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शिक्षित वर्ग में कुल प्रजनन दर में चिंताजनक गिरावट (Resolution-1, NCM, Lucknow, UP, 28-30 June 24)

जनसांख्यिकी सिद्धांतों के अनुसार, यदि कुल प्रजनन दर 2.1 से नीचे गिरती है, तो भविष्य में देश की जनसंख्या घटने लगेगी। कुल प्रजनन दर (टीएफआर) से हमारा तात्पर्य किसी जनसंख्या में महिलाओं द्वारा अपने जीवनकाल में जन्म लेने वाले बच्चों की औसत संख्या से है। 50 और 80 के दशक के बीच जनसंख्या विस्फोट का अनुभव करने के बाद; अब हमारा देश प्रजनन दर में गिरावट से गुजर रहा है, विशेष रूप से शिक्षित वर्ग में, जिसका जनसंख्या के आकार, संरचना और गुणवत्ता पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकता है।

हम जानते हैं कि चिकित्सा में विकास आर्थिक विकास से पहले होता है। आर्थिक विकास की कमी के  कारण देश में जन्म दर बहुत धीमी गति से घटती है, लेकिन मृत्यु दर तेजी से घटने लगती है। लेकिन 1980 के दशक के बाद जन्म दर में गिरावट की दर भी तेज हो गई, इसलिए जनसंख्या वृद्धि की स्वाभाविक दर भी घटने लगी। मृत्यु दर, विशेषकर शिशु मृत्यु दर में कमी हमारे लिए वरदान बनकर आई और इसके परिणामस्वरूप देश के लिए एक नया अवसर भी पैदा हुआ। शिशु मृत्यु दर घटने के कारण ही कुछ वर्षों के बाद युवावस्था प्राप्त करने वाले बच्चों की संख्या में वृद्धि हुई और देश में युवाओं की आबादी लगातार बढ़ने लगी। यदि हम 2001 के आंकड़ों को लें तो देश में युवाओं (15 से 34 वर्ष आयु वर्ग) की आबादी कुल आबादी का 33.80 प्रतिशत थी, जो 2011 में बढ़कर 34.85 प्रतिशत हो गई और वर्तमान में यह कुल आबादी के 35.3 प्रतिशत से अधिक हो गई है। अगर हम युवाओं की कुल संख्या का अनुमान लगाएं तो यह स्पष्ट हो जाता है कि आज भारत में किसी भी अन्य देश की तुलना में युवाओं की संख्या सबसे अधिक है। युवा आबादी, देश के विकास में अधिक योगदान दे सकती है। आज हर कोई इस जनसांख्यिकीय लाभांश का लाभ उठाने और देश को प्रगति के पथ पर ले जाने की बात कर रहा है। आज अधिकांश अर्थशास्त्री इस बात पर सहमत हैं कि अगर विवेकपूर्ण तरीके से उपयोग किया जाए तो देश में जनसंख्या बोझ नहीं है। जरूरत है कि हम अपनी युवा शक्ति का पूरा और कुशल उपयोग करें।

जनसंख्या में गिरावट की आशंका

दुनिया के ज़्यादातर विकसित देशों में जनसंख्या वृद्धि की प्राकृतिक दर शून्य से नीचे चली गई है। यानी अब इन देशों में जनसंख्या घटने लगी है। इन देशों में प्रजनन दर जनसंख्या वृद्धि की प्राकृतिक दर में गिरावट की ओर इशारा कर रही है। आज एशिया के कुछ देशों - चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और अनेक यूरोपियन देशों जैसे जर्मनी, फ्रांस आदि में घटता टीएफआर बड़ी समस्या बन गया है और इनकी सरकारें अधिक बच्चे पैदा करने के लिए अनेक प्रकार की योजनाएं चल रहीं हैं। लगभग ऐसी ही स्थिति अब भारत में भी बन रही है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में सकल प्रजनन दर वर्ष 2019-21 में 1.99 पर पहुंच गई है। ऐसे में आने वाले समय में जनसंख्या में कमी देखने को मिल सकती है। असली सवाल कुल प्रजनन दर में गिरावट का ज़्यादा नहीं है, ज़्यादा गंभीर चिंता यह है कि कुछ वर्गों में यह बहुत ज़्यादा कम हो गई है और कुछ वर्गों में यह बढ़ भी रही है।

