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बैंकों में घटता चालू और बचत खाता अनुपात, चिंतन का विषय

बैंकों ने सभी मापदंडों में सुधार दिखाया है, लेकिन अपने घटते कासा अनुपात को नियंत्रित करने में विफल रही, जिससे इसकी शुद्ध ब्याज आय पर असर पड़ा। - विकास सिन्हा

 

भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा प्रकाशित बैंकिंग आंकड़ों ने भारतीय बैंकों के चालू और बचत खाता (कासा) अनुपात में गिरावट की प्रवृत्ति को न केवल बैंकरों के लिए, बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था के लिए भी चिंता का विषय बना दिया है। कासा जमा राशि बैंकों के लिए धन की लागत निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, क्योंकि यह कुल जमा के संबंध में कम लागत वाली जमा के अनुपात का प्रतिनिधित्व करता है। लंबे समय से 40 प्रतिशत के कासा अनुपात को बैंकिंग उद्योग के लिए एक बेंचमार्क माना जाता है। लेकिन हाल ही में रिजर्व बैंक द्वारा प्रकाशित बैंकिंग आंकड़ों से पता चलता है कि अखिल भारतीय अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के लिए कासा अनुपात 31 मार्च 2024 को 40.97 प्रतिशत था जबकि यह अनुपात मार्च 2023 में 43.52 प्रतिशत और मार्च 2022 में 45.15 प्रतिशत था। क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को छोड़कर सभी प्रकार के बैंकों, चाहे निजी हो या सार्वजनिक क्षेत्र, में यह अनुपात समान रूप से नीचे चला जा रहा है। निजी क्षेत्र के बैंकों में यह अनुपात पिछले तीन वर्षों में 46.98 प्रतिशत से घटकर 40.64 प्रतिशत हो गया है, जबकि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिए यह अनुपात 43.70 से घटकर 40.54 प्रतिशत हो गया है। इसका मतलब यह नहीं है कि अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की कासा जमा राशि में कमी आई है। वास्तव में इसकी राशि मार्च 2022 में 76,80,341 करोड़ रुपये से बढ़कर मार्च 2023 में 81,56,674 करोड़ रुपये और अंततः 31 मार्च 2024 तक 87,08,940 करोड़ रुपये हो गई है। 

आरबीआई के आंकड़े बताते हैं कि 31 मार्च 2024 तक एसएसबी की सावधि जमा राशि भी बढ़कर 1,25,44,418 करोड़ रुपये हो गई है। मार्च 2023 में 1,05,85,637 करोड़ रुपये और मार्च 2022 में 93,28,455 करोड़ रुपये। इसका मतलब यह है कि जहां कासा पिछले दो वित्तीय वर्षों में 6.7 और 6.2 प्रतिशत की वार्षिक दर से बढ़ा है, वहीं सावधि जमा में पिछले दो वित्तीय वर्षों में 18.5 प्रतिशत और 13.47 प्रतिशत की अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। इसका मतलब यह है कि सावधि जमा की वृद्धि दर कासा जमा की वृद्धि दर से आगे निकल गई है। इसका अभिप्राय यह निकाला जा सकता है कि ग्राहक सावधि जमा की तरफ ज्यादा आकर्षित हो रहे है और अब वो अपना पैसा बचत या चालु खाता में कम और सावधि जमा में अधिक रखने को इच्छुक हैं। इसका मुख्य कारण हाल के वर्षों में सावधि जमा खातों में बढ़ते ब्याज को माना जा सकता है।

बैंकों द्वारा दी जाने वाली सावधि जमा पर ब्याज दर 7.5 प्रतिशत से 8.50 प्रतिशत तक है, जबकि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा बचत खातों पर दी जाने वाली ब्याज दर 2.5 प्रतिशत से 3.5 प्रतिशत है। ब्याज की इस असमानता ने ग्राहकों को अपने राशि को सावधि जमा में अधिक निवेश करने के लिए प्रेरित किया है। रिज़र्व बैंक के आँकड़ों से निकलने वाला एक और दिलचस्प तथ्य यह है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान ऋण वृद्धि ने जमा वृद्धि को पीछे छोड़ दिया है, जिसमें वित्त वर्ष 24 की अंतिम तिमाही में वर्ष-दर-वर्ष (वर्ष-दर-वर्ष) 19.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। जमा राशि पर ऋण (सीडी) अनुपात में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई, मार्च 2024 तक 380 आधार अंक (बीपीएस) बढ़कर 79.7 प्रतिशत हो गया, जो उच्च ऋण वृद्धि और बैंकिंग क्षेत्र के भीतर विलय के प्रभावों से प्रेरित था। बाजार की बढ़ती ऋण मांग ने बैंकों को अपनी जमा दर को आकर्षक बनाने और परिसंपत्ति देनदारी का उचित मिश्रण बनाए रखने के लिए अपनी जमा दरों में वृद्धि करने के लिए मजबूर किया है। 

