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भारत के बाहर भारतीयता

भारत से बाहर भारतीयता का वर्णन करना लगभग असंभव है। भारत से बाहर जाकर इतना विश्वास रहता है कि एक विशाल भारत विदेशों में भी है। - विनोद जौहरी

 

विश्व भर में सनातन धर्म की विशालता और हिंदुओं का प्रभाव बहुत प्रेरणादायक विषय तो है ही, परंतु इस को भारत से बाहर देखने से यथार्थ और इसका वृहद रूप समझ आता है। जो कुछ हम इस विषय को भारत में पढ़ने और शोध करने से प्राप्त करते हैं, वह विशुद्ध रूप से शैक्षणिक महत्व का ही रहता है। यदि विदेशी धरती से इसको देखा और समझा जाये तो उसमें बहुत जिज्ञासा से परिपूर्ण, गहरी समझ और हृदयस्पर्शी ज्ञान प्राप्त होता है। भारत में भी सनातन के स्वरूप में बहुत विविधता है और उत्तर से लेकर दक्षिण तक धार्मिक और सामाजिक मान्यताओं में विविधता के बावजूद एकरूपता है। विभिन्न देशों में सदियों और पीढ़ी दर पीढ़ी से बसे भारतीय मूल के निवासियों का धार्मिक और सामाजिक स्वरूप बदल चुका है फिर भी भारतीयता पूर्णतः परिलक्षित होती है।

28 फरवरी 2021 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रमुख पत्रिका ऑर्गेनाइजर में “ट्रेसिंग फिलियल लिंक्स“ शीर्षक से एक लेख प्रकाशित हुआ था जो आस्ट्रेलिया के वनवासियों (एबॉरिजिंस) के मूल भारतीय होने के वैज्ञानिक अध्ययन और धार्मिक मान्यताओं पर आधारित था और एबॉरिजिनल लेखक अंकल ग्राहम पॉलसन के आस्ट्रेलियाई वनवासियों की आध्यात्मिकता पर लेखों से उद्धृत था। इस लेख में उनका डीएनए भारतीयों के डीएनए का 11 प्रतिशत बताया गया। भारत से 14000 किमी दूर आस्ट्रेलियाई जनमानस की मुख्यधारा से बाहर और दूरदराज के जंगलों में बसे इन वनवासियों का भारतीय मूल से जुड़ा होना बहुत असंभव सा प्रतीत होता था। समय-समय पर समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में आस्ट्रेलियाई एबॉरिजिंनल्स पर लेख प्रकाशित होते रहे जिनमें वह सैकड़ों वर्षों पूर्व के रहन सहन, वेश-भूषा, खान-पान और मान्यताओं में दिखाए गये। कई अन्य वैज्ञानिक और मेडिकल शोध में आस्ट्रेलियाई एबॉरिजिंनल्स को 50000 वर्षों पूर्व भारत से आस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स प्रांत में प्रवर्जित बताए गये और पापुआ न्यू गिनी के वनवासियों के समान कहा गया। 

सौभाग्य से मेरा आस्ट्रेलिया जाना होता है और वहां एक दो माह का निवास भी होता है, जिसमें विक्टोरिया (मेलबर्न), वेस्ट आस्ट्रेलिया (माउंट गैंबियर) और न्यू साउथ वेल्स (सिडनी) में जाना हुआ। सिडनी से ब्लू माउंटेन जाते समय सिडनी से लगभग 100 किमी दूर एक छोटा शहर है कुटूंबा जो जिला मुख्यालय भी है। कुटूंबा में एक पर्वतीय एबॉरिजिनल साइट है जो बहुत विशाल साइट है और दूर दूर तक ऊंची ऊंची पहाड़ियां फैली हुई हैं जिनके बीच एक कडूंबा नदी भी थी जिसके किनारे-किनारे वनवासियों का वास था। वहां एक शिलालेख भी है जिसमें वनवासियों के इतिहास के बारे में लिखा है। कटूम्बा ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स में ब्लू माउंटेन शहर का मुख्य शहर और ब्लू माउंटेन सिटी काउंसिल का प्रशासनिक मुख्यालय है। कटूम्बा, धारुग और गुंडुंगुर्रा आदिवासी लोगों की भूमि पर स्थित है। ब्लू माउंटेन एक बहुत ही सुन्दर पर्यटक पर्वतीय स्थान है जहां तीन दिन ठहरे। अब इस साइट पर कोई एबॉरिजिंनल्स नहीं रहते। ऐसा माना जाता है कि विदेशी आक्रांताओं द्वारा इन एबॉरिजिंनल्स का बड़ी संख्या में नरसंहार किया गया। 

