 लाख से अधिक आबादी बाढ़ से प्रभावित हुई है। 

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अनुसार हाल के वर्षों में बाढ़ प्रबंधन के काम में नेपाल सरकार द्वारा पूरा सहयोग नहीं किया जा रहा है, जिससे बाढ़ की स्थिति अत्यंत गंभीर बनी हुई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का यह बयान अपने प्रबंधन एवं आपदा निवारण तंत्र की कमजोरी एवं असफलता को नकार कर पूर्व की भांति बिहार में आई हुई बाढ़ को नेपाल की देन माना जा रहा है और यह बताने का प्रयास किया जा रहा है। बाढ़ से निपटने के लिए न तो कभी कोई प्रयास किया गया और न ही कोई बचाव का रास्ता खोजा गया। परिणाम वही के ढाक के तीन पात, जिससे बिहार को हर वर्ष बाढ़ की विभीषिका को झेलना पड़ता है और जन धन की अपार क्षति को भी उठाना पड़ता है। जब तक बाढ़ रहती है और वर्षा होती रहती है उसकी चर्चा चलती रहती है, बाढ़ समाप्त होते ही उसकी ओर से ध्यान हट जाता है। 

असम की स्थिति अत्यंत भयावह है, वहां लगभग 70 लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हैं तथा सौ से अधिक लोगों की बाढ़ से मृत्यु हो चुकी है। लोगों के घर नष्ट हो गए हैं। चारों ओर पानी ही पानी दिखाई दे रहा है। ब्रह्मपुत्र सहित अधिकांश नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं। बराक नदी का जलस्तर भी निरंतर बढ़ रहा है तथा अपने तटवर्ती क्षेत्रों को नेस्तनाबूद कर रहा है। असम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा बाढ़ की स्थिति रिपोर्ट के अनुसार बाढ़ से 24 जिले बुरी तरह प्रभावित हैं तथा राज्य की लगभग पूरी फसल नष्ट हो चुकी है। बाढ़ का तांडव निरंतर जारी है सरकारी स्तर पर बाढ़ में फंसे लोगों को बचाने की कोशिश हो रही है।

उत्तर भारत में जम्मू कश्मीर से लेकर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड से लेकर पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, गुजरात, केरल एवं राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली सभी बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित है। 

दिल्ली की सड़कों पर पांच-पांच फीट से अधिक पानी भर गया। मिंटो फुल अंडरपास में भरे पानी तथा सड़कों पर आई बाढ़ से आवागमन पूरी तरह से बंद हो गया। पानी की अधिकता से बसों तक के चक्के जाम हो गए। एक टेंपो चालक की पानी में डूबकर मिंटोपुल के पास दर्दनाक मृत्यु ही हो गई। देश में राजधानी दिल्ली की यह स्थिति है तो पूरे देश की कल्पना की जा सकती है। 

उत्तर प्रदेश के 16 जिले बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित है, जहां का जनजीवन अस्त व्यस्त हो चुका है। उत्तराखंड में देहरादून, उत्तर प्रदेश में कानपुर गुजरात में राजकोट तथा महाराष्ट्र में मुंबई आदि शहर पानी से लबालब भर गए। शहरी जीवन अस्तव्यस्त हो गया। यह पहली बार नहीं हुआ और नहीं अंतिम बार है। यह स्थिति पहले भी बनती रही है और आगे भी होती रहेगी, बाढ़ पहले भी आई है और आगे भी आती रहेगी। वस्तुतः बाढ़ एवं बारिश की यह स्थिति हर साल उत्पन्न होती है तथा देश को उसका निरंतर सामना करना पड़ता है। 

आज आवश्यकता है एक सुव्यवस्थित कार्य योजना की, जो प्रतिवर्ष आने वाली बाढ़ के कारणों का अध्ययन कर उनके निवारण हेतु सार्थक प्रयास करें जिससे इस समस्या का निदान प्राप्त हो सके किंतु व्यवहार में कभी भी ऐसा नहीं होता। कुछ समय के लिए भले हाय तोबा मचा लिया जाए किंतु बाढ़ के समाप्त होते ही मान लिया जाता है कि समस्या का समाधान हो गया और सब कुछ शांत हो जाता है। बाढ़ शांत तो उसके निदान हेतु किए जाने वाले प्रयास भी शांत। फलस्वरूप पुनः बाढ़ का आगमन और उसके भयंकर परिणाम पुनः सामने। यह क्रम निरंतर चल रहा है और चलता ही रहेगा क्योंकि बाढ़ से निजात पाने हेतु न तो इच्छा शक्ति है और न ही उसके कारणों को खोज कर उन्हें समाप्त करने की दिशा में कोई प्रयास। यदि प्रयास कर नदियों के प्रवाह तंत्र को व्यवस्थित कर दिया जाए उससे अतिक्रमण को समाप्त कर तथा नदियों के पेट में जमा गाद को समय-समय पर निकालकर जल प्रवाह की गति को अविरल बना दिया जाए तो तो बारिश से होने वाली जल वृद्धि नदी की अप्रतिहत एवं अविरल गति होने से इकट्ठा जल तीव्र गति से चलकर अपने गंतव्य तक पहुंचने में सफल होगा और नदियों के उफनाने की गति में भी विराम लगेगा।

(लेखक जल एवं पर्यावरण मामलों के जानकार है।)

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