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नई सरकार, पर अपेक्षा वही 

नई सरकार के अस्थिर और अल्पमत में होने के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा और देश में बाहरी ताकतों का अंदरूनी विद्रोही से मिलकर आतंकवाद फैलने का डर सबसे ज्यादा है। शायद यही नई सरकार को चुनौती है। - अनिल जवलेकर

 

लोकसभा चुनाव प्रक्रिया पूर्ण हुई है और अब भाजपा के नेतृत्व में राजग की नई सरकार बन गयी है। किसी भी पार्टी को बहुमत न मिलने से कठिनाई यह होती है कि सरकार कमजोर रहती है। भारत में फिर एक बार राजकीय अस्थिरता का दौर चल पड़ा है। देखना पड़ेगा कि यह अस्थिरता मध्यवर्ती चुनाव की ओर ले जाती है या फिर पाँच साल सरकार चलने देती है। कुछ भी हो, यह तय है कि अब सरकार धाकड़ निर्णय नहीं ले पाएगी और भारत की विकास गति धीमी हो जाएगी। प्रधानमंत्री ने जो एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई थी वह भी शायद अब नहीं रहेगी। और इसका परिणाम तो भुगतना ही पड़ेगा। जहां तक सरकार से अपेक्षा की बात है, अपेक्षा तो बदली नहीं है। नई कमजोर और अस्थिर सरकार शायद इसे पूरा करने में भी सक्षम नहीं होगी। फिर भी कुछ सामान्य अपेक्षा की ओर ध्यान आकर्षित करना ही होगा। इसमें सरकार कुछ करती है तो उपयुक्त होगा। 

किसान समृद्धि की ओर कदम जरूरी 

भारतीय किसान बाजार और पर्यावरण में हो रहे बदलाव से तंग है। कृषि बाजार संबंधी तीन कानून वापस लेने से सभी कुछ अस्पष्ट सा हुआ है। यह सच है कि बाजार के चढ़ाव-उतार से होने वाले नुकसान से बचने के लिए दिया जा रहा फसल कीमत संरक्षण और संबंधित समर्थन मूल्यों पर सरकार की फसल खरीदी से किसान खुश नहीं है। वैसे भी इस व्यवस्था का लाभ भारत के कुछ ही क्षेत्र के किसानों और फसलों को मिलता है। भारत के सभी क्षेत्रों के किसान और सभी क्षेत्रीय फसलें जब तक इस व्यवस्था का भाग नहीं होती तब तक इसमें  सफलता नहीं मिलेगी। उसी तरह फसल बीमा भी किसान के आए दिन होने वाले नुकसान को कम नहीं कर पा रही है। इसलिए इस ओर भी ध्यान देना होगा। किसान सम्मान निधि भी किसान को खुश नहीं कर पाया है क्योंकि उसका नाता किसान के नुकसान से किसी भी तरह से नहीं है। अच्छा होगा इसका नाता किसान की आय से हो। किसान की आय उसकी जमीन, फसल उत्पादन और उसकी उत्पादकता तथा उसकी बिक्री से आती है। फसल के बाजार मूल्य उसे प्रभावित करते है और किसान आय के प्रति सशंकित रहता है। मध्य प्रदेश की भावांतर भुगतान योजना अगर राष्ट्रीय स्तर पर अमल में लाई जाये तो शायद किसान को राहत मिल सकती है। यह जरूरी है कि सरकार की मंशा और कदम किसान की आय को सुनिश्चित करना होना चाहिए। अगर किसी कारणवश फसल का नुकसान होता है तो किसान को बिना विलंब नुकसान भरपाई मिले ऐसी व्यवस्था सरकार को जिम्मेवारी के साथ करनी चाहिए। सम्मान निधि भी किसी तरह से इस आय को सुनिश्चिति करने में उपयोगी होती है, तो अच्छा होगा। 

