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बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तनः भारत की चिंता

आज की परिस्थिति में बांग्लादेश के बारे में कुछ निश्चित नहीं कहा जा सकता परंतु यह स्पष्ट है कि बांग्लादेश की पिछले पंद्रह वर्षों की स्थिरता और आर्थिक प्रगति इस्लामिक कट्टरपंथियों की भेंट चढ़ गई। - विनोद जौहरी,

 

इसी माह 5 अगस्त 2024 को बांग्लादेश में प्रधानमंत्री शेख हसीना को अभूतपूर्व जनाक्रोश, छात्रों के आरक्षण विरोधी आंदोलन, देश भर में अराजकता, हिंसा, सरकारी और निजी सम्पत्तियों को नष्ट करने और आंतरिक विद्रोह के कारण त्यागपत्र देकर भारत में शरण लेने को विवश होना पड़ा। आरक्षण विरोधी छात्रों का आंदोलन छद्म रूप से इस्लामिक कट्टरपंथियों का षड्यंत्र साबित हुआ। उनके सरकारी आवास में जमकर लूटपाट हुई। उनकी अवामी लीग पार्टी हाल ही में इसी वर्ष जनवरी 2024 में ही शेख हसीना के नेत्रत्व में विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनल पार्टी के बहिष्कार के बाद भारी बहुमत से सत्ता में आई थी। शेख हसीना के पिछले 15 वर्षों के कार्यकाल में बांग्लादेश ने एशिया में सबसे अधिक तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था के रूप में ख्याति प्राप्त की थी और विश्व के सभी बड़ी औद्योगिक कंपनियों ने अपनी इंडस्ट्री बांग्लादेश में स्थापित की थीं। बांग्लादेश का सकल घरेलू उत्पाद भी 6 प्रतिशत की दर से आगे बढ़ रहा था और 1971 में पाकिस्तान से स्वतन्त्रता के बाद से यह देश आर्थिक स्थिति में बहुत आगे निकाल चुका था जहां पाकिस्तान की 1947 में स्वतन्त्रता के बाद 77 वर्ष बाद सकल घरेलू उत्पाद में (माइनस 2 प्रतिशत की) गिरावट है और वह विदेशी और घरेलू ऋण में डूबा है।

शेख हसीना के विरुद्ध आंदोलन के दौरान और उनके सत्ता से हटाने के बाद बांग्लादेश में हिंदुओं, बौद्ध और ईसायियों के विरुद्ध भारी हिंसा हो रही है। हिन्दू मंदिरों को जलाकर नष्ट करना, महिलाओं के साथ दुष्कर्म, हत्याएं लगातार हो रही हैं जो घोर चिंता का विषय है और जिसके विरोध में भारत में जगह जगह विरोध प्रदर्शन, रैलियाँ हो रही हैं और केंद्र सरकार कर दवाब डाला जा रहा है कि वह बांग्लादेश में हिदुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करे। बांग्लादेश में भी हिंदुओं ने आंदोलन किया है। 

भारत के साथ बांग्लादेश के मैत्रीपूर्ण संबंध थे और आसाम, त्रिपुरा, मेघालय और बंगाल के साथ 4156 किमी लंबी सीमा पर शांति थी। ऐसा नहीं है कि भारत और बांग्लादेश के बीच समस्याएँ नहीं हैं क्योंकि भारत में बंगलादेशी नागरिक और रोहिङ्ग्य मुसलमान बड़ी सख्या में वर्षों से घुसपैठ किए हुए हैं और अवैध रूप से उनके आधार, वोटर कार्ड, पैन आदि बन गए हैं और भारतीय जनमानस में उनके कारण जनसंख्या बदलाव को लेकर गंभीर चिंताएँ हैं। भारत सरकार भी बांग्लादेश में हिदुओं की सुरक्षा को लेकर चिंतित है और राजनयिक प्रयास किए जा रहे हैं। इसी क्रम में भारत के प्रमुख विपक्षी दल काँग्रेस के सर्वोच्च नेता और संसद में विपक्षी नेता प्रतिपक्ष श्री राहुल गांधी पर भी बांग्लादेश मीडिया में शेख हसीना की सत्ता पलटने और देश में कट्टरपंथियों द्वारा हिंसा, अराजकता फैलाने में विदेशी ताकतों का साथ देने एवं पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा ज़िया के पुत्र तारीक़ रेहमान से लंदन में मिलने के आरोप हैं जिसका काँग्रेस की तरफ से खंडन नहीं हुआ। भारत के लोकतन्त्र में यह ऐसा पहली बार हुआ है कि भारत के किसी राजनीतिक दल पर किसी अन्य देश के सत्ता पलट के विदेशी षड्यंत्र में संलिप्तता का आरोप लगा है। 

