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नई विकास वित्त संस्था क्या कुछ कर पाएगी!

सरकार को निजी हाथों में इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास की डोर देने की बात नहीं करनी चाहिए। जब तक ऐसी विकास वित्त संस्थाएँ सरकार के मार्गदर्शन और आर्थिक मदद से चलेगी तब तक ही वह काम कर पाएगी ऐसा कहा जा सकता है। — अनिल जावलेकर

 

नई विकास वित्त संस्था की स्थापना की गई है जिसका नाम रखा गया है ‘नेशनल बैंक फॉर फायनन्सिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर एण्ड डेव्लपमेंट’ (एनबीएफ़आईडी) । यह बैंक बड़े-बड़े इन्फ्रास्ट्रक्टर प्रोजेक्ट को वित्त देगा। यह माना जाता है कि साधारण बैंक दीर्घ कालीन जोखिम उठा नहीं पाते और इसलिए सरकारी समर्थन और सहयोग से खड़े ऐसे विकास बैंक यह कर पाएगें और ऐसे क्षेत्र के विकास में सहायक होगें। वैसे भारत में यह कोई पहली विकास वित्त संस्था नहीं है। बहुत सारी विकास वित्त संस्थाएँ खड़ी की गई और जोखिम भरे प्रोजेक्ट को वित्त या अन्य  सहयोग से उबारने की कोशिश भी की गई। इसके बावजूद भारतीय इन्फ्रास्ट्रक्चर कमजोर रहा और भारतीय अर्थव्यवस्था अपनी क्षमता का उपयोग नहीं कर पाई। क्या नई विकास बैंक संस्था इसमें कुछ कर पाएगी? इसका अंदाजा इस तरह की पहले स्थापित की गई संस्थाओं का इतिहास और हाल देखकर ही लगाया जा सकता है। 

नई विकास वित्त संस्था

सरकार ने हाल ही में नई ‘नेशनल बैंक फॉर फायनन्सिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर एण्ड डेव्लपमेंट’ (एनबीएफ़आईडी) स्थापन करने के लिए कदम उठाए है। यह विकास वित्त संस्था फिलहाल 100 प्रतिशत सरकारी होगी और भविष्य में सरकार खुद की भागीदारी 26 प्रतिशत तक कम करने का इरादा रखती है। यह संस्था सामान्य लोगों से जमा नहीं लेगी लेकिन खुले बाजार तथा राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से पूंजी जमा कर सकेगी। सरकार इस संस्था द्वारा लिए गए कर्जों के लिए गारंटी भी देगी। यह बैंकिंग संस्था मुख्यतः इंफ्रास्ट्रकचर प्रोजेक्ट को दीर्घ कालीन वित्त देगी और उनके विकास में सहायक भूमिका निभाएगी। 

कई विकास वित्त संस्थाएँ भारत में स्थापित हो चुकी है 

नई विकास वित्त संस्था कोई भारत की पहली संस्था नहीं है। भारतीय रिजर्व बैंक ऐसी पहली संस्था कहलाएगी। उसके बाद तो कतार सी लग गई। ऐसी कई संस्थाएँ राष्ट्रीय तथा राज्य स्तर पर स्थापित की गई। राष्ट्रीय स्तर की संस्थाएँ चार प्रकार की कही जाती है। एक तो वो जो दीर्घकालीन जोखिम भरे कर्जे देने के लिए स्थापित की गई। जैसे कि आईएफसीआई, आईडीबीआई, आईडीएफसी या आईआईबीआई। दूसरे प्रकार में पुनर्वित्त देने वाली संस्थाएँ आती है। जैसे कि नाबार्ड, सिड्बी तथा एनएचबी जैसी संस्थाएँ। तीसरे प्रकार में वो संस्थाएँ है जो विशेष क्षेत्र या विशेष सहायता प्रदान करती है जैसे कि एक्सिम बैंक, टीएफसीआई, आरईसी, हुड़को, आईआरईडीए, पीएफसी, तथा आईआरएफसी। चौथे प्रकार की संस्थाएँ निवेश संस्थाएँ मानी जाती है, जैसे कि एलआईसी, यूटीआई, जीआईसी, और वेंचर कैपिटल फंडस। राज्य स्तर पर काम करने वाली संस्थाओं में मुख्य स्टेट फाईनेन्स कारपोरेशन (एसएफसी) तथा एसआईडीसी जैसी संस्थाएँ हैं। 

इन संस्थाओं का क्या हुआ? 