रोजगार उपलब्ध करने होंगे 

सुशिक्षित युवाओं के लिए रोजगार महत्वपूर्ण है। भारतीय शिक्षण व्यवस्था रोजगार के लिए जरूरी कौशल देने में नाकाम रही है और इसमें आमूल-चुल बदल की आवश्यकता है। कौशल निर्माण के लिए किए जा रहे प्रयास इस शिक्षण व्यवस्था का एक हिस्सा होना जरूरी है। नहीं तो यह व्यवस्था पदवी तो देती रहेगी, लेकिन युवाओं को रोजगार दिलाने में उपयोगी नहीं रहेगी। उत्पादन उद्योग की भूमिका रोजगार निर्माण में कम नहीं आंकी जा सकती। भारत को अपना उत्पादन क्षेत्र बढ़ाना ही होगा। साथ ही बदलते तंत्र ज्ञान युग में स्वचालित यांत्रिकी आने से उत्पादन उद्योग में भी बदलाव हो रहा है और रोजगार कम उपलब्ध हो रहे है। इसको भी ध्यान में रखकर ग्रामीण उद्योग को बढ़ावा देना होगा, और स्वरोजगार बढ़ाने होंगे तभी बेरोजगारी की समस्या का कुछ हल हो सकता है। 

पर्यावरण पर ध्यान देना जरूरी 

पर्यावरण बदल रहा है और उसकी जिम्मेवारी भी मानव जाति पर है। समस्या समझ आने पर भी कुछ करने की बात सिर्फ मौखिक सहानुभूति तक सीमित है। इसे जन आंदोलन का रूप देने से ही कुछ हो सकता है। प्लास्टिक का उपयोग कम करना तो इसमें है ही लेकिन ई-वेस्ट की समस्या भी बढ़ रही है। अपने आस-पास का पर्यावरण शुद्ध रखने के प्रयास हर स्तर पर होना जरूरी है। सरकार को यह आंदोलन जन आंदोलन बनें, ऐसे प्रयास करने होंगे। 

राजनीतिक व्यवस्था नैतिक हो, यह जरूरी 

भारत में राजकीय नैतिक आचरण बहुत ही निचले स्तर पर जा रहा है। इसलिए इसमें कानूनी तौर पर कुछ करने की जरूरत है। जेल  में बंद होने की बावजूद जेल से सरकार चलाने की भाषा लोकतंत्र के लिए हानिकारक मानी जानी चाहिए और इसलिए कानूनी बदलाव होने चाहिए। उसी तरह न्यायालय ने नेताओं को राजकीय कारणों से जेल से रिहा करने की नई परंपरा शुरू की है। उसे भी लगाम लगना जरूरी है। कानूनी प्रक्रिया में न्याय व्यवस्था की भूमिका स्पष्ट करने की जरूरत आन पड़ी है।

चुनाव सुधार को प्राथमिकता देनी होगी

भारतीय लोकतंत्र में चुनाव ही सब कुछ रहा है। इसलिए चुनाव सुधार जरूरी है। चुनाव में राजकीय पक्षों का महत्व बढ़ता जा रहा है, लेकिन लोकतंत्र के प्रति उनकी जिम्मेवारी तय नहीं है। चुनावी घोषणा पत्र, उसमें किए जा रहे वादे, गुनहगार उम्मीदवार, मुफ्त में दी जाने वाली वस्तु एवं सेवाओं के वादे भारतीय लोकतंत्र को खोखला और अर्थव्यवस्था पर बोझ होती जा रही है। इसका हल समय रहते ही ढूंढना जरूरी है। यह जरूरी है कि एक भी गुनहगार चुनाव प्रक्रिया में भाग न ले सके, ऐसी व्यवस्था हो। गुनहगार की व्याख्या ही बदलनी होगी और हर तरीके से चुनाव प्रक्रिया स्वच्छ करनी होगी।  

नई सरकार के अस्थिर और अल्पमत में होने के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा और देश में बाहरी ताकतों का अंदरूनी विद्रोही से मिलकर आतंकवाद फैलने का डर सबसे ज्यादा है। शायद यही नई सरकार को चुनौती है। इससे निपटकर समाज और देश हित के लिए कानूनी बदलाव लाकर उन्नति की ओर अर्थव्यवस्था को ले जाना, एक कठिन सा काम है। आशा है भाजपा नेतृत्व की नई सरकार देशहित में काम करने से नई चूकेगी।  

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