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हमारी अर्थव्यवस्था का आधार है कृषि 

एक नई सोच की आवश्यकता है ताकि 2047 के विकसित भारत के सपनों को साकार करने में हमारा कृषि क्षेत्र आत्मनिर्भर बन सके, हमारे गाँव और किसान आत्मनिर्भर बन सकें तथा सरकार की सब्सिडी पर निर्भर न रहकर स्वाभिमान और स्वावलंबन का उदाहरण बन सकें। - डॉ. धनपत राम अग्रवाल

 

आर्थिक सर्वेक्षण 2024 की भूमिका लिखते हुए हमारे प्रमुख आर्थिक सलाहकार और विद्वान अर्थशास्त्री डा. वी. अनन्त नागेश्वरन ने बड़े स्पष्ट रूप से और तर्क सहित इस बात पर ज़ोर दिया है कि आने वाले दिनों में सारी दुनिया को कृषि के प्रति अपने दृष्टिकोण को बदलना होगा और एक बार फिर से यह स्वीकार करना होगा कि कृषि ही हमारे जीवन का तथा हमारी अर्थव्यवस्था का दीर्घ स्थायी समाधान और आधार बन सकता है। हमें अपनी जड़ों को पहचानना होगा और आर्थिक विकास में कृषि को ग्रोथ इंजन स्वीकार करना होगा। उन्होंने इस बात का उल्लेख किया है कि बदलते हुए भौगोलिक-राजनैतिक परिदृश्य में विशेषकर जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण, आर्टीफिसियल इंटेलिजेन्स तथा कृषि में उपयोग की जाने वाली कीटनाशक तकनीक के प्रयोग से मिट्टी का विषाक्त होना तथा भोजन प्रणाली में स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव का होना, हमें इस बात के लिये आगाह कर रहा है कि उद्योग और सेवा क्षेत्र एकमात्र विकास का आधार नहीं रह सकता है। इन दिनों श्रम शक्ति वापस कृषि क्षेत्र की तरफ़ माइग्रेट हो रही है और औद्योगिक तथा सेवा क्षेत्र में श्रम नियोजन घट रहा है। कृषि संबंधी उद्योग को बढ़ाकर किसानों की आय को बढ़ाने की आवश्यकता है, जिससे शहरी युवकों को भी रोज़गार के ज़्यादा अवसर मिलेगें। 

भारत/2047 के विकसित भारत के लक्ष्य की प्राप्ति के लिये, समग्र आर्थिक विकास की अवधारणा के चिंतन में भी कृषि संबंधी सभी विषयों का विश्लेषण ज़रूरी है। खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ कृषि योग्य भूमि और फसलों की गुणवत्ता बढ़ाने के लिये बजट 2024-25 में भी इस विषय पर प्राकृतिक खेती और अच्छी नस्ल के बीजों को प्राथमिकता दी गई है। प्रधानमंत्री ने आईसीएआर द्वारा विकसित 109 उत्तम नस्ल की बीजों का अनावरण अभी 11 अगस्त 2024 को किया है तथा प्राकृतिक खेती को बढ़ाने पर भी बल दिया है, जो बजट 2024-25 में की गई घोषणा के अनुरूप है। 