वर्तमान में कासा अनुपात अपने बेंचमार्क के आसपास मंडरा रहा है और यदि ऋण उठाव में समान स्थिरता बनी रहती है और मौद्रिक नीति में कोई ढील नहीं होती है तो यह इस स्तर को तोड़ देगा। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने राज्य-संचालित बैंक अधिकारियों को अपनी वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए कम लागत वाले संसाधन जुटाने के लिए रचनात्मक जमा तंत्र पर ध्यान केंद्रित करने का निर्देश दिया है।

कासा जमा राशि बढ़ाने के लिए कुछ सुझाव इस प्रकार हैंः

बचत खाते के साथ ढे़र सारे लाभ की पेशकशः जमाकर्ताओं को आकर्षित करने के लिए बैंक बचत खातों पर कई तरह के लाभ दे सकते है। उदाहरण के लिए, कुछ बैंक ने वेतनभोगी जमाकर्ताओं को लक्षित करते हुए अभियान शुरू किया है, जिसमें 50 लाख रुपये तक का व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा, लॉकर किराये के शुल्क पर छूट, मुफ्त लॉकर संचालन, एक मुफ्त प्लैटिनम रुपे कार्ड जैसे लाभ दिए जा रहे हैं।

ग्रामीण भारत पर ज्यादा फोकसः यह पाया गया है कि ग्रामीण जमाकर्ताओं ने अपना जमा मिश्रण बरकरार रखा है, ग्रामीण जमाकर्ताओं के बीच जमा की अस्थिरता बहुत कम है। पिछले कुछ वित्तीय वर्षों के दौरान क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक का कासा डिपॉजिट बरकरार है, इसलिए बैंकों को ग्रामीण क्षेत्रों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है।

न्यूनतम शेष शुल्क की अवधारणा को समाप्त करनाः कासा खाते को बनाए रखने के लिए न्यूनतम शेष राशि या त्रैमासिक औसत शेष को समाप्त करने से अधिक खाते खोलने को बढ़ावा मिलेगा जिसके परिणामस्वरूप कासा अनुपात बेहतर होगा।

सरकारी लाभार्थी खातों के लिए डिजिटल पहलः सरकारी लाभार्थी खातों को भुगतान के डिजिटल तरीकों को अपनाने के लिए शिक्षित किया जाना चाहिए जिसके परिणामस्वरूप उनमें धन की स्थिरता होगी।

कासा खातों में सावधि जमा और चालू/बचत का मिश्रणः चूंकि ग्राहक म्यूचुअल फंड और अन्य उच्च उपज वाले उपकरणों की ओर बढ़ रहे हैं, इसलिए बैंक लचीले कासा खातों की पेशकश कर सकते हैं, जो किसी दिए गए शेष राशि के अलावा बेहतर ब्याज दर के साथ चालू/बचत के साथ-साथ अल्पकालिक जमा का मिश्रण भी प्रदान कर सकते हैं।

मौद्रिक नीति में ढ़ीलः हाल के वर्षों में आरबीआई ने अपनी रेपो दर को अपरिवर्तित और उच्च स्तर पर बनाए रखा है, जिसके परिणामस्वरूप क्रेडिट और जमा पर उच्च ब्याज दर हो गई है।

रेपो दर में ढील के साथ क्रेडिट और जमा दर दोनों नीचे की ओर चले जाएंगे, जिससे सावधि जमा कम आकर्षक हो जाएंगे और अधिक धन का प्रवाह कासा खातों की तरफ होगा।

हाल के वर्षों में भारतीय बैंकों ने अच्छा मुनाफा दिखाया है और उच्च लाभांश की घोषणा की है। बैंकों ने सभी मापदंडों में सुधार दिखाया है, लेकिन अपने घटते कासा अनुपात को नियंत्रित करने में विफल रही, जिससे इसकी शुद्ध ब्याज आय पर असर पड़ा। आर्थिक विकास की गति को बनाए रखने के लिए बैंकों की ओर से शीघ्र सुधारात्मक कार्यवाही अपेक्षित है।

 

लेखक पंजाब नेशनल बैंक (दिल्ली) के मुख्य प्रबंधक है।

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