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जल संकटः जल के छल का कैसे हो हल?

बीते आठ वर्षों की तरह दिल्ली की सरकार का जल आपूर्ति में कमी के लिए हरियाणा को कोसना और फिर इसके लिए सुप्रीम कोर्ट की शरण में जाना इस बार भी जारी है। - डॉ. दिनेश प्रसाद मिश्रा

 

जासू राज प्रिय प्रजा दुखारी, सो नृप अवसि नरक अधिकारी। दिल्ली के मुख्यमंत्री शराब घोटाले के आरोप में कैद हैं। दिल्ली की आम जनता पानी के लिए त्राहि-त्राहि कर रही है और बाल्टी लेकर टैंकरों के पीछे भाग रही है। सरकारी अमला-जमला पड़ोसी राज्यों पर पानी नहीं देने का आरोप लगा रहे हैं। अदालतें आए दिन नसीहतें दे रही हैं। लगातार बढ़ते तापमान के साथ जी रहे मजबूर लोगों के लिए जरूरी पानी के धधकते सवाल पर कोई ठोस हल के साथ आगे आने के बजाय दिल्ली की जनता को आवश्यक पानी उपलब्ध कराने के जबाव में जितने मुंह उतनी बातें हो रही है।

इस बार गर्मी तीखी है और इसके लंबा चलने की बात हो रही है। ऐसे में पानी की मांग बढ़ना लाजिमी है। बीते आठ वर्षों की तरह दिल्ली की सरकार का जल आपूर्ति में कमी के लिए हरियाणा को कोसना और फिर इसके लिए सुप्रीम कोर्ट की शरण में जाना इस बार भी जारी रहा। इस बार यह तथ्य उभर कर आया कि राजधानी में पानी की उतनी कमी नहीं है, जितनी उसके प्रबंधन की। भारत सरकार के महाधिवक्ता तुषार मेहता ने जब इस बात के दस्तावेज अदालत के सामने पेश किए कि दिल्ली को मिल रहे पानी की बड़ी मात्रा में बर्बादी हो रही है तो अदालत ने भी इसे गंभीरा से लिया। मेहता ने सरकारी आंकड़ों के हवाले से बताया कि दिल्ली को मिलने वाले प्रत्येक 100 लीटर पानी में से केवल 48.65 लीटर पानी ही लोगों तक पहुंच पाता है। इसका 52.35 प्रतिशत हिस्सा, रिसाव, टैंकर माफिया और औद्योगिक इकाइयों द्वारा चोरी का शिकार है।

राजधानी दिल्ली में इस बार पूरी गर्मी जल संकट स्थाई रूप से डेरा डाले रहा। सरकारी अनुमान है कि दिल्ली की आबादी तीन करोड़ चालीस लाख के करीब पहुंच गई है और यहां हर दिन पानी की मांग प्रतिदिन 1290 मिलियन गेलन (एमएलडी) है जबकि उपलब्ध पानी महज 900 एमएलडी है। इसमें से लगभग आधे पानी का जरिया यमुना ही है, शेष जल ऊपरी गंगा नहर, भाखड़ा बांध आदि से आता है। दिल्ली के 9 में से 7 जल शोधन संयत्र तभी काम करते हैं जब उन्हें मुनक नहर से यमुना का पानी मिले।

मुनक नहर का निर्माण 2003 और 2012 के बीच हरियाणा सरकार ने किया था। यह करनाल जिले में यमुना का पानी लेकर खूबरू और मंडोरा बैराज से होकर दिल्ली के हैदरपुर पहुंचती है। करनाल के मुनक गांव से दिल्ली के हैदरपुर तक नहर 102 किमी लंबी है और यह दिल्ली में महज 16 किलोमीटर का ही सफर करती है। 

विदित हो सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर यमुना जल के बंटवारे के समझौते के ठीक से पालन हेतु गठित ऊपरी यमुना नदी बोर्ड (यूवाईआरबी) के विशेषज्ञों का एक दल पिछले 10 जून को नहर के निरीक्षण पर गया था। इनकी रिपोर्ट है कि हरियाणा से तो पर्याप्त पानी छोड़ा जा रहा है, लेकिन दिल्ली तक पहुंचते-पहुंचते उसका बड़ा हिस्सा गुम जा रहा है। जैसे कि हरियाणा ने मूनक नहर में 2,289 क्यूसेक पानी छोड़ा। काकोरी से भी निर्धारित मात्रा 1050 क्यूसेक की तुलना में 1161.084 क्यूसेक पानी छोड़ा गया। काकोरी वह जगह है, जहां से पानी सीधे दिल्ली पहुंचता है, लेकिन 16 किलोमीटर के रास्ते चलकर बवाना में मूनक नहर को 960.78 क्यूसेक पानी ही पहुंचा। जाहिर है कि लगभग 200 क्यूसेक पानी बीच में ही गायब हो गया। नियमानुसार इस तरह के प्रवाह में पांच फीसद तक जल की क्षति हो सकती है, लेकिन यहां तो 18 प्रतिशत पानी कम हो गया।