ऐसा नहीं है कि एबॉरिजिंनल्स दिखाई नहीं देते। न्यू साउथ वेल्स में नदियों के आसपास यह बैठे दिखाई देते हैं और बहुत से सिडनी में भी बस गये हैं। जैसा आस्ट्रेलियाई वनवासियों को लेखों में आदिवासी रूप में दिखाया जाता है, वैसे नहीं हैं। भारतीयों से रंग रूप, बनावट, हाव-भाव में हम जैसे ही हैं। आस्ट्रेलिया में वह अब भी मुख्यधारा में नहीं हैं और जीवनयापन के लिए संघर्षरत हैं। जो एबॉरिजिंस शहर या कस्बों में आ गये हैं, उनके बच्चे स्कूलों में पढ़ते हैं। मैं जब अपने नाती-नातिन (बेटी के पुत्र और पुत्री) को सिडनी के केंसिंग्टन पब्लिक स्कूल में प्रातः छोड़ने जाता था तो बहुत से ब्रिटिश, चीनी, श्रीलंकाई, पाकिस्तानी और विभिन्न देशों के प्रवर्जित नागरिकों के बच्चे भी स्कूल में आते थे। तो कुछ बिल्कुल भारतीय दिखने वाले बच्चों के बारे में अपनी बेटी से पूछा तो पता चला कि वह एबॉरिजिंनल्स बच्चे हैं। बिल्कुल हमारे जैसे। युवा और वयोवृद्ध एबॉरिजिंनल्स जैसे पंजाब के किसी पिंड से हों। वैसी ही बलिष्ठ बनावट। रंग थोड़ा सांवला, थोड़े से घुंघराले बाल। 

असली बात यह है कि वे आस्ट्रेलिया के मूल नागरिक हैं। विदेशी आक्रांता आस्ट्रेलिया में ही बस गये जैसे हमारे देश से ब्रिटिश आक्रांता वापस इंग्लैंड चले गये। 

आस्ट्रेलिया, यूरोपीय और अन्य देशों में भारतीय, श्रीलंकाई, नेपाली, सूरीनाम, पाकिस्तानी, बंग्लादेशी, इराकी, थाई, फिजी, तिब्बती, मलेशियाई, मॉरिशस, इंडोनेशियाई सब एक जैसे लगते हैं। पाकिस्तानी और बांग्लादेशी अपने को “इंडियन“ बोलते हैं और विभाजन से पूर्व प्रवासित बताते हैं। यदि भारतायों से मिलना हो तो इस्कॉन  व अन्य मंदिरों में बड़ी संख्या में भारतीयों का जाना होता है। पीढ़ियों से बसे भारतीय भी बड़े-बड़े व्यापार में समृद्ध हैं। जो भारतीय नौकरियों के बजाय व्यापार में लगे वह समृद्ध हैं। विदेशों में विभिन्न एअरपोर्ट पर भारतीय, मॉरिशस, सूरीनाम, फ़िजी मूल के कर्मचारी मिल जाते हैं और हमको भारतीय जानकर बहुत सहायता और अच्छा व्यवहार करते हैं। हिंदी समझते हैं और बात भी करते हैं। भारतीय खाद्य पदार्थों, पूजा अर्चना का सामान बड़े आराम से भारतीय और नेपाली दुकानों पर मिलता है। सागर रत्ना जैसे रेस्टोरेंट भी भारतीयों से मिलने के सुअवसर हैं। बड़े मॉल में भी भारतीय वस्तुएं, हल्दीराम के खाद्य पदार्थ सुलभ हैं। घर में कोई पूजा पाठ कराना हो तो फिज़ी और मॉरिशस के कर्मकाण्ड के पंडितजी मिल जाते हैं जो स्थानीय प्रशासन में उच्च पदों पर आसीन हैं। भारतीयों के बिना विदेश भी सूने हैं क्योंकि मातृभूमि से प्रेम करना उनके डीएनए में हैं। आज भारतीय मूल के विभिन्न देशों में 200 सांसद और 60 राष्ट्राध्यक्ष और मंत्री हैं।

भारत से बाहर भारतीयता का वर्णन करना लगभग असंभव है। भारत से बाहर जाकर इतना विश्वास रहता है कि एक विशाल भारत विदेशों में भी है। जितना देखा, उतना लिखा। जितना पढ़ा उसको व्यवहारिकता पर परखा।        

(आस्ट्रेलिया से लौटकर)

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