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जीवन के सभी पक्षों में हो ‘स्व’ का भावः डॉ. कृष्ण गोपाल

स्वदेशीः कल, आज और कल

जीवन के सभी पक्षों में हो ‘स्व’ का भावः डॉ. कृष्ण गोपाल

 

स्वदेशी में निहित ‘स्व’ का भाव सिर्फ आर्थिकी में ही नहीं, बल्कि जीवन के सभी पक्षों में होना चाहिए। यह भाव हमें अपनी प्राचीन परंपराओं से तो जोड़ता ही है, भविष्य की मजबूत बुनियाद के लिए भी सुगम राह तैयार करता है। प्राणी मात्र के भीतर जीवन के विविध पक्षों में ‘स्व’ का भाव हो तो उसके उत्थान की संभावनाएं ओर अधिक बढ़ जाती है। ऐसे में स्वदेशी हमें ‘स्व’ के मार्ग पर चलने की दिशा प्रशस्त करती है।

उक्त बातें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल ने कही। मौका था, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्राध्यापक प्रो. अश्वनी महाजन के सेवानिवृत्त होने के उपलक्ष्य में आयोजित विदाई कार्यक्रम का। दिनांक 4 जुलाई 2024 को दिल्ली स्थित इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित विदाई कार्यक्रम के दौरान ‘स्वदेशीः कल, आज और कल’ विषय पर एक परिचर्चा भी आयोजित की गई। परिचर्चा में मुख्य अतिथि के रूप में अपनी बात रखते हुए आरएसएस नेता ने कहा कि स्वदेशी जागरण मंच अपने प्रारंभ से ही आर्थिक क्षेत्र में ‘स्व’ की भावना को आगे कर स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देने, स्वदेशी शोध एवं नवाचार के जरिये देश को दुनिया की आर्थिक महाशक्ति बनाने का प्रयत्न कर रहा है। उन्होंने कहा कि हमारे अर्थशास्त्रियों को विशेष रूप से भारतीय अर्थशास्त्र के इतिहास को जानना चाहिए। प्राचीन काल में भारत का व्यापार इतना सम्मुन्नत था कि पश्चिमी देशों को कर्ताधर्ता भारत से आयात कम करने की बात करते थे। भारत अपने स्वदेशी उद्योगों के बल पर दुनिया में सबसे आगे था। 

डॉ. कृष्ण गोपाल ने कहा कि हमें यहां ठहरकर विचार करना होगा कि ‘स्व’ की भावना केवल आर्थिक मोर्चे पर ही नहीं बल्कि जीवन के विविध प्रसंगों में भी होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि आज शिक्षा के क्षेत्र में, भाषा के क्षेत्र में, न्याय के क्षेत्र में, ‘स्व’ का घोर अभाव है। हमारे देश में एक ऐसी न्याय प्रणाली का प्रचलन है जो सीधे और सच्चे आदमी को भी झूठ बोलना सिखा देती है। उन्होंने उदाहरण देकर कहा कि किसी छोटी वस्तु या बात को लेकर दो लोगों में विवाद होता है और मामला अदालत पहुंचता है तो इसका निपटारा होने में 20-30 साल लग जाते हैं। ऐसा नहीं कि देश में पहले लोगों के बीच विवाद नहीं होते थे, लेकिन तब लोगों में ‘स्व’ का बोध था। परिवार के स्तर पर, मौहल्ला के स्तर पर, गांव के स्तर पर मामले निपट जाते थे। क्योंकि दोनों पक्ष सच बोलता था। डॉ. कृष्ण गोपाल ने कहा कि न्याय और पुलिस के सहारे कोई समाज आगे नहीं बढ़ सकता, हमें अंतरात्मा की आवाज पर चलना ही होगा। हमें सोचना होगा कि हम कहां से चलकर कहां पहुंच रहे हैं। आज का समाज कर्तव्य आधारित नहीं, बल्कि अधिकार आधारित समाज में बदल चुका है। आज बेटे बाप से अपना अधिकार मांग रहे हैं। छोटे-छोटे स्कूली बच्चें अपने गुरूओं के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा रहे हैं। बच्चों के भीतर नैतिकता, जीवन मूल्य, कर्तव्य बोध भरने जैसी बात स्कूलों में अब ना के बराबर है। उन्होंने सवाल किया कि आज शिक्षा में ‘स्व’ का बोध कहां है? आज की शिक्षा अर्थकरी है। शिक्षा में नैतिकता, विन्रमता, शालीनता का अभाव है। मां-बाप बच्चों को प्रतियोगिता में शामिल करा रहे हैं। प्राचीनकाल में भारत दुनिया के देशों के लिए टीचर ट्रेनिंग सेंटर था। विभिन्न महाविद्याओं की शिक्षा दी जाती थी। उन्होंने बताया कि एक बार बनारस के कोई संगीतज्ञ इटली गये थे। वहां के सरकारी आवास में ठहरे थे। उनकी देखरेख के लिए जिसे तैनात किया गया था, वह सो गया था। कारण कि संगीतज्ञ निद्रा राग बजा रहे थे। मुसोलिनी को अनिद्रा की बिमारी थी, उसने संगीतज्ञ को बुलाया, बताते है कि उनके निद्रा राग बजाने पर मुसोलिनी कुर्सी पर बैठे-बैठे ही सो गया था। 