आखिर जल प्रबंधन में दिल्ली का प्रशासन किस तरह पीछे है? इसकी बानगी है वजीराबाद जल शोधन संयत्र। वजीराबाद बैराज के पास बने जलाशय से यह पानी लेता है। पहले जलाशय की गहराई हुआ करती थी 4.26 मीटर, इसकी गाद को किसी ने साफ करने की सोची नहीं और अब इसमें महज एक मीटर से भी कम 0.42 मीटर जल-भराव क्षमता रह गई। तभी 134 एमजीडी क्षमता वाला संयत्र आधा पानी भी नहीं निकाल रहा। दिल्ली में पानी का कुप्रबंधन यहीं नहीं रुकता, 40 फीसद पानी जल बोर्ड की पाइप से रिसाव व 18 फीसद चोरी की वजह से उपभोक्ता तक नहीं पहुंचता। कितना दुखद है कि दिल्ली में जिस पानी को पीने लायक बनाने में भारी धन और तंत्र लगता है उसका 70 फीसद सिंचाई, वाहनों की सफाई, शौचालय जैसे गैर पेयजल कार्यों में होता है, जबकि एसटीपी से शोधन कर निकला पानी नाले में बहा दिया जाता है। ईमानदारी से गैर पेयजल कार्यों के लिए इस पानी का इस्तेमाल हो तो दिल्ली में आठ से दस घंटे जल आपूर्ति संभव है। 

एक बात समझनी होगा कि दिल्ली की आबादी अब तीन करोड़ 40 लाख के करीब पहुंच रही है और इस विशाल जन समुदाय को साल भर पर्याप्त पानी देने के लिए अस्थाई या तदर्थ तरीकों से काम चल नहीं सकता। आज तो दिल्ली पानी के लिए पड़ोसी राज्यों पर निर्भर है, लेकिन यह कोई तकनीकी और दूरगामी हल नहीं है। दिल्ली शहर के पास यमुना जैसे सदा नीरा नदी का 42 किलोमीटर लंबा हिस्सा है। इसके अलावा छह सौ से ज्यादा तालाब हैं जो कि बरसात की कम से कम मात्रा होने पर भी सारे साल महानगर का गला तर रखने में सक्षम हैं।

यदि दिल्ली की सीमा में यमुना की सफाई के साथ-साथ गाद निकाल कर पूरी गहराई मिल जाए। इसमें सभी नाले गंदा पानी छोड़ना बंद कर दें तो महज 30 किलोमीटर नदी, जिसकी गहराई दो मीटर हो तो इसमें इतना निर्मल जल साल भर रह सकता है जिससे दिल्ली के हर घर को पर्याप्त जल मिल सकता है। विदित हो नदी का प्रवाह गर्मी में कम रहता है, लेकिन यदि गहराई होगी तो पानी का स्थाई डेरा रहेगा। दिल्ली में यमुना, गंगा और भूजल से 1900 क्यूसेक पानी प्रतिदिन प्रयोग में लाया जाता है। इसका 60 फीसद यानी करीब 1100 क्यूसेक सीवरेज का पानी एकत्र होता है। यदि यह पानी शोधित कर यमुना में डाला जाए तो यमुना निर्मल रहेगी और दिल्ली में पेयजल की किल्लत भी दूर होगी। एक बात और दिल्ली में यमुना का पानी अधिक या खतरे के निशान से ऊपर होने की दशा में सराय कालेखां के पास बारापूला, साकेत में खिड़की के पास सात पूला जैसी संरचनाओं को फिर से जीवित कर दिया जाए तो महानगर के कई जलाशय पानीदार हो जाएंगे।

कभी दिल्ली में यमुना के पानी के घटने बढ़ने को नियंत्रित करने वाली नजफगढ़ प्राकृतिक नहर को नाला बना देने और नजफगढ़ - झील को पुनर्जीवित कर दिया जाए तो दिल्ली के पास अपनी क्षमता से दोगुना जल होगा। नजफगढ़ नाला कभी जयपुर के जीतगढ़ से निकल कर अलवर, कोटपुतली, रेवाड़ी व रोहतक होते हुए नजफगढ़ झील व वहां से दिल्ली में यमुना से मिलने वाली साहिबी या रोहिणी नदी हुआ करती थी। यदि इस नाले को फिर नहर में तब्दील कर दें तो दिल्ली को हरियाणा को हर साल कोसना नहीं पड़ेगा। यह केवल पानी की कमी ही नहीं, बल्कि जलवायु परिवर्तन की मार के चलते चरम गर्मी, सर्दी और बारिश से जूझने में भी सक्षम हैं। और फिर पानी चाहे जितना भी हो, यदि लीकेज और चोरी नहीं रोकी जाए तो यमुना-तालाब लबालब होने के बाद भी दिल्ली जल के मामले में कंगाल ही रह जाएगी। 

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