शेख हसीना के त्यागपत्र के पश्चात देश को स्थिरता देने के लिए उनके सेना अध्यक्ष वकार उज जमा ने ज़िम्मेदारी ली। पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा ज़िया को नज़रबंदी से मुक्त किया और नोबल पुरुस्कार विजेता 84 वर्षीय मोहम्मद युनूस को पेरिस से बुलाकर उनके नेत्रत्व में अन्तरिम सरकार का गठन किया। ऐसा विश्वास दिलाया गया की मोहम्मद युनूस के नेत्रत्व में सरकार गठन के पश्चात देश में शांति स्थापित होगी और आम चुनाव के पश्चात देश फिर से प्रगति के मार्ग पर अग्रसारित होगा। 

मोहम्मद युनूस के नेतृत्व में सरकार गठन के बाद भी देश में अराजकता, लूटपाट, हिंसा कम नहीं हो रही। उनके शपथ लेने के बाद बांग्लादेश के उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ओबेदुल हसन को कट्टरपंथियों की हिंसक भीड़ ने त्यागपत्र देने को विवश कर दिया। बांग्लादेश बैंक के गवर्नर अब्दुल राऊफ तालुकदार को भी त्यागपत्र देना पड़ा। इस प्रकार बांग्लादेश की न्यायपालिका और अर्थतन्त्र देश में विदेशी षड्यंत्र द्वारा जनित अराजकता की भेंट चढ़ गए। अभी के समाचारों में बांग्लादेश की सेना पर भी हमलों के समाचार हैं। यह बिलकुल वैसा ही परिद्रश्य हैं जैसा पाकिस्तान में है जहां पूरा शासन तंत्र नष्ट भ्रष्ट है। 

पदच्युत शेख हसीना ने सीधे अमेरिका पर बांग्लादेश में हस्तक्षेप और उनको सत्ता से उखाड़ने का आरोप लगाया है जिसके पीछे बांग्लादेश के एक द्वीप सैंट मार्टिन पर अमेरिकी सेना के अड्डे को स्थापित करने का प्रयास था। बांग्लादेश में एक सप्ताह में ही सब कुछ बादल गया और देश दीर्घकालिक अराजकता की भेंट चढ़ गया जो भारत की चिंता का विषय है। विदेशी षड्यंत्र की परतें खुल रही हैं और बांग्लादेश में इस्लामिक कट्टरपंथियों का वर्चस्व स्थापित हो गया है। 

बांग्लादेश में हिंसक सत्ता परिवर्तन का यह पहला घटनाक्रम नहीं है। बांग्लादेश के निर्माता शेख मुजीबुर रहमान की हत्या हुई। पूर्व राष्ट्रपति ज़िया उर रहमान की हत्या हुई। कितने ही विपक्षी नेताओं की हत्या हो चुकी है। इन घटनाक्रमों को दोहरने से आज की भयानक स्थिति का समाधान नहीं निकल सकता। यदि बांग्लादेश और अन्य विदेशी मीडिया और इस्लामिक देशों के मीडिया पर द्रष्टिपात करें तो शेख हसीन पर उनके 15 वर्षों के शासन में निरंकुशता, भ्रष्टाचार, विरोधियों के दमन, अपहरण, हत्याओं के आरोप लगते रहे हैं और प्रमुख विरोधी नेताओं को जेलों में डाला गया है। शेख हसीना के सत्ता छोडने से पहले पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा ज़िया और नोबल पुरुस्कार विजेता एवं वर्तमान सरकार के प्रमुख मोहम्मद युनूस भी जेल में थे और उनपर गंभीर आरोप थे। इन समाचारों से ऐसा स्पष्ट हो रहा था कि बांग्लादेश में लोकतन्त्र निरंकुशता का पर्याय हो गया था। जब इस्लामिक कट्टरपंथी शासन अपने हाथों में ले लेते हैं तो विनाश कोई रोक नहीं सकता। 

आज की परिस्थिति में बांग्लादेश के बारे में कुछ निश्चित नहीं कहा जा सकता परंतु यह स्पष्ट है कि बांग्लादेश की पिछले पंद्रह वर्षों की स्थिरता और आर्थिक प्रगति इस्लामिक कट्टरपंथियों की भेंट चढ़ गई। जिन विदेशी कंपनियों ने बांग्लादेश में अपनी इंडस्ट्री स्थापित की उनको भी इस पर आगे भविष्य के लिए विचार करना होगा। भारत को वहाँ हिंदुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए निर्णायक पहल करने की आवश्यकता है। हाल की वैश्विक घटनाओं, सत्ता परिवर्तनों और विभिन्न देशों में विदेशी हस्तक्षेप से अराजकता और अस्थिरता से यह बिलकुल स्पष्ट हो गया है कि देश की सुरक्षा सर्वोपरि है।

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