शिक्षा में मातृभाषा की अवहेलना है। आज अंग्रेजी का बोलबाला है। कोई भी दूसरी भाषा मस्तिष्क तक ही रहती है। दिल की गहराई में अपनी मातृभाषा ही उतरती है। उन्होंने कहा कि हमारे भजन, ‘ठुमक चलत रामचन्द्र बाजत पैजनिया’ अथवा ‘जय हनुमान ज्ञान गुण सागर’ को अंग्रेजी में कोई कैसे समझ सकता है। इस क्रम में आरएसएस नेता ने भारत के दूसरे राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन से जुड़ा एक किस्सा भी सुनाया, ‘कोई प्रतिनिधि मंडल महामहिम से मिला तथा निवदेन किया कि आकाशवाणी से जो प्रतिदिन देर तक भजन कार्यक्रम आता है उसे बंद करा देना चाहिए। महामहिम ने उत्तर देते हुए कहा कि आपकी मांग जायज है पर प्रतिदिन मैं भी रेडियो पर भजन ही सुनता हूं।’ डॉ. गोपाल ने कहा कि हमारी शिक्षा में एकात्म बोध था। बनारस में 500 साल पुराने पत्थर के मकानों में भी लोग ऊंचाई पर छेद बनाकर रखते थे ताकि हिसंक जानवरों से बचते हुए पक्षी उनमें निवास कर सके। 

उन्होंने बताया कि देश की शिक्षा में अंग्रेजी का बोलबाला है, पर अंग्रेजी को अपनी मातृभाषा बताने वालों की संख्या 3 लाख से कम है। हमें जीवन के हर क्षेत्र में ‘स्व’ और एकात्म बोध के साथ आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। उन्होंने स्वदेशी जागरण मंच के कामों की सराहना करते हुए मंच के राष्ट्रीय सहसंयोजक डॉ. अश्वनी महाजन के योगदान की भूरिभूरि प्रशंसा की। 

कार्यक्रम के आरंभ में स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय संयोजक श्री आर. सुन्दरम ने प्रस्ताविकी रखते हुए मंच के उद्देश्यों, उपलब्धियों तथा भविष्य के लक्ष्यों की चर्चा की। इस मौके पर अपनी बात रखते हुए प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डॉ. सचिन चतुर्वेदी ने स्वदेशी, स्वावलंबन और आत्मनिर्भरता के सूत्र को जोड़ा। उन्होंने कहा कि स्वदेशी के बदौलत हमारा आयात 36 प्रतिशत से घटकर आज 14 प्रतिशत पर आ चुका है। इस क्रम में डॉ. नागेश ने राष्ट्रहित की दृष्टि से आत्मनिर्भरता की नीति को प्रासंगिक बताया। उन्होंने कहा कि स्वावलंबी अभियान के जरिये भारत आत्मनिर्भर बन सकता है। डॉ. राजकुमार मित्तल ने देश के आर्थिक विकास में स्वदेशी की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए स्वदेशी जागरण मंच के प्रयासों की सराहना की।  

अंत में कार्यक्रम का समाहार करते हुए राष्ट्रीय संगठक श्री कश्मीरी लाल ने स्वदेशी संगम के मौके पर ‘स्वदेशीः कल, आज और कल’ के बारे में वक्ताओं के विचारों को प्रेरक बताया। मंच के कार्यां में डॉ. अश्वनी महाजन के योगदान को रेखांकित किया। वहीं चुटीले अंदाज में यह भी कहा कि वे अब तक हर सभा में अश्वनी जी को सुनते आये हैं, यह पहला मौका है जब हम सब लोग उनके बारे में बोल रहे हैं। श्री कश्मीरी लाल ने इस मौके पर उपस्थित सभी लोगों का आभार प्रकट किया तथा स्वदेशी और स्वावलंबी भारत अभियान को आगे बढ़ाने का आह्वान भी किया। 

डॉ. अश्वनी महाजन के सेवानिवृत्त होने के मौके पर आयोजित कार्यक्रम में देश के विभिन्न हिस्सों से स्वदेशी के पुराने कार्यकर्ता भी शामिल हुए। कार्यक्रम का संचालन सीए अनिल शर्मा ने किया। कार्यक्रम में पूर्व सांसद मीनाक्षी लेखी, रमेश विधूड़ी तथा वर्तमान सांसद बांसुरी स्वराज ने हिस्सा लिया।

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