swadeshi jagran manch logo

कहां गए पोखर-तालाब

न्यायालयों की तत्परता तथा राज्य व जिला प्रशासन की हालिया कार्यवाही से एक आशा जगी है कि आने वाले दिनों में पोखरा तालाब सुरक्षित होंगे, अतिक्रमण से मुक्त होंगे तथा समाप्त प्राय तालाब पुनः जलाप्लावित होकर जल संरक्षण तथा जल संवर्धन का कार्य करेंगे, जिससे प्रकृति एवं समस्त जीव-जंतुओं को पर्याप्त जल प्राप्त होगा तथा जल समस्या का भी समाधान होगा। — डॉ. दिनेश प्रसाद मिश्र

 

आज पूरे देश में पोखर और तालाबों के समक्ष अस्तित्व का संकट खड़ा हुआ है। अनेकानेक तालाब सूखकर सिमट गए हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय देश में लगभग 24 लाख तालाब थे, जिनमें से 20 लाख तालाब गायब हो चुके हैं। भू-माफियाओं, राजनेता तथा अधिकारियों के गठजोड़ ने मिलकर तालाबों का पानी ही नहीं पिया, अपितु महर्षि अगस्त्य से भी आगे बढ़कर पानी सहित उनके अस्तित्व को ही निगल लिया है। जब तक तालाबों की व्यवस्था का कार्य समाज के हाथ में था, समाज के धनिक वर्ग द्वारा समय-समय पर  नए-नए तालाबों का निर्माण एवं पुराने तालाबों की खुदाई कराकर उनके संरक्षण-संवर्धन किया जाता रहा है। किंतु वर्ष 1863 में पीडब्ल्यूडी विभाग के बनते ही यह कार्य शासन द्वारा राज्यों के पीडब्ल्यूडी विभाग सौंप दिया गया। इसका जिम्मा सिंचाई विभाग के हाथों में भी दिया जाता रहा है। दोनों विभागों की खींचतान का असर हुआ कि कोस-कोस में तालाबों से पटी देश की भूमि तालाब रहित हो रही है।

आगरा (उत्तर प्रदेश) के राजपुर गांव में स्थित खसरा नंबर 253 एवं 254 में कभी जल की अपार राषि रहा करती थी तथा वह जल आसपास के लोगों तथा जीव-जंतुओं के लिए जीवन अमृत प्रदान करता था। किंतु नवधनाढ्यों की नजर उस पर ऐसी लगी कि आज उस तालाब के स्थान पर विशाल अट्टालिकाएं खड़ी है। बदायूं जिले के अनेक तालाब भू-माफिया की भेंट चढ़ चुके हैं। चंदोखर, पक्का तालाब तथा चमर तलैया जिनका क्षेत्रफल 50 बीघे से भी अधिक था, अपना अस्तित्व गंवा चुके हैं और अब उनके स्थान पर कल्याण नगर, प्रोफ़ेसर कॉलोनी जैसी पाष कॉलोनियां उग आई हैं। पक्का तालाब का संबंध सुरंग के माध्यम से राजा महिपाल के महल से था, जहां स्नान करने के लिए रानियां जाया करती थी। अब पक्के तालाब का अवषेष मात्र शेष है। इसी प्रकार कानपुर-आगरा राजमार्ग पर एत्मादपुर से पहले कभी एक विषाल तालाब ’बुढ़िया का तालाब’ विषाल दरिया के रूप में स्थित था, जिसमें रजवाहे के माध्यम से पानी निरंतर आता रहता था और वह वर्ष पर्यंत लबालब पानी से भरा रहता था किंतु अब वहां पर पानी का नामोनिषान नहीं है तथा बबूल सहित कांटेदार वृक्षों का जंगल खड़ा हो गया है। प्रयागराज स्थित तालाब नवलराय अब इतिहास का विषय बन गया है। शायद ही किसी को मालूम हो कि कभी यहां विशाल तालाब था, जिसके स्थान पर आज इस नाम का मौहल्ला कायम हो गया है। प्रयागराज में ही बारा तहसील के लालापुर मार्ग पर स्थित धरा गांव का तालाब अपने आपमें अद्वितीय था। 40 एकड़ में फैले इस तालाब की भूमि कंक्रीट की बनाई गई थी और उसमें चारों ओर से आकर बरसाती पानी जमा होता था तथा वह अड़ोस-पड़ोस के गांवों सहित धरा गांव के लोगों तथा अन्य जीव-जंतुओं के पेयजल के साथ-साथ फसलों की सिंचाई एवं अन्य आवश्यक कार्यों में उपयोग में लाने पर भी वर्ष पर्यंत लबालब भरा रहता था। किंतु आज वहां पानी के स्थान पर सूखी भूमि नजर आती है। गोरखपुर स्थित असुरन पोखरा, जिसे सन 1075 से 1077 के मध्य राजा शूरपाल ने विष्णु मंदिर के साथ बनवाया था, आज पानी रहित होकर असुरन मोहल्ले के नाम से गोरखपुर में जाना जाता है। कानपुर देहात घाटमपुर स्थित कुष्मांडा देवी मंदिर का तालाब भी अपनी यही कहानी कह रहा है। गाजीपुर के सिद्धपीठ भुड़कुड़ा के उत्तरी छोर पर स्थित पोखरा चमत्कारी पोखरा के नाम से जाना जाता है, जिसे सिद्धपीठ के दूसरे महान संत गुलाल साहिब ने संवत 1766 में खुदवाया था, आज अंतिम सांसे ले रहा है। इसी प्रकार अलीगढ़ से अतरौली स्थित राजमार्ग पुर गांव का तालाब, शाहजहांपुर की तहसील तिलहर और पुवाया की सीमा में लघौला चेना में 84 बीघा के विषाल क्षेत्र में फैला तालाब, अमेठी के 109 हेक्टेयर में फैला हुआ समदा ताल, नोएडा के बिलासपुर में स्थित 40 बीघा का ताल आदि।

आज देश का तीन चौथाई भाग पेयजल की समस्या से जूझता नजर आता है। देष के लगभग 70 प्रतिषत घरों में शुद्ध पेयजल उपलब्ध नहीं है। लोग प्रदूषित पानी पीने के लिए बाध्य हैं, जिसके चलते लगभग 4 करोड़ लोग प्रतिवर्ष बीमार होते हैं। देश में प्रतिवर्ष लगभग 4000 अरब घन मीटर पानी वर्षा के जल के रूप में प्राप्त होता है किंतु उसका लगभग 8 प्रतिशत पानी ही हम संरक्षित कर पाते हैं, शेष पानी नदियों, नालों के माध्यम से बहकर समुद्र में चला जाता है। हमारी सांस्कृतिक परंपरा में वर्षा के जल को संरक्षित करने पर विषेष ध्यान दिया गया था, जिसके चलते स्थान-स्थान पर पोखर, तालाब, बावड़ी, कुआं आदि निर्मित कराए जाते थे, जिनमें वर्षा का जल एकत्र होता था तथा वह वर्ष भर जीव-जंतुओं सहित मनुष्यों के लिए भी उपलब्ध होता था।  किंतु अब वैज्ञानिक प्रगति के नाम पर इनके अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है।

पोखर एवं तालाब पर हो रहे अतिक्रमण को देखते हुए प्रकृति प्रेमी तथा जल संरक्षण तथा संवर्धन की दिषा में कार्य कर रहे लोगों द्वारा समय-समय पर ऐसे जल स्रोतों की सुरक्षा हेतु माननीय उच्च न्यायालय तथा उच्चतम न्यायालय में भी गुहार लगाई गई। श्री हिंचलाल तिवारी, जगपाल व अन्य की जनहित याचिका में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा देष के सारे झील तालाब झरनों को अतिक्रमण मुक्त करने का आदेष दिया गया था। इसके बाद गाजीपुर के इकबाल अहमद की जनहित याचिका में माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद के तत्कालीन न्यायमूर्ति श्री शंभूनाथ श्रीवास्तव ने सुनवाई करते हुए तालाबों से अतिक्रमण हटाने के लिए 2005-06 में आदेष पारित करते हुए कहा गया कि 1952 के पहले के राजस्व अभिलेखों में पोखर, तालाब आदि के रूप में अंकित जलाषयों को अतिक्रमण मुक्त कर उन्हें बहाल किया जाए। माननीय न्यायालयों द्वारा पारित उक्त निर्णयों से कुछ जलाषयों को जीवनदान मिला, किंतु उनका व्यापक प्रभाव नहीं पड़ा। 

उत्तर प्रदेष के आगरा के राजपुर गांव के खसरा नंबर 253 एवं 254 में स्थित तालाब को बहाल कराने हेतु संघर्ष कर रही सपोर्ट इंडिया वेलफेयर सोसाइटी आगरा के लोग उक्त निर्णय के आलोक में शासन प्रषासन से संबंधित तालाब की मुक्ति हेतु निरंतर अनुनय विनय करते रहे, किंतु परिणाम कुछ नहीं निकला। हारकर उन्होंने भी माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद की शरण ली और जनहित याचिका दाखिल कर तालाब को मुक्त कराने का अनुरोध किया। जिसमें निर्णय पारित करते हुए जिलाधिकारी आगरा को संबंधित तालाब को अतिक्रमण मुक्त कराकर उसे बहाल कराने का आदेष दिया गया। किंतु जिलाधिकारी उसे अतिक्रमण मुक्त कराकर बहाल नहीं करा सके, क्योंकि संबंधित तलाब में कंक्रीट की अट्टालिकाओं का मायाजाल फैला हुआ था। भू-माफिया, राजनेता एवं अधिकारियों का रचना संसार अपने प्रभाव से जिलाधिकारी को तालाब को अतिक्रमण मुक्त कराने में सफल नहीं होने दिया। फलस्वरूप जनहित याचिकाकर्ता ’सपोर्ट इंडिया वेलफेयर सोसाइटी’ ने पुनः एक बार माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद की शरण जनहित याचिका संख्या 1479/19 के माध्यम से ली, जिसमें निर्णय पारित करते हुए न्यायमूर्ति प्रदीप कुमार सिंह बघेल तथा न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल की खंडपीठ ने प्रदेष के सभी जिला अधिकारियों को तालाबों से अतिक्रमण हटाकर उनकी पुनर्बहाली का आदेष दिया है। साथ ही मुख्य सचिव को राजस्व परिषद के चेयरमैन के परामर्ष से एक मानिटरिंग कमेटी गठित करने का निर्देष देते हुए कहा है कि प्रदेश के प्रत्येक जिला अधिकारी, अपर जिलाधिकारी वित्त राजस्व तालाबों की सूची तैयार करें तथा अतिक्रमण हटाकर उनकी पुनर्बहाली का कार्य करें। 

इस क्रम में न्यायालय ने जिलाधिकारी आगरा को तालाब को बहालकर अपनी रिपोर्ट 3 माह के भीतर महानिबंधक माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष पेष करने का आदेश दिया है। साथ ही माननीय उच्च न्यायालय ने कहा है कि मानिटरिंग कमेटी में पूर्व न्यायाधीष श्री राम सूरत राम मौर्या को भी आमंत्रित किया जाए। पहले से गठित राज्य स्तरीय जिला स्तरीय समितियां भी अपनी रिपोर्ट नवगठित कमेटी को दें। न्यायालयों की तत्परता तथा राज्य व जिला प्रषासन की हालिया कार्यवाही से एक आषा जगी है कि आने वाले दिनों में पोखरा तालाब सुरक्षित होंगे, अतिक्रमण से मुक्त होंगे तथा समाप्त प्राय तालाब पुनः जलाप्लावित होकर जल संरक्षण तथा जल संवर्धन का कार्य करेंगे, जिससे प्रकृति एवं समस्त जीव-जंतुओं को पर्याप्त जल प्राप्त होगा तथा जल समस्या का भी समाधान होगा।

Share This

Click to Subscribe