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वैक्सीन राष्ट्रवाद

दुनिया भर में कोरोना महामारी से निजात दिलाने हेतु तेजी से प्रयास चल रहे हैं। माना जा रहा है कि कोरोना के स्थायी हल के लिए कोरोना वैक्सीन ही एकमात्र उपाय है। गौरतलब है कि एक प्रभावी वैक्सीन शरीर में इस बीमारी से लड़ने हेतु ऐंटीबाडी का निर्माण करने में सहयोगी होती है, जिससे मनुष्य पर कोरोना का असर नहीं होगा।

स्वभाविक है कि एक ऐसा संक्रमण, जो इससे पहले देखा या सुना नहीं गया, जिसका संक्रमण अन्य वायरसों से कई गुणा तेजी से फैलता है, के लिए वैक्सीन निर्माण का काम इस समय चिकित्साशास्त्रियों के लिए चुनौती बना हुआ है। ऐसे में 185 प्रयास दुनिया में चल रहे हैं और उनमें से 35 के तो ट्रायल भी अलग-अलग स्तरों पर चल रहे हैं। 

वैक्सीन के प्रयास

प्रधानमंत्री ने बताया है कि देश में तीन वैक्सीन के ट्रायल अलग-अलग स्तरों पर चल रहे हैं और देश को कोरोना वैक्सीन जल्द ही मिल सकती है। रूस ने भी एक वैक्सीन का पंजीकरण कर दिया है और उसका व्यवसायिक उत्पादन करने के लिए उन्होंने भारत से संपर्क साधा है। इस बीच आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ने वैक्सीन के उत्पादन के लिए भी भारत से संपर्क साधा है। गौरतलब है कि वैक्सीन उत्पादन के क्षेत्र में भारत का कोई सानी नहीं है।

इस बीच दवा कंपनी डॉ रेड्डी लेबोरेटरी (डीआरएल) ने 16 सितंबर को घोषणा की कि वह अंतिम चरण के मानव परीक्षण करने और यहां नियामक मंजूरी प्राप्त करने के बाद भारत में रूस की स्पुतनिक-वी कोविद-19 वैक्सीन की 100 मिलियन (10 करोड़) की मात्रा वितरित करेगी। वैक्सीन की प्रत्येक खुराक में अलग-अलग एडेनोवायरल वैक्टर युक्त दो शीशियां शामिल हैं।

आज देश और दुनिया, जिस प्रकार से कोरोना के कहर से जूझ रहे हैं, कई कंपनियां अपनी बिक्री बढ़ाने के लिए, विभिन्न प्रकार के हथकंडे अपना रही है। एक ओर तो वे अपनी वैक्सीन की अग्रिम बिक्री के प्रयास कर रही है, दूसरी वे अन्यों के द्वारा विकसित वैक्सीन को बदनाम करने की भी कोशिश कर रही हैं। ये कंपनियां सीधे नहीं, बल्कि लॉबिंग कर अपने प्रयासों को अंजाम दे रही हैं। स्वयं को बहुत बड़ा दानदाता बताने वाले बिल गेट्स भी छद्म रूप से इस व्यवसाय में कंपनियों को लाभ पहुंचाने में लगे हैं। उनके संगठन बिल मिलिंडा गेट्स फांऊडेशन (बीएमजीएफ) द्वारा समर्थित कंपनियों की एक गठजोड़, जिसे गावी के नाम से जाना जाता है, भी इस कवायद में लगी है कि दुनिया के देश उनके वैक्सीन की खरीद की अग्रिम वचनबद्धता दे दें। इस गठजोड़ को विश्व स्वास्थ्य संगठन का प्रत्यक्ष समर्थन प्राप्त है। विश्व स्वास्थ्य संगठन देशों पर दबाव बना रहा है कि वे ‘गावी’ की पहल में शामिल हों। यह उल्लेखनीय है कि गठबंधन वैक्सीन का समर्थन करेगा, जिसे वे पसंद करते हैं और देश वैक्सीन के बारे में निर्णय लेने की स्वतंत्रता खो देंगे।