आईसीआईसीआई और आईडीबीआई जैसी विकास वित्त संस्थाएँ तो पूरी तरह से बैंक बन चुकी है। अब तो तीन तरह की विकास वित्त संस्थाएँ अभी भी काम करती नजर आती है। जिसमें मुख्य वह है जो कानून बनाकर बनाई गई। नाबार्ड, सिड्बी एनएचबी तथा एक्सिम बैंक ऐसी संस्थाओं में शामिल है। दूसरे राज्य स्तर की स्टेट फाईनेन्स कारपोरेशन (एसएफसी) जैसी संस्थाएँ है। तीसरी तरह के संस्थाएँ 1956 के कंपनी एक्ट के तहत स्थापित है इसलिये वे एनबीएफसी कहलाती है। आईआईबीआई टीएफसीआई, आरईसी, आईआरईडीए, पीएफसी, तथा आईआरएफसी, एसआईडीसी, आईडीएफसी जैसी संस्थाएं इसमें शामिल है। 

विकास वित्त संस्थाए अपना आपा खो चुकी है 

पिछले 70 सालों में भारतीय अर्थव्यवस्था काफी बदल गई है और वित्तीय संस्था तथा वित्तीय बाजार में काफी बदलाव आए है, जिसके चलते वित्त पोषण की व्यवस्था सुदृढ़ हुई है। पूंजी बाजार, चाहे इक्विटि या कर्जे हो, काफी अच्छा हुआ है और दीर्घकालीन वित्त पोषण कर रहा है। बैंकिंग व्यवस्था भी बदल गई है और बैंक भी जोखिम भरे दीर्घ कालीन कर्जे दे रहे हैं। इसलिए वित्त विकास संस्था का वित्त पोषण में कुछ ज्यादा काम नहीं रहा है। विकास वित्त संस्थाओं का सस्ते दरों पर पैसा जमा करना भी मुश्किल सा हुआ है। और ऐसी संस्थाएँ पूरी तरह सरकार भरोसे चल रही है। ऐसे समय में बाजार से पूंजी लाना और जोखिम भरे प्रोजेक्ट में लगाना नुकसान भरा काम है। पहिले दिये हुए कर्जे भी वापस नहीं आ रहे है और सभी वित्त संस्थाएँ वसूली न होने से परेशान है। 

रिजर्व बैंक का विकास वित्त संस्थाओं पर वर्किंग ग्रुप 

रिजर्व बैंक ने 2004 में एक वर्किंग ग्रुप विकास वित्त संस्था अभ्यास के लिए स्थापित किया था। इस ग्रुप का स्पष्ट कहना था कि विकास वित्त पोषण के लिए विकास वित्त संस्था की जरूरत कम हो गई है। वित्तीय बाजार व्यवस्था काफी बढ़ गई है और पूंजी बाजार के साथ-साथ बैंकिंग प्रणाली भी जोखिम उठाना जान गई है और दीर्घ कालीन जोखिम भरे कर्जे दे रही है। इसलिए विकास वित्त संस्था की जरूरत कम हो गई है। इससे भी महत्वपूर्ण यह है की बाजार से पूंजी जमा करना और जोखिम भरे प्रोजेक्ट में लगाना फायदेमंद नहीं हो सकता। इससे एनपीए बढ्ने का खतरा होता है। इसलिए ग्रुप के मतानुसार विकास वित्त संस्था का मॉडेल अब यशस्वी नहीं हो सकता। 

नई विकास वित्त संस्था बहुत कुछ नहीं कर पाएगी

भारत में जो पहले विकास वित्त संस्थाएँ खड़ी की गई थी उनका इतिहास बहुत कुछ अच्छा नहीं रहा है। इसलिए नई वित्त संस्था कुछ ज्यादा कर पाएगी ऐसा नहीं लगता। अच्छा होता सरकार अभी जो संस्थाएँ जीवित है उन्ही को बल देती और उनका दायरा बढ़ाकर उनका इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास में ज्यादा उपयोग करती। नाबार्ड और सिड़बी जैसी संस्थाएँ आज भी ऐसे विकास के काम कर रही है। वैसे भी सरकार को यह बात ध्यान में रखनी जरूरी है कि इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास कोई मुनाफे वाली बात नहीं है और इसके लिए कोई निजी तौर पर प्रयत्न नहीं हो सकते। सरकार को ही इसके लिए पूंजी जमा करनी होगी और ऐसे विकास में रुचि लेनी होगी। यह बात जाहिर है की सरकार की मदद के बिना ऐसी विकास वित्त संस्था काम नहीं करती और हर प्रकार से सरकार के भरोसे रहती है। सरकार को भी निजी हाथों में  इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास की डोर देने की बात नहीं करनी चाहिए। जब तक ऐसी विकास वित्त संस्थाएँ सरकार के मार्ग दर्शन और आर्थिक मदद से चलेगी तब तक ही वह काम कर पाएगी ऐसा कहा जा सकता है।

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