उल्लेखनीय है कि निरक्षर महिलाओं में प्रजनन दर सबसे पहले 1991 में 3.33 से बढ़कर 2001 में 3.36 हुई और बाद में घटकर 2011 में 3.17 हो गई, लेकिन शिक्षित महिलाओं (स्नातक और उससे ऊपर) में यह प्रजनन दर लगातार घट रही है। 1991 में यह 1.62 थी जो 2011 में 1.40 हो गई। ऐसा ही संकेत मैट्रिक से ऊपर शिक्षित लेकिन स्नातक नहीं महिलाओं से भी मिल रहा है, जिनकी प्रजनन दर 1991 में 2.08 से घटकर 2011 में 1.77 हो गई। इन आंकड़ों से यह बात ध्यान में आती है कि अधिकांश निरक्षरों में प्रजनन दर अभी भी अधिक है और शिक्षित और अधिक सुविधा संपन्न लोगों में यह प्रजनन दर काफी कम हो गई है। यानी जो लोग अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा और अन्य तरीकों से बेहतर जीवन दे सकते हैं, उनकी प्रजनन दर कम है और जो लोग अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा और अन्य तरीकों से बेहतर जीवन नहीं दे पाते, उनकी प्रजनन दर कम है। यदि शिक्षित महिलाओं में प्रजनन दर कम है और गिर रही है, तो यह स्थिति भविष्य में जनसंख्या संरचना में सबसे खराब स्थिति की ओर बदलाव का संकेत देती है। इसके अलावा, हम देखते हैं कि कुछ धार्मिक समुदायों में, उनके निम्न शिक्षा स्तर और सांस्कृतिक कारणों से प्रजनन दर उच्च बनी हुई है।

आजकल शहरी क्षेत्रों में एक नई सोच उभर रही है, जो शिक्षित व उच्च शिक्षित लोगों तथा उच्च आय वर्ग के लोगों में अधिक प्रचलित है। यह सोच पश्चिम की उपभोक्तावादी सोच से प्रेरित है। शहरों में कामकाजी दम्पति अब परिवार बढ़ाने के बजाय अधिक स्वतंत्र व विलासितापूर्ण जीवन जीने की आकांक्षा रखते हैं। भारतीय समाज में परिवार संस्था का शुरू से ही विशेष महत्व रहा है। माता-पिता अपने बच्चों के साथ तथा उन बच्चों के विवाह के बाद उनके बच्चे, सभी एक परिवार के रूप में रहते हुए स्वाभाविक सुख का आनंद लेते रहे हैं। लेकिन पिछले कुछ समय से संयुक्त परिवारों का चलन धीरे-धीरे कम होता जा रहा है और इतना ही नहीं, विवाहित बच्चों का अपने माता-पिता के साथ रहने का चलन भी कम होता जा रहा है।

आजकल एकल परिवारों के चलन के कारण कुछ युवा जोड़े अब विवाह के बंधन में नहीं रहना चाहते। इस प्रकार के अधिकांश जोड़ों में परिवार बढ़ाने का कोई कारण नहीं होता। लेकिन जो युवा विवाह कर लेते हैं, उनमें से भी कई लोग परिवार को आगे बढ़ाने में रुचि नहीं रखते। ऐसे तमाम कारणों से शिक्षित युवाओं में कम बच्चे पैदा हो रहे हैं, यानी शिक्षित महिलाओं में प्रजनन दर लगातार कम होती जा रही है। ऐसा महसूस किया गया है कि वृहद परिवार, किसी परिवारकी  स्थायी समृद्धि व सुख में सहायक होता है। वृहद परिवार सामाजिक-सुरक्षा, संस्कार एवंस्थायित्व का भी कारण बनता है और यही बात देश पर भी लागू होती है क्योंकि अंततः देश एक बड़ा समाज-परिवार ही होता है। स्वदेशी जागरण मंच की राष्ट्रीय परिषद, लखनऊ, 28-29-30 जून, शिक्षित महिलाओं में प्रजनन दर में लगातार गिरावट पर चिंता व्यक्त करती है। हम समझते हैं कि यह प्रवृत्ति समाज में बदलती धारणाओं का प्रतिबिंब है कि शिक्षित महिलाओं में प्रजनन दर तेजी से कम हो रही है, जबकि कम शिक्षित महिलाओं में प्रजनन दर में गिरावट बहुत कम है। जनसांख्यिकी में यह उभरती स्थिति देश में जनसंख्या की गुणवत्ता के लिए शुभ संकेत नहीं है। 

इस बात की अधिक संभावना है कि कम संसाधन संपन्न परिवारों में बच्चों का एक बड़ा प्रतिशत निरक्षर और गरीब रह जाए। ऐसी स्थिति में अधिक शिक्षित आबादी का संकुचन और अशिक्षित और कम शिक्षित आबादी का विस्तार जनसंख्या की गुणवत्ता में कमी ला सकता है। सरकार व समाज को सोचना चाहिए कि टीएफआर का 2.0 से कम आने से क्या दुष्परिणाम हमारे आर्थिक भविष्य व सामाजिक संस्कृति के विकास पर पड़ेगा। राष्ट्रीय स्वदेशी जागरण मंच समाज और सरकार से जनसंख्या के आकार, संरचना और गुणवत्ता में इस अनचाही प्रवृत्ति के प्रति विचार-विमर्श करने और समाधान खोजने का आह्वान करता है।

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