अभी तक अधिकांशतः वैक्सीन बच्चों को दी जाती रही है। माना जाता है कि जन्म से अल्पायु तक बच्चों को विभिन्न प्रकार की वैक्सीन देकर उन्हें विभिन्न प्रकार की बीमारियों से बचाया जा सकता है। समय के साथ-साथ भारत में विभिन्न प्रकार की वैक्सीन राष्ट्रीय यूनीवर्सल इम्युनाईजेशन कार्यक्रम में शामिल की गई। इसके अलावा कुछ वैक्सीन ऐच्छिक रूप से भी दी जाती हैं। भारत में अनिवार्य यूआईपी में शामिल है- बीसीजी, ओरल पोलियो वैक्सीन (ओपीवी), जिसे तीन स्तरों पर दिया जाता है - हेपेटाईटिस-बी, पेंटावेलेंट, रोटोवायरस, पीसीवी, एफआईपी व मीसल्स अथवा एमआर, जेई, डीपीटी बूस्टर और टीटी वैक्सीन। इसके अतिरिक्त गर्भवती महिलाओं को भी अनिवार्य रूप से कुछ वैक्सीन दी जाती हैं।

यूं तो इनमें से अधिकांश वैक्सीन भारत में ही बनती हैं और वे काफी सस्ती हैं क्योंकि उन पर कोई रायल्टी नहीं दी जाती हैं। लेकिन हाल ही में कई नई वैक्सीन यूआईपी में शामिल की गई हैं, जो काफी महंगी हैं क्योंकि वे पेटेंटीकृत हैं और कंपनियां उनकी भारी कीमत वसूलती हैं।  

वैक्सीन राष्ट्रवाद

रूस द्वारा वैक्सीन विकसित कर लेने और भारत में वैक्सीन निर्माण में आगे बढ़ जाने के कारण, वैश्विक स्तर पर इस महामारी से वैक्सीन बेचकर लाभ कमाने की होड़ में लगी कंपनियां और उनके समर्थक विश्व स्वास्थ्य संगठन काफी विचलित हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तो यहां तक कह दिया है कि यह ‘वैक्सीन राष्ट्रवाद’ वैक्सीन के निर्माण में देरी कर देगा। हालांकि इस कोरोनाकाल में विश्व स्वास्थ्य संगठन अपनी साख खो रहा है। अमरीका ने पहले से उससे अपना रिश्ता तोड़ लिया है और कई अन्य देश उससे नाराज हैं।

कोरोना वैक्सीन की न्यायोचित नीति

आज जब भारत कोरोना से निपटने के तमाम बेहतर उपायों के बावजूद कोरोना संक्रमण से प्रभावित देशों की सूची में संख्या की दृष्टि से दूसरे स्थान पर पहुंच गया है, कोरोना से बचाव के लिए जल्द से जल्द वैक्सीन एक अनिवार्यता बन रही है। दुनिया भर में चल रहे वैक्सीन के प्रयासों में से भारत को चुनाव करना होगा। इस चुनाव के तीन मापदंड होंगे। पहला, क्या चयनित वैक्सीन प्रभावी है? इस चुनाव का दूसरा मापदंड होगा, वैक्सीन के कम से कम साइडइफैक्ट यानि खराब असर। भारत समेत दुनिया के विकासशील देश जो इस महामारी के कारण भयंकर आर्थिक संकट से गुजर रहे हैं, धनाभाव भी एक प्रमुख मुद्दा है। ऐसे में तीसरा मापदंड वैक्सीन की लागत है। यानि जो वैक्सीन सबसे सस्ती हो उसे चुना जाए। यही वास्तव में वैक्सीन राष्ट्रवाद है, जिससे बचने की सलाह विश्व स्वास्थ्य संगठन दे रहा है।

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