कृषि का विषय व्यापक है और हमारी कुल जनसंख्या का लगभग 42.3 प्रतिशत जीविका का आधार तथा ग्राम्य जीवन इसी पर निर्भर है। 1991 में कृषि हमारी राष्ट्रीय आय का लगभग 35 प्रतिशत हिस्सा होता था, जो अब घटकर मात्र 18.2 प्रतिशत के आस-पास रह गया है। सेवा क्षेत्र, जहां हमारी राष्ट्रीय आय का 55 प्रतिशत से ज़्यादा हिस्सा रखता है, वह सिर्फ़ 25-30 प्रतिशत लोगों को रोज़गार देता है, जिसमें बहुत सारा हिस्सा असंगठित क्षेत्र का होता है। शेष लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा उद्योग क्षेत्र से आता है, जिसमें शिल्प 17 प्रतिशत, कंस्ट्रक्शन 9 प्रतिशत और बाक़ी 4 प्रतिशत खनिज और बिजली उत्पादन है। इस रोज़गार वैषम्य को समझने की आवश्यकता है। देश में जो बेरोज़गारी और ग़रीबी की समस्या है, उसका दीर्घगामी समाधान गांवों का विकास और कृषि क्षेत्र का सम्यक् विकास से ही संभव है। नवाचार, तकनीकी अनुसंधान में कृषि शोध विषयों को प्राथमिकता देनी होगी। हाल के वर्षों में सरकार की सकारात्मक सोच तथा इस दिशा में सही कदम उठाने से पिछले 5 वर्षों में औसतन 4.18 प्रतिशत की प्रतिवर्ष की वृद्धि, कृषि क्षेत्र में हुई उन्नति का द्योतक है। फिर भी इस बात को स्वीकार करना होगा कि कृषि जलवायु पर निर्भर है और पिछले साल 2023-24 में उत्पादन की वृद्धि घटकर सिर्फ़ 1.4 प्रतिशत ही रह गई थी, जो 2022-23 की तुलना में 4.7 प्रतिशत आंकी गई है। चूँकि हमारे कृषि गोदामों में संतोषजनक अनाज के भंडार हैं, जिनका लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा सरकार देश के ग़रीबों को मुफ़्त वितरण करती है, जिसकी संख्या 80 करोड़ से भी ज़्यादा है और यह कार्य पिछले 5 वर्षों से निरंतर चल रहा है, इस गिरावट का बाज़ार मूल्यों पर कोई नकारात्मक असर नहीं आने दिया गया। खाद्य सुरक्षा का यह एक अतुलनीय उदाहरण है। भारत खाद्य पदार्थों संबंधित फसलों का निर्यात भी कुल उत्पादन का 7 प्रतिशत कर रहा है और इस दिशा में पूर्णरूप से आत्मनिर्भर है, सिवाय कुछ दलहन के आयात के, जिसके लिये भी सरकार देश में इसका उत्पादन बढ़ाने के लिये सचेष्ट है। सरकार का कृषि क्षेत्र में एक समग्र दृष्टिकोण है, जिसके अंतर्गत पशु पालन, मत्स्य उत्पादन, दूध उत्पादन तथा इन सबकी उत्पादकता पर भी विशेष ध्यान दिया जा रहा है। विश्व स्तर पर ज़्यादातर खाद्य उत्पादों की उत्पादकता दर हमारे देश में तुलनात्मक ढंग से कम है, इसे जैविक खाद तथा प्राकृतिक तरीक़े से खेती के अन्य लाभ की दृष्टि से समग्र भाव से देखने की आवश्यकता है। हमें जीएम फ़ूड से बचने की आवश्यकता है। मात्रात्मक और गुणात्मक कृषि पर ध्यान रखना ज़रूरी है। आर्थिक सर्वेक्षण के कुछ आँकड़े दिये गये हैं। 

कृषि क्षेत्र में पूँजी निवेश बढ़ाने की तरफ़ सरकार की नज़र है। औसतन वृद्धि 2016-17 से 2022-23 में 9.7 प्रतिशत की दर से हुई है और पिछले दो वर्षों में और भी ज़्यादा रफ़्तार से बढ़ी है। आर्थिक सर्वेक्षण 2024 के अनुसार देश की कुल राष्ट्रीय आय के अनुपात में 2021-22 के 17.7 प्रतिशत से बढ़कर 19.9 प्रतिशत हुई है। कृषि क्षेत्र में निजी क्षेत्र का विनियोजन बढ़ने की आवश्यकता है। 

कृषि आधारित प्रमुख उद्योगों में कपड़ा, जूट, चाय, फ़ूड प्रॉसेसिंग, चीनी मिल, खाद्य तेल, काफ़ी, रबड़, चमड़ा, डायरी अथवा दुग्ध आदि हैं। इसके अलावा ट्रैक्टर, खाद, कीटनाशक दवाइयाँ सहायक उद्योग हैं। इन सभी कृषि संबंधी उद्योगों में रिसर्च तथा नवाचार के आधार पर रोज़गार के अवसर बढ़ाये जा सकते हैं और अप्रत्यक्ष रूप से किसानों की आमदनी को बढ़ाया जा सकता है। 

कृषि उत्पादों के भण्डारण तथा सड़क यातायात को सुविधाजनक बनाने तथा सिंचाई की व्यवस्था अनुकूल बनाने से उत्पादकता भी बढ़ाई जा सकती है तथा फसलों को नष्ट होने से बचाया जा सकता है। एथनॉल और मेथनॉल दोनों ही कृषि आधारित ऊर्जा के स्रोत हैं जिनको ज़्यादा से ज़्यादा उपयोग में लाना ज़रूरी है और इससे एकतरफ़ किसानों की आय बढ़ेगी और दूसरा हमारी ऊर्जा सुरक्षा बढ़ेगी और साथ ही पर्यावरण के लिये भी हितकारी सिद्ध होगा। 

पिछले कुछ सालों में सरकार ने कृषि क्षेत्र के निर्यात में अच्छी वृद्धि की है। भारत अब दुनिया के सर्वोच्च निर्यात करने वाले 10 देशों में 8वें स्थान पर है। साल 2023 में भारत का कृषि निर्यात 51 बिलियन अमरीकी डालर था, जो  साल 2022 के 55 बिलियन अमरीकी डालर की तुलना में थोड़ा कम ज़रूर था, किंतु कुछ भौगोलिक-राजनीतिक कारणों से और कुछ राष्ट्रीय महंगाई को नियंत्रण में रखने की वजह से था, किंतु यह गिरावट प्रायः सभी देशों के लिये सामान्य थी। दुनिया में सबसे बड़े कृषि का निर्यात यूरोप 836 बिलियन अमरीकी डालर और दूसरे स्थान पर अमेरिका है जो 198 बिलियन अमरीकी डालर का निर्यात साल 2023 में किये हैं। कृषि क्षेत्र विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) द्वारा संचालित होता है, जिसके प्रति सदैव जागरूक रहने की आवश्यकता है। 

कृषि क्षेत्र के सामग्र विकास यात्रा में सबसे महत्वपूर्ण बात है कि कृषकों की आय कैसे बढ़े? सरकार ने 2016 में किसानों की आय को दोगुना करने का संकल्प लिया था, किंतु हमारा अन्नदाता अभी भी उत्पादों का सही मूल्य नहीं प्राप्त कर पाता है। सरकार ने न्यूनतम कृषि उपज मूल्य निर्धारण की नीति में कई बार संशोधन किये हैं किंतु किसानों के लागत मूल्य और बाज़ार मूल्य में कहीं न कहीं कुछ फ़र्क़ रह जाता है जो किसानों की समस्याओं को पूरा करने में असमर्थ रह जाते हैं। किसानों की समस्या का जो मूल कारण है वह बहुत ही थोड़ी ज़मीन वाले किसानों से है। हमारे देश में 89.4 प्रतिशत किसानों के सिर्फ़ 2 हेक्टेयर या उससे भी कम ज़मीन है, जिससे उनकी पैदावार लागत ज़्यादा होती है और बाढ़, सूखा आदि प्राकृतिक आपदाओं के कारण उनकी आर्थिक समस्याएँ बनी रह जाती है। सरकार फसल योजना, तथा किसान क्रेडिट कार्ड तथा मंडियों में ख़रीद आदि से उनकी मौलिक समस्याओं को मिटाने की कोशिश में लगी हुई है। अन्य बहुत सी गांव तथा सरकारी योजनाओं के द्वारा सहकारी (एफपीओ) के द्वारा पूरी तरह से प्रयासरत है किंतु एक नई सोच की आवश्यकता है ताकि 2047 के विकसित भारत के सपनों को साकार करने में हमारा कृषि क्षेत्र आत्मनिर्भर बन सके, हमारे गाँव और किसान आत्मनिर्भर बन सकें तथा सरकार की सब्सिडी पर निर्भर न रहकर स्वाभिमान और स्वावलंबन का उदाहरण बन सकें।       

 

लेखक, अखिल भारतीय सहसंयोजक, स्वदेशी जागरण मंच

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