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क्यों आ जाता है शहरों में सैलाब?

शहरों के ड्रेनेज एवं सीवर सिस्टम को वर्तमान आवश्यकता के अनुसार ठीक किया जाए तथा नदियों के प्रवाह मार्ग के समीप नवनिर्माण पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाया जाए। यदि समय से सीवर सिस्टम नालियों एवं नालों की सफाई न की गई तो शहरों में सैलाब का दृश्य प्रतिवर्ष उपस्थित होता रहेगा और अपार धन-जन हानि होती रहेगी।  — डॉ. दिनेश प्रसाद मिश्र

मानव सभ्यता और संस्कृति का विकास सदानीरा नदियों के तट पर ही हुआ है। जीवन में जल का महत्व सर्वाधिक होने के कारण विश्व की समस्त सभ्यताएं नदियों के समीप ही पुष्पित और पल्लवित हुई हैं। समय-समय पर होने वाली वर्षा से कभी भी शहर संत्रस्त नहीं हुए, वरन् वर्षा का जल इन शहरों के लिए जीवन जल अमृत बनकर निरंतर प्राप्त होता रहा है और यह जल भूगर्भ में जाकर वहां के जल स्तर को बढ़ाते हुए जीव जगत की आवश्यकता अनुसार निरंतर प्राप्त होता रहा है। इसके विपरीत जलवायु परिवर्तन के कारण हुई असामयिक और अनियमित तथा असीमित वर्षा और उसके परिणामस्वरूप आई भयंकर बाढ़ ने हाल के वर्षों में पूरे परिदृश्य को ही बदलकर रख दिया है। विश्व का कोई कोना ऐसा नहीं बचा जहां के शहरों में बाढ़ का दृश्य न उपस्थित हुआ हो। भारत, चीन जापान, इंग्लैंड, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, पाकिस्तान, स्कॉटलैंड, नेपाल आदि के अनेकानेक शहर अकस्मात जल प्लावित हो गए। जल की अधिकता से कई शहर तैरते हुए से दिखाई पड़ने लगे। जहां एक ओर बड़े-बड़े भवन धराशाई हो गए वहीं दूसरी ओर सड़कों पर अगाध पानी भर गया और जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया। आखिर ऐसी कौन सी स्थितियां बनी जिससे सदियों से निरंतर प्रवाहमान जल अपने मार्ग पर आगे न बढ़ कर शहरों में सैलाब के रूप में उपस्थित हुआ और शहरों में कहर बनकर बरपा। 

शहरों में सैलाब का आना कोई अकस्मात घटित घटना नहीं है अपितु मनुष्य एवं प्रकृति के बीच निरंतर चल रहे संघर्ष का परिणाम है। जब तक मानव और प्रकृति में सहअस्तित्व के संस्कार एवं भावना विद्यमान थी तब तक वह दोनों एक दूसरे के पूरक बनकर कार्य करते रहें । प्रकृति  जीवन और संसार का पोषण निरंतर करती रही किंतु विकासोन्मुखी व्यवस्था को दृष्टि में रखकर निरंतर प्रयासरत मानव प्रकृति के अस्तित्व को अस्वीकार कर निरंतर उसके साथ छेड़छाड़ करते हुए मन माना आचरण करने लगा जिससे प्रकृति कुपित हो गयी। जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून के आने और जाने का समय भी परिवर्तित हो जाने से उसका आकलन कर पाना असंभव सा हो गया है। विगत कई वर्षों से वर्षा की स्थिति भी अनियमित तथा अनिश्चित सी हो गई है। 

सभ्यता एवं शहरीकरण के प्राथमिक दौर में मानव बस्तियों के निर्माण के समय यद्यपि नदियों का सहारा अवश्य लिया गया था तथा मानव बस्तियां नदियों के किनारे ही स्थापित हुई थी, पर नदियों का दूसरा छोर उनके प्रवाह एवं फैलाव के लिए छोड़ दिया जाता था। जिससे नदियों के बहने के लिए पर्याप्त स्थान मिल जाता था तथा उनकी धारा बिना किसी बाधा के अपने तटवर्ती एवं समीपवर्ती स्थानों में वर्षा जल के रूप में अकस्मात प्राप्त जल की अगाध राशि को अन्य नदी नालों के माध्यम से प्राप्त कर अपनी धारा में समाहित कर उसे गंतव्य तक पहुंचाती थी किंतु आज शहरीकरण की दौड़ में शहरों का अनियंत्रित विकास हुआ। गांव से शहरों की ओर आ रही आबादी बिना कुछ सोचे विचारे जहां जगह मिली वही आवास बनाकर बस गई। 

शहरों एवं मानव बस्तियों के एक किनारे से बहने वाली नदियां आज शहरों के मध्य में आ गई हैं जिससे जल की मात्रा बढ़ जाने पर उनका जल नदी की सीमा तोड़कर शहरों एवं मानव बस्तियों में सहज रूप में प्रवेश कर जाता है और वहां सैलाब की स्थिति उत्पन्न कर देता है। आज छोटे कस्बों से लेकर बड़े शहरों तक चारों ओर कंक्रीट के जंगल उग आये हैं। भवनों के अंधाधुंध निर्माण होने तथा उसके सापेक्ष जल निकासी की व्यवस्था सुनिश्चित न किए जाने से   जल निकासी व्यवस्था चरमरा गई और शहरों की जल निकासी क्षमता जवाब दे गयी। जीवन को सुखमय बनाने की अंधी दौड़ ने गांव की आबादी को शहर की ओर धकेला ,जिससे शहरों की आबादी एवं जनसंख्या घनत्व में अप्रत्याशित वृद्धि हुई। 2011 की जनगणना के अनुसार देश के 27 करोड़ से अधिक लोग शहरों में निवास करते हैं। देश में 7935 कस्बे हैं उनमें से 468  ऐसे हैं जिनकी आबादी कम से कम एक लाख है 

इनमें से 53 शहरों की आबादी 10 लाख या उससे  अधिक है। सन 1971 में जहां देश में एक लाख से अधिक आबादी के मात्र 151 शहर थे, अब उनमें 100 प्रतिशत की वृद्धि होकर उनकी संख्या 300 से अधिक पहुंच गई है। निकट भविष्य में देश की आबादी  की 40 प्रतिशत जनसंख्या शहरों में ही निवास करने लगेगी। दिल्ली कोलकाता बंगलुरु अहमदाबाद मद्रास पटना मुंबई कानपुर जैसे महानगरों में जल निकासी  की सुचारू व्यवस्था न होने के कारण वर्षा होते ही इन शहरों में जल निकासी की समस्या भयंकर रूप धारण कर लेती है। इस समस्या के मूल में शहरों की सैकड़ों वर्ष पुरानी सीवर और जल निकासी व्यवस्था है, जो शहरों के वर्तमान आबादी एवं क्षेत्र के सामान्य भार को ढोने में सक्षम नहीं है। 

देश में कोलकाता में सबसे पुरानी ड्रेनेज प्रणाली है। यहां पर पहला ईटों से बना  सीवर सिस्टम 1876 में शुरू हुआ था। उस समय इसे 6.35 मिली मीटर प्रति घंटा बारिश के पानी को दृष्टि में रखकर डिजाइन किया गया था करीब 100 साल बाद आज 12.7 मिलीमीटर प्रति घंटा बारिश के पानी को निकालने के लिए तैशर करने की कोशिशें की गई है , जबकि आज की अनियमित वर्षा में इससे काफी अधिक वर्षा प्रतिवर्ष हो जाती है। 2003 में सिर्फ 1 घंटे में ही 54 मिलीमीटर बारिश बाढ़ का कारण बनी थी। कमोबेश यही स्थिति देश के पुराने शहरों की  है। 

वर्षा ऋतु के प्रारंभ में ही इस वर्ष राजस्थान मध्य प्रदेश महाराष्ट्र उत्तर प्रदेश असम झारखंड बिहार उत्तराखंड गुजरात छत्तीसगढ़ कर्नाटक केरल और उड़ीसा में अधिकांश शहरों में पानी घुस गया। मुंबई दिल्ली जयपुर देहरादून कानपुर जैसे शहरों में वर्षा का पानी सैलाब बनकर सड़कों में भर गया। भवनों के भूतल पानी से लबालब भर गए, उनमें रहने वाले लोगों को उनकी छतों एवं दूसरी मंजिलों का सहारा लेना पड़ा। शहरों में आई बाढ़ नदियों में आने वाली बाढ़ की ही तरह विनाशकारी एवं जनजीवन को अस्तव्यस्त करने वाली रही।

पहले गांव एवं शहर सभी में जल संचयन की उत्तम व्यवस्था हुआ करती थी। आबादी के साथ-साथ कुंआ तालाब बावड़ियों का जाल बिछा हुआ था। किंतु अब इन जल स्रोतों की ओर ध्यान न दिए जाने से यह समाप्ति के कगार पर पहुंच गए हैं, जिसका परिणाम है भूगर्भ जल स्तर का निरंतर गिरते जाना और लगभग समाप्त हो जाना। बैंगलोर दिल्ली नैनीताल जैसे अनेक शहरों में जहां झीलें पर्यटन की दृष्टि से अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती थी तथा लोगों को सहज रूप में आकर्षित करती थी आज अपना अस्तित्व लगभग खो चुकी हैं। नैनीताल की झील जो कभी 22 वर्ग किलोमीटर में फैली हुई थी अब सिकुड़ कर 8 वर्ग किलोमीटर में ही रह गई है। प्रयागराज भोपाल दरभंगा पटना आदि शहरों के तालाब लगभग समाप्त हो चुके हैं। 5000 से अधिक छोटी छोटी नदियां अपना अस्तित्व खो चुकी हैं तथा 20,000 से अधिक तालाब एवं झीलें गायब हो गये हैं । देश के अनेक शहरों मैं झीलों तालाबों जोहडों एवं बावड़ियों के साथ यही हुआ ।सरकारी आंकड़ों के अनुसार स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात लगभग 70 सालों में 70,000 से अधिक कुआं और तालाबों ने अपना अस्तित्व खो दिया है। 

एशियन विकास बैंक का अनुमान है कि भारत में जलवायु परिवर्तन संबंधी सभी आपदाओं में बाढ़ की हिस्सेदारी लगभग 50 प्रतिशत है। केंद्रीय जल आयोग के 1952 से 2018 के डाटा से पता चलता है कि 68 साल में एक भी साल ऐसा नहीं रहा है जब बाढ़ के कारण देश को जीवन और संपत्ति का बड़ा नुकसान न उठाना पड़ा हो। 

आज आवश्यकता है, शहरों के ड्रेनेज एवं सीवर सिस्टम को वर्तमान आवश्यकता के अनुसार ठीक किया जाए तथा नदियों के प्रवाह मार्ग के समीप

नवनिर्माण पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाया जाए। यदि समय से सीवर सिस्टम नालियों एवं नालों की सफाई न की गई तो शहरों में सैलाब का दृश्य प्रतिवर्ष उपस्थित होता रहेगा और अपार धन जन हानि होती रहेगी।         

(लेखक जल एवं पर्यावरण मामलों के जानकार